“मम्मी, कैसा लग रहा है आपको। हाउ आर यू फीलिंग दिनभर।” रात के खाने के बाद मुठ्ठी को माइक की तरह बनाती हुई संपदा नाटकीय अंदाज में कहती है।
“फीलिंग बेटर माई डियर।” झिझकती हुई संपदा के अंदाज में ही अंजना जवाब देने की कोशिश करती है।
“मम्मी बेटी की गुफ्तगू चल रही है, मुझे भी शामिल किया जाए इस गुफ्तगू में।” विनया घुटनों के बल बिस्तर पर बैठती हुई कहती है।
“भाभी श्री अभी कोई गुफ्तगू नहीं। अभी आप मेरे कमरे में आइए। आपसे नाटक मंचन से संबंधित कुछ मदद चाहिए।” संपदा विनया की ओर देखती हुई कहती है।
विनया संपदा की बात पर बिस्तर से उतरती हुई कहती है, “माॅं आप आराम कीजिए, मैं थोड़ी देर में आती हूॅं।”
“नहीं संपदा आ जाएगी। तुम अपने कमरे में जाओ।” अंजना निर्देश देती हुई कहती है।
विनया का असमंजस और परेशानी भरा स्वर उभरता है, “पर माॅं”
“पर वर कुछ नहीं”…लेटने के मकसद से अंजना तकिया सिर के नीचे रखती हुई कहती है। अंजना जानती थी कि मनीष का रात के शांति भरे माहौल में आत्म मंथन की आदत है, जो कि प्रारंभ हो चुका होगा और इस समय उसके सवाल उमड़ घुमड़ कर उसे विचलित कर रहे होंगे। अंजना को स्पष्ट था कि इस समय मनीष के लिए विनया का सहारा और समर्थन बहुत आवश्यक है। ऐसे समय में विनया ही उसके सवालों का समुचित उत्तर दे सकती है इसलिए उसने उसने विनया को अपने कमरे में आने से फिलहाल मना कर दिया था। साथ ही वह समझती थी कि उसे अपने पति के तात्कालिक आवस्था के साथ सहजीवनी सम्बंध बनाए रखने की आवश्यकता है। अंजना ने इस स्थिति को समझकर अपनी विवेकपूर्णता और सावधानी का प्रदर्शन किया, जिससे वह अपने बेटे–बहू के समर्थन में सदैव उपस्थित रह सके। इस तरह, यहाॅं एक सम्बंध ही नहीं बढ़ रहा था अपितु एक दूसरे के साथ सहयोग और समर्थन के संबंध को और भी मजबूत बना रहा था।
“बताइए दीदी, क्या सहयोग चाहिए?” संपदा के कमरे में आते ही विनया पूछती है।
“भाभी सहयोग कुछ नहीं चाहिए। भाभी मैं कह रही थी, क्यों ना हम अपने इस प्लान में कोयल भाभी को भी शामिल कर लें।” संपदा बिस्तर पर बैठती है और विनया उसके सामने कुर्सी पर।
“नहीं दीदी, हम ऐसा नहीं कर सकते हैं।” विनया तुरंत संपदा से कहती है।
“क्यों भाभी, अगर कोयल भाभी भी होंगी तो हम अपने मंजिल तक जल्द पहुंच सकेंगे और बुआ लोग भी अपने अपने बच्चों को प्यार दे पाएंगी।” संपदा अपने पैर हिलाती हुई कहती है।
संपदा के विचार सुनकर विनया गंभीर हो गई थी और थोड़ी देर चुप्पी धारण करने के बाद उसने कहा, “नहीं दीदी, वो दोनों सास बहू हैं, कल को उन दोनों के बीच छोटी से छोटी भी कोई बात हुई और कोयल भाभी अनजाने में भी यदि बोल गईं तो इसका असर हमारे घर तलक होगा और उस एक चिंगारी से सब कुछ तबाह हो जाएगा। इसीलिए हमारे घर की ये बातें हम तक रहे तो ही अच्छा है।”
“लेकिन भाभी, आपके मायके”… पूछती हुई संपदा झिझक कर चुप हो गई।
“दीदी, झिझक की कोई बात नहीं है। आप सही पूछ रही हैं, मेरे मायके वालों को माॅं के मायके जाने वाले प्लान का पता था। इसके बारे में मैं, आप और माॅं ही जानते हैं और हम दोनों तो माॅं की ही शाखा हैं तो एक दूसरे क्या कभी उपालम्भ दे सकेंगी। नहीं ना और हो सकता है इस चक्कर में एक दूसरे के साथ मनमुटाव की भी स्थिति नहीं आने देंगे।” संपदा के जिज्ञासु मन को शांति प्रदान करती विनया एक ऑंख दबाती हॅंस कर कहती है।
