Moral stories in hindi: सुख और दुख अमीर और गरीब में भेदभाव नहीं करती! सबसे बड़ा दुख है.. मन का दुख! और जब दुखों के बाद थोड़ा सा भी सुख मिलता है तो उस इंसान की जिंदगी में बहार आ जाती है!
शीला जी घर की बालकनी में बैठी बैठी सड़क पर आती जाती महिलाओं को देखकर सोचती थी,.. इनकी कितनी अच्छी जिंदगी है, चाहे उनके पास में जरूरी सुख सुविधा भी नहीं है, फिर भी यह कितनी खुश दिखाई दे रही है, और एक मैं हूं जिसके पास किसी भी चीज की कमी ना होते हुए भी मेरा मन हमेशा दुखी रहता है!
शीला की शादी तभी हो गई थी जब वह 18 वर्ष की थी! घर वालों ने एक अच्छा सा बिजनेसमैन लड़का देखकर उसकी शादी कर दी! सबसे बड़ी बात यह थी, की लड़के के माता-पिता नहीं थे! इकलौता लड़का था, जमीन जायदाद और पैसे की कोई कमी नहीं थी!
वैसे भी आजकल हर मां-बाप की यही इच्छा होती है, कि उनकी बेटी ससुराल वलों, या संयुक्त परिवार में न रहकर अपने पति के साथ अलग से रहे, ताकि उनकी बेटी आजादी से और अपने मन मुताबिक जिंदगी जी सके! किंतु शीला को तो भरे पूरे परिवार के साथ रहने की आदत थी!
खैर शादी के बाद शीला अपने पति के आलीशान बंगले में आ गई! शुरू के कुछ महीने तो शीला के पति विनीत समय पर घर आ जाते थे, तो शीला को अकेलेपन का खास एहसास नहीं होता था! किंतु धीरे-धीरे विनीत जी किसी भी समय घर पर आ जाते थे! उनका आने का कुछ समय भी निश्चित नहीं था!
कभी दिन में दो-तीन बजे के करीब आ जाते थे !कभी वह शाम तक नहीं आते थे! इसी वजह से शीला भी घर छोड़कर कहीं नहीं जा सकती थी! एक दिन शीला ने अपने पति से कहा कि मेरा अकेले रहते रहते मन भर गया है.. मेरी भी इच्छा होती है कि मैं भी कहीं घर से बाहर निकलूं, नई-नई जगह जाऊं, मोहल्ले में भी अपना संपर्क बनाऊं,.. किंतु विनीत जी कहते.. अरे मोहल्ले के लोग हमारी बराबरी के नहीं है, दोस्ती हमेशा बराबर वालों में ही होती है, और तुम्हें किस चीज की कमी है!
घर में एक से एक सुविधाएं हैं ! दिन भर टीवी देखो या मोबाइल में बैठे-बैठे पूरी दुनिया की जानकारी ले लो! अगर बाहर की इच्छा हो तो बड़े-बड़े मॉलों में शॉपिंग के लिए जाओ! किंतु शीला को अपनी बोरिंग दुनिया से कोफ्त होने लगी थी! और विनीत जी शीला की स्थिति समझना ही नहीं चाहते थे!
वह बाहर जाकर खुली हवा में जाकर सांस लेना चाहती थी! उन महिलाओं के साथ में हंसना बोलना चाहती थी, जो दोपहर होने पर घर के बाहर अपने सुख दुख को साझा करने के लिए इकट्ठी होती थी, और एक 2 घंटे तक गपशप करती थी! दुनिया जहान की बातें करती थी! किंतु वह नहीं कर सकती थी !
एक दिन हिम्मत करके वह उन औरतों में शामिल हो गई, किंतु तभी विनीत घर पर खाना खाने के लिए आ गए! शीला को घर पर ना देखकर बहुत नाराज हुए, और जैसे ही शीला घर पर आई, शीला के ऊपर चिल्लाना शुरू कर दिया!… हजार बार मना किया है ,फिर भी तुम अपनी मनमानी करने से बाज नहीं आती!..
