Moral Stories in Hindi : तड़ाक! की आवाज से रसोई घर गूंज उठा. अपने समान समेट और अपने बाप के घर जाने की तैयारी कर निर्लज्ज औरत! गाल सहलाती आंखों से आंसू बहाती मुन्नी सहमी सी नजरें जमीन में गड़ाए खड़ी थी! मां जी की बड़ बड़ चालू थी.. नीच खानदान से आई है तेरे बाबूजी की जिद ने हमे कहीं का न छोड़ा.. ये घुटने का दर्द मुझे अब जीने नही देगा हाय रे… एक हाथ से घुटने को सहलाती ड्राइंग रूम के सोफे पर बैठी मां जी बहु को कोस रही थी.
आज मनोज बहुत उग्र हो गया था मुन्नी को खींचते हुए कमरे में सामान बांधने के लिए ले गया. तीन साल का बेटा तनय और पांच साल की बेटी सहमे से खड़े थे.. ये आए दिन होने वाली घटना थी.. मुन्नी की गलती यही थी कि मां जी के घुटने में मालिश करने के जगह बच्चों और ससुर जी का नाश्ता बनाने चली गई थी.. ससुर जी टहल के आते हीं पहले नाश्ता करते थे.. नही मिलने पर बहुत हल्ला करते थे.. मांजी ने बेटे बहु के बीच मामला गरमाता देख कमरे की ओर गई और बीच बचाव की कोशिश करने लगी क्योंकि अगर बहु सचमुच चली गई तो बेवकूफ बेटे को नहीं पता की कितनी परेशानी उठानी पड़ेगी.. मेरा मकसद तो यही है की दोनो बहुओं की तरह ये भी अपनी गृहस्थी अलग संभाल न ले.. मैं तो एक ग्लास पानी भी ले कर नही पीती.. कामवाली को पता नही मुझे देखते क्या सूझता है कि चार दिन से ज्यादा नहीं टिकती..
तीन बेटे और दो बेटियों में मनोज सबसे छोटा था.. दोनों बेटियों की शादी हो चुकी थी. दोनो बेटे भी इसी शहर में थे.. उनका कहना थे बच्चों के स्कूल और उनका ऑफिस दोनों अपने घर से दूर पड़ता है इसलिए ऑफिस के नजदीक घर लिया है.. मां जी के स्वभाव से बड़ी बहु पहली बार मायके गई तो वापस पति के अलग डेरा लेने के बाद हीं आई.. दूसरी को शादी के पहले हीं आगाह कर दिया था बड़ी बहु ने.. मां जी को इसकी भनक लग चुकी थी..
इसलिए मनोज के शादी की खबर किसी को नहीं होने दिया मां जी ने . मुन्नी पर बहुओं की परछाई भी नही पड़ने दिया मां जी ने.. मनोज के मन में मां जी ने ये बात बुरी तरह से भर दिया था कि बहुओं ने उनके भाइयों को बहका के अलग घर लेने पर मजबूर कर दिया है.. कितना कष्ट कर के दोनो को पाला पोसा और पढ़ाया लिखाया! आज ये दिन देखना पड़ रहा है.. मां जी शुरू से कभी देह हाथ हिलाती नही थी उसकी कमी मुंह चला के पूरा करती थी.
पहले कुंवारी ननद थी फिर बेटियां करने लगी मां जी का काम था घूमना फिरना और मुहल्ले की महिलाओं के साथ गप्पे करना.. मंदिर में एक दूसरे की चुगली करना और किसी को न बताने को बोल उसकी बातें उससे और उसकी किसी और से.. दोनो बहुएं पर्व त्योहार पर आती थी पर मां जी के कलह से बिल्कुल हीं आना छोड़ दिया..
एक तो छोटा बेटा मां का दुलारा और आज्ञाकारी … मां का हर दम मनोज के जेहन में अपने प्रति बहुओं का तिरस्कार और बेरुखी की बातें! अपने निर्दोष होने की कसमें मनोज के मन में अपनी होने वाली पत्नी के साथ व्यवहार की रूपरेखा तैयार करने का एक सुनियोजित प्रपंच मां जी ने तैयार किया था.. क्योंकि ये उनका अंतिम शस्त्र था…
दोनो भाभियों लिए मां जी का मनोज के मन मस्तिष्क में भरा जहर उसके अपने जीवन को नरक बना रहा था.. मां के साथ वफादारी करते करते पत्नी को कितनी मानसिक और शारीरिक यातना दे रहा था उसको अहसास नही था..
