वैशाली मुझे लगता है मेरे हाथ ऊपर हवा में लहराते हुए से हैं और मैं अनंत गहराई में डूबता जा रहा हूँ।मैं क्या करू,वैशाली,मैं हार गया,मैं अपने से हार गया।
अभिषेक,क्यूँ हिम्मत हारते हो?एक रास्ता बंद होता है तो ईश्वर दूसरा रास्ता खोलता है, बस हमे उस रास्ते की खोज ही तो करनी है।मैं हूँ ना तुम्हारे साथ,कोई ना कोई राह अवश्य ही निकलेगी।अपने नेगेटिव विचारो पर रोक लगाओ अभिषेक।
मैं तो पुरुष हूँ तब कुछ नही कर पा रहा तुम महिला होकर क्या कर पाओगी?
तुम ठीक कह रहे हो अभिषेक,शायद मैं कुछ ना कर पाऊं, पर तुम्हारे साथ खड़ी तो हो सकती हूं,तुम्हारा सहयोग तो कर सकती हूं।तुम हिम्मत मत हारो, अभिषेक,हिम्मत मत हारो।
2015 में अपनी शिक्षा पूर्ण करके अभिषेक एक कंपनी में अच्छे वेतन पर कार्य करने लगा।इसी बीच शादी भी हो गयी और उसने एक अच्छी सोसायटी में 20 वे माले पर एक फ्लैट भी किश्तों में खरीद लिया।अपनी पत्नी के साथ अभिषेक 2017 में फ्लैट का कब्जा मिलने पर उसमे ही रहने आ गया।इसी बीच एक प्यारी सी गुड़िया भी उनके परिवार में जुड़ गयी।सुखी सम्पन्न परिवार की परिभाषा अभिषेक और वैशाली पर एक दम सटीक बैठती थी।
अच्छा वेतन,खुद का फ्लैट, कार, प्यारी सी बच्ची और क्या चाहिये, भगवान ने सब कुछ तो दे दिया।गुड़िया एक वर्ष की हो गयी तो अभिषेक बोला वैशाली अपनी गुड़िया का जन्म दिन शिमला में मनायेंगे।वैशाली भी शिमला जाने मात्र से रोमांचित हो गयी।अपनी गुड़िया शिमला में ही एक वर्ष की होगी।वैशाली ने जाने की तैयारी प्रारम्भ कर दी,गुड़िया के उसके अनुरूप गरम कपड़े,उसकी सब जरूरत का सामान उसने सबसे पहले एक अलग बैग में रख लिया,फिर एक बैग अपना तथा अभिषेक का तैयार कर लिया।
निश्चित समय पर दोनो गुड़िया के साथ ही अपनी कार से ही शिमला पहुँच गये।इंटरनेट के युग मे आजकल सब काम ऑन लाइन हो जाते हैं सो होटल की बुकिंग भी पहले ही हो चुकी थी।पूरे चार दिन उन्होंने शिमला में ही मस्ती की,वही गुड़िया के जन्मदिन पर केक काटा और होटल की लॉबी में उपस्थित सभी व्यक्तियों को केक खिलाया।वही अभिषेक की मुलाकात दिल्ली के ही मुकेश जैन से हो गयी,मुकेश की नोयडा में सीलिंग फैन्स की फैक्टरी थी।दोनो की दोस्ती हो गयी,मुकेश भी अपनी पत्नी के साथ ही घूमने आया हुआ था।दोनो ने एक दूसरे के फोन नंबर ले लिये।दोनो ने ही एक दूसरे से इस दोस्ती को आगे भी कायम करने का वायदा किया।
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चार दिन बाद वापस दिल्ली आकर अगले दिन ऑफिस जाना बड़ा ही पेनफुल लग रहा था, पर जाना तो था ही इसलिये अनमने भाव से अभिषेक ऑफिस गया।फिर वही रूटीन शुरू हो गया।
इधर प्रतिदिन एक महामारी की चर्चा अखबारो, मीडिया में चल रही थी।कोरोना, कोविड नाम बताया जा रहा था।चीन से चली यह महामारी पूरे विश्व को देखते देखते अपनी चपेट में ले चुकी थी।लॉक डाउन हो चुका था,सब लोग घरों में कैद हो चुके थे।मरघट जैसी शांति सर्वत्र छाई हुई थी।सब डरे सहमे से अपने अपने घरों में दुबके पड़े थे।दुनिया ठहर गयी थी,समस्त गतिविधियों पर विराम लग चुका था।बड़ी कंपनियां घरों से काम करा रही थी।कुछ कंपनियों ने अपने कर्मचारियों की छटनी कर दी थी।असुरक्षित और भयग्रस्त वातावरण फैला था।
अनजाने डर से ग्रस्त अभिषेक भी अपनी पत्नी व गुड़िया के साथ फ्लैट में कैदी जीवन जी रहा था कि अचानक ही वो हो गया जिसकी कोई इच्छा कर ही नही सकता था।तीन माह के वेतन के साथ कंपनी ने अभिषेक को बाय बाय कर दी।बेरोजगारी का झटका ऐसे समय मे जब सामान्य रूप से व्यक्ति घर से भी न निकल सकता हो,लेकिन किया क्या जाये, ये ही तो प्रश्न चिन्ह था?
