क्या कोई इतना त्याग कर सकता है – रश्मि प्रकाश  : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : आज बहुत दिनों बाद घर में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी थी…. सालों से माँ बनने के सपना देखती कृति आख़िर आज माँ जो बन गई थी… सास सुभद्रा जी के ताने भी शायद अब ख़त्म हो जाएँ पर क्या सच में कृति माँ बनी थी…. आइए आगे पढ़ते है…

कमरे में बच्चे के साथ बस कृति और नव्या ही थे…नव्या का हाथ थामे कृति बस उसे ही निहार रही थी… कभी वो बच्चे को देखती कभी नव्या को….

“कृति आज मैंने अपना वादा पूरा किया…… जानती हूँ एक माँ के लिए ये निर्णय लेना बहुत कठिन होता है पर अपनी जिगरी दोस्त और रिश्ते में भाभी के लिए ये त्याग करना जरा भी कठिन नहीं लगा…. तुम हर पल इसके साथ रही हो… मेरी तकलीफ़ में मुझसे ज़्यादा तुम परेशान रही हो…कोई कह सकता है क्या इसकी माँ तुम नहीं हो….नौ महीने बस मैंने इसे सींचा है कृति पर  असली माँ तो तुम हो इसकी….सब कुछ भूल कर बस इसे दिल से अपना कर परवरिश करना।”नव्या कृति के हाथों में नवजात को सौंपते हुए बोली 

“ पर नव्या क्या तुम इसके बिना रह पाओगी….मेरा क्या है खुद को सालों से समझा ही रही कि मैं अब माँ नहीं बन सकती और आगे भी समझा लूँगी ।”कृति बच्चे को काँपते हाथों से पकड़ते हुए बोली 

” नहीं कृति ये किसने कहा तुम माँ नहीं बन सकती हो… माँ तो तुम उसी दिन बन गई थी जब तुमने अपने बच्चे की फ़िक्र छोड़ नव्या के बच्चे के लिए उसे बचाने कूद पड़ी थी….चाहती तो तुम अपने बच्चे की फ़िक्र करती पर तुम्हें नव्या की फ़िक्र हुई और उस हादसे ने तुम्हें उसी दिन माँ बना दिया था…. पर मैं ही कभी इस बात को समझ नहीं पा रही थी….. जब समझ आया तो नव्या के फ़ैसले में सबसे ज़्यादा साथ मैंने ही दिया ।” सुभद्रा जी ने कृति की गोद में बच्चे को देख  कृति  के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा 

इस कहानी को भी पढ़ें:

बहु का दर्द – पूजा मनोज अग्रवाल

“ माँ क्या सच में आप ख़ुश है…. ये हम दोनों की अपनी जनी संतान नहीं है…. क्या आप इसे अपने घर का चिराग़ मान सकेंगी ?”कृति  बच्चे को लाड से निहारते हुए पूछी 

“ हाँ बहू ….. ये तेरी और वैभव की अपनी संतान है …. नव्या का इस पर कोई अधिकार नहीं होगा ये वादा आज हम दो माएँ तेरे से कर रही है…. ।” सुभद्रा जी नव्या और अपना हाथ कृति के हाथों पर रखते हुए बोली 

कृति ख़ुशी से बच्चे को चुमने लगी….,“ सासु माँ बस अब आपके साथ की ज़रूरत हमेशा रहेगी…..  इसे मेरा बच्चा बना कर रखने में ।”

“ बहू तुम मुन्ने को लेकर अपने कमरे में जाओ ……मैं थोड़ी देर में आती हूँ ।” सुभद्रा जी ने कहा 

कृति के जाते ही नव्या ने माँ से कहा,“ माँ आज मैं कृति के उस क़र्ज़ से खुद को मुक्त कर पाई…. मैंने ठीक किया ना माँ…?” 

