संस्कारो का दहेज – मंगला श्रीवास्तव

      सुबह के पाचँ बजे थे। अम्माजी  उठ चुकी थी । चाहे कितनी ठंड हो या गर्मी वह इसी समय उठ जाती है रोज।कमरे से बाहर आकर उन्होंने अपनी छोटी बहू को आवाज दी नीरा ओ नीरा मेरी चाय बन गयी क्या ,जी मांजी  कहकर नीरा ने जल्दी से चाय लाकर टेबल पर रख दी । वह जानती थी अगर थोड़ी भी देर हो गयी तो अम्माजी सारा घर सिर पर उठा लेगी।इस कारण वह अम्माजी के पहले ही उठकर चाय बना लेती थी।

 अम्माजी बहुत ही तेज स्वभाव की महिला थी। भरापूरा उच्चवर्गीय धनाड्य परिवार, चार बेटों चार बहुएँ पोते पोती से भरपूर था। पति घनश्याम दस बहुत सज्जन व सीधे थे ।

घर में अम्माजी से सभी  डरते थे। नीरा उनकी सबसे छोटी बहू थी ।

उनकी तीनो बड़ी बहुओं को वह कुछ नही बोलती थी… क्योंकि वह सभी बड़े घरों की बेटियाँ थी और उनकी आशा से भी ज्यादा  दानदहेज लेकर आई थी।

  एक नीरा ही थी जो उनके बेटे की पसन्द एक गरीब परिवार की पर बहुत ही संस्कारी लड़की थी। वह उसको बिल्कुल पसंद नही करती थी ।क्योंकि वो उनके बराबरी और उच्च खानदान की नही थी।

पर बेटे ने बस उससे ही शादी की जिद्द की इसीलिए उन्होंने अपने लाड़ले बेटे की ज़िद्द के कारण उसको बहु बनाया था।

  मन मारकर उसको बहु मानती थी।पर उसको एक वह एक नौकरानी से ज्याद अहमियत तक नही देती थी। शादी के बाद  घर के सारे काम वह ही करती थी।

नीरा उसको कोई शिकायत भी नही थी वह सभी के काम खुशी से ही करती थी। बाकी तीनो बहुएं बस अपनी किटी पार्टी घूमना पॉर्लर जाना यही काम करती रहती।

रोज की तरह आज सुबह भी अम्माजी उठी और  बाथरूम गयी पर जैसे अंदर जाकर मुँह धोया लाइट चली गयी । वह एकदम पलटी पर पानी होने के कारण पैर फिसला और गिर गयी, वह चीख पड़ी उनके चिल्लाने की आवाज सुन कर नीरा दौड़ कर आ गयी और उनके पति भी उठ गए।सभी बेटे बहु भी आ गए उठकर जैसे तैसे दरवाजा खोला ,और सबने मिलकर उनको उठाया ,पर उनसे चलते नही बना।




जल्दी से उनको अस्पताल ले जाया गया ।

सारे चेकअप ,और सीटी स्कैन ,

व एक्सरे को देख कर डॉक्टर ने कहा की कमर की हड्डी में और पैरों में फैक्चर हुआ है। ऑपरेशन करना पड़ेगा।

ऑपरेशन के बाद अम्माजी को एक महीने तक भर्ती रहना पड़ा  बड़ी बहुएं तो कभी कभी थोड़ी देर को मुँह दिखने भर आ जाती थी ,और दूर से बैठे कर ही देखकर चली जाती थी। और बेटे भी उनके बिजनेस और काम के कारण अपना थोड़ा ही समय दे पाते थे। अस्पताल में ज्यादा समय उनके पति व नीरा ही रहते थे।

नीरा ने तो खुद को भूल करदिन रात दोनो समय की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले थी।सुबह वह जल्दी से सारा काम करती।और खुद का ससुरजी व अम्माजी का भी पसन्द का खाना बनाकर लाती  व उनको  अपने हाथ से खाना खिलाती।  उनके सिर पर कंघी करना व तेल लगाकर मसाज करना सभी वही करती थी ।अस्पताल की नर्से व बाइयाँ सब उनसे उसकी तारीफ करती रहती ।अब उनको अपने किये पर बहुत पछतावा होता था।

वह जिसको काँच का टुकड़ा समझती थी वह तो सच्चा हीरा थी,और जिनको हीरा समझती थी वो काँच के टुकड़े निकले।  उनको अस्पताल से छुट्टी मिल गयी थी। और अब करीब एक महीना हो चुका था ।नीरा उनके  प्लास्टर कटने के बाद दोनों समय उनके पैरों की व कमर की मालिश करती  ।और  उनको धीरे धीरे से चलाने की कोशिश करती रही। इतने दिन हो गए उनकी बाकी तीनो बहुएं बस एकाध बार ही दिन भर में पूछने का जाती थी।अब वो काफी ठीक हो गयी थी और खुद  ही थोडा सहारे लेकर चलने फिरने लगी थी।




   आज दिवाली थी सभी  बेटे बहुओं ने पूजा करने के बादआकर उनके पैर छुए। उन्होंने सबको आशीर्वाद दिया। और फिर देखा नीरा वह नही थी,  वह उसको आवाज देने लगी अरे नीरा कहाँ हो  ?यहाँ आओ वह जानती थी नीरा सबसे बाद में ही आएगी हर साल की तरह उनके आदेश अनुसार। जी अम्माजी नीरा आयी और पैर छूकर दूर खड़ी हो गई।

वह धीरे से खड़ी हुई और वाकर के सहारे धीरे से चलकर उसके पास आई और उसको गले लगाकर बोली तुम मुझको माफ कर दो नीरा।  ये सुनकर नीरा की आखों में आंसू आ गये ।वो रो पड़ी औऱ अम्माजी के गले लग गयी।अम्माजी ने उसको गले से  लगा  लिया।

      वह बोली आज तक मैंने तुमको बहुत दुख दिए और दहेज ना लाने के कारण हर बात पर ताने मारे ,तुमसें घर के नौकरों जैसा व्यवहार किया ।

पर आज मुझकों समझ आ गया कि असली दहेज वह लोग नही तुम लेकर आई हो।

 वो है संस्कारो का दहेज।।

मंगला श्रीवास्तव

इंदौर स्वरचित मौलिक कथा

 

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