सोनाझुरी और कबीगुरु (भाग 4) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

कमरे में लेटा सुमित काफी देर तक अपने बेटे के लड़कपन की यादों में गुम रहा। नमिता की तरफ आज उसे एक अजीब-सा खींचाव महसूस हो रहा था। नमिता की बातें, उसका स्पर्श, उसकी मौजुदगी और सबसे बढ़कर शौमित के प्रति उसका अपनापन- ये सारी बातें उसके हृदय में घर कर चुकी थी। काफी देर तक वह इन सबमें खोया रहा, फिर उठा और नहाधोकर रेस्टुरेंट की तरफ बढ़ गया।

अबतक सुबह के नौ बज चुके थे। सूरज की किरणें लाल मिट्टी पर ऐसे पड़ रही थी, मानो पुस मेला घूमने निकली किसी भद्र महिला ने अपने माथे पर एक बड़ी-सी लाल बिंदी लगा रखी हो। कुछ पल खुले आकाश के नीचे समय बीताने के बाद सुमित रेस्टुरेंट की तरफ बढ़ने लगा कि तभी उसका ध्यान पेड़ों के झुरमूठ से निहार रहे आठ-दस साल के एक बच्चे पर पड़ा। उसके कपड़ों से वह आसपास का ही रहने वाला प्रतीत हो रहा था। सुमित ने इशारे से उसे अपने पास बुलाया, जिसपर पहले तो वह ठिठका फिर झिझकते हुए अपने कदम आगे बढ़ाये।

“इधर आओ मेरे पास! इतनी देर से क्या देख रहे हो? कुछ चाहिए?”- सुमित ने उससे पुचकारते हुए पुछा।

“आमि खाबार खेते चाई। (मुझे खाना खाना है।)- उस बच्चे ने झिझकते हुए कहा।

“आमियो खेते चाई! चलो हमदोनों एकसाथ पेट पूजा करते हैं।”- सुमित ने उसके पीठ पर हाथ रखते हुए कहा और अपने साथ लेकर रेस्टुरेंट के भीतर आया।

थोड़ी ही देर में टेबल पर दो थालियाँ लगी जिसमें गरमा-गरम लूचि-छोला परोसा गया जिसे देख उस बच्चे की आँखें फैल गई। सुमित ने थाली की तरफ इशारा किया और देखते ही देखते उस बच्चे ने पूरी थाली चट कर डाली। सुमित ने भी अपनी थाली खत्म की और वहीं बैठ उस बच्चे के खाना खत्म होने का इंतज़ार करने लगा। रेस्टुरेंट वाले ने बताया कि यह बच्चा पास के आदिवासी समुदाय का रहनेवाला है। इसके माता-पिता यहाँ हाट में स्टॉल लगाते हैं और मौका पाकर यह बच्चा इधर आ गया होगा।

रेस्टुरेंटवाले की बात सुन वह बच्चा डरकर सुमित की तरफ देखने लगा। सुमित अभी कुछ बोलता, इससे पहले ही वह फफक पड़ा- “आमार बाबा हाटे दोकान करेछेन, ताई चोख बांछिये एखने एसेछे। (मेरे पिताजी ने हाट में दुकान लगाया है, उनसे नज़रें बचाकर मैं इधर आ गया।)” इतना बोलते हुए वह फुट-फुटकर रोने लगा।

“अरे अरे… इसमें रोने वाली कौन-सी बात है। मैं कुछ बोल थोड़े ही रहा हूँ! शांत हो जाओ। चलो,मैं तुम्हें तुम्हारे बाबा के पास छोड़ आता हूँ।”

“ना, बाबार काछे अभिजोग करले आमाके मारबे। (नहीं, पिताजी से मेरी शिकायत करोगे तो वह मुझे पीटेंगे।)- यह बोलते हुए वह बच्चा फिर से बिलखने लगा।

“अच्छा, ठीक है। मत रो। मैं नहीं जाऊंगा तुम्हारे बाबा के पास। लेकिन यहाँ से निकल सीधे उनके पास ही जाना। इधर-उधर बिल्कुल नहीं जाना, नहीं तो उन्हे तुम्हारी चिंता होगी। ठीक है??” – सुमित ने कहा, जिसपर उस बच्चे ने सिर हिलाकर हामी भर दी। फिर उसे अपने साथ लेकर सुमित रेस्टुरेंट के बाहर तक आया और दूर तक उसे जाता हुआ देखता रहा।

रेस्टुरेंट वाले ने सुमित को बताया कि उस बच्चे का पिता हाट में हस्त कारीगरी के काफी उन्नत दर्जे के खिलौने और साज-सज्जा के सामान बिक्री के लिए लेकर आता है। वह बच्चा आसपास की हरियाली को निहारते अपने पिता की तरफ बढ़ा चला जा रहा था, जिसे देख सुमित और रेस्टुरेंट का वह स्टाफ हँसे बिना न रह सके।

तभी नमिता अपनी सहेलियों के साथ रेस्टुरेंट की तरफ आती दिखी। उनलोगों ने सुमित को दूर से ही देख लिया था। आशा ने ज़ोर से खाँसते हुए अपना गला साफ किया और नमिता की तरफ कनखी से देखकर गुनगुनाने लगी- “आज मौसम बड़ा बेईमान है, बड़ा बेईमान है आज मौसम!”