तीन माह बीत गये, कही नौकरी मिली नही,बैंक फ्लैट की किश्त की मांग कर तो नही रहा था पर स्थिति सामान्य होते ही सारी किश्ते चुकानी तो थी ही।समझ ही नही आ रहा था, मुसीबत से कैसे निबटे?भविष्य पूर्ण रूप से अंधकारमय लग रहा था।बचत समाप्त होने को थी,आगे तो गुड़िया के दूध तक की भी परेशानी आनी ही थी।
सब संभावित परेशानियों को देखते हुए अभिषेक नकारात्मक विचारों से घिर गया।उसे लगता बस आत्महत्या कर ले तो सब समस्याओं का समाधान हो जायेगा।उस दिन उसी अवसाद में अभिषेक वैशाली से अनंत गहराई डूबने की बात कर रहा था।वैशाली के समझाने पर अभिषेक चुप लगा गया पर उसके मन से कोई बोझ हटा नही।गुमसुम सा अभिषेक अपने कमरे में चला गया।
ग्राउंड फ्लोर से 20वी मंजिल तक आवाज आने का कोई मतलब ही नही होता,पर बहुत सारी जोर जोर से आवाजे ,चीख की आवाजो से वैशाली की आँखे खुली तो अभिषेक दिखाई नही दिया तो वैशाली बॉलकोनी की तरफ उन आवाजो का कारण जानने को गयी तो धक से रह गयी।टावर की रिपेयर के वास्ते कल ही दुर्घटना से बचने के लिये एक जाल तान दिया गया था,उसी जाल में एक व्यक्ति गिरा पड़ा था।किसी ने आत्महत्या का प्रयत्न किया गया था, लेकिन उस जाल ने उस व्यक्ति की जान बचा ली थी।कुछ ही देर में स्पष्ट हो गया वह व्यक्ति अभिषेक था।बावली सी वैशाली नीचे जाकर अभिषेक से चिपट कर दहाड़ मार रोने लगी।बताओ तुम्हे अपनी जान देने का हक किसने दिया।मूर्ति बना गुमसुम अभिषेक बिना किसी प्रतिक्रिया के मशीनी अंदाज में वैशाली के साथ अपने फ्लैट पर आ गया।
दो दिन बाद वैशाली बोली अभिषेक तुम मर्द हो,निकलो इस अवसाद से। मेरी एक सहेली ने मुझे कुछ ट्यूशन दिला दिये हैं, जिनकी फीस से रसोई का खर्च निकल जायेगा।अब तुम्हे मेरी बात माननी ही होगी,तुम्हे अपने उस मित्र से जो शिमला में मिला था और उसकी अपनी फैक्टरी थी उससे बात करनी चाहिये, हिचक छोडो अभिषेक,हमे नयी जिंदगी जीनी है,बनानी है।किसी प्रकार अभिषेक ने झिझकते हुए मुकेश से फोन पर अपनी स्थिति के बारे में बात की।अगले दिन ही मुकेश अभिषेक के फ्लैट पर आ गया। चाय आदि के बाद दोनों मित्र दूसरे कमरे में चले गये।काफी देर तक बात करते रहे।
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मुकेश के जाने के बाद अभिषेक ने वैशाली को बताया कि मुकेश ने उसे दो प्रस्ताव दिये हैं, एक तो अभिषेक उसकी फैक्टरी की सेल्स का काम सेल्स ऑफीसर के रूप में देखा करे,दूसरा यदि फिलहाल 15-20 लाख रुपये की व्यवस्था उसके पास हो तो वो साझीदार के रूप में उसके साथ रह सकता है।
वैशाली को अहसास हो गया था कि अभिषेक मुकेश के यहां नौकरी करने में झिझक रहा है।वैशाली ने यह समझ लिया कि जब अभिषेक में झिझक है तो नौकरी में वह सफल नही होगा।उधर अभिषेक की यह भी चिंता भी उचित थी कि इस नौकरी में बैंक की किश्ते कैसे चुका पायेंगे।
वैशाली ने सुझाव रखा,अभिषेक इस फ्लैट को हम बेच देते हैं और बैंक का लोन चुकता कर देते है और बचा पैसा और मेरे जेवर से जितना पैसा जुटेगा उससे तुम मुकेश की फैक्ट्री में साझीदार हो जाओ,कुछ पैसे की कमी पड़ेगी तो मैं अपने पिता से उधार लेकर आऊंगी।
अवाक सा अभिषेक वैशाली का मुँह ताकता रह गया।जिस झंझावत का हल उसके पास नही था और वो आत्महत्या करने चला था ,ये सामने बैठी महिला जो उसकी पत्नी ही थी कितनी सहजता से तमाम हल लिये बैठी है।अभिषेक को लगा उसका बोझ उतर गया है।उसका पुरुषत्व जाग उठा था।अभिषेक ने आगे बढ़ वैशाली को अपनी बाहों में जकड़ लिया।
अभिषेक को लग रहा था कि अनन्त गहराई में उतरते हुए उसे किन्ही दो हाथों ने थाम लिया था और वो हाथ उसे उसकी मंजिल की ओर जाने वाली राह पर अग्रसर कर रहे थे।जाहिर है वे हाथ वैशाली के ही थे।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
स्वरचित,अप्रकाशित।
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