आत्मग्लानि की आंँच – मुकुन्द लाल  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : – एक बाजारनुमा कस्बे में दो भाई अमरेश और मंजीत रहते थे। दोनों भाइयों का संयुक्त परिवार था। बड़ा भाई अमरेश को कपड़े की दुकान थी जबकि छोटा भाई आटा-तेल के मिल में नौकरी करता था। दोनों भाइयों का परिवार पुश्तैनी मकान में ही रहता था।

   उनके माता-पिता का निधन वर्षों पहले हो गया था। उनकी माताजी ने मरते वक्त अमरेश से वचन ले लिया था कि वह अपने छोटे भाई पर हमेशा अपनी दया- दृष्टि बनाये रखेगा, क्योंकि बहुत कम पढ़े-लिखे होने के कारण उसे जीवन में तरक्की करने का मौका नहीं मिला।

   वैसे भी अमरेश सज्जन पुरुष था।अपने छोटे भाई के प्रति उसके दिल में हमेशा सहानुभूति रहती थी। उस पर उपकार करने की मंशा सदा उसके अंतर्मन में विद्यमान रहती थी। यही कारण था कि संयुक्त परिवार को चलाने में जो व्यय होता था, उसका बहुत बड़ा हिस्सा वह स्वयं वहन कर लेता था। फिर भी मंजीत अपने वेतन का बहुत ही अल्प हिस्सा  पाॅकेट खर्च के लिए काटकर शेष राशि अपने बड़े भाई के हाथों में सौंप देता था। इसके अलावा समय-समय पर घरेलू कठिन कार्यों को निपटाने में भी सहयोग प्रदान करता  था।

   जेठानी चन्द्रानी और देवरानी सलोनी बहन की तरह मिल-जुलकर घरेलू कामों का निपटारा करती थी। किचन में कोई रसोई बनाती थी तो कोई बर्तनों को मांजी लेती थी, कोई सब्जी काट लेती थी तो कोई बच्चों का कपड़ा धो लेती थी। खाने-पीने से लेकर बच्चों के स्कूल जाने व दोनों भाइयों को अपने-अपने कामों पर जाने तक मिल-जुलकर सारे कार्यों को दक्षता के साथ संपन्न करती थी। बाद में भी बचे-खुचे काम जैसे परिसर की सफाई आदि को करने के बाद ही दोनों चैन की सांँस लेती थी। इस बीच जेठानी और देवरानी आपस में मनोरंजक बातें व घटनाएं  भी साझा करते थे। कभी-कभी वे लोग  गानों की एक-दो पंँक्तियांँ भी गाने से नहीं चूकते थे।

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   घर में कलह, ईर्ष्या और द्वेष का लेश मात्र भी नामोनिशान नहीं था। घर के चप्पे-चप्पे में सकारात्मकता रची-बसी हुई थी।उनका संयुक्त परिवार होने के कारण उस घर में आपसी प्रेम और सद्भाव की सुगन्ध से वातावरण हमेशा महकता रहता था। उनके परिवारों के सदस्यों के अंतस्तल में आनन्द की धारा बहती रहती थी।

   उसके मोहल्ले में अमरेश के व्यवहार और सभ्य आचरण का डंका बजता था। सभी आपसी बातचीत में प्रशंसा करते हुए कहते कि’भाई हो तो अमरेश जैसा।’ उसमें जरा भी खुदगर्जी नहीं थी। संयुक्त परिवार के  सभी सदस्यों को  वह एक नजर से देखता था, चाहे उसके अपने परिवार का सदस्य हो या उसके भाई के परिवार का।

   संयुक्त तरीके से घर-गृहस्थी तो बिलकुल सही ढंग से चल रही थी। किसी को किसी से किसी प्रकार की शिकायत नहीं थी किन्तु दो सप्ताह के लिए जेठानी (चन्द्रानी) के दूर के रिश्ते की एक मौसी आई थी जो इस घर की खुशियों में पलीता लगाकर चली गई। उसकी मौसी ने चन्द्रानी को कौन सी पट्टी पढ़ा दी या क्या कह दिया उसके कानों में कि उधर घर से मौसी विदा हुई, इधर इस संयुक्त परिवार की खुशहाली बदहाली में बदल गई। घर के अमन-चैन की जगह ईर्ष्या-द्वेष और जलन ने ले ली। चन्द्रानी के बर्ताव में अप्रत्याशित बदलाव आ गया।

