पिंजरा सोच का – अभिलाषा कक्कड़

क़िस्सा है यह पुराना मोबाइल का नही था तब ज़माना 

उफ़ !! दस बज गये हैं आज भी कहीं देर ना हो जाये, संजना जल्दी जल्दी किताबें उठाकर बाहर की ओर निकल गई । अभी  दस कदम चल भी नहीं पाई थी कि सामने से बड़ा सा ट्रक देख कर मन में बुदबुदाई… इन छोटे शहरों की तंग गलियों की यही मुसीबत है एक बड़ी गाड़ी आई नहीं, पुरा रस्ता ब्लाक ,पहले से ही इतनी देर हो गई । अब इसके निकलने का अलग इन्तज़ार करो । 

मन में बड़बड़ाते संजना साथ वाले घर की दीवार के साथ सट कर खड़ी हो गई । दीदी !! अचानक से इस आवाज़ ने संजना का ध्यान खिड़की की ओर खींचा जो बिलकुल उसके पीछे थी जहां वो खड़ी थी । संजना ने मूँड़ कर देखा खिड़की पर जाली के पीछे एक नन्ही सी बहुत ही प्यारी लड़की खड़ी थी । शायद उम्र में चार पाँच साल की थी ।दीदी के जवाब में संजना ने भी कहा हैलो !

लड़की-आप कहाँ जा रही है दीदी ?

संजना – मैं कालेज जा रही हूँ !

लड़की – मुझे भी कालेज जाना है 

संजना – इसके लिए तो आपको बड़ा होना पड़ेगा 

लड़की – फिर आप ले जायेगी मुझे 

संजना – हाँ ले जाऊँगी !! बाय बाय 

कहकर संजना जल्दी से ट्रक के निकलते ही भागी । अगले दिन फिर से कालेज जाते वक़्त वहीं आवाज़ कानों में आईं तो संजना रूक गई । और अपने दोनों हाथ जाली पर टिकाकर अच्छे से अपनी नन्ही दोस्त को देखने लगी तो एक दम से पीछे हटी साथ में उसकी माँ भी बैठी थी । दीदी आपका क्या नाम है ?? मेरा नाम संजना है लेकिन सब मुझे संजू बुलाते हैं और तुम्हारा ?? मेरा नाम दिव्या है और यह मेरा भैया है इसका नाम शिवा है । तब दिव्या की माँ भी बात करने लग गई । हैं । मेरा नाम शर्मिला है ।

हम लोग यहाँ अभी दो हफ़्ते पहले ही आये हैं ।मैं यहाँ किसी को नहीं जानती । मेरे पति ठेकेदारी का काम करते हैं । सुबह के निकले रात को घर आते हैं । बस मेरा सारा दिन घर और बच्चे सम्भालने में ही निकल जाता है ।आप कहाँ रहती है ?? हम आपकी ही लाईन में तीन घर छोड़कर रहते हैं.. कभी समय मिले तो आना , थोड़ी देर ओर इधर-उधर की बातें करने के बाद संजना चली गई । हर रोज़ आते जाते जब भी बच्चे खिड़की पर खड़े होते तो संजना एक मिनट के लिए ही सही लेकिन ज़रूर बात करती । 



एक शाम संजना वहाँ से निकली तो दिव्या कीं आवाज़ से रूक गई । दीदी आप कहाँ जा रही है ?? मैं मंदिर जा रहीं हूँ क्या तुम चलोगी मेरे साथ ? हाँ मैं चप्पल पहन कर आती हूँ कहकर दिव्या भागी । तभी वहाँ शर्मिला भी आ गई… क्या बातें हो रही है दीदी और दिव्या में , हंसकर बोली । मैं मन्दिर जा रही हूँ क्या मैं दिव्या को साथ ले जाऊँ ? नहीं अभी नहीं अभी इसके डिनर का समय है कहकर उसने बाहर निकलती दिव्या को पकड़ लिया । संजना को उसका इनकार अच्छा नहीं लगा और झट से पूछ बैठी .. आप इन्हें बाहर क्यूँ नहीं खेलने देती ??देखो कितने बच्चे खेल रहे हैं । नहीं बाहर बहुत धूल है और सामने वाले घर में मरम्मत चल रही है तो बाहर कितना ईंट रेत पड़ा है , मुँह बनाते हुए शर्मिला बोली । 

तो आप इन्हें पार्क ले ज़ाया करे । भले ही शहर हमारा छोटा है पर पार्क बहुत अच्छा है, ज़्यादा दूर भी नहीं है .. संजना अपनी तरफ़ से सब अच्छे सुझाव दे रही थी । नहीं पार्क में बहुत बच्चे होते हैं किसी ने इन्हें मार वार दिया तो मेरे लिए ओर मुश्किल खड़ी हो जायेगी कहकर वो दूसरे काम करने लग गई । संजना को समझने में देर ना लगी कि वो एक ज़िद्दी दिमाग़ के उपर कोशिश कर रही है । मंदिर से वापिस आते ही संजना सामने बैठे माता-पिता को देख कर ग़ुस्से में बोलने लगी .. मुझे आज इस शर्मिला पर बहुत ग़ुस्सा आया साफ़ इनकार कर दिया मेरे साथ दिव्या को भेजने से, कैसी माँ है जो अपने ही बच्चों पर अन्याय कर रही है ।

