रेखा के सवाल – रंजू अग्रवाल ‘राजेश्वरी’ : Short Stories in Hindi

आज फिर वही हुआ ..जो सालों से होता आ रहा था ।यूं तो रेखा की शादी को पंद्रह साल हो चुके थे लेकिन उसके जीवन मे सूर्योदय से सूर्यास्त तक होने वाली घटनाओं में कोई अंतर नही आया था ।

दुपट्टे के कोने से आंखों को पोंछते हुए वो चुपचाप रसोई के काम मे व्यस्त हो गयी ।

“क्या केवल शारीरिक विभिन्नताओं की वजह से किसी का अधिकार क्षेत्र इतना बढ़ जाता है ? क्या मात्र पुरुष होने से वो तमाम चीज़ों का हकदार बन जाता है?” अचानक से रेखा के मन मे तमाम सवाल उठ खड़े हुए ।

रेखा ..संभ्रांत ,सम्पन्न परिवार की पढ़ी लिखी नौकरी पेशा लड़की थी ।दो  भाइयों और दो बहनों में सबसे छोटी ।सबकी दुलारी । बहुत अच्छा जीवन चल रहा था कि अचानक एक कार हादसे में उसकी एक आंख जाती रही ।माता पिता ने तमाम इलाज करवाये मगर होनी को कुछ और ही मंजूर था और एक दिन पता चला रेखा की आंख जीवन भर ऐसे ही रहने वाली है  ।

रेखा के परिवार को अब उसकी शादी की चिंता सताने लगी ।

“कमाती है तो क्या हुआ ,ऐसी लड़की से शादी कौन करेगा?” एक दिन छोटे भैया ने अपनी शंका व्यक्त कर दी ।

बात घर के बाकी सदस्यों के मन मे घर कर गयी ।

ऐसी लड़की ….हां ठीक ही तो कह रहा है छोटे ।

तय हुआ दूल्हों के बाजार से कोई सुयोग्य लड़का तलाशा जाय ।

“सौदा पट गया।”एक दिन रेखा के पापा घर मे घुसते हुए बोले ।

“अच्छा ,कितने में तैयार हुए वो लोग?” मां पिताजी के वार्तालाप ने सबके कान खड़े कर दिए ।

“पांच लाख”

“पांच लाख ! ये तो बहुत ज्यादा है ।” माँ ने दबे स्वर में कहा ।

“हाँ माँ ज्यादा तो है ,लेकिन अपनी भी तो कमी है।” बड़े भैया बोले ।

थोड़ी देर की बहस के बाद इस विवाह के लिये सबकी सहमति बन गयी ।

दूसरे कमरे में बैठी रेखा ने भी सारी बातें सुनीं । उसके मन मे तमाम सवाल उठने लगे ।

“जो परिवार पैसे के लिए मुझसे शादी कर रहा है ,क्या गारंटी है कि वो भविष्य में दुबारा पैसे की मांग नही करेगा ।”

” विवाह पश्चात क्या ये लड़का मुझे इज्जत दे पाएगा ।”

उसने अपनी दुविधा जब दीदी से साझा की तो दीदी ने कहा ,”क्यों घबराती हो कुछ होगा तो हम लोग तो हैं न।” 

“पर दीदी मैं  किसी पर बोझ नही बनूंगी । इतना तो कमाती ही हूँ कि  आराम से अपना जीवन  बिता सकूं।”

“नही छोटी ,जीवन मे एक #पुरुष का होना बहुत जरुरी है ,सामाजिक , आर्थिक और मानसिक सम्बल के लिये।”

सबके  तर्कों ने रेखा को चुप रहने को विवश कर दिया ।

और इस तरह  रेखा के जीवन मे एक पुरुष का प्रवेश हो गया ।

कुछ दिन सब ठीक चलता रहा और फिर वही हुआ जिसकी उसको आशंका थी । रमेश दुकान में काम ज्यादा है बोलकर  देर से घर आने लगा ।शुरुआत में रेखा ने इसको सामान्य माना पर जब  अक्सर ऐसा होने लगा तो रेखा का मन सशंकित हो उठा । उसने जब भी इस बारे में रमेश से पूछा  ,उसके जवाबों ने रेखा को कभी संतुष्ट नही किया ।

एक बार उसने माँ से जब इस बारे में बात की तो माँ ने कहा ,

“बेटा अब इसे अपनी तकदीर समझ कर समझौता कर ले । ज्यादा बोलोगी तो  कहीं अगर उसने तुमको छोड़ दिया तो क्या करोगी ।” माँ के जवाब ने उसे अंदर तक झकझोर दिया ।

