” क्या ताऊ जी, आप हमेशा ही हमें टोकते रहते हैं।हम तो तंग आ गये हैं आपसे।” कैलाश बाबू पर मयंक और मनीष का गुस्सा फूट पड़ा जब उन्होंने दोनों को म्यूज़िक सिस्टम की आवाज़ धीमी करने को कहा।सुनकर वो सकते में आ गये।इतने दिनों से तो वो उनकी सभी शरारतों और उद्दंडता को बर्दाश्त करते आ ही रहें थें लेकिन आज तो इन दोनों ने सारी हदें ही पार कर दी।
तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े थें कैलाश बाबू।अपने पिता की तरह ही शांत और सरल स्वभाव था उनका।एक बैंककर्मी होने के बावज़ूद उन्होंने क्रोध या झल्लाहट को अपने पास कभी फटकने नहीं दिया।उनकी पत्नी कौशल्या भी उनकी ही तरह मिलनसार और मृदुभाषी थीं।छोटी बहन सुनंदा अपने ससुराल में खुश थीं और छोटा भाई आनंद था जो सिविल इंजीनियर था और उसकी पत्नी नयना एक सुघड़ गृहिणी।
कैलाश बाबू के बच्चे अक्षय और नेहा का अपने चचेरे भाईयों मयंक और मनीष के साथ खूब बनती थी।उम्र का अंतर होने के बावज़ूद वे एक-दूसरे से अपनी सभी बातें शेयर करते थें।बच्चों के आपसी प्यार और बड़ों के लिये आदर-सम्मान देखकर उनके पिता अपनी पत्नी से हमेशा कहते, ” कैलाश की माँ, मेरे जाने के बाद भी तुम मेरे परिवार को इसी तरह बनाये रखना।”
समय के साथ बच्चे भी बड़े होने लगें।अक्षय की नौकरी लगते ही कैलाश बाबू ने बेटे का विवाह कर दिया।साधारण परिवार की पढ़ी-लिखी उनकी बहू सौम्या को नौकरी करने की बजाय अपने घर को ही संवारना अधिक पसंद था लेकिन पौत्रवधू के हाथ की चाय उनके पिता ज़्यादा दिनों तक नहीं पी पाये।एक दिन अपने परिवार को रोता-बिलखता छोड़कर हमेशा के लिये इस दुनिया से चले गये।तब कैलाश बाबू ने अपनी माँ से कहा था,” अम्मा, हम सब हैं ना।”
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” हाँ बेटा..।” कहकर बेटे के गले लगकर उनकी अम्मा खूब रोईं थीं।किशोरावस्था के नेहा,मयंक और मनीष को ज़माने की हवा लगने लगी।नेहा-मयंक की बारहवीं और मनीष की दसवीं की परीक्षाएँ सिर पर थीं लेकिन तीनों ही दिनभर हो-हल्ला मचाते रहते।उनकी माँओं और दादी ने उन्हें बहुत समझाया लेकिन उनके कानों पर तो जूँ तक नहीं रेंगती थी।आनंद-अक्षय तो अपने काम में व्यस्त रहते और कैलाश बाबू जब बच्चों से पढ़ाई के बारे में पूछते तो कहते हैं कि आप चिन्ता नहीं कीजिए,हम सभी के रिजल्ट अच्छे होंगे।
बोर्ड की परीक्षाओं में उनकी परसेंटेज बहुत कम रही तब कैलाश बाबू को उन्होंने प्राॅमिस किया कि अब कोई मस्ती नहीं, हम मन लगाकर पढ़ाई करेंगे।फिर घर में नया मेहमान आ गया।सौम्या ने एक बेटे को जन्म दिया, और कैलाश बाबू की माँ परदादी बन गईं।अब तीनों को खेलने के लिए एक खिलौना मिल गया।अक्षय के बेटे अंश के साथ वे तीनों खूब उधम मचाते।
एक दिन आनंद ऑफ़िस से घर आ रहें थें तो उन्होंने मनीष को रेस्तराँ में एक लड़की के साथ बैठे देखा तो गुस्से-से आग बबूला हो उठें।घर आते ही उन्होंने मनीष को आड़े हाथों लिया और बोले कि यही सब करना है तो पढ़ाई छोड़कर घर बैठो।तुम्हारे बेहतर भविष्य के लिये हम दिन-रात मेहनत करते हैं और तुम हो कि…
