आज्ञाकारी बेटा- डॉ संगीता अग्रवाल  : Moral stories in hindi

सुबह के समय बड़ी मधुर हवा बह रही थी,चिड़ियां चहचहा रही थीं,पार्क के एक हिस्से में काफी सारे वृद्ध लाफ्टर थेरेपी कर रहे थे।हाथ उठाकर खिलखिला के हंसना,तरह तरह के मुंह बनाकर ठहाका लगाना सारे वातावरण को खुशनुमा बना रहा था।

थोड़ी देर बाद,वो सब हाफ सर्किल बनाकर बैठे गप्प शप में व्यस्त हो गए।

और दीनानाथ!तुम्हारे बेटे की जॉब लग गई,मिठाई कब खिलाओगे?शर्मा जी ने छेड़ा था उन्हें।

यार! मै तो आज ही लाया हूं पर भाभी मुझसे नाराज़ हो जाएंगी,तुझे शुगर है न,कहेंगी मै तेरा दोस्त हूं या दुश्मन?

अरे!वो कौन सा यहां देखने आ रही है,मुंह तो मैं मीठा करूंगा जरूर,तेरा बेटा शरद बिलकुल श्रवण कुमार है,आजकल के ज़माने में ऐसा बेटा चिराग से ढूंढे भी न मिले।

ये बात तो सही कह रहे हो शर्मा,आदित्य चौहान बीच में बोले,शरद सचमुच हीरा है,हीरा…इतना आज्ञाकारी बेटा कलयुग में नामुमकिन है।

दीनानाथ की छाती गर्व से चौड़ी हो गई थी।सच ही कह रहे थे,जब से वो रिटायर हुए थे,शरद ने इतनी बखूबी से घर की  सब जिम्मदारियां संभाल ली थीं कि वो बिल्कुल संतुष्ट थे।

पिछले ही साल,बड़ी बेटी का विवाह बड़ी धूमधाम से किया था उन्होंने,शरद ने अपनी  कई वर्षों से जोड़ी पॉकेट मनी  और सेविंग्स जो काफी दिनो से कर रहा था वो ,पिता के सामने रख दी थीं।

अब भी अपनी नौकरी लगने पर,वो खुद की शादी को उत्साहित नहीं था,अभी छोटी बहन के हाथ पीले करने हैं तभी उस बारे में सोचूंगा कुछ।

जब भी वो कहता,उसके मां बाप की आत्मा तर हो जाती।किन जन्मों के पुण्य स्वरूप ये लड़का हमारे नसीब में आया है।

शरद इन सब बातों से बेखबर बस अपने कर्तव्य पालन में लगा रहता।और दूसरे लड़कों से भिन्न स्वभाव था उसका।गंभीर और जिम्मेदार,उसे शादी से पहले ये सब बातें पसंद भी न थीं।घर में नाते रिश्तेदार उसके लिए अपनी जानकारी से अमीर घराने की लड़कियों के रिश्ते लाते लेकिन वो विनम्रता से ठुकरा देता।

उसके मां बाप समझते कि छोटी बहन की वजह से वो ऐसा करता है,उसके बाद,वो जिससे कहेंगे,वो चुपचाप हामी भर देगा क्योंकि वो तो बहुत आज्ञाकारी है।

दूसरी तरफ शरद सोचता,मैंने हमेशा अपने मां बाप की हर बात का सम्मान किया है तो वो मुझसे पूछे बिना,या मेरी पसंद के बिना किसी से भी मेरा रिश्ता नहीं जोड़ेंगे।

अपनी जॉब के चलते,उसे एक प्रोजेक्ट करते हुए,अपनी ही ऑफिस कर्मी शुभ्रा की नजदीकी कब भाने लगी,उसे पता ही नहीं चला।शुभ्रा,बहुत सुंदर,सोबर ,संभ्रांत लड़की थी जिसकी गंभीरता ने शरद का दिल जीत लिया था।बस एक ही कमी थी उसकी कि वो निम्न जाति की गरीब खानदान की लड़की थी।

जब भी शुभ्रा इस बारे में शरद को इंगित करती,वो उसे चुप करा देता,मेरे पेरेंट्स से मिलकर तुम्हारी ये दुविधा दूर हो जाएगी,वो मेरी कोई बात नहीं टालेंगे,उन्हें मेरे पर पूर्ण विश्वास है।