   पहले घरेलू कामों को निपटाने के क्रम में किसी से कोई चूक हो जाती थी तो उसका ठीकरा दूसरे पर न फोड़कर अपने ही ऊपर लेने की कोशिश करती थी। परन्तु अब छोटी-छोटी बातों पर भी जेठानी और देवरानी में विवाद प्रारंभ हो जाता। कभी खाना अच्छा नहीं बनाने, कभी सब्जी में नमक अधिक या कम होने, कभी मिर्च-मसाले और तेल का अनुपात गलत होने जैसे मुद्दों पर चन्द्रानी अपनी देवरानी को दोषी ठहराने लगी।

   सलोनी भी जानती थी कि इस घर-बार को चलाने में जितना खर्च जेठ जी करते हैं उसकी तुलना में उसके पति का आर्थिक सहयोग बहुत ही कम होता है। स्वाभाविक है इस भावना के वशीभूत होकर प्रारंभ में वह अपना मुंह बन्द करके सहती रही किन्तु अक्सर जब उसके साथ ऐसे ही आरोपों की पुनरावृत्ति होने लगी तो वह भी चुप नहीं रह सकी।अपनी जेठानी की नश्तर की तरह चुभने वाले आरोपों-प्रत्यारोपों का जवाब अपने तरीके से देने लगी। तब ऐसी स्थिति में जेठानी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंचने लगा।

   जब इस तरह के वाद-विवाद से संबंधित बातो की जानकारी अमरेश को हुई तो वह बहुत दुखी हो गया। संयुक्त घर-गृहस्थी में दरार पड़ते देखकर वह बहुत चिन्तित रहने लगा। उसे ऐसा महसूस हुआ कि अगर वह अपनी पत्नी का पक्ष लेता है तो सलोनी को दुख होगा और अगर सलोनी का पक्ष लेता है तो उसकी पत्नी को दुख होगा। ऐसी स्थितियों में उसने अपनी पत्नी को एक रात एकांत में बैठाकर ठंडे दिमाग से सोचने की सलाह दी और शांतिपूर्वक पूर्ववत घर-गृहस्थी चलाने की बात कही। उसने यह भी कहा कि तुम्हारी देवरानी से कोई गलती हो जाती है तो उसे छोटी बहन समझकर माफ कर दो लेकिन आपस में झगड़ा मत करो।

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   किन्तु यहाँ तो इस परिवार को तहस-नहस करने और उसकी सुख-शांति को खत्म करने की पृष्ठभूमि चन्द्रानी की मौसी ने पहले ही तैयार करके रख दी थी।

   चन्द्रानी ने जवाब में कहा, “देखिये जी!… रोज का कच-कच मुझे अच्छा नहीं लगता है।… मैं क्यों उसके आरोप-प्रत्यारोप को सहन करूंँगी ।मेरे पति की कमाई से ही इतने बड़े परिवार का खर्च चलता है, मंजीत के दिए हुए थोड़े से पैसे से  आजकल इस मंहगाई में क्या होता है?… हमलोग उसके परिवार की परवरिश भी करें, उसके एवज में उसकी गाली भी सुनें, उलाहना भी सुनें।… और फिर अपने बाल-बच्चों के विकास के लिए भी तो हमलोगों को सोचना चाहिए। उनके भविष्य के लिए बचत भी तो जरूरी है। अभी सम्हलकर नहीं चलेंगे तो बुरे वक्त में कौन सहारा देगा।… हमलोगों ने बहुत सहारा दे दिया, अब मंजीत अपनी जिम्मेवारी स्वयं उठाये… “

  ” मेरा भाई वैसा नहीं है, वह हर परिस्थितियों में हमलोगों का साथ देगा। “

   अमरेश ने अपनी पत्नी को बहुत समझाया कि मंजीत उसका सहोदर भाई है कि उसकी आमदनी बहुत कम है कि उसे कैसे अपने से जुदा कर दिया जाए कि इसी घर में उसके परिवार को कष्ट में देखकर कैसे अपनी आंँखें बन्द कर लेंगे कि यही इंसानियत है कि यही मानवता है कि अपने भाई और उसके परिवार को निर्धनता की चक्की में पिसता हुआ कैसे देख सकता हूँ कि मैंने माँ को वचन दिया था उस पर दया-दृष्टि रखने के लिए ।

   चन्द्रानी पर उसकी बातों का कोई असर नहीं पड़ा। उसके तीखेपन से युक्त तेवर में कोई बदलाव नहीं आया। बल्कि घर के एक एकांत कमरे में जाकर बैठ गई। उसने खाना-पीना बन्द कर दिया। कई शाम उसने भोजन नहीं किया।

   उसकी एक तरह से मांग थी कि मंजीत अपना चौका-चूल्हा अलग कर ले। किन्तु यह मांग अमरेश के सीने में शूल की तरह चुभती थी।

   उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था। वह दुकान जाता लेकिन  दुकानदारी करने में मन नहीं लगता। शाम होने के पहले ही वह दुकान बन्द करके चला आता।

   जेठानी की अलग होने की मुहिम जारी थी। 

   जब मंजीत को इस विवाद की जानकारी हुई तो वह अपने बड़े भाई के पास गया। उसने विनम्रता से कहा, “भैया!… आप हमलोगों के कारण क्यों टेंशन में हैं?… भाभी ने भी खाना-पीना बन्द कर दिया है, आपका व्यवसाय भी चौपट हो रहा है।… मेरा जो वेतन है उसमें हमलोग गुजर-बसर कर लेंगे, भले ही हमलोगों को नमक-रोटी खाना पड़े, उसे ही खाकर जीवन-यापन कर लेंगे।… खुशी-खुशी संतोष से जी लेंगे।… आप चिन्ता मत कीजिए… “

  ” ऐसा क्यों कहता है मंजीत?… तुम्हारा दुख, हमारा दुख है, तुम्हारा सुख, हमारा सुख है” भावविहव्ल होते हुए उसने कहा। 

  ” भैया!… सिर्फ चौका-चूल्हा अलग होने से दिल अलग नहीं होता है। अलग होने के बाद भी हम आपसे अलग नहीं हैं। आपकी जो आज्ञा होगी, उसको मानने के लिए हमेशा हम तैयार रहेंगे… टेंशन मत लीजिए, मेरा दिल जैसा आज है भविष्य में भी वैसा ही रहेगा,मेरी तरफ से बिलकुल निश्चिंत रहिए।… जाइए भाभीजी का उपवास तोड़वाइये… ” कहता हुआ वह वहां पर से जाने लगा, एक कदम आगे बढ़ने के बाद ही मंजीत की आंँखें भर आई थी। 

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   दोनों भाइयों के चूल्हे अलग हो गए। 

   जेठानी और देवरानी के बीच चल रहा झगड़ा बन्द हो गया। घर में श्मशानी शांति छा गई ।

   अमरेश के चेहरे की रौनक खत्म हो गई थी। उसका उमंग-उत्साह कहीं खो गया था। व्यवसाय में तरक्की करने का जोश-खरोश समाप्त हो गया था। 

   उसको एक ही गम खाए जा रहा था कि वर्षों से साथ रहने वाली उसकी पत्नी ने उसके जज्बातों को नहीं समझा, उसकी बातों को तव्वजों नहीं दिया और उसके  सपनों का संयुक्त परिवार बिखर गया। 

   इस घटना के बाद वह बेहद गंभीर चिन्तित और तनावग्रस्त रहने लगा। 

   पहले शाम में दुकान बन्द करके सीधे घर आता था, लेकिन घर से उसे विरक्ति हो गई। शाम में वह अपना माइंड डाइवर्ट करने के लिए यों ही इधर-उधर बाइक से घूमने-फिरने लगा। 

   उस दिन भी शाम में दुकान बन्द करके चिन्ता में डूबा हुआ बाइक से पार्क की तरफ जा रहा था, अपने मन को बहलाने की नीयत से। उसी समय क्या फर्क पड़ गया बाइक चलाने में कि बाइक का संतुलन बिगड़ गया और उसकी बाइक वहाँ पर से गुजर रही ट्रक से टकरा गई। वह दुर्घटनाग्रस्त हो गया। उसके सिर में जबर्दश्त चोट लगी। वह बेहोश होकर गिर गया। लोगों ने तुरंत उसको हौस्पीटल पहुंँचाया, जहाँ डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। 

   आज मंजीत ही अपनी भाभी और उसके बच्चे की सारी जिम्मेवारी उठाए हुए है। 

   इस घटना से चन्द्रानी का कलेजा आत्मग्लानि से फट पड़ा।इसके लिए वह अपने को कसुरवार मानती है कि मौसी के बहकावे में अंधी होकर अपने पति को न टाॅर्चर करती न वे इतने चिन्तित और तनावग्रस्त होते और न यह दुर्घटना घटती 

   उसने मंजीत से माफी भी मांगी यह कहते हुए कि उसे वह माफ कर दे, उसकी निर्लज्ज सोच के कारण उसे और उसके परिवार को बहुत कष्ट झेलना पड़ा । 

    आज  चन्द्रानी आत्मग्लानि की आंँच में सुलगती रहती है और उसकी आंँखें बरसती रहती है। 

   स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित 

                 मुकुन्द लाल 

                 हजारीबाग(झारखंड)

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