” तो कोई एहसान नहीं करते।इतना तो सभी माँ-बाप करते हैं।” तमतमाते हुए मनीष ने अपने पिता को बहुत उल्टा-सीधा सुना दिया।आहत आनंद अपनी पत्नी से कहते कि क्या होगा इनका भविष्य, तब नयना उन्हें समझाती कि चिंता नहीं कीजिए, सब ठीक हो जायेगा।नेहा और मयंक भी अपने कॉलेज़ की क्लासेज़ छोड़कर दोस्तों के साथ पार्टी करते रहते।उनकी अटेंडेंस कम होने लगी तो काॅलेज़ की तरफ़ से कैलाश बाबू के पास नोटिस आया।उन्होंने दोनों को समझाया कि यह समय तुम्हारी पढ़ाई करने का है,समय बर्बाद मत करो और मन लगाकर पढ़ाई करो।जवाब में नेहा तीखे स्वर में बोली, ” पापा, ये टोका-टोकी बंद कीजिये।अब हम बड़े हो गये हैं। हमें अपने तरीके से जीने दीजिये।”
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उस दिन तो कैलाश बाबू चुप रह गयें थें लेकिन जब तीनों के रिजल्ट खराब आयें तब उन्होंने तीनों को थोड़ा डाँटा। जवाब में बच्चों ने उन्हें ही बहुत-कुछ सुना दिया और इस तरह से अब वह घर एक अखाड़ा बन गया था।बढ़ते बच्चों का उग्र स्वभाव देखकर उन्हें चिंता होने लगी थी।
यह सब देखकर कैलाश बाबू की बूढ़ी माँ को अपना परिवार टूटता- बिखरता नज़र आने लगा।एक दिन वे कैलाश बाबू को बोलीं कि बच्चों की इस तरह की मनमानी से तो यह घर नरक बन जायेगा,तू परिवार का बड़ा है,थोड़ा अंकुश तो लगा वरना तो…।तब भी उन्होंने माँ को आश्वासन दिया था कि अम्मा, बच्चे हैं,धीर-धीरे समझ जायेगें।
एक दिन कैलाश बाबू की माँ भी दुनिया से चलीं गईं।फिर तो बच्चे और भी गैरज़िम्मेदार और मुँहफट हो गये।उनका न तो खाने का कोई समय होता और न ही घर लौटने का।घर में कोई भी कुछ पूछते तो वे तुरन्त आक्रामक हो उठते।अब आज कैलाश बाबू को बैंक का कुछ पेंडिंग काम निबटाना था,उन्हें शांति चाहिए थी लेकिन मयंक ने तो म्युजिक सिस्टम का वाॅल्युम ही फुल कर दिया।तब उन्होंने मनीष को प्यार-से म्युजिक सिस्टम की आवाज़ धीमी करने को कह दिया।
बस इतनी-सी बात पर तो दोनों ने कह दिया कि आपसे तंग आ गये हैं।ये बात कैलाश बाबू के सीने में तीर की तरह चुभ गई।कुछ देर तक तो वे अपने कमरे में चुपचाप बैठे रहें।शोर तब भी होता रहा तब वे बाहर आयें और लगभग चीखते हुए बोले, ” बंद करो ये गाना-बजाना।यह मेरा घर है, कोई होटल नहीं।” बच्चों ने उनकी बात को इग्नोर कर दिया।फिर तो वो दहाड़े, ” सुनाई नहीं दिया तुम लोगों को,बंद करो।” कहते हुए उन्होंने मेन स्वीच को ऑफ़ कर दिया।घर में सन्नाटा छा गया।महिलाएँ निकलकर देखने आईं कि क्या हुआ? तो उनपर बरस पड़े, ” आप लोगों से एक घर नहीं संभलता।घर में इतना शोर-शराबा हो रहा है और आप लोगों को खबर नहीं।कुछ मान-मर्यादा का ख्याल है भी या नहीं।कल से कोई हल्ला-गुल्ला नहीं करेगा।सभी एक साथ नाश्ता करेंगे और डिनर भी सब डाइनिंग टेबल पर ही करेंगे।”