विनया का यह विचार साफ दिखाता था कि वह अपने परिवार की रक्षा के लिए उत्सुक है और सबका हित सोचती है। उनकी चेतना और समझदारी ने दिखाया कि वह अपनी सास के बारे में गहराई से सोचती है और विवेकपूर्ण तरीके से उनकी सुरक्षा का ध्यान रखना चाहती है। इससे यह भी स्पष्ट हो रहा था कि वह घर के अंदर की बातों को घर के बाहर रखने की कोई आवश्यकता नहीं समझ रही थी, ताकि कोई अत्यंत व्यक्तिगत या संवादित स्थिति नहीं उत्पन्न हो। उसका स्वभाव और सोचने का तरीका उसे एक दृढ़ और सावधान सदस्य के तौर पर प्रस्तुत कर रहा था।
“नतमस्तक माते, इत्तू सी उमर और इतना ज्ञान। कहाॅं से लाती हैं माते। चरण कहाॅं हैं माते।” संपदा विनया के विचारों को बिना किसी प्रतिरोध के सहर्ष स्वीकार करती हुई कहती है।
“ये ज्ञान भैया के विवाह के समय प्राप्त हुआ था बालिके। जब मम्मी ने भाभी से कहा था ये भी और वो भी तुम्हारा घर है और ये दोनों घर एक दूसरे का सम्मान करें, इसके लिए जरूरी है कि तुम जब तक बहुत आवश्यक ना हो, बातें यहां से वहां या वहां से यहां नहीं चाहिए और यह भी की उचित समय और उचित स्थान पर हो तो बेहतर होगा। पहले तो भाभी को ये अटपटा लगा था लेकिन जब उन्होंने मम्मी को खुद ये करते देखा तब वो भी मम्मी के विचारों को समर्थन दे सकी।”
अपने अनुभव के माध्यम से विनया ने महत्वपूर्ण सलाहों को अपनी ननद के साथ साझा करके एक सुरम्य, उदार और समर्थ आत्मविश्वास की भावना पैदा की। संपदा ने भी इसे एक सकारात्मक दृष्टिकोण से स्वीकार किया और वो समझ गई कि सही समय और स्थान पर उचित विचारशीलता और आपसी समझदारी का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
“क्या भाभी, एक एक कॉफी हो जाए।” संपदा उबासी लेती हुई कहती है।
“आपके ऑंखों के लाल डोरे बता रहे हैं कि आप पर निंद्रा देवी सवार हैं दीदी, कॉफी का प्रोग्राम कल रखते हैं।” विनया खड़ी होती हुई कहती है।
“ठीक है भाभी, आप अपने कमरे की ओर तशरीफ ले जाइए और मैं आज आपको सासु माॅं को झेलती हूॅं।” विनया भी बिस्तर छोड़ कर खड़ी होती हुई कहती है।
“ऊं गलत बात”… विनया झूठा गुस्सा दिखाती है।
“ये तो”… अचानक विनया के पग दरवाजे पर ही ठिठक गए।
“बिल्कुल ये सौरभ भैया का सिखाया हुआ ही है। उन्होंने कहा जीवन तो बहुत छोटा है। प्रेम बांटते चलो और इस धरा पर क्या धरा है। इन्हीं हंसी खुशी में जीवन कट जाए तो ही सार्थकता है। थोड़ा खुद हंसो, ज्यादा जमाने को हंसाओ…और क्या।” विनया को ठिठकते देख संपदा चहकती हुई कहती है।
“जय हो आप दोनों की”… विनया हॅंसती हुई अपने कमरे की ओर बढ़ चली और साथ ही एक नजर बुआ के कमरे में डालना भी नहीं भूली। बुआ के कमरे में बत्ती की रौशनी से उजाला फैला था और दोनों गहरी निंद्रा का सुख भोग रही थी। विनया धीमे कदमों से कमरे में जाकर उनके ऊपर का कंबल ठीक करके बत्ती बुझा कर कमरे से निकल गई।
