बंद करो अपना ये नाटक! – संध्या सिन्हा : Moral stories in hindi

“गोल्स पाने की खुशी तभी महसूस होती है, जब उसे किसी के साथ शेयर कर सको।”

यह सोच कर हाथ में मिठाई का डिब्बा लिए हुए रोहनी घर में प्रवेश करती है ।

तभी सोमेश कहता है मां ! ” क्या आज फिर आपको छोड़ने मनोज जी आए थे” ?

हां तो ?

तुमने आज से पहले तो ऐसा प्रश्न नहीं किया ?

“मैं जो पूछ रहा हूं पहले उसका जवाब दीजिए ” ?

अच्छा तो आज तुम मुझसे प्रश्न भी करोगे?” बातें छोड़ो मिठाई खाओ”, सुमन कहां हैं ? वो भी तो आज ससुराल से आने वाली थी । सब मिलकर मिठाई खाओ ।

तभी सुमन भी तुनक कर बोली, “पहले जो भैया पूछ रहे हैं “, “आप पहले उसका जवाब दीजिए” ?

आज हो क्या गया है तुम सबको ?

“मैं तुम सब के लिए मिठाई लेकर आयी” । आज मेरी पुस्तक का विमोचन हुआ । एक तो तुम में से कोई उसमें आया नहीं ,,पता है सबके घर से सब लोग आए थे ,,,मुझे कितना बुरा लगा,,मैं तो सबसे बहाना ही बनाती रही..

चलो नहीं आए, कोई बात नहीं, पर देखो तो मेरी नई पुस्तक ।

लगभग पुस्तक को जमीन पर फैंकते हुए, सोमेश चिल्लाया और बोला-# “ बंद करिए आपना ये नाटक !”

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“कौनसा नाटक और कैसा नाटक” ? बेटा !

“मेरे लिए आज का दिन कितना महत्वपूर्ण था” । “तुम में से किसी ने फोन भी नहीं किया” , कोई बात नहीं, मैंने सोचा घर जाकर सबके साथ खुशियां मनाऊंगी ,,पर आज तो घर का एक अलग ही रूप देख रही हूं ।

आज हुआ क्या है ?

मां ! “आपको ये लिखने पढ़ने का कौनसा भूत सवार हुआ है ! बे सिर पैर की कविताएं और बिना बात की कथाएं ! क्यों लिखती रहती हो” ?

“छोड़ दो ना लिखना , आखिर क्या मिलता है लिख कर “?

प्रश्नों के तीर एक के बाद एक , रोहिणी की तरफ आ रहे थे और कोशिश करने के बाद भी, एक भी तीर विफल नहीं हो रहा था । हर दूसरा तीर पहले तीर से और ज्यादा घातक !तीरो की चुभन से बचना नामुमकिन हो रहा था ।

पिछले पांच सालो से लिख रही हूं, तो आज ऐसा क्या हुआ ?

“तभी सोमेश चिल्ला के बोला प्यार से बोल रहे हैं तो आपको समझ नहीं आ रहा “।

आखिर क्या समझना हैं मुझे और क्यों ? पचपन साल की उम्र में आज तुम सब मिलकर मुझे समझाओगे ,साफ साफ बोलो , चल क्या रहा है, तुम सबके दिमाग में ।

“तो सुनो हमें आपका ये कविता ,कथा पसंद नहीं ! आप ये काम छोड़ क्यों नहीं देती” । “मन लगाने के लिए आप कुछ और भी तो कर सकती हो ना ” ?

हाँ जरूर कर सकती हूं , और बोलो ?लेकिन जो हमें अच्छा लगेगा, वही करूँगी।

“इंसान को डिब्‍बे में सिर्फ तब होना चाहिए, जब वो मर चुका हो।”

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“और आपका फोन क्यों सारे दिन बजता रहता है ? और आप ये देर रात तक क्यों ऑनलाइन रहती हो ? पहले तो आपसे मिलने एक दो लोग ही आया करते थे ,,अब तो हर महीने कोई ना कोई या तो आता है ! या आपको बुलाता है ! आखिर अचानक लोगो को आपमें इतनी दिलचस्पी क्यों होने लगी ? और आपके ये फेसबुक पर अचानक इतने लोग क्यों आने लगे” ?

ओह तो ये बात है ! मैं सच में बहुत खुश नसीब हूं की मुझे इतना प्यार और समझने वाला परिवार मिला ।

पर एक प्रश्न पूछना चाहती हूं ,,,,”आज से पच्चीस साल पहले जब मैं घर के खर्चों को पूरा करने और अपनी सारी ख्वाविशों को मारकर रात दिन एक कर रही थी तब तो घर में किसी ने नहीं रोका ? कभी किसी ने नहीं कहा कि आखिर तुम चाहती क्या हो ? किस से मिलती हो ? क्यों मिलती हो ? कहा नौकरी करती हो ? और आज इतनी फिक्र ! काश ये फिक्र तब की होती ! और आज जब मैंने खुद को संभालना सीख लिया है ,,तो मुझे अब किसी की जरूरत नहीं” ।

“तुम दोनों ने अपनी पसंद से शादी की, जिसने जो चाहा किया , जिसको जो पढ़ना था पढ़ा, जिसने जो बनना चाहा बना” ।

तभी सोमेश चिल्लाया ! “यहां रहना है तो आपको मेरे हिसाब से रहना होगा । मेरे भी बीबी बच्चे हैं ! मैं नहीं चाहता आपका असर उन पर पड़े ” ।

बिल्कुल सही कह रहे हो बेटा पहले घर के खर्चों को पूरा करने के लिए कमाना पड़ा । और अब अपने आत्मसम्मान को बचाए रखने के लिए ,” अब मैं लिखना और पढ़ना तो कभी नहीं छोडूंगी “। “ऐसा करो तुम अपना इंतजाम कहीं और कर लो” ।” मेरा पति गया हैं, पर मेरे सिर पर छत देकर गया है “।

“कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना….”

लेकिन????

अपने ही बच्चें कहेंगे, ऐसा सोचा ना था रोहनी ने!!!!

संध्या सिन्हा

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