आखिरकार,उसकी छोटी बहन की शादी हुई और उसके बाद,शरद की मां ने इतने समय तक आए लडकियों के रिश्ते,फोटो शरद के सामने रख दिए।सब आधुनिक,अमीर घर की लड़कियां लेकिन शरद तो शुभ्रा को पसंद कर चुका था।

थोड़ी बहुत टालमटोल के बाद,शरद ने अपने दिल की बात अपनी मां को बताई,पिता के सामने वो अभी भी कम ही मुंह खोलता था।

मां ने बड़े चाव से पूछा,दिखा हमें भी कौन है वो खुशनसीब?

मां की प्रतिक्रिया से शरद ने राहत की सांस ली और शुभ्रा के बारे में सब कुछ बताया।

अब बारी थी मां के भड़कने की..क्या कह रहा है रे शरद तू?दिमाग दुरुस्त है तेरा?अपनी से नीची जात में शादी करेगा?

मां!जब वो हमारे घर बहू बन कर आ जायेगी,उसका सरनेम हमारा हो जाएगा,फिर वो हमारी जाति की हो जायेगी,इसमें समस्या क्या है?आजकल इतनी अच्छी लड़कियां मिलती कहां हैं?

हाय राम!अभी से ये उसके पक्ष में बोल रहा है…मां ने रोना शुरू कर दिया,क्या जादू किया है उस दो टके की लड़की ने इसपर।

शरद को लगा,मां टिपिकल लेडिज वाला नाटक कर रही हैं,पिताजी उसकी बात समझेंगे लेकिन दीनानाथ जी का सारा लाड़ प्यार,बेटे के प्रति मोह,उस छोटी जाति की लड़की का जिक्र सुनकर हवा में कपूर की तरह उड़ गया।

उन्होंने हिटलरी आदेश सुना दिया,भूल जाओ इस लड़की को शरद बेटा और जिससे हम कह रहे हैं,शादी को तैयार हो जाओ,इसी में तुम्हारी भलाई है।

अपने माता पिता के इस तरह के व्यवहार से शरद की बहु धक्का लगा।अगर वो उन्हें अपना सर्वस्व मान रहा था तो उन्हें भी तो जवान बेटे की इच्छाओं का सम्मान करना चाहिए था।

ये सोचकर वो गुमसुम रहने लगा।वो न बोलता,न हंसता,चुपचाप घर से ऑफिस और ऑफिस से घर चला आता।

दीनानाथ ने पत्नी से कहा,एक बार जबरदस्ती शादी करा देते हैं ,धीरे धीरे सब ठीक हो जायेगा,अभी शॉक्ड है ये पर ये तो बच्चा है,इसका भला बुरा हमे पता है।

इस बार उनके शॉक्ड होने की बारी थी जब शरद ने पहली बार मुंह खोला,शादी करूंगा टी केवल शुभ्रा से नहीं तो मेरी शादी की उम्मीद छोड़ दीजिए,मैंने आप दोनो का सदा सम्मान किया,आगे भी करूंगा लेकिन अपनी जिंदगी का फैसला करने का हक मुझे भी है, इसमें मैं आपकी दखल नहीं आशीर्वाद चाहता हूं।आपकी मर्जी कि आप अब क्या फैसला लेते हैं।

पहली बार,उसके पेरेंट्स को अपनी गलती महसूस हुई,जो लड़का आज तक हमारे लिए हमेशा भलाई के काम करता रहा,हमारी हर बात को पत्थर की लकीर की तरह मानता रहा,वो आखिर अपनी जिंदगी का इतना महत्वपूर्ण फैसला गलत कैसे लेगा।उन्होंने उसके फैसले को मानते,शुभ्रा से शादी को हां कर दी।

कई वर्षों बाद,शरद और शुभ्रा एक खुशहाल जिंदगी बसर करते रहे और साथ ही शरद के मां बाप भी बहुत खुश थे कि उनकी ये बहू तो उनके बेटे से ज्यादा समझदार और आज्ञाकारी निकली।

डॉक्टर संगीता अग्रवाल

वैशाली,गाजियाबाद

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