“ये लड़की भी गजब है, हम दिनभर इस पर तानों के तरकश खाली करती रहती हैं और ये आकार हमें कंबल ओढ़ा कर चली गई। दिन के उजाले में नाटक कर सकती है लेकिन अभी तो नाटक करने की इसे क्या आवश्यकता है, पूरा घर अंधेरे में डूबा है, कोई देख भी नहीं रहा था। कभी कभी रात का अंधेरा भी सच्चाई का प्रकाश फैला जाता है।” मंझली बुआ के चेहरे पर विनया के लिए मुस्कान आ गई।
मंझली बुआ की मुस्कान से साबित हो रहा था कि वह विनया के उत्कृष्ट स्वभाव को सराह रही थी, जिसे विनया की असलियत ने रात के अंधेरे को भी एक नए प्रकाश से भर दिया था।
विनया धीरे से अपने कमरे का दरवाजा खोलकर कमरे की हल्की गुलाबी रौशनी में कमरे के अंदर झांकती हुई प्रवेश करती है। मनीष सोफे पर माथे पर हाथ रखे लेटा हुआ था। उसे ऐसे देख विनया का कलेजा मुॅंह में आ गया था, एक दिन में ही सत्य के कई झंझावतों से मनीष का सामना हुआ था। उसके चारों ओर के किले, जिसे उसने अभेद्य समझा था, वो धीरे धीरे ढहने लगे थे। उसके चारों ओर सुरक्षित महौल और सुरक्षा का जी ताना बाना था, वो उसकी नजरों के सामने ही उलझ गया था। अब घर के एक जिम्मेदार सदस्य की तरह उसे इन उलझे रिश्तों को सुलझाना था। सिर पर हाथ रखे मनीष नए दौर के साथ निर्मित चुनौतियों का सामना करने का निर्णय मन ही मन लेता झटके से उठ बैठा था और बैठते ही उसकी नजर सामने उसे एकटक निहारती विनया पर पड़ी थी। उस गुलाबी रौशनी में विनया की निगाहों में प्रेम, ममत्व, अपनापन, दिलासा के कई भाव झलक रहे थे, जिसे देख मनीष असहज हो उठा क्यूंकि आज तक विनया की नजरों में उठते तूफान का ही सामना किया था उसने। उसकी असहजता समझती हुई
विनया ने धीरे से कमरे का दरवाजा बंद किया और मनीष के पास चली गई। उसके चेहरे पर पुरसुकून सी मुस्कान खेल रही थी, क्योंकि वो समझ रही थी कि एक नए युग की शुरुआत हो रही है। मनीष था जो अब अपनी जिम्मेदारियों का सामना कर रहा था और विनया ने इसे समर्थन और सहानुभूति से झलकाया।
“मनीष”, विनया ने कहा, “आज आप जिस ताजगी और उत्साह से मेरे घर वालों के साथ पेश आए, उसके लिए धन्यवाद।” उसके चेहरे पर हंसी और कृतज्ञता के साथ इस भरपूर और सार्थक मुलाकात का आनंद भी था। विनया समझ रही थी कि यह समय न सिर्फ एक दूसरे की महत्वपूर्णता को समझाने का था, बल्कि यही से वो एक सजीव और सशक्त परिवार की शुरुआत कर नकारात्मकता को दूर कर सकती थी।
नहीं विनया तुम और तुम्हारा परिवार ही ऐसा है, जो अच्छे और बुरे सभी को आत्मसात कर लेता है। वही आज भी हुआ। जिस तरह सभी ने आगे बढ़ कर अतिथि होते हुए भी सभी का मान रखा, सम्मान किया, वो सबके बूते की बात नहीं होती है। उनके सामने हम तो बिल्कुल खोखले प्रतीत हुए।
“तुम्हारे परिवार ने आज साझा किया कि सच्ची सजगता और समर्पण के माध्यम से ही सभी को अपनाया जा सकता है। उन्होंने यह सिद्ध किया कि जिस तरह से वे अपने मेहमान और मेजबान दोनों रूप में वो आदर्श हैं, जिसका अनुसरण किया जा सकता है। तुम्हारे ऊर्जावान परिवार ने दिखाया कि आदर्श रिश्तों का निर्माण कैसे किया जा सकता है, जिससे विनम्रता, समर्थन और समर्पण की भावना हमेशा बनी रह सकती है। संपदा को तुम्हारे लिए विह्वल और मम्मी को तुम पर मौन भाषा में प्यार लुटाते देख मैं जल भुन जाता था, लेकिन आज समझ आया कि क्यों दोनों तुम्हारे इतने करीब आ गए। तुमने इस घर को घर समझा, इस घर के लोगों को अपना और मैं इस घर का होकर भी इसे चारदीवारी से ज्यादा नहीं समझ सका, अपनी ही माॅं बहन से दूर होता चला गया।” मनीष सिर झुकाए अपने हाथों को एक दूसरे में फंसाए तोड़ता मरोड़ता कह रहा था।
