शक का कीड़ा – पुष्पा जोशी : Moral stories in hindi

moral stories in hindi : समय परिवर्तन शील है,और उसकी रफ्तार बहुत तेज है। कामिनी ने कभी सोचा भी नहीं था, कि इस छोटे से गॉंव धनबाद में उसका दूसरी बार इस तरह आगमन होगा। पहली बार जब इस गॉंव में आई थी,एक नई नवेली दुल्हन बनकर, हाथों में मेंहदी, रंगबिरंगी चूड़ियाँ, पैरो में बजने वाली पायल और चेहरे पर लंबा घूंघट डाले वह बिरजू के पीछे-पीछे चल रही थी ।

गाँव की औरते मंगल गीत गा रही थी और बच्चे उसका घूंघट उठाकर उसका चेहरा देखने के लिए लालायित थे। ऑंखों में सपने सजाए उसके पैर ससुराल की तरफ बढ़ रहै थे। द्वार पर पहुँचने पर द्वाराचार की रस्में हुई। कुछ अन्य रस्मों‌ के बाद बहू की मुंह दिखाई की रस्म हुई। गॉंव की महिलाऐं उसका घूंघट उठाती चेहरा देखकर बैलैया लेती और उपहार देती।

सब उसकी सुन्दरता की तारीफ कर रही थी और कह रही थी बिरजू के तो भाग खुल गए। कलावती जी ने हॅंसकर कहा, तुम सब मेरी बहू को नजर मत लगाना, आज ही उसकी नजर उतारूँगी। कलावती जी की खुशी का ठिकाना नहीं था। इस तरह हंसी मजाक करते रस्म पूरी हुई। कलावती ने गॉंव की प्रथा के अनुसार सबको गुड़ धना बांटा।

सब अपने घर चली गई, जाते समय सबके मन में यही विचार था कि, कहाँ काला कलूटा बिरजू और कहाँ इतनी प्यारी बहुरिया। ईश्वर ने क्या जोड़ी बनाई है। कामिनी पढ़ी लिखी, संस्कारी, सुन्दर लड़की थी । उसके पिता रामेश्वर जी ने अपनी गरीबी के कारण बेटी का विवाह बिरजू से कर दिया था। उनके समाज में दहेज प्रथा थी और  दहेज देने का सामर्थ्य उनमें नहीं था।

बिरजू की माँ ने दहेज नहीं मांगा उसे संस्कारी बहू चाहिए थी। बिरजू के दोस्त हमेशा कामिनी की सुन्दरता की तारीफ करते थे, वे उसकी किस्मत से जलते थे। और सोचते थे कि ऐसा क्या करें कि इसकी पत्नी इससे दूर हो जाए । समाज में ऐसी विकृत प्रवृत्ति के लोगों की कमी नहीं है। कामिनी और बिरजू की गृहस्थी सुचारू रूप से चल रही थी, बिरजू की आमदनी कम थी, मगर कामिनी बहुत सोच समझ कर पैसा खर्च करती थी और बचत भी करती थी।

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कलावती जी हमेशा उसकी प्रशंसा करती थी।सब प्रेम से रहते थे।
बिरजू के दोस्तों ने मीठा-मीठा बोलकर उसे शराब और जूंए की लत लगवा दी। अब उसका पैसा उसमें खर्च होने लगा। घर में पैसो की तंगी आने लगी। माँ बहुत समझाती पर कोई असर नहीं होता। कामिनी कुछ कहती, तो वह उसकी पिटाई कर देता। घर की खुशियों पर ग्रहण  लग गया था। कामिनी  माँ बनने वाली थी दो महिने का गर्भ था।

मगर उसे खुशी से ज्यादा चिंता हो रही थी। बिरजू की आदतों के कारण घर का खर्चा भी ठीक से नहीं चल रहा है, तो वह आने वाले का लालन-पालन कैसे करेगी। एक दिन उसने कलावती जी से कहा- “माजी मैं तो घर के बाहर जाती नहीं हूँ, आप इतने लोगों को जानती है, अगर कहीं पर मेरे  करने लायक काम मिल जाए तो, कुछ कमाई हो जाए, आपके बेटे को तो पता नहीं क्या हो गया है, कुछ समझना ही नहीं चाहते।”
        देव योग से उस दिन कलावती जी की सहेली माया जी घर पर आई। बातों बातों में वे बोली- “कला मैं बहुत परेशानी में हूँ, छोटी  बहू तारा को लड़की हुई है, मगर बहू और बेटी दोनों की तबियत ठीक नही है। बड़ी बहू के दोनों बेटे अभी छोटे है, दिन भर धमाल करते हैं, पढ़ाई भी नहीं करते।

