सोनाझुरी और कबीगुरु (भाग 9) अंतिम भाग – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

“ओह…बहुत देर तक सोया रहा क्या!! टाइम का तो पता ही नहीं चला!! सॉरी…सॉरी!”- सुमित ने घिघियाते हुए कहा। फिर उसकी नज़र शौमित के कपड़ों पर पड़ी। वह मैरून कलर का पंजाबी कुर्ता और क्रीम कलर के पायजामे में खड़ा बहुत प्यारा लग रहा था। सौमित ने फिर बताया कि नमिता ने उसे सोनाझुरी हाट से यह ड्रेस खरीद कर दिया।

“पहले भी आपने मेरे लिए कपड़े खरीदे! अब इतने पैसे खर्च करने की क्या जरूरत थी, नमिता जी!”- सुमित ने कृतज्ञता से कहा।

“आप न बिल्कुल चुप रहिए!! ये कपड़े मैंने आपको थोड़े ही दिए हैं! ये तो मैंने अपने बेटे को दिया है! और आप यहाँ खड़े-खड़े क्या कर रहे हैं?? चलिए जाइए और फटाफट रेडी होकर आइए!! आपके कारण हमसब ऑलरेडी लेट हो चुके हैं!”- नमिता की बातें सुन सुमित की घिग्घी बंध गई। शौमित वहाँ खड़ा मंद-मंद मुस्का रहा था। नमिता अपने कमरे की तरफ वापस लौट गयी, जबकि कमरे में सुमित फटाफट तैयार होने लगा। शौमित वहीं बालकोनी में बैठ चारो तरफ फैले हरियाली को निहारता रहा। 

थोड़ी देर में दोनों बाप-बेटे नीचे आये। तबतक नमिता भी अपनी सहेलियों के साथ आती दिखी।

“मैंने रिसोर्ट वाले को बोलकर गाड़ी का इंतज़ाम कर दिया है। थोड़ी देर में गाड़ी आ जाएगी।”- नमिता के पास आने पर सुमित ने उससे कहा और सभी साथ ही रेस्टुरेंट की तरफ बढ़ने लगे।

“तेरी इसी नी अदा पे सनम, मेरे दिल को करार आया!” –सबके साथ चल रही आशा ने गाने के बोलों को ऐसे गुनगुनाया जैसे कोई शायरी पढ़ रही हो, जिसे सुमित ने सुन लिया था। आँखे दिखाकर नमिता ने उसे केहूनी मारी। “हद है मतलब….अब कोई गाना भी न गाये! हाय….दिल दिया, दर्द लिया!!” -अब सभी उसकी तरफ घूरने लगे तो उसने झट से अपना मुंह हाथों से ढँक लिया।

रेस्टुरेंट में आकर सभी ने जल्दी-जल्दी अपना नाश्ता खत्म किया और गाड़ी में बैठ निकल पड़े।

नमिता का स्वभाव, उसका बात-व्यवहार, उसका और शौमित का एक-दूसरे के साथ इतने अच्छे से घुलमिल जाना, सुमित के प्रति उसका इतना अपनापन भरा रवैया। ये सारी बातें सुमित के दिल में घर कर रही थी और वह खुद भी समझ न पाया कि कब वह नमिता को पसंद करने लगा। शायद यही वजह था कि सुमित को नमिता का अपने आसपास रहना भाने लगा था। पर ये सारी बातें उसके भीतर राज बनकर दफ्न थी, जिसे वह राज ही रखना चाहता था। अपनी शादीशुदा ज़िंदगी बिखरने के बाद वह भीतर से इस कदर टूट चुका था कि अपनी ज़िंदगी में दूबारा किसी के बारे में सोचने भर से ही सिहर उठता। अपने बगल में बैठे सुमित को फिर से किसी शून्य में खोया देख नमिता बोली- “हद है मतलब….फिर से अपनी दुनिया में खो गये! हैलो…सुमित जी!! ये बार-बार कहाँ खो जाते हैं आप??” 

नमिता पिछली सीट पर सुमित के साथ बैठी थी जबकि आगे ड्राइवर के बगल वाली सीट पर शौमित बैठा था और उनकी कार कोपाई नदी के तट की तरफ तेजी से बढ़ी जा रही थी। नमिता की बातों पर सुमित का ध्यान टूटा और उसकी तरफ देखकर वह बोला- “आपने मुझसे कुछ कहा क्या??”

