होली है – शुभ्रा बैनर्जी : Moral stories in hindi

रितिका की यह पहली होली थी ससुराल में।मायके में कभी हुल्लड़ नहीं मचाया था उसने।घर की बड़ी थी।पापा के जाने के बाद बड़ी जिम्मेदारी से संभाला था मां और छोटे भाई-बहनों को।उसका यह मानना था कि अनुशासन में रखने से पहले स्वयं अनुशासित रहना होगा उसे।

अपने सारे शौक मार कर भाई-बहनों को जीवन का सामना करना सिखाया था। बड़ी-बड़ी आंखों वाली रितिका के गुस्से से सारा मोहल्ला डरता था। स्कूल में पढ़ाती थी,फिर घर पर ट्यूशन।सभी बहुत सम्मान करते थे रितिका का। रितिका ने भी कभी पिता के ना होने का फायदा किसी को उठाने नहीं दिया।

हर त्योहार सीमित मनाना ही पसंद था उसे। अनावश्यक खर्च करने की स्थिति कभी थी ही नहीं।इस बात का अफसोस ना कर उसने शुक्रिया ही किया।पैसों की अहमियत सही समय पर हो जाना अनिवार्य है।अपने परिवार की इज्जत सदा बढ़ाने की कोशिश ही की थी रितिका ने। भाई-बहनों को भी सख्त हिदायत देकर रखा था कि,होली में भांग कभी ना पीएं।

आज होली के त्योहार में ससुराल मता हुआ था।पति,बड़ी ननद-ननदोई,छोटी ननद सभी ने योजना बनाई थी शायद पहले से।रितिका के पुराने रिकार्ड रितिका की मां से पता कर चुके थे।ननदोई ने कमान संभाली थी,रितिका को रंग लगाने की। उससे जब बड़ी ननद ने कहा”भाभी,आपकी मां बता रही थी कि,आप कभी होली खेली ही नहीं।ये सच है क्या ,कि आपने अपने पड़ोसी को बेलन से मारा था।”

रितिका ने क्या कोई कीर्तिमान सिद्ध किया था ,जो मां पचा नहीं पाईं।कह दिया ससुराल वालों से।

सकपका कर कहा रितिका ने”नहीं अमृता,अंकल मेरे मना करने पर भी जबरदस्ती रंग लगाना चाह रहे थे।गुस्सा आया तो पूड़ी बेलते हुए उसी बेलन को फेंका था।मारा नहीं था।”

सभी चिढ़ाकर हंसने लगे।ननदोई तो पीछे ही पड़े थे कि गांव की गंवार को होली खेलना सिखाकर ही मानेंगे।मजाक में कहने लगे”दादा अगर रंग लगाए तो उन्हें किससे मारेंगीं आप?और मुझे?”सभी ठहाका मार कर हंसने लगे।

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रितिका को इसमें कुछ भी असामान्य नहीं लगा।किसी औरत की मर्जी के बिना उसे छूना या रंग लगाना किसी त्योहार का उद्देश्य नहीं हो सकता।औरत की हां और ना में उसका सम्मान और अपमान निहित होता है।

जीजा और साले ने घर वालों की नजर बचाकर ठंडाई मंगा ली थी।रात के लिए बियर की बोतलें भी देख चुकी थी स्टोर रूम में।वह क्यों कुछ बोले?जब बाकी लोगों को दिक्कत नहीं तो ना सही।तक कर भांग की ठंडाई पीकर ननदोई जी ने गिलास में भरकर,मां,पापा,अपनी पत्नी,छोटी साली और रितिका को सर्व किया।सभी ने शगुन के तौर पर(ऐसा बताया उन्होंने)पीना शुरू किया।रितिका दही बड़ों की तैयारी कर रही थी।गिलास उसने ताक पर रख दिया।

ननदोई जी खिसियाकर लगे बिलबिलाने”देख रही हो अमृता,तुम्हारे पति की औकात इतनी ही बची है यहां।मैं कहता था ना कि बहू आ जाने से हमें कोई नहीं पूछेगा।लो मिला लो मेरी बात।”पति की घोर बेइज्जती भला पत्नी से कैसे बर्दाश्त होती।दहाड़कर बोलीं”सुनो भाभी,तुम्हें इज्जत देते हैं तो इसका यह मतलब नहीं कि तुम हमारी बेइज्जती करो।हमारे पति की बेइज्जती मतलब हमारी बेइज्जती।

“रितिका ने तुरंत जवाब देना उचित समझा”देखा अमृता,यह भांग क्या करवाता है।गले से नीचे पहुंच कर ही मेरा संबोधन आप से तुम करवा दिया।मुझे वैसे भांग बिल्कुल भी पसंद नहीं।तुम लोगों ने कहा तो पी लूंगी मैं।पर अभी हांथ का काम निपटा कर ही‌ पी पाऊंगी ना।इसमें ननदोई जी और आपके बेइज्जती की बात कहां से आई?