“ हाँ मेरी बच्ची…..अब मेरे बेटा बहू भी बच्चे का सुख पा सकेंगे…..मैंने भी ना जाने कितना कुछ सुनाया कृति को पर उसने कभी पलट कर कुछ ना कहा……. उस दिन जब तुम दोनों उस हादसे की बात कर रही थी तब मेरी समझ में आया  कृति ने मेरी ही बच्ची के लिए अपने बच्चे की क़ुर्बानी दे दी ।” सुभद्रा जी ने कहा 

नव्या माँ का हाथ पकड़े पकड़े ही सोच में डूब गई…. सात साल पहले की बात है…. कृति और नव्या दोनों सहेलियों की यारी ऐसी थी कि सब उन्हें साथ देखकर जलते थे…. पर क़िस्मत भी अजीब वैभव को कृति पसंद आने लगी और बस नव्या की दोस्त इस घर में भाभी बन कर आ गई…. एक साल बाद नव्या का ब्याह भी हो गया और जिस साल कृति  माँ बनने वाली थी उसी साल नव्या को भी बच्चा होने वाला था पर दोनों में चार महीने का अंतर था…. संजोग से होली का त्योहार आया और नव्या अपने मायके आई हुई थी….. 

घर पर कुछ काम चल रहा था और मज़दूर छुट्टी पर चले गए थे…. काम अधूरा ही पड़ा था …. नव्या उधर जाकर देखने की ज़िद कर रही थी पर कृति उसे बार बार मना कर रही थी….. उधर उबर खाबर होगा कहीं पैर इधर-उधर हुआ तो मुसीबत ना हो जाए पर नव्या की ज़िद्द पर कृति नव्या को उधर ले जाकर सब दिखा कर बता ही रही थी कि अचानक नव्या का पैर फ़र्श पर गिरे पानी पर पड़ा और वो फिसलती इससे पहले कृति ने उसे खींच लिया और खुद को ही सँभाल नहीं पाई और गिर पड़ी……

औंधे मुँह गिर कर कराह उठी थी….. जल्दी से सब अस्पताल लेकर गए पर कृति ने अपना बच्चा खो दिया और उसका गर्भाशय भी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था जिसकी वजह से फिर माँ बनना नामुमकिन था।

इस कहानी को भी पढ़ें:

समय का चक्र – अनुराधा श्रीवास्तव “अंतरा”

कृति का रो रोकर हाल बुरा था उससे ज़्यादा नव्या का…. आज उसकी ज़िद्द की वजह से ये  सब हो गया था…..उधर जब थोड़ा होश आया तो कृति ने नव्या के बारे में पूछा और उसे कमरे में बुलाया….

“ नव्या किसी से भी कभी ये मत कहना तुम्हारी वजह से हम उधर गए थे और ये सब हो गया…. शायद यही होनी लिखा था…. तुम दोनों ठीक हो ना?” आँखों में आँसू भरे हुए थे पर दोस्त की फ़िक्र ज़्यादा थी…

नव्या ने वादे के मुताबिक़ किसी से कुछ नहीं कहा…. 

उसने समय पर एक बेटी को जन्म दिया….. 

इन सब बातों से अंजान सुभद्रा जी हमेशा कृति  को जली कटी सुनाती रहती…. जाने क्या देखने उधर गई जो कोख उजार ली ….अब क्या होगा ….मेरा बेटा तो कभी बाप भी ना बन सकेगा….  नव्या सुनती तो जी करता माँ को सुना दे पर वो तो कभी कभी ही यहाँ आती थी….फिर कृति के साथ वादा जो कर रखा था….साल बीतते बीतते कृति  उदास रहने लगी थी…. एक औरत सब बर्दाश्त कर सकती पर बच्चे की किलकारी उसके आँगन में भी गूंजे ये ज़रूर चाहती है…..