“कुछ होगा तो हम लोग हैं न “कहने वाले लोग कहाँ गए “

“सुनो ,मुझे पांच हज़ार रुपये दे दो ।दुकान में माल मंगवाने के लिए कम पड़ रहे हैं ।” एक दिन रमेश ने कहा तो रेखा ने बिना ना नुकुर के ये सोच कर पैसे दे दिये कि चलो व्यापार में ऐसा होता रहता है । दो तीन साल ऐसे ही गुजर गए ।इस बीच रेखा के एक बेटा भी हो गया । रमेश बीच बीच मे व्यापार के नाम पर उससे पैसे माँगता और वो देती रहती ।

और फिर एक दिन …उसकी सहेली सीमा का फोन आया 

“अरे रेखा आज तुम्हारी दुकान क्यों बंद थी ? मैं उधर से गुजर रही थी नज़र पड़ गयी।”

“दुकान बंद थी ? मुझे नही पता ।हो सकता है रमेश कहीं काम से निकले हों ।”

शाम को जब रमेश घर आये तो रेखा ने उससे दुकान बंद होने का कारण पूछा तो रमेश ने झल्लाकर कहा ,”अब हर जगह तुमको बताकर जाना जरूरी है क्या?”

बात आई गयी हो गयी ।

मगर जब बार बार इस तरह की बातें और लोगों से सुनने को मिलने लगीं तो एक दिन रेखा ने दृढ़ता से पूछ ही लिया ।

“रमेश ,तुम मुझे बताते क्यों नही आखिर बात क्या है?”

“वो… रेखा…दरअसल इस  धंधे  में बहुत ज्यादा नुकसान हो गया है तो अब मैं कुछ और करने की सोच रहा था इसीलिए दिन में दुकान बंद करके लोगों से मिलने जाता हूँ।”

“इतनी बड़ी बात तुमने मुझसे छुपा कर रखी!!!”

“क्या करता तुम्हे बताकर ,तुम दस सवाल पूछ पूछ कर मुझे परेशान कर देती।”

“चलो कोई बात नही ,हम कुछ और काम कर लेंगे।”रेखा ने हिम्मत दिखाते हुए कहा ।

अगले दिन रमेश ने रेखा के एकाउंट से कुछ पैसे निकाल लिए ।

थोड़े थोड़े अंतराल के बाद जब काफी पैसे निकल गए तब रेखा ने एक दिन रमेश से सवाल कर ही लिया ।

“आप जो नया व्यापार शुरू कर रहे थे उसका क्या हुआ ।”

” एक तो दिमाग वैसे ही परेशान रहता है ऊपर से इतने सवाल पूछ पूछ कर मेरा टेंशन बढ़ा देती हो ।”

कभी ज्यादा सवाल पूछो तो एक ही जवाब मिलता ,”मैं कुछ करना चाहता हूं तो तुम करने नही देती हो ।”

और फिर एक दिन काफी देर की बहस के बाद रमेश ने सच उगल ही दिया कि वो जुए और सट्टे में बुरी तरह लिप्त हो चुका था ।

रेखा को काटो तो खून नही ।

उसने रमेश को काफी उलाहने दिये तो सुनने मिला ,

“अरे तुम कोई हूर थोड़ी थी कि तुमसे ऐसे ही शादी कर लेता ।”

घुट कर रह गयी रेखा ।किससे क्या कहने जाती ।हमारे समाज मे हर घटना के लिये सर्वप्रथम लड़कियों में ही दोष ढूंढने की परंपरा है ।

सच उगलने के बाद रमेश मानो और स्वछंद हो गया ।आये दिन वो रेखा को मानसिक रुप से प्रताड़ित करने लगा ।आज भी वही हुआ था ।

कुछ दिन बाद ……

काफी हिम्मत करके रेखा ने पारिवारिक न्यायालय में तलाक की अर्जी दे दी । रमेश को काटो तो खून नही ।उसने रेखा की बहुत मिन्नतें की लेकिन अब रेखा अपने निर्णय लेने के लिये स्वतंत्र थी ।

लम्बी तारीखों के बाद उसे रमेश नाम के पुरुष से मुक्ति मिल गयी थी । 

मुक्ति तो मिल गयी लेकिन उसने समाज के लिये बहुत से सवाल छोड़ दिये…

1-क्यों एक औरत को इतना निर्बल समझा जाता है कि एक पुरुष के बिना उसके जीवन  की राहें दुर्गम है ।

2-लड़के में लाख कमियां हो सब नजरअंदाज करते है लेकिन अपनी लड़की  में एक शारीरिक  कमी को माँ बाप बोझ क्यों समझने लगते हैं ।

3-क्यों हमारा समाज अभी भी पुरुष के बगैर एक स्त्री के अस्तित्व को नकारता है  ।

रेखा की ही तरह शायद ये सवाल और भी बहनों के मन मे हो ।

रंजू अग्रवाल ‘राजेश्वरी’

#पुरुष

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