“रितिका के इस दो टूक जवाब की ससुराल में किसी ने अपेक्षा नहीं की होगी,पर रितिका को अपने उसूलों पर चलना पसंद था।माहौल गर्म हो गया तो सभी झट से खाना खाने लगे।रितिका ने एक घूंट पिया तो बुरा‌ तो नहीं लगा पर और पी ना सकी।

शाम होते ही फिर जीजा-साले में गुटर गूं होने लगी।बाजी तो हार रहे थे दोनों। रितिका को रंग लगा ही नहीं पाए।अब ननदोई जी ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करने की सोची।साले को बुद्धि दी गई कि कोका कोला में बियर मिलाकर पिलाई जाए पहले,फिर रंग ज़रा सा डाल देंगे।कम ही सही डाल तो देंगे, हार नहीं सकते गंवार के सामने ननदोई।

रितिका को इस आयोजन की भनक तो सुबह ही लग गई थी।खाना बनाते हुए छोटी ननद के साथ बात करने लगी थी इस पर।छोटी ननद ने कहा”अरे भाभी!तुम भी ना,ले लेना हांथ से गिलास।भले ना पीना,फेंक देना।दामाद हैं ना घर के।कोई ग़लत नीयत नहीं है उनकी,बस मजाक करना चाहतें हैं।बुरा ना मानना भाभी ,होली है।”

ओह!!!होली के नाम से कितना भी अत्त मचा सकतें हैं।ये पैसों की अनावश्यक बर्बादी जरूरी है क्या?बच्चे पर क्या असर पड़ेगा?ये छिछोरा पन करने की क्या जरूरत है होली में?ऊपर से बुरा‌ ना मानें ,भई वाह।रितिका आज ननदोई और पति को मर्यादा का पाठ सिखाकर ही मानेगी।

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शाम के स्नैक्स तलते हुए ड्राइंग रूम से गिलास की आवाज सुनाई दे रही थी। जो रितिका को पिलाना चाह रहे थे कोक के साथ,वही पी चुके थे दो चार गिलास।फिर हांथ में आए गुलाल लगाने।रितिका ने बड़ी ननद को बुलाया।वो कमरे से बाहर आई और यहां उनके पति किचन में रितिका के पास पहुंचे रंग लगाने।

तभी रितिका ने‌ पलटे से स्नैक निकाला और गर्म पलटा दे मारा ननदोई जी के हांथ में।कोई कुछ समझ पाता इससे पहले रितिका ने बड़ी ननद को कहा”तुमने पूछा था ना कि मेरी मर्जी के खिलाफ अगर रंग लगाएंगे आपके पति ,तो कैसे मारूंगी?

ऐसे मारूंगी।देखा ना आपने,या और नमूना दिखाऊं।”पत्नी की बदतमीजी से पति के अहं को बड़ी चोट लगी।चिल्लाकर कहने लगे”कोई नुक्सान करना चाहते हैं क्या हम तुम्हारा? सिर्फ रंग लगवाने के लिए ही तो कह रहें थे‌ जीजाजी।तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई घर के दामाद पर हांथ उठाने की।”??

रितिका के जी में तो आया कि धर दे एक पलटा इनके‌ मुंह में ही।तभी अप्रत्याशित घटना घटी।सासू मां का जोरदार थप्पड़ पति महोदय के गाल में बजा।बहू का रौद्रमुखी अवतार देखकर शायद एक और दुर्गा की तंद्रा टूटी थी।बेटे को झिंझोड़ कर बोली”क्या रे,दामाद हैं,दामाद हैं लगा रखा है।दामाद तो है

यह हमारा पर जो तेरी बीवी है,वह इस घर की बड़ी बहू है। लक्ष्मी है हमारे घर की।उसका अपमान करने की हिम्मत तेरी कैसे हुई।होली की आड़ में रिश्तों की मर्यादा कलंकित करने की सोचना भी मत।तेरी बहनों के साथ ऐसा ही कोई करें ,तो क्या अच्छा लगेगा तुझे?आज के बाद अगर इस घर में भांग या बियर आई तो मेरी बहू को मैं छूट देती हूं,जिसे जिससे मारना चाहते,मार सकती है।”

ननदोई जी तो सन्न रह गए।जो सास  दस सालों से दामाद के नखरे उठा रही थी,आज उन्होंने ही विद्रोह कर दिया।बैठ गए मुंह सुजाकर।उनकी तेज तर्रार पत्नी तो पहले ही खार खाए थी।पूरा माहौल शांत हो गया तो,रितिका ने पहले की।ननदोई के हांथ में कार्न कटलेट पकड़ाकर बोली”होली है जीजाजी,बुरा ना मानें।”

आंखों ही‌आंखों में सास ने‌ बहू को शाबाशी दी।

यह पावन त्योहार खुशियां बांटने के लिए है।दूसरों के दुख दर्द में उनका सहारा बनने के लिए है।भाईचारे को बनाए रखने परिवार में आपसी प्रेम बढ़ाए रखने के लिए एक दूसरे के घरों में जाना, हालचाल पूछना,खाने का आनंद लेना हर त्योहार का आधार है।ताकि परिवार सिमट ना जाए।रिश्ते सूख ना जाएं। आधुनिकता की अंधी दौड़ में‌ शामिल होकर सरहज या साली को छोटा करना,उनका असम्मान करना यदि होली है,तो बुरा लगना चाहिए हर औरत को।

शुभ्रा बैनर्जी

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