मदर्स डे –  चंडी चरण दास : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi  : रबिबार के दिन लड़का का स्कूल और पति का ऑफिस नहीं रहने पर भी परमा को देर तक शोये रहना अच्छा नहीं लगता। इसलिए आज भी वह जल्दी जल्दी उठकर घर के काम काज में लग गयी। मुँह हाथ धोकर, रसोई में बासन बर्तन धोने लगी। इसके बाद चाय का पानी चढ़ाना होगा, ससुरजी थोड़ी देर में मॉर्निंग वाक से आ जायेंगे, उनको चाय देना होगा।

अचानक कालिंग बेल बज उठी। आस्चर्ज हुआ परमा को, इतना सबेरे सबेरे कौन आया? ससुरजी को वापस आने में तो अभी देर है, तब? हाथ धोकर पल्लू में पोछते हुए बाहर निकलकर दरवाजा खोलकर उसने देखा एक लड़का हाथ में फूल का बुके और एकठो पैकेट लेके खड़ा है। उसने पूछा, “परमा दास आप है?”

“हाँ, क्यों?”

“आप के नाम ये पार्सल है। जरा यहाँ दस्तखत कर दीजिये।”

सामान लेकर परमा सोचने लगी कौन भेजा है ये सब? आज तो उसका बर्थडे नहीं है, बिबाह बार्षिकी भी नहीं है। और होने पर भी कस्मिन्काल में कोई कुछ नहीं भेजता। फिर आज ये?

सोफे में बैठकर देखा बुके में एक लिफाफा है। उसपर केबल उसका नाम लिखा हुआ है, न पूर्ण ठिकाना, न प्रेरक का नाम या पता। कुतूहल बड़ा, लिफाफा खोलकर उसने देखा मोटी मोटी सुन्दर अक्षर में लिखी हुई एक चिट्ठी, ऊपर में लिखा हुआ–हैप्पी मदर्स डे। ध्यान से परमा चिट्ठी पड़ने लगी।

(२)

परमा माँ,

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आज ये शुभदिन में इस बूढ़ा लड़का का जी भर आशिर्बाद तुम्हारे लिए। आज के दिन तुम्हारा ही मुखड़ा याद आया पहले। माँ तो कब की चल बसी, ठीक से याद भी नहीं है। मगर तुम हर रोज जब मॉर्निंग वाक के लिए मुझे नींद से जगा देती हो, दोपहर अखबार पड़ते पड़ते देर हो जाने से तुम डांट कर नहाने के लिए भेज देती हो, खाने के समय सामने खड़ी रहती हो मछली सब्जी सब ठीक से मैने खाया है की नहीं नजर रखने के लिए, रात में शोने के लिए जब मच्छरदानी टांग कर शरीर पर चद्दर ओढ़ देती हो,

तबियत ख़राब होने से रात जागकर सेबा करती हो, दवा खिलाती हो, जरा सी अबाध्य होने से बच्चो जैसी डांटती हो–तब माँ की याद आ जाती है। लगता है जैसे अभी भी मै वही छोटा कुशल हूँ, और तुम मेरी माँ। लाल साडी पहनकर जब तुम ठाकुरघर में जाती हो पूजा करने के लिए, मै तन्मय होकर देखता रहता हूँ। लगता है जैसे माँ तुम्हारे रूप में वापस आ गयी है। इसलिए इस पावन दिन में इस बूढ़ा लड़के के तरफ से ये छोटा सा उपहार तुम्हारे लिए, ईश्वर से कामना करता हूँ तुम्हारा लम्बा खुशहाल जीबन। आज भगवान् से मेरा एक ही प्रार्थना–जैसे मै इस माँ की गोंद में सर रखकर अंतिम साँस ले सकूँ।

इति–तुम्हारा बूढ़ा लड़का कुशल।

चिट्ठी पड़ते पड़ते कब आँख से धारा निकल पड़ा था परमा समझ नहीं पायी। अश्रु की एक बूंद चिट्ठी पर गिरते ही वह आँचल से आँख पोछने लगी की चौंक उठी, सर पर किसीका हाथ का स्पर्श। सर उठाकर देखि सामने ससुरजी खड़े है।

“तुम ऐसे रोने से ये बूढ़ा लड़का भी रो देगा बता देता हूँ।”

आँख पोछकर खड़ी होकर उसने ससुरजी को प्रणाम करके बोला, “ये तो आनंद की अश्रु है बाबा, इतना बड़ा सुन्दर लड़का रहते हुए मै रोयुंगी क्यों भला?”

बनावटी गुस्से से “ये बात याद रखना” बोलकर उसने अपना आँख पोछकर परमा के सर पर बड़ा दुलार से हाथ फेरने लगा।

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