Hindi Stories : डॉ अस्थाना के चैंबर में समीर घुसा ही था कि डॉ साहब की आवाज़ आई “आओ आओ समीर मैं तुम्हे फोन करने ही वाला था…” “वो डॉ साहब डेट के बारे में…” समीर की बात को काटते हुए डॉ अस्थाना बोले” हां भई वो डेट तो फाइनल ही है। मंगलवार, 7 तारीख को मम्मी को ले आना एडमिशन हो जाएगा और 8 तारीख को सर्ज़री हो जाएगी।”
“पर डॉ साहब…”। फिर से डॉ अस्थाना ने बात काट दी “चेक तुम्हारी मिसेज जमा करा गई है, एक लाख का बाकी की पेमेंट डिस्चार्ज होने पर हो जाएगी, नो टेंशन । मेरा ओपीडी का टाइम हो रहा है मैं निकलता हूं, कुछ पूछना हो तो मेरे जूनियर से पूछ लेना” और ये कहते हुए डॉ साहब अपने चैंबर से निकल गए।
समीर को अभी भी विश्वास नहीं ही रहा था कि उसने जो सुना वो सही था। कानों में अभी तक डॉक्टर साहब के शब्द गूंज रहे थे “तुम्हारी मिसेज चेक जमा करवा गई हैं… यानी कविता..?? उसने और उसके मम्मी पापा ने कविता के साथ इतना बुरा किया फिर भी वह अपना फर्ज निभा ही गई याद आने लगा समीर को कुछ दिन पहले का वाकया।
समीर की मम्मी को घुटनो की काफी प्रॉब्लम थी काफी इलाज किया कुछ दिन तो आराम आता पर फिर वही दर्द । सभी का कहना था कि सर्जरी करवा लो तो कुछ साल आराम से निकल जाएंगे। पहले तो मम्मी नहीं मानी पर सब के समझाने पर तैयार हुई और डॉक्टर अस्थाना से मिले तो उन्होंने भी सर्जरी की ही सलाह दी ।
उनसे सलाह करने के बाद एक दिन ऑफिस से आने के बाद रात को डिनर करते समय समीर ने अपनी पत्नी को कहा “कविता, डॉक्टर साहब से बात हो गई है अगले हफ्ते की डेट मिली है सर्जरी की, तुम 15 दिन की छुट्टी ले लेना मैं तो छुट्टी नहीं ले पाऊंगा क्योंकि बैंगलोर हेड ऑफिस से एक टीम आ रही है ऑडिट के लिए तो मेरा ऑफिस में रहना बहुत जरूरी है तुम स्कूल में सोमवार से छुट्टी के लिए एप्लीकेशन दे दो” ।
कविता ने कुछ जवाब नहीं दिया। समीर ने दोबारा कविता से कहा, मम्मी पापा भी कविता की तरफ देखने लगे। “कविता, मैं तुमसे बात कर रहा हूं” समीर ने कुछ खीझकर कहा । कुछ क्षण मौन पसरा रहा और फिर कविता की आवाज आई – “सॉरी समीर मैं भी छुट्टी नहीं ले पाऊंगी”। “क्यों”… समीर एकदम बौखला गया।
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” क्योंकि बच्चों के पेपर शुरू होने वाले हैं प्री बोर्ड है 10वीं व 12वीं कक्षा के हैं तो छुट्टी नहीं मिलेगी” । “पर मैंने तो डेट ले ली है अगर अभी सर्जरी नहीं हुई तो फिर 2 महीने तक का इंतजार करना पड़ेगा और मम्मी की तकलीफ और बढ़ जाएगी । नहीं नहीं, जैसे भी हो तुम्हें छुट्टी तो लेनी ही पड़ेगी” समीर ने जैसे आर्डर ही दे दिया हो ।
“और आदित्य किसके पास रहेगा ? पापा जी और आदित्य के खाने का क्या होगा ? आदित्य तो तंग भी करता है ना, मैं 4 बजे तक ना आऊं तो कितना तूफान मचा देता है, क्यों मम्मी”? कविता की आवाज आई । “अरे 4-5 दिन की ही तो बात है तो कुक है ना उसे थोड़ा एक्स्ट्रा पे कर देंगे तो दिन का खाना भी बना दिया करेगी ।
तुम्हारा सारे दिन का खाना मैं सुबह हॉस्पिटल में देता हुआ ऑफिस निकल जाऊंगा और आदित्य को थोड़े दिन पापा संभाल लेंगे । मैं भी कोशिश करूंगा कि घर जल्दी आ जाऊं सब मैनेज हो जाएगा वह तुम सब मुझ पर छोड़ दो”। समीर का जवाब आया।”तो फिर 5 महीने पहले क्या यह सब मैनेज नहीं हो सकता था