अभी  नौ महीने पहले नव्या अपनी बेटी के साथ जब यहाँ आई थी कृति  उसके साथ बहुत खुश रह रही थी….. एक दिन नव्या ने कृति से कहा,“ आज तुम्हारा बच्चा भी इतना ही बड़ा होता ना  कृति….. मेरी ज़िद्द ने तुम्हारी दुनिया ही उजार दी …. भैया और तुम्हारा उदास चेहरा मुझे अंदर ही अंदर आत्मग्लानि महसूस करवाता है…. हमेशा सोचती रहती हूँ….मैं ऐसा क्या करूँ जो तुम दोनों की गोद में एक बच्चा खेले…. मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ……।” नव्या कृति का हाथ पकड़कर रोते हुए बोली 

“ नव्या मेरी क़िस्मत का कुछ नहीं हो सकता…. माँ को इस घर का ही चिराग़ चाहिए कई बार जी करता किसी अनाथ को अपना कर अपना नाम दे दूँ पर माँ मानती नहीं….वैभव बस यही कहते तुम खुश रहो मुझे तुम्हारी ज़रूरत बच्चे की नहीं…..पर कभी-कभी मेरा भी मन करता मेरा भी बच्चा होता…. पर मन को समझा लेती हूँ ।” कृति ने उदास हो कहा

“ कृति  क्या मैं तुम्हें अपना बच्चा दे दूँ तो अपनाओगी….?” नव्या ने सामने से ही अचानक पूछ लिया 

“ ये क्या कह रही हो नव्या…..तुम्हारे पति कभी इसकी इजाज़त नहीं देंगे….।” कृति ने कहा

 “कृति  मैँ फिर से माँ बनने वाली हूँ और मैं इस बारे में बहुत दिन से सोच रही थी… मोहित को तुम्हारे हादसे के बारे में मैंने सब बता दिया है क्योंकि मैं हमेशा तुम्हारे लिए परेशान रहती थी तो एक दिन मोहित मुझे रोता देख कसम देकर बोले क्या बात है जो तुम परेशान रहती हो कहो …

इस कहानी को भी पढ़ें:

मुखौटा – डॉ. पारुल अग्रवाल

फिर मैं चुप नहीं रह सकी….मैंने उन्हें सब बता दिया है कि मेरी परवाह में तुम अपना नुक़सान कर बैठी हो….कोई उपाय हो तो मैं उसकी मदद कर सकूँ….. तब मोहित ने कहा था…. हमारी एक संतान पहले से है अब जब कभी हमारी दूसरी संतान होगी तो वो तुम भाभी से पूछ कर उन्हें सौंप देना…तुम्हें भी खुशी होगी और भाभी भी माँ बन जाएगी… मुझे कोई एतराज़ नहीं होगा ।” नव्या ने कृति से कहा 

“  सच नव्या..!” कृति सुनकर खुश हो गई पर एक पल को उदास…. ऐसा कैसे हो सकता कोई अपना बच्चा हँसी ख़ुशी किसी को दे सकें….

नव्या ने कृति को भरोसा दिलाया और फिर जब सुभद्रा जी से कहा तो वो पहले राजी ना हुई तब नव्या ने वो सब वाकया कह सुनाया…. जिसकी वजह से कृति कभी माँ नहीं बन सकती थी….ये सब सुन कर सुभद्रा जी को बहुत आत्मग्लानि हुआ और उन्होंने नव्या की कोख में पल रहे बच्चे को अपने बेटे बहू के बच्चे के रूप में आशीर्वाद दे दिया ।

नव्या सोचती ही रह जाती अगर सुभद्रा जी उसे आकर खाने के लिए ना उठाती।

“ माँ मुन्ना क्या कर रहा है?” नव्या ने पूछा 

“अपनी माँ के पास आराम से सो रहा है ।” सुभद्रा जी की बात सुन नव्या समझ गई अब मुन्ने की चिंता करने के लिए उसकी माँ है…. वो तो अब बच्चे की बुआ बन कर रहेगी हमेशा के लिए….।

दोस्तों  ये ज़रूर आपको एक कहानी लगेगी पर हक़ीक़त में कुछ नेक दिल औरतें होती हैं जो किसी के सूने गोद को भर उन्हें ढेरों ख़ुशियाँ दे देती हैं….. ।

मेरी रचना पसंद आए तो कृपया उसे लाइक करें और कमेंट्स करें।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

#आत्मग्लानि

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!