जीवन की सँध्या बेला-सीमा वर्मा

” बवँडर ” यानी मृगतृष्णा का नाच आप सबने देखा होगा ? ।

मेरी अम्मा कहती थीं वह गर्मी की दुपहरिया में नाचती है और नाचते – नाचते सामने जो आता है उसे दो फाड़ कर देती है ठीक वैसे ही जैसे मेरी अम्मा और पिताजी हो गए ।

             आज उस दुष्ट लड़के सुरेश ने खेल-खेल में ही पिताजी का नाम लिए बगैर मेरी अम्मा को अप्रत्यक्ष रूप म़े कितनी बड़ी बात कह डाली ।

जिसे सुन मेरे कान ,गाल और सारा शरीर ही गर्म हो उठा ।

एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसे दे अपनी बेबसी पर खुद ही रो उठा था मैं ।

सच में अगर पिताजी हमारे साथ रहते तब क्या वह इतनी बड़ी बात कह पाता ?

                        मेरी अम्मा तो धरती के समान थीं पिताजी उन्हें कितना भी पैरों तले कुचल दें , मन मसोसती क्षमाशीलता की प्रति मूर्ति बन मौन धारण किए रहतीं उफ्फ तक नहीं करतीं ।

                         पिताजी जिला स्कूल में मास्टर थे।  मुझे आज भी वो गर्मी की धूल भरी छुट्टियां याद है जब पिताजी हमारे गांव वाले घर आया करते थे ।


उन्हीं में एक मनहूस दिन भरी दोपहर वे मेरा नाम ले कर पूछ रहे थे ।

” गिरधारी की अम्मा , वह नालायक गया कहाँ है  ”  ?

अम्मा चुप  ,

” मैंने कहा देख लेना तुम  वह दिन भर ठाकुर के बागीचे में पेड़ पर चढ आम की कोंपलें तोड़ता रहता है अगर माली के डँडे से बच भी गया तो राम कसम एक दिन हाँथ पैर तुड़वा कर लौटेगा  ” ।

                 और मैं सच में उस समय अपने दोनों पाकेट में टिकोरे भरे हुए बरामदे में खड़ा उनकी बातें सुन रहा था।

कि एकाएक उनकी नजर मुझ पर चली गई  ,

” यह देखो आ गए बावनवीर ” ।

मैं चुपचाप अम्मा के कमरे में घुस गया ,  वे लाल पीले हो कर अम्मा को कह रहे थे

”  तुमने ही उसे सर पर चढा- बहका दिया है ,

एक बार भी उसे डाँटती नहीं हो ठीक है तुम दोनों माँ बेटे यही चाहते हो तो यही सही कौन अपना मुँह थेथड़ करे  ” ।

                  अम्मा सर पर पल्लू डालते हुऐ धीरे से बोलीं  ,

” यँहा कौन किसकी सुनता है आप क्या गिरधारी को  गलत करने से रोकने के हकदार हैं ?

” उसे रोज घर से बाहर जाने से मना करने के लिए घर पर रूके रहेगें ?

                       मैं पहली बार धरती को करवट बदलते देख रहा था उनकी आँखें भरी थीं और आवाज थरथरा रही थी ,

”   आप तो  खुद ही किसी और के चक्कर में पड़े हुए हैं मुझे सब पता है , घर सिर्फ खानापूर्ति  के लिए आते हैं और फिर हेड मास्टर साब का बुलावा आया है कह  ” हेड क्वार्टर ” चले जाते हैं   ”  ।

आपका यह ”  हेड क्वार्टर ” कँहा है ?

ये हम सबको पता है ,


अब ऐसी हालत में बच्चे बिगड़ते हैं तो किसकी जिम्मेदारी है  ”  ?

अम्मा के ये तेवर देख पिताजी सकपका गए और मेरे सामने सच खुल जाने के कारण गुस्से से पाँव पटकते हुए बाहर चले गए थे ।

                             और अम्मा अपनी आँखें पोछती हुई मुझे कस कर पकड़ते हुए बोली थीं  ,

”   गिरधारी ऐसी भरी दुपहरिया में बाहर नहीं जाते बबुआ देखो तो बवँडर माई आईं हैं  ” ।

कालान्तर में पिता जी का घर आना धीरे – धीरे कम फिर एकदम से ही  बन्द हो गया ।

अम्मा ने ही फिर  किसी तरह अपने गहने बेच और कुछ मुसीबत के दिनों के लिए लिऐ बचाए गए पैसों से मेरी पढाई  को  बदस्तूर जारी रक्खा ।

एक बार जब मेरी बी . ए   फाईनल  के परीक्षा फौर्म भरने की तिथि नजदीक आ गई थी ।

पैसे नहीं जुट पा रहे थे और अम्मा पहले से ही बीमार चल रही थीं ।

अब ऐसी हालत में मैं उनसे भी कुछ बोल नहीं पा रहा था ।

लेकिन अम्मा तो अम्मा थीं ,

पहले ही चेहरा देख कर समझ गयी  ।

उस दिन शाम को मेरे हाँथ पकड़ जबरन सोने का भारी मांग टीका पकड़ाते हुऐ बोली , 

” ले यह टीका ,

बाकी सब सब तो बिक गए एक यही बचा है ” ।

पता नहीं कितने में बिकेगा ?

तुम्हारे फौर्म भरने तक का खर्च निकल जाए यही बहुत है  ” ।

”  यह टीका नहीं बेच सकता  “

मैंनें रुँधे गले से बोला ।


”  क्यों  ? “

अम्मा सीधी नजरों से मुझे देखती हुयी पूछीं ।

” क्यों क्या इसे भी बेच दूँ फिर ईश्वर मुझे कभी माफ नहीं करेगा  ” ।

अम्मा मुंह में आँचल भर फफक कर रो उठी , 

”  जब उस सुहाग का ही कुछ मोल ना रहा तो  यह ?

” यह जब तक रहेगा तेरे पिता की  करतूतों की याद दिलाता रहेगा मुझे “

इससे तो अच्छा है इसे जा कर बेच दे  कंही ।

खैर उस समय तो काम निकल गया था  मैं भी पढ़ -लिख कर कुछ बन ही गया । जिन्दगी की गाड़ी सामान्य रूप से पटरी पर चल रही थी ।

एक दिन शाम के समय घर वापस लौट कर आराम कर रहा था ।

तभीअम्मा चुपचाप आ कर पास खड़ी हो गई ।

मैं ने देखा उन्होंने आँचल में कुछ छुपा रक्खा है  ,

मेरे पूछने पर धीरे से एक मुड़ा – तुड़ा  पोस्ट कार्ड मेरी ओर बढ़ा दिया ।

और बोली  ,

”  लल्ला बदपरहेजी के चलते तुम्हारे पिता के दोनों किडनी खराब हो गए हैं और वे यँहा आना चाहते हैं  ” ।

उन्हें माफ कर दे बेटा अब इस जीवन की साँध्य बेला में तेरे – मेरे सिवा उनका है  ही कौन  ?

मैं तो हैरान , निशब्द हो अम्मा को देखते ही रह गया ।

इस तरह झुकना शायद उन्हें स्त्रियोंचित विरासत में मिला गुण धर्म था ,

जिसका संबध उनकी विनम्रता से था  कायरता से तो कतई  नहीं …

मैं उनके इस प्रति -व्यवहार पर निशब्द हो श्रद्धा नवत् हो गया ।

स्वरचित  / सीमा वर्मा

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!