अरे वहां जाकर तुम्हें कौन सा सुख मिल गया !उसके बाद से शीला ने घर से बाहर जाना ही बंद कर दिया! बाहर के नाम पर वह सिर्फ अपने बालकनी में बैठी बैठी आते-जाते लोगों को ही देखती रहती! पड़ोस की महिलाएं भी शीला को घमंडी समझती थी, किंतु शीला का दर्द कोई नहीं जानता था! कुछ सालों बाद उसके जुड़वा बच्चे हुए तब वह बच्चों में अपने सुख को तलाश करने लगी!
वह उनके साथ उनकी दुनिया में रम गई! अब वह खुश रहने लगी थी! धीरे-धीरे करके बच्चे भी बड़े होते गए, और बच्चे अपने कॉलेज या फिर दिन भर मोबाइल में ही बिजी रहते! शीला एक बार फिर से अकेली रह गई!
कुछ समय पश्चात बच्चों की भी शादी हो गई, दोनों बच्चे विदेश में सेटल हो गए! अब तो शीला बिल्कुल ही अकेली रह गई! जब भी उसके पति घर पर आते उसे हमेशा गुमसुम और उदास देखते! ऐसा नहीं था कि विनीत शीला से प्रेम नहीं करते थे! वह शीला से खुश रहने को कहते, पर वह उसकी मन की उदासी नहीं देख पा रहे थे!
धीरे-धीरे शीला डिप्रेशन का शिकार होती चली गई! अब उसे किसी से भी बातें करना या कोई भी काम अच्छा नहीं लगता था! विनीत उसे लेकर बड़े डॉक्टर के पास गए, तब डॉक्टर ने कहा.. समझ नहीं आ रहा, इन्हें कोई बीमारी भी नहीं है! जैसे कि आप बता रहे हैं.. घर में भी कोई कमी नहीं है, फिर भी यह डिप्रेशन में है! शायद यह मानसिक रूप से खुश नहीं है!
डॉक्टर ने कुछ दवाइयों के साथ उन्हें घर भेज दिया! आते समय विनीत और शीला कुछ समय के लिए एक पार्क में बैठ गए, जहां कुछ छोटे बच्चे शरारत कर रहे थे, और कुछ महिलाएं एकजुट होकर बातें कर रही थी! कई लोग वहां भजन संध्या भी कर रहे थे! शीला उन्हें बहुत गौर से देख रही थी! विनीत जी कुछ कुछ शीला की उदासी और दुख का कारण समझ गए थे!
अब वह रोज शाम को जल्दी घर आ जाते, और शीला को कभी पार्क में, कभी मॉल में, या कभी मूवी दिखाने ले जाने लगे! अब उन्होंने शीला से कह दिया था कि वह कहीं भी किसी के भी साथ घूम फिर सकती है, गपशप कर सकती है! बस उन्हें खुश रहने वाली शीला चाहिए!
अगले दिन शीला उन औरतें के पास जाकर बैठ गई, और उनके हंसी मजाक में शीला को आनंद आने लगा! अब वह रोज वहां आ जाती, और अब उनकी बातों में भी शामिल होने लगी! महीने 2 महीने बाद शीला के चेहरे पर खुशी नजर आने लगी! विनीत जब घर आते शीला हमेशा चहकती हुई सी दिखती थी, वह अपने दिन भर की बातें विनीत जी को सूनाती थी और खुश होती थी!
अब विनीत जी समझ गए थे सिर्फ पैसों से ही सुख नहीं मिलता! सबसे बड़ा सुख है मन का प्रसन्न रहना! अब शीला हर समय दुखी नहीं रहती थी, वह अपनी मर्जी से जिंदगी जीने लगी थी! और उसे देख कर विनीत जी भी सुख का आनंद लेने लगे!
हेमलता गुप्ता
स्वरचित. ( #सुख-दुख )
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