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सब अपने-अपने कमरे में चले गयें।अगले दिन से परिवार के सभी सदस्य कैलाश बाबू के निर्देशानुसार कार्य करने लगें।उनके गुस्से के भय से मनीष समय पर स्कूल और ट्युशन जाने लगा।नेहा और मयंक भी दोस्तों से किनारा करके क्लासेज़ अटेंड करने लगें।माताओं को भी अब बच्चों के पीछे सिर खपाना नहीं पड़ता।
एक दिन की बात है,कैलाश बाबू डिनर के बाद बरामदे में टहल रहें थें।मयंक के कमरे से गुजरते हुए ठिठक कर रुक गये।मयंक बोल रहा था, ” मनीष, थोड़ा गाना बजा ना।”
” नहीं भाई, ताऊजी बहुत गुस्सा करेंगे।एग्ज़ाम नज़दीक है,अबकि नंबर कम आयें तो ताऊजी मुझे घर से ही निकाल देंगे।बाप रे! उनका गुस्सा…।” कहकर वह अपनी पढ़ाई करने लगा।अपने गुस्से का असर देखकर वे मुस्कुराये और अपने कमरे में चले गये।
कैलाश बाबू बैठक-कक्ष में सोफ़े पर बैठकर अखबार पढ़ रहें थे तभी मनीष ने आकर उनके पैर छुए और बोला,” ताऊजी मुझे आशीर्वाद दीजिये, इस बार की परीक्षा में मुझे नब्बे प्रतिशत अंक प्राप्त हुए हैं।”
” वेरी गुड! इसी तरह से मन लगाकर पढ़ते रहना।”
” मेरे और मयंक के भी अच्छे नंबर आये हैं पापा।ये देखिये….।” अपनी टेस्ट कॉपी दिखाते हुए नेहा बोली।
बच्चों के अंक और उनके व्यवहार में आये परिवर्तन को देखकर कैलाश बाबू बहुत खुश हुए।तीनों को अपने सीने से लगाते हुए बोले,” बच्चों, जीवन में समय का बहुत बड़ा महत्व है।एक बार चला जाए तो लौटकर नहीं आता।जीवन को अनुशासित करने के लिए कुछ नियम बनाये जाते हैं जिन्हें आपलोगों ने पाबंदियाँ समझ ली और मन ही मन कुंठित होने लगे थें। बेवजह की झल्लाहट और बात-बात पर तकरार करने से आपकी ऊर्जा और समय ,दोनों ही व्यर्थ होने लगी थी।तब आप लोगों को सही राह पर लाने के लिए ही मैंने गुस्से का सहारा लिया और देखो मेरे आक्रोश का असर…।” कहते हुए वे हा-हा करके हँसने लगें।
” हमें माफ़ कर दीजिये ताऊजी” मनीष बोला तो नेहा भी माफ़ी माँगती हुई बोली, ” पापा, अबसे ऐसा कभी नहीं होगा।” तभी नन्हा अंश घुटनों के बल चलता हुआ आया और सबको अपने दादू के पास बैठा देखकर रोने लगा जैसे कह रहा हो,” दादू ..मुझे भी अपनी गोद में बिठाओ।” फिर तो सब अंश-अंश कहकर उसे अपने पास बुलाने लगें।
कैलाश बाबू अंश को गोद में लेते हुए सामने की दीवार पर टँगी अपनी माँ की तस्वीर को देखने लगे जैसे कह रहें हों, ” अम्मा, अब तो खुश हो ना।”
अगले दिन से घर में पहले जैसी ही चहल-पहल होने लगी।हँसी-ठहाके होते, आपस में मान-मनुहार भी होता लेकिन सब एक मर्यादा के अंदर।मयंक-नेहा दोस्तों के साथ घूमते-फिरते परन्तु समय पर घर वापस आकर अपनी पढ़ाई भी करते।मनीष ने भी अपना एक टाइम टेबल बना लिया था।डाइनिंग टेबल पर सबको एक साथ नाश्ता करते देख कौशल्या और नयना खुशी-से फूली नहीं समाती।कैलाश बाबू के ज़रा-से क्रोध ने उनके परिवार को बिखरने से बचा लिया।
# आक्रोश विभा गुप्ता
स्वरचित
वैसे तो आक्रोश करने अथवा कुंठित रहने से हमेशा नुकसान ही होता है लेकिन कभी-कभी भटके हुए अपने बच्चों को सही राह पर लाने के लिए परिवार के बड़े को क्रोध का सहारा लेना ही पड़ता है जैसा कि कैलाश बाबू ने किया।