“आप इतना बोलते भी हैं।” मनीष के रुकते ही अपने कजरारे नयन को आश्चर्य से फैलाती हुई मनीष के चेहरे पर नजर टिकाए टिकाए ही विनया कहती है।
“पहले तो तुम मुझ पर से नजर हटाओ।” विनया के निगाहों की ताप महसूस कर मनीष झुंझला कर कहता है।
विनया का चेहरा मुस्कान से भरा हुआ था और उसकी आँखों में आशा की चमक थी। उसकी मुस्कान से भरी हुई आंखों में चमकता हुआ व्यक्तित्व देखकर लगता था कि उसने एक नए युग की शुरुआत की हो। सोफे पर आराम से बैठी हुई, उसने वचनों में एक खास मिठास के साथ कहा, “क्यों, आपको डर है क्या, कहीं प्यार ना हो जाए।” उसकी आकर्षकता और बोले गए शब्दों में छिपी गहराई ने इस लम्हे को एक सुनहरे रंग से भर दिया था, जो बीत रहा था कि वह मजबूती से नए सफर की ओर बढ़ रही थी।
उसकी बेबाक वचन को सुनकर मनीष की नजरें अचानक ही उठी और विनया से जा टकराईं। “नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है” मनीष बहुत धीमे स्वर में कहता है।
“ओके, यदि हो जाए तो इजहार करने में देर ना कीजिएगा। वैसे हम सामने हो और प्यार ना हो, ऐसे तो आसार नहीं हैं।” विनया पूरे आत्मविश्वास के साथ कहती है। उसके कथन में छुपी स्थिरता और सुरक्षा का भाव दिखाई दे रहा था, जैसे कि वह नए रिश्ते में विश्वास के साथ कदम से कदम मिलाकर बढ़ने के लिए तैयार है और इस रिश्ते को हर संभावना के साथ आगे बढ़ाने के लिए संवेदनशील है।
“मम्मी, अकेली होंगी।” मनीष बात बदलते हुए कहता है। क्योंकि इस समय विनया का साथ उसे शीतलता प्रदान कर रहा था और उसकी बातें इंद्रधनुष के रंगों के समान कमरे में कई रंगों के होने का बोध करा रही थी और अपने दिल में विनया से वो कह भी रहा था लेकिन प्रत्यक्ष में उसका अहम आड़े आ गया था और उसने बात को बदल दिया।
“माॅं सो गईं हैं और संपदा दीदी वही हैं और कोई कमरा है नहीं, जहाॅं मैं जा सकती थी तो यही आना पड़ा।” विनया लंबी श्वास के साथ कहती है।
“हाॅं तो ये तुम्हारा कमरा है और कहीं क्यों जाओगी।” विनया के स्वर की निराशा भांप मनीष के मुंह से अचानक ही निकलता है।
“सच, ये मेरा कमरा है।” विनया के चेहरे पर बच्चों सी एक निर्मल खुशी आ गई और वो सोफे से उठ खड़ी हुई।
“और आप”… विनया मनीष से सवाल कर बैठी।
“सो जाओ, कल मुझे दफ्तर जाना ही होगा।” विनया के सवाल का जवाब ना देकर बिस्तर की ओर बढ़ता हुआ मनीष कहता है।
“अगर सुबह तक उत्तर मिल जाए तो बताने का कष्ट जरूर करेंगे।” मनीष के हड़बड़ाहट पर विनया की खिलखिलाहट ने कमरे को हंसी से भर दिया और आज इस खिलखिलाहट से मनीष को झुंझलाहट नहीं हुई बल्कि उसके उत्साह ने मनीष की झुंझलाहट को छोटी मुस्कान में बदल दिया।
आरती झा आद्या
दिल्ली
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आरती झा आद्या
दिल्ली
Part 34 hi phir se load ho gaya 35 me
He bhagwan 🙏 kitna kheenchogi aap is kahani ko , irritating ho gayi he ab ye
Beautiful story . Padh kr bada mazaa a ra hai . Mujhe padhne mein bore feel nahi hota