महिला आयोग महिला मुक्ति मोर्चा आदि संगठन ऐसी कितनी महिलाओं की सहायता कर पाता है.. घुटन और जिल्लत भरी जिंदगी को अपनी नियति मान महिलाएं संतोष कर लेती है.. मायका भी शादीशुदा लड़की की जिम्मेदारी कुछ समाज परिवार और रिश्तेदारों के कारण उठाने से पीछे हट जाता है.. इसलिए पहले लोग बेटी के दिमाग में बचपन से ये भर देते थे कि जहां डोली से गई हो वहां से अर्थी में निकलना.. पर अब ऐसा नहीं है..
मुन्नी कभी आत्महत्या को सोचती पर दोनो बच्चे और छोटे भाई बहनों तथा पिता का चेहरा सामने आ जाता..
कितने नाज नखरे से मां पापा ने पाला था.. नाम भी रखा मुन्ना, लोग कहते ये तो लड़के का नाम है तो पापा कहते ये मेरे लिए बेटा हीं तो है.. पड़ोस के शर्मा जी ने मनोज का रिश्ता उसके लिए बताया था.. तीन मंजिला घर शहर में. एमएससी कर लड़का प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के साथ साथ एक कोचिंग संस्थान में पढ़ाता भी है..
शादी हो गई.. मुन्ना से मुन्नी बनी फिर कुलटा कुलछिनी और भी कई नामों सुशोभित हुई.. मुन्नी से बड़ा एक भाई था और एक छोटी बहन थी.. पहली बार सिर्फ बहुत मिन्नतें करने पर दो दिन के लिए मायके आई! आंखों के नीचे काले घेरे. सुखा मुरझाया चेहरा बुझी बुझी सीआंखें.. मां की अनुभवी आंखें ये समझ गई थी कि बेटी खुश नहीं है..
शादी के बाद लड़कियों के चेहरे में एक अजीब सी कशिश और चमक आ जाती हैं और अति उत्साहित हो कर हम उम्र सखियों और भाभियों से लजाते शरमाते अपने ससुराल की बातें करते नही अघाती है.. पर मुन्नी में ऐसा कुछ नहीं दिखा.. मां ने बहुत पूछा पर मुन्नी फीकी हंसी हंस कर रह गई.. दो दिन बाद मुन्नी चली गई..
सात साल बाद मुन्नी का बड़ा भाई दरोगा बन गया.. छः महीने की ट्रेनिंग समाप्त कर घर आया! अगले सप्ताह रक्षाबंधन था! बहन को फोन कर बुलाना चाहा तो बहन ने बहुत हीं कातर स्वर में कहा इस रक्षाबंधन पर भैया तुम आओ और भाई होने का फर्ज निभाओ.. मुन्नी का भाई बहन के घर पहुंचा राखी के दिन, उसी दिन उसकी ट्रेन थी,पहली पोस्टिंग पटना में हुई थी.. मुन्नी को देख भाई अवाक रह गया! पढ़ाई के कारण बहुत समय से वह घर से दूर था अपने चाचा के पास.. वहीं रहकर पढ़ाई करता था..
आज अरसे बाद छोटी बहन को देख रहा था. फूट फूट कर बहन से लिपट कर रोया.. बहन ने राखी बांधा भाई बोला बता तुझे क्या चाहिए बहन ने कहा भैया तुम मुझे इस नरक से निकालो और पैर पकड़ के रोने लगी.. भाई बहन का हाथ पकड़ा और दोनो बच्चों के साथ मन हीं मन भगवान से इस जिम्मेदारी को पूरा करने की हिम्मत और शक्ति मांगी.. मन हीं मन अपनी बहन की दुर्दशा देख दुःख और #शर्मिंदगी # से भर गया..मांजी और मनोज की हिम्मत एक पुलिस वाले से भिड़ने की नही हुई..
दस साल बाद मुन्नी के बच्चे आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली चले गए हैं मुन्नी भी दिल्ली में हीं एक फ्लैट में बच्चों के साथ रहती है मुन्नी का भाई हर महीने नियत समय पर पैसे भेजता है बीच बीच में मुन्नी के भाई भौजाई भी दिल्ली जाके मुन्नी और बच्चों के साथ दो तीन दिन बीता के आते हैं.. मां जी ससुर जी और मनोज अपने कर्मों का फल भोग रहें है.. तीनों अपने किए पर बहुत# शर्मिंदा# हैं…मुन्नी से मिल के माफी मांगना चाहते हैं पर दोनो भाई और बहन ने साफ इंकार कर दिया… अब पछताए होत क्या जब चिड़िया…
#स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #
#शर्मिंदा #
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Veena singh..
#शर्मिंदा
GKK S