“बिल्कुल चुप रह तू…!! उनके सामने एक भी शब्द ऐसा-वैसा निकाली तो देख लेना! कहे दे रही हूँ, मुझसे बुरा कोई न होगा!”- आशा की तरफ अंगुली दिखा उसे चेताती हुई नमिता ने कहा।

“हुह..अब गाने की भी मनाही है! एक दिन मुंह खोलने पर भी पाबंदी लग जाएगी! दोस्त है या दुश्मन!!” – आशा ने इधर-उधर देखते हुए कहा। नमिता की घूरती निगाहें अभी भी उसपर ही टिकी थी।

रिसोर्ट के बाहर खड़ा सुमित हर तरफ पर्यटकों के चहलपहल को निहार रहा था। कुछ घंटे पहले जहां सन्नाटा पसरा था, वहीं अब समूचा सोनाझुरी प्रदेश संस्कृति के अजब-गज़ब रंग में नहा चुका था।

पूरा इलाका दूर-दूर से आए पर्यटकों और हस्तकला शिल्प की विभिन्न मनलुभावन सामग्रियों से पटा पड़ा था।  कानों को छू रहे बाउल गान और उसपर थिरक रहे स्थानीय नृतकों के घूँघरू मन को भावविभोर कर रहे थे।

सुमित के पास आकर नमिता बोली- “अभी मेरी भाई से बात हुई। वो और शौमित एक घंटे में यहाँ पहुँच जाएंगे। वे लोग इस समय भेदिया पहुंचे हैं, जो यहाँ से करीब दस-बारह किलोमीटर की दूरी पर है।”

सुमित ने ब्लू रंग का हाफ टी-शर्ट और ब्लैक जींस पहन रखा था। जबकि नमिता ने ग्रीन कलर की कुर्ती और मैरून रंग के पलाजू डाल रखे थे। उसकी पूरी कुर्ती पर छोटे-छोटे ढेर सारा इकतारा प्रिंटेड था, जो उसपर बहुत फब रहा था।

नमिता ने बड़े गौर से सुमित को ऊपर से नीचे तक निहारा, फिर बोली- “आपने ब्रेकफास्ट कर लिया?” सुमित ने अपना सिर हिला दिया। “ठीक है फिर। आप मेरा इंतज़ार करिये, मैं अभी ब्रेकफ़ास्ट करके आयी।” – नमिता ने कहा।

“ऐंड दिस इज़ ऐन ऑर्डर!”- पास खड़ी आशा बुदबुदायी। नमिता ने उसे घूरकर देखा तो वह हिचकती हुई बोली-“म म मै तो खाने के ऑर्डर के बारे में बोल रही थी!”

सुमित वहीं खुले आकाश के नीचे इधर-उधर टहलता रहा, जबतक कि नमिता रेस्टुरेंट से बाहर नहीं आ गयी।

“चलिए मेरे साथ।”- सुमित के पास आकर नमिता ने उससे कहा और सोनाझुरी हाट की तरफ बढ़ गयी।

“पर नमिता जी, कुछ बताइए तो हमलोग जा किधर रहे हैं?”- सुमित ने कौतूहलवश पुछा।

“ओह…थोड़ी देर चुप नहीं रह सकते! चुपचाप चलिए मेरे साथ!”- सुमित को डांट लगाते हुए नमिता बोली, जिसमें डांट से ज्यादा अपनापन झलक रहा था।

बिना कुछ कहे सुमित उसके साथ बढ़ता रहा। हाट में एक कपड़े के स्टॉल पर आकर नमिता रुकी और सुमित की नाप के पंजाबी कुर्ते और पायजामा तलाशने लगी। एक-एक करके वह स्टॉल पर लगे कुर्ते को उठाती और सुमित के आगे फैलाकर देखती। चार-पांच कुर्तों के बीच में एक नीले रंग का पंजाबी कुर्ता नमिता की आंखों में जंच गया, जिसके साथ उसने एक सफेद रंग का पायजामा भी खरीदा।

जब पैसे देने की बारी आयी तो सुमित ने जेब में हाथ डाला। “बिल्कुल नहीं!! चुपचाप खड़े रहिए! जेब में हाथ डालने की कोई जरुरत नहीं! ये मेरी तरफ से आपके लिए गिफ्ट है, जब शौमित आएगा तो उसके साथ यहीं पहनकर आप हाट में घुमने जाएंगे!”- सुमित पर अधिकार जताते हुए नमिता ने कहा, जैसे वो जन्म-जन्मांतर से सदा उसके ही साथ है। भारी मन से सुमित की आँखें नमिता को निहारती रही।

“हैलो….! सुमित जी!! कहाँ खो गये?” – नमिता ने चुटकी बजाकर शून्य में खोए सुमित का ध्यान अपनी तरफ खींचते हुए कहा। बिना पलकें झंपकाए सुमित एकटक नमिता को निहारता रहा।

“अब आप मुझे देखते ही रहेंगे या वापस चलेंगे!!”- नमिता ने कहा तो सुमित झेंपकर इधर-उधर देखने लगा।..

अगला भाग

सोनाझुरी और कबीगुरु (भाग 5) – श्वेत कुमार सिन्हा : Moral Stories in Hindi

 

written by Shwet Kumar Sinha

© SCA Mumbai

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