जब मेरी मम्मी आईसीयू में एडमिट थी पिछले डेढ़ साल से मेरे दोनों भाई और भाभियां और नमिता हॉस्पिटल के चक्कर ही लगाते रहे पापा खुद बेड पर थे चल फिर नहीं सकते थे मम्मी सीरियस थी भाई की छुट्टियां भी खत्म हो गई थी भाभी की भी प्राइवेट जॉब थी उन्हें भी ज्यादा छुट्टी नहीं मिल रही थी नमिता मेरी छोटी बहन के एग्जाम थे तब सब ने यह सलाह की थी कि सब एक-एक हफ्ते की ड्यूटी लगा लेते हैं
सबको सहारा भी हो जाएगा और पापा जी के पास तो बुआ जी को छोड़ दिया था तो उनकी तरफ से निश्चिंत थे लेकिन आप लोगों ने तो मुझे 1 हफ्ते के लिए भी नहीं जाने दिया तब क्या कहा था आप लोगों ने बेकार छुट्टियां बर्बाद करोगी । आदित्य तो 4 बजते ही तूफान मचाने लगता है । दोपहर के खाने का क्या होगा ?
सब है ना वहां आपस में देख लेंगे और फिर पता नहीं मम्मी की क्या हालत होगी कुछ हो गया तो तुम्हें तब भी छुट्टी लेनी पड़ेगी यानी आप लोगों ने तो सोच ही लिया था कि मेरी मां तो जिंदा वापस घर जाएगी ही नहीं जब आप लोगों को मेरे परिवार से, मेरे दर्द से कोई मतलब नहीं तो मुझसे तो कोई उम्मीद रखना भी मत”।
डाइनिंग हॉल में एकदम सन्नाटा सा छा गया। काफी देर बाद समीर की आवाज आई ..”तो तुम हम सब से उस बात का बदला ले रही हो तुम…” बात को बीच में काटते ही कविता ने कहा – “नहीं बदला नहीं ले रही हूं आप लोगों को बता रही हूं कि बहू भी किसी की बेटी होती है अगर वह ससुराल के सारे फ़र्ज़ पूरे कर रही है, पूरे घर की जिम्मेदारी उठा रही है तो फिर आप लोगों को उसके दर्द में, उसकी परेशानी में, उसका साथ देने में क्या तकलीफ है ।
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जब आज सब मैनेज हो सकता है तो तब भी मैनेज हो सकता था लेकिन नहीं आप लोगों को अपना खाना, आदित्य का तूफान मचाना याद आ रहा था, मेरे परिवार का दुख, मेरी मम्मी की तकलीफ, मेरे भाई बहनों की परेशानियों से आप लोगों को जैसे कोई मतलब ही नहीं था। एक बहू से आप लोग ये आशा तो करते हो कि वो सारे घर की जिम्मेदारी अपने कंधे पर उठा ले लेकिन खुद इस गुमान में रहते हो कि हम तो लड़के वाले हैं तो सॉरी जब आप मेरे दर्द को समझ नहीं पाए तो मुझे भी किसी के दर्द का कोई एहसास नहीं मुझे भी किसी से कोई लेना देना नहीं ।
‘जैसा चाहे मैनेज करें वे लोग’ यह आप ही के शब्द थे ना मम्मी जी तो फिर आप लोग चाहे जैसे भी मैनेज करें मुझे कोई मतलब नहीं” कहते हुए कविता की आवाज़ भर्रा गई और वो एकदम उठ कर किचन की तरफ चल दी ।डायनिंग हाल में चुप्पी सी छा गई। हां सही कहा कविता ने, एक-एक शब्द सही था और आज समीर को समझ में आ गया कि इतना सब कुछ होने के बावजूद भी कविता अपने संस्कार नहीं भूली
वह आज भी अपने बहू होने का पूरा कर्तव्य निभा गई और उन्हें ऐसा आइना दिखा गई जिसमें समीर को अपना ही चेहरा अजनबी लगने लगा था। लग रहा था कि कविता ने मुंह पर एक तमाचा ही जड़ दिया हो और अब समीर को समझ में नहीं आ रहा था कि घर जाकर कविता का सामना कैसे करेगा?
शिप्पी नारंग
नई दिल्ली
#ससुराल