शौमित और नमिता दोनों खिलखिलाकर हँस पड़े। “अजी नहीं…आपसे कहाँ! मैं तो खुद से ही बातें कर रही थी!”- नमिता ने अपना मुंह बनाते हुए कहा। उसकी बातों से सुमित समझ चुका था कि वह उसकी खींचाई कर रही है।

थोड़ी ही देर में सभी कोपाई नदी के तट पर पहुंचे। वहां पर्यटकों की ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी और वह नज़ारा अविस्मरणीय था। कोपाई नदी की बहती धारा से कलकल करती आवाज़ कानों में मिश्री घोल रहे थे। तट पर खड़ा सुमित, शौमित, नमिता और उसकी सभी सहेलियां चारो तरफ निहार रहे थे।

तभी सुमित के मोबाइल पर कोई कॉल आया और वह एक तरफ होकर उसपर बात करने में व्यस्त हो गया। चंद मिनटों बाद मोबाइल जेब में डाल जब मुड़ा तो नमिता और शौमित किसी बात पर ठठाकर हंस रहे थे। शौमित के चेहरे की खुशी और उसे इतना खुलकर हंसते देख सुमित की आंखें द्रवित हो आयी। अपने पिता के गम्भीर चेहरे को देख शौमित उसके पास आया तो सुमित ने उसे अपने सीने से लगा लिया। नमिता तट पर खड़ी आशा और नबनिता से बात करने में व्यस्त थी। सुमित की निगाहें अब नमिता पर टिक गई, जिसकी वजह से शौमित के चेहरे पर इन दिनों उसने खुशी की लहर देखी थी। मन ही मन वह नमिता का शुक्रगुजार था। दूर खड़ी नमिता की नज़रे भी अब सुमित और शौमित को ही निहारने लगी थी। फिर किसी सहेली के आवाज़ देने पर वह उससे गप्पे हाँकने में व्यस्त हो गई।

“सुमित जी, मुझे आपसे कुछ जरुरी बात करनी हैं।”- सुमित के पास आकर आशा ने उससे गम्भीर होकर कहा। नमिता से नज़रें बचाकर वह बड़ी मुश्किल से सुमित के पास आ सकी थी।

“हाँ, बताइए? क्या कहना है?” सुमित की सवालिया निगाहें आशा पर टिक गई।

“कल रात नमिता बहुत रो रही थी।”

“रो रही थी! पर क्यूं??”

“वो हाट में कल आपकी एक्स….”- आशा ने अपनी बात अभी शुरू भी नहीं की थी कि नमिता ने आकर उसे बीच में ही रोक दिया।

“मैंने मना किया था न तुझे कि अनाप-शनाप कुछ भी नहीं बोलेगी! अब चल, तू जा यहाँ से!!”- नमिता ने अपनी आवाज़ उंची करते हुए कहा।

“पर नमिता, तू समझती नहीं!”- आशा ने अपनी बात रखने की कोशिश की। पर नमिता कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी।

“मैंने कहा न तू जा यहाँ से!!”- नमिता ने भौवें तानकर कहा तो आशा कुछ बोल न पायी और पास खड़े शौमित को अपने साथ लेकर सहेलियों के बीच चली गयी।

“नमिता जी, आशा क्या बताना चाह रही थी और आपने उसे रोक क्यूं दिया? आप कल रो रही थी? क्यूं??”- सुमित ने गम्भीर होकर पुछा। पर नमिता से कोई जवाब न मिला। हालांकि आशा की आधी-अधूरी बातों से उसने नमिता के रोने की वज़ह का अंदाज़ा लगा लिया था। पर नमिता की भारी होती आंखें उसे भीतर ही भीतर बेचैन कर रही थी।

नमिता की सहेलियाँ दूर नदीतट पर बैठी हंसी-ठिठोली कर रही थी। जबकि आशा, नबनिता और शौमित मोबाइल पर एक-दूसरे की तस्वीर लेने में व्यस्त थे।

वहां फैला हर्षोल्लास देख मानो अम्बर में फैले मेघ भी बरसने को बेताब थे। उनके बीच भी गर्जना हो शुरु हो गई जिसने देखते ही देखते बूँदाबांदी का शक्ल इख्तियार कर लिया। पर कला की इस जमीं पर वे मेघ भी शायद अपनी कलाकारी का कोई नमूना पेश करने आए थे, जिन्होने चारो तरफ फैली हरियाली को और गहरे रंग में रंग डाला था।

