मीरा के जीवन के उतार-चढ़ाव ने उसे रिश्तों का अच्छा पारखी बना दिया था। समझदार होते ही वह अपना खर्चा निकालने लगी थी। मौहल्ले के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर उसने अच्छी-खासी रकम जमा कर ली थी। पढ़ाने के दौरान ही उसने एक प्राइवेट स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली।मां खुश नहीं थी, उन्हें लगता मीरा के घर से बाहर जाने की वजह से उन पर घरेलू काम का भार बढ़ गया था,पर चार पैसे आते देख वो चुप थी।सोच रही थी इसकी शादी के लिए ये ही पैसा जमा कर लें तो अच्छा है,गांठ में से पैसा नहीं लगाना पड़ेगामीरा सुबह स्कूल के लिए तैयार होकर जाती तो मां के मुंह से कभी प्यार भरे शब्द ना फूटते, पिताजी अखबार लेकर बैठ जाते तो आंखें उठाकर देखने का कष्ट नहीं करते।सच ही है दूसरी मां के आते ही बाप तीसरा हो जाता है। दोनों सौतेले भाईयों के लिए मीरा का घर में होना ना होना कोई मायने नहीं रखता। यही हाल स्कूल से लौटते वक्त होता।
भरा पूरा परिवार होने के बाद भी मीरा प्यार भरे दो बोल के लिए तरस जाती ,स्कूल से आते ही चूल्हे चौके में लग जाती।मां शाम के सारे काम उस पर छोड़ देती ।इसी तरह मीरा की जिंदगी घर ,स्कूल के बीच बंटकर रह गई थी। परिवार की उपेक्षा और बढ़ती उम्र ने उसे पत्थर बना दिया था। उसने भी कभी घर,स्कूल के सिवा कुछ नहीं सोचा।कभी नहीं सोचा कि उसकी जीवन नैया किस किनारे पर जाकर ठहरेगी,कभी नहीं सोचा कि उसका जीवन किस तरह बिना किसी हमसफ़र के कैसे बितेगा। सतरंगी सपनों का एक भी रंग उसके अंतर्मन को छू नहीं पाया था।
इसी बीच स्कूल में नये टीचर मोहन से मिलना हुआ। हालांकि मोहन उम्र में बड़े थे पर कसे शारीरिक सौष्ठव
के कारण उनकी उम्र ठहर गई थी। पढ़ाई के सिलसिले में रोज बातचीत होती रहती थी।मीरा को आभास हुआ कि मोहन उनके ज्यादा ही करीब रहने की कोशिश में थे। धीरे-धीरे मीरा भी मन के बन्धन तोड़कर मोहन के प्यार की गिरफ्त में आती गई।
अब उसे स्कूल जाना बोझिल नहीं लगता।घर के काम काज भी वो हंसकर कर दिया करती थी।
उस दिन मीरा के जीवन में सुखों ने दस्तक दी , जिससे सोये अरमान जाग उठे,मोहन ने मीरा के आगे विवाह का प्रस्ताव रखा।वो जल्दबाजी में फैसला नहीं लेना चाहती थी।
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इस बात को ज्यादा दिन भी नहीं हुये कि एक दिन एक अनजान व्यक्ति मोहन के घर का पता पूछते हुए स्कूल तक आ पहुंचा ।मीरा को मालुम हुआ उसने उस व्यक्ति को आदर से बैठाया और कहा मोहन जी तो अभी क्लास ले रहे हैं ।आप थोड़ी देर इंतजार कीजिए। अधेड़ व्यक्ति ने अचानक मीरा से पूछा कि सीमा कैसी है?और,उसकी बिटिया अब तो बड़ी हो गई होगी ।मन कर रहा था,गांव से शहर आया था तो सोचा दोनों से मिल लूं। मीरा समझ नहीं पाई,बेटी, मैं मोहन की पत्नी सीमा और उसकी बेटी के लिए पूछ रहा हूं,शायद तुम उनसे नहीं मिली होंगी।
ये सुनते ही सीमा सकते में आ गई।इतना बड़ा धोखा ,ये विश्वासघात..!! उम्र के इस पड़ाव पर साथी मिला तो वो भी धोखेबाज।उसे विश्वास नहीं हुआ कि मोहन भी उसके पिता जैसे निकलेंगे।क्लास पूरी करके मोहन आया । अधेड़ को देखकर सब समझ गया।
मीरा को समझाने की कोशिश की,’मीरा मैं तुम्हें सच बताने वाला था , मैं तुम्हें अपना लूंगा, मैं तुमसे किया गया हर वादा पूरा करूंगा, मैं सीमा को तलाक दे दूंगा।बस तुम्हें थोड़ा इंतजार करना होगा।’
नहीं!!!मीरा चीख पड़ी,’तुम्हें मुझसे किया हर वादा याद है पर अपनी पत्नी को दिए गये सातों वचन भुल गये। मैं किसी का घर उजाड़ कर अपना घर कभी नहीं बसाऊंगी ।मैं नहीं चाहती मेरा भावी आशियाना किसी औरत के टूटे मन,आहों, आंसूओं को कुचल कर सजाया जायें।इस तलाक की विभीषिका को मैंने सहा है,मेरे पिता ने मेरी मां को तलाक देकर दूसरी शादी की थी। कोर्ट में पैसों के बल पर उन्होंने मुझे अपने पास रख लिया और मेरी मां से अलग कर दिया।मां इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर सकी और चल बसी।तलाक लेकर मां-बाप फिर भी बस जाते हैं, लेकिन बच्चों की जिंदगियां उजड़ जाती है। माता-पिता के होते हुए भी वो बिन मां-बाप के हो जाते हैं। दोनों के प्यार से वंचित हो जाते हैं। मैं ऐसा नहीं करूंगी, तुम्हारी मासूम बेटी के साथ मैं ये अन्याय नहीं कर सकती।
मोहन तुमने सच्चे मन से मुझे एक पल के लिए भी प्यार किया हो तो तुम्हें उस प्यार की सौगंध तुम अपनी पत्नी को तलाक नहीं दोंगे। मीरा कभी मोहन की नहीं हो सकती ये ही मेरा आखिरी फैसला है।
अर्चना खंडेलवाल