बहू अकेले घर का काम करती है तो थक जाती है, मैं चाहती हूँ कि कोई घर जैसी महिला मिल जाए जो बच्चों को सम्हाल ले, मुझसे भी अब काम नहीं बनता है। कलावती ने कामिनी से पूछा वह तुरन्त तैयार हो गई। उसने कहा आप बच्चों की पढ़ाई की चिंता भी मुझपर छोड़ दें, मैं उन्हें पढ़ा भी दूॅंगी।
        दूसरे दिन से कामिनी माया जी के यहाँ काम पर जाने लगी, वह बच्चों को सम्भालती और साथ ही बच्चों को पढ़ाई भी करवाती। उसका पढ़ाने का ढंग ऐसा था कि बच्चों को पढ़ने में मजा आने लगा था। घर के सभी लोग खुश थे, पैसो की कमी नहीं थी। कामिनी की कमाई से घर व्यवस्थित चलने लगा।तीन महीने तक सब व्यवस्थित चला।

मगर बिरजू के दोस्तों ने बिरजू के मन में शंका का बीज डाल दिया। उससे कहते आजकल भाभीजी बहुत खुश नजर आती है, तू तो कमाने के लिए घर से निकल जाता है तेरे घर से निकलने के बाद वे बड़ी हवेली में जाती हैं और शाम  को घर आती है। कोई कहता भाभीजी, हैं ही इतनी सुन्दर, तेरे साथ कब तक जीवन बिताए, उन्हें भी तो खुश रहने का अधिकार है। बात बिरजू के मन को लग गई। दूसरे दिन वह काम पर जाने के बहाने निकला और गया नहीं, अपने घर पर नजर रखी।

कामिनी अपने काम पर गई तो छुपकर उसके पीछे गया। उसने देखा कि वह बड़ी हवेली में गई। उस समय वह कुछ नहीं बोला। रात को बहुत पी कर आया और गालियाँ बकने लगा। माँ ने बहुत समझाया तो उसे भी झिड़क दिया वह नीचे गिर गई। अब बिरजू ने डंडा लेकर कामिनी को पीटना शुरू किया।

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कलावती जी चिल्लाती रही दुष्ट रूक जा,वह गर्भवती है। मगर उसके सिर पर खून सवार था, वह दुगने वेग से झपटा कुलक्षणी पता नहीं कहाँ मुंह काला करके आई है। उस दिन वह उसे मार ही डालता अगर पड़ोसियों ने बीच बचाव नहीं किया होता। गाँव छोटा था किसी ने थाने में खबर‌ कर दी पुलिस बिरजू को पकड़ कर ले गई,कामिनी का गर्भपात हो गया,इस सदमे में कलावती जी का देहांत हो गया। एक खुशहाल घर की खुशियों पर इस शक के कीड़े ने ग्रहण लगा दिया था।

कामिनी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था।उसे प्यार करने वाली सास भी उसे छोड़ कर चली गई थी, वह किसके सहारे रहै। उनके तेरह दिन का कार्यक्रम उसने अपनी सामर्थ्य के अनुसार किया। बिरजू के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया था। तेरह दिन बाद एक दिन वह इस गाँव को छोड़कर चली गई।      

    कुछ दिन मायके में शरण ली,मगर वहाँ भी भैया -भाभी को अखरने लगा। उसने एक विद्यालय में नौकरी की और अपने रहने की अलग व्यवस्था की। बिरजू को तलाक का नोटिस देकर पिटीशन फाइल की । उसने भरण पोषण की मांग भी नहीं की। बिरजू के व्यवहार को देखते हुए,जज ने आसानी से उनके तलाक को मंजूरी दे दी।                                                                             कामिनी पढ़ती रही और परीक्षा देती रही उसकी मेहनत रंग लाई और उसकी उच्च श्रेणी शिक्षक के पद पर सरकारी नौकरी लग गई।समय का चक्र देखिए उसकी पहली पोस्टिंग धनबाद के कन्या उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय में हुई। आज दूसरी बार उसका इस गॉंव में आगमन हुआ, पहली बार एक दुल्हन के रूप में आई थी और आज एक शिक्षिका के रूप में।

अपने ज्ञान के प्रकाश से वह कई विद्यार्थियों के जीवन को संवार रही थी और बिरजू पूरे गाँव के लोगों की उपेक्षा का पात्र बन गया था। नौकरी से निकाला जा चुका था और इसी विद्यालय में चपड़ासी का काम कर रहा था। अपनी करनी पर पछता रहा था। एक शक के कीड़े ने उसके सुखमय जीवन को तबाह कर दिया था।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित

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