शौमित और नमिता की सभी सहेलियाँ वहीं तट पर एक घने पेड़ के नीचे खड़े हर तरफ फैली हरियाली और उसे चीरकर निकलती नदीधारा को निहार रहे थे। उनसे दूर खड़े नमिता और सुमित ने भी एक शेड में शरण ले लिया था। जबकि बारिश से बचने के लिए कोई स्थानीय गायक हाथो में इकतारा लिए वहीं कुछ दुरी पर एक पेड़ के नीचे बैठा था।

सुमित के पास बैठी नमिता की नज़रें अनायास ही उससे जा टकरायी और असहज़ होकर अगले ही पल उसने अपनी नज़रें झुंका ली। फिर उसी मुद्रा में काफी देर बैठी कुछ सोचती रही। सुमित ने उसके झुंके लेकिन गम्भीर चेहरे पर नज़रे टिकाकर पुछा- “कल हाट में ऐसा क्या हुआ था जिसने आपको रोने पर मजबूर कर दिया?

अबतक नमिता ने बड़ी मुश्किल से आंखों के पोरों में अपनी भावनाओं को रोके रखा था। पर सुमित के शब्दों ने उन्हे आंसुओं का रूप दे दिया और वे नमिता के गालों पर बिखर पड़े। उन आंसुओं ने जैसे नमिता के भीतर चल रहे सारी बातों की चुगली कर डाली थी।

“देखो नमिता! मैं नहीं चाहता कि पिछले दस वर्षो में मैंने जो दुख झेले हैं और जिन तकलीफ़ों से बच-बचाकर अपने बेटे को बड़ा किया, उन बूरे दिनों की हल्की-सी छाया भी तुम पर पड़े। मुझे ये तो नहीं मालूम कि कल हाट में परिधि ने तुमसे क्या कहा! लेकिन इतना तो पता चल गया कि उसने तुम्हारे साथ अच्छा सलूक नहीं किया और तुम्हारे चेहरे की लकीरें भी ये साफ बयां कर रही हैं।”- अपनी शर्मिंदगी जाहिर करते हुए सुमित ने नमिता से कहा और उसके मन को पहुंचे ठेस के लिए खेद व्यक्त करते हुए अपने दोनों हाथ जोड़ लिये।

“नहीं सुमित जी! प्लीज़ ऐसा मत करिये!! इसमें आपकी कोई गलती नहीं! परिधि से मिलकर मुझे समझ में आ गया कि पिछले दस सालों में आपने और शौमित ने न जाने क्या-क्या झेला होगा! प्लीज़ आप माफी मत मांगिए!!” –सुमित की आखों में झांकते हुए नमिता ने उससे भारी मन से कहा और आंसू की एक बूंद आंखों से पिघल कर उसकी हथेली पर आ गिरे।

“मैं बताती हूँ सुमित जी कि कल हाट में क्या हुआ था!” –अचानक से सामने आकर आशा ने कहा, जिसकी नज़रें काफी देर से नमिता पर ही टिकी थी। दूर से ही नमिता के चेहरे पर छायी उदासी देख वह खुद को रोक नहीं पायी थी। 

“दरअसल कल परिधि ने नमिता पर तंज़ कसा था कि आप बाप-बेटे इससे बहुत घुलमिल गए हैं और इसे आपके साथ शादी कर लेनी चाहिए।” –नमिता ने सुमित को बताया।

“चुप रहो तुम!!”- आंखें दिखाकर नमिता गुस्से से बोली, जिसका आशा पर जरा भी असर होते न दिखा।

“साफ-साफ दिखता है कि आपदोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। देर से ही सही, पर अभी भी समय खत्म नहीं हुआ। किस्मत को भी शायद यही मंज़ूर है, तभी तो उसने आपदोनों को सोनाझुरी और कबीगुरु के इस जमीं पर मिलाया।”

“आशा, प्लीज़ चुप हो जाओ!”  