 एक पल के लिए भी बाहर जाने नहीं देती !! तरसते हैं दोनों बच्चे बाहर निकलने के लिए , सारा दिन खिड़की पर लटके रहते हैं । संजू की बातें अभी ख़त्म भी नहीं हुई थी कि बीच में ही माँ  सुधा बोल पड़ी … संजू तू उसके बच्चों से दूर रह वो वहमी क़िस्म की औरत है । बच्चे तुझे ही नहीं गली में निकलने  वाले हर आंटी अंकल भैया को बुलाते हैं । सारी गली उन्हें खिड़की वाले बच्चे कहती हैं । वो माँ ख़ुद एक असुरक्षित सोच लेकर बच्चों को सारी दुनिया से सुरक्षित रखना चाहती है । वो सोचती है कि इसी में उसके बच्चों की भलाई है पर वो यह नहीं जानती कि बच्चों को एक घुटन का माहौल देकर वो बच्चों को पनपने से रोक रही है । उन्हें चोटों से बचाकर उनका मानसिक विकास रोककर जीवन भर की चोट दे रही है । उसे कोई नहीं समझा सकता अगर कोई कह सकता है तो बस उसका पति है और कोई नहीं । लेकिन माँ वो तो कभी दिखाई नहीं दिया अगर नज़र आये तो मैं तो उसे अच्छे से कहूँ अपनी बीवी को समझा । संजू !!बस इस विषय पर अब और नहीं , माँ के एक शब्द से संजू चुप कर गई ।

लेकिन यह क्या एक शाम संजना के घर के दरवाज़े पर बहुत ज़ोर से खड़खड़ाने कीं आवाज़ आई । सभी दरवाज़े की ओर भागे । सामने देखा तो डरी सहमी रोती हुई शर्मिला खड़ी है । बड़ी मुश्किल से उसने अपने शब्दों को आवाज़ देते हुए कहा.. संजू !!! दिव्या घर पर नहीं है कहीं चली गई ।कहीं चली गई ,कहाँ चली गई  ??संजू ज़रा आगे पीछे देख कर आ  । आप तो कभी बच्चों को अकेला छोड़ती नहीं, फिर बाहर कैसे चलीं गई संजू की माँ भी थोड़ा सोचते हुए बोली । वो बाहर के कमरे में दोनों सो रहे थे और मैं रसोई में व्यस्त थी जब बाहर आई तो शिवा अकेला सो रहा था दिव्या नहीं थी ।



 सब तरफ़ देख लिया नहीं मिली तो यहाँ भागी आई । मिल जायेगी घबराओ मत .. संजू के पापा बोले । देखते देखते पुरा मोहल्ला इकट्ठा हो गया । खिड़की वाली लड़की खो गई बस एक ही बात सबके पास । तभी गली के आख़िरी घर से भागती हुई गीता आई और ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी .. मेरी सोनू भी घर पर नहीं है । अब तय था कि दोनों बच्चियाँ साथ में कहीं निकल गई है । तीन चार लड़के स्कूटर लेकर अलग अलग दिशा में निकल गये । आधे घंटे में तीन वापिस आये कि नहीं मिली । 

एक शहर के बाहर बने बस स्टैंड तक पहुँच गया । पता करते करते पता चला कि दो लड़कियाँ हाथ पकड़े रोती हुई जा रही थी । कोई उन्हें बस स्टैंड के अन्दर ले गया । वहाँ के इंचार्ज ने पुलिस को फ़ोन किया । अब बच्चे पुलिस स्टेशन में है । ख़बर मिलते ही दोनों के पिता जो अब तक आ चुके थे जल्दी से भागे , बच्चियाँ बड़े मज़े से फ़्रूटी पी रही थी । पापा को देखते ही भागकर गले लग गई । पुरा मोहल्ला गली में खड़ा था किसी के घर खाना नहीं बना था । दिव्या को देखते ही शर्मिला पागलों की तरह दौड़ी ।

 कहाँ चली गई थी दिव्या ?  सोनू ने कहा वो पार्क जा रही है मैंने कहा मुझे भी आना है । दरवाज़ा खुला था तो मैं चली गई । पार्क का गेट खुला नहीं था तो हम चलती गई चलती गई और फिर हम खो गई दिव्या ने अपनी भोली सी ज़ुबान में सारी कहानी सुना दी । 

शर्मिला- लेकिन बेटा मैंने मना किया है ना आपको बाहर जाने से ??

दिव्या – लेकिन मुझे जाना है बाहर खेलने मुझे नहीं अच्छा लगता सारा दिन घर में रहना!!

दिव्या के पिता ने घूर कर माँ की तरफ़ देखा और बोले सुन लिया । आज जो भी हुआ सबकी ज़िम्मेदार तुम हो । पता नहीं कब तुम्हें अक़्ल आयेगी ।अगर आज हम अपनी बेटी को खो देते तो मैं ख़ुद को कभी माफ़ नहीं कर पाता।  तभी सुधा बीच में आई और बड़े प्यार से बोली । 

शर्मिला तुमने अपने दिल में कहीं से ग़लत विचार बिठा लिए है । शायद आजकल जो घटनायें हो रही है वो भी वजह हो । लेकिन यूँ बच्चों को बंद करके रखना कोई हल नहीं है । तुम बच्चों का भला नहीं नुक़सान कर रही हो । उनका मानसिक विकास रूक जायेगा । वो आत्मविश्वास खो देंगे और बड़े होकर डरे सहमे से रहेंगे । उन्हें बाँधो नहीं उड़ने दो जैसे चिड़िया अपने बच्चों को स्वयं उड़ाती है वैसे तुम्हें भी उन्हें उड़ान देनी है ना कि पंख काटने है । वो रोते रोते बोल रही थी मैं समझ गई मैं ही ग़लत थी ममा आपसे बहुत सॉरी है बेटा । कल से आपको पार्क ममा लेकर जायेगी । देखते देखते सबके चेहरे पर मुस्कान आ गई । माँ और बेटी दोनों लौट जो आई थी ❤️

स्वरचित कहानी 

अभिलाषा कक्कड़

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