“जो बीत गया उसे भूलकर यहीं से अपनी ज़िंदगी की नई शुरआत करिये।” – आशा ने सुमित की तरफ देखते हुए कहा।

नमिता के भीतर अब भावनाओं के सैलाब उमड़ने लगे थे और जी कर रहा था कि वह चीख-चीखकर रोये। सुमित को वो पसंद तो करती थी और जीवनपथ पर उसके साथ कदम से कदम मिलाकर चलना भी चाहती थी, पर न जाने क्या था जिसने उसके मन में छिपी भावनाओं को सुमित के सामने लाने से रोक रखा था।

“बस….बहुत हुआ!! ये क्या अनाप-शनाप बके जा रही हो तुम! जाओ यहाँ से!!!”- गुस्से से उबलती नमिता ने आशा की तरफ एक कदम बढ़ाकर कहा। पर आशा अपनी जगह से हिली भी नहीं।

तभी अपना हाथ बढ़ाकर सुमित ने नमिता का हाथ थामा, जिससे उसके भीतर उमड़ रहा सैलाब मानों बर्फ बनकर जम गया। मुड़कर उसने सुमित की आंखों में झांका और उसे पढ़ने की कोशिश करने लगी।

“नमिता, इन दो दिनों में जीवनसाथी के असल मायने का एहसास जो तुमने मुझे कराया, मैं वो एहसास जीवन भर के लिए चाहता हूँ। शौमित बहुत खुश होगा, तुम्हारे रूप में अपनी माँ का प्यार पाकर! अगर मुझे अपने लायक समझो तो अगली बार सोनाझुरी और कबीगुरु के इस प्रदेश में तुम्हारे साथ एक पति-पत्नी के रूप में आना चाहता हूँ।”- नमिता की आंखों में अपनी नज़रें टिकाकर सुमित ने उससे कहा।

नमिता के होंठ उसकी भावनाओं का साथ नहीं दे रहे थे। पर उसका खिला चेहरा उसका हाले-दिल बयां कर रहा था। पास खड़ी आशा उनके परवान चढ़ते प्यार की जीती-जागती गवाह थी और उसका चेहरा भी खुशी से खिला था।

नमिता का हाथ अभी भी सुमित ने थाम रखा था और बिना पलकें झंपकाए उसकी निगाहें नमिता के जवाब का इंतज़ार कर रही थी। नमिता ने सुमित के हाथों से अपना हाथ छुड़ाया और इशारे से दूर खड़े शौमित को अपने पास बुलाया।

“शौमित बेटा, चलो हमलोग इस पल को हमेशा के लिए तस्वीर में क़ैद कर लेते हैं ताकि याद रहे कि हमें फिर से एकसाथ यहाँ आना है।”- नमिता ने शौमित से कहा। फिर मुस्कुराकर सुमित की आँखों में झाँका। उसकी बातों ने इशारा दे दिया था उसने सुमित को जीवनसाथी के रूप में स्वीकार कर लिया है।

शौमित की अंगुली पकड़ नदीतट की तरफ उसने अपना कदम बढ़ाया। फिर अचानक से ठिठकी और पीछे खड़े सुमित की तरफ देख उसे अपना हाथ दिया, जिसे सुमित ने थाम लिया। हाथों में हाथ थामे तीनों को अब नदी का किनारा मिल चुका था।

बूँदाबांदी थम चुकी थी और आकाश के काले बादल छटने लगे थे। पास बैठा बाउल गायक भी अब स्वच्छंद होकर इकतारे पे कोई तान छेड़े हुए था।

उमंग से भरी आशा ने बाउल गायक की तरफ देख उससे कहा- “अरे काका, ये मिलन की घड़ी है। आज कोई अच्छा सा धून सुनाओ।”

अब समूचा कोपाई तट उस बाउल गायक की रबीन्द्रधून से गूंजने लगा था।

एसो आमार घोरे

दिल में है घर तुम्हारा अब आँखों में उतर आओ

लांघ के स्वप्न की चौखट,

सुबह की पहली किरण बन मोहित आँखों में बस आओ

क्षणिक झलक से शाश्वत का सफर तय कर,

आओ बस तुम आ जाओ

दुःखसुखेर दोले एसो, प्राणेर हिल्लोले एसो

फेले आसार अरूप वाणी फागुनबतासे

वनेर आकुल निःस्वासे-

एवार फुलेर प्रफ़ुल्ल रूप एसो बूकेर पोरे

॥ समाप्त ॥

गीत साभार #रबीन्द्रसंगीत

कहानी मूलकृति : श्वेत कुमार सिन्हा

#श्वेत_कुमार_सिन्हा

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