सागर की लहर जैसा होना भी जरूरी कभी तेजी कभी शान्त•••••• – अमिता कुचया

नीता बिल्कुल हताश चुकी थी। क्योंकि हर समय घर की जिम्मेदारी के साथ  कहीं कुछ ग़लत हो जाए तो उसे ही दोषी ठहराया जाना, कहीं कुछ हो उसे ही सुनाया जाता। हर समय अपमान नहीं सह सकती थी।अब उसे लगा कि बहुत हुआ।

एक दिन की बात है बहुत समय  बाद  नीता  की फोन पर उसकी सहेली मेघा  से बात हुई तो मेघा ने पूछा लिया कि- ” हम कहीं मिल सकते हैं।  जब भी फोन लगाती हूं।तू हमेशा बिजी रहती है।बता न यार •••

तेरे पास कब समय होता है?”

नीता ने कहा- ” ठीक है मैं अपनी सासुमा से  पूछकर बताती हूं।अगर सासुमा हां ने कर दिया तो साढ़े चार बजे मिलते हैं।”

नीता ने सब सोच कर ही साढ़े चार का समय चुना।उसी समय वह फ्री रह पाती थी। फिर नीता ने अपनी सास से पूछा कि – “मैं आज अपनी सहेली मिलने जा सकती हूं।तब सास ने कहा ठीक है ,सहेली से मिलने तो चली जा, पर तू सात बजे तक लौट आना। क्योंकि तू तो जानती है तेरे बिन शाम को कोई काम नहीं हो पाएगा।”

इस तरह नीता सास से पूछकर अपनी सहेली मेघा से मिलने चली जाती है पहुंचते -पहुंचते पांच बज जाते हैं दोनों के बीच  काफी गपशप होती है ।पर नीता का ध्यान हमेशा घड़ी की तरफ होता है जबकि उसकी सहेली मेघा खुले विचारों वाली बिंदास अपनी मर्जी से जीने वाली होती है। उसे कोई फ़िक्र नहीं होती।

फिर थोड़ी देर बाद पूछ ही बैठती- ” क्यूं यार एक तो इतने दिनों बाद  मिली ,ऊपर से तू घड़ी देखें जा रही है ऐसा भी क्या डर•••



घर पर थोड़ा लेट भी पहुंची तो क्या हो जायेगा?”

फिर नीता ने कहा – “देखो मुझे किसी का डर नहीं है ,फिर भी मुझे लगता है कि घर समय पहुंच कर किसी को कुछ बोलने का मौका ही क्यों दो। मेरे बच्चों को काफी चाहिए होती है। और मेरे पति को शाम का  नाश्ता चाहिए  होता है।फिर शाम की पूजा भी करनी होगी।”

इतना सुनते ही वो बोली “तेरी सास है सब संभाल लेगी।”

नीता ने कहा  –  “वो संभालेगी नहीं बल्कि उन्हें करना पड़ जाए तो हल्ला करेंगी और ऊपर से ताने सुनने पड़ेंगे।”

मेघा ने कहा – “चल बाबा अब तू जा •••••!”

अब नीता को लौटने में देर हो गई वह साढ़े सात बजे तक लौट पाई।

तब तक उसके पति लौट चुके थे।उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था। नीता को आते देख उन्होंने रोका और बोला ये समय है लौटने का!



जहां के लिए निकली थी, वहीं वापस लौट जाओ। अगर तुम्हें हम लोगों की परवाह नहीं है तो क्या!

फिर नीता ने कहा – “अगर मैं एक दिन के लिए कहीं जाती हूं तो समय देखा जाता है मेरी भी तो जिंदगी है! थोड़ी सी लेट क्या हो गई तो तुम मुझे लौटने कह रहे हो।तुम जैसे लोगो की वजह से आज  तक आगे नही बढ़ पाई।बस चौंका चूल्हा देखते रहो। कहीं बच्चों की पढ़ाई, कहीं मां बाबूजी की दवाई।

अगर तुम्हें लगता है कि मैं जहां के निकली थी वहां लौट जाऊं ,तो  यह घर बिखर जाएगा।पर मैं तुम जैसी  नहीं हूं। मुझे सागर की लहरों की तरह बढ़ना आता है। जैसे सागर की लहरें आगे पीछे होती रहती हैं वैसे ही अपने बच्चों की वजह से अपना अहम छोड़ कर घर में समझौता करती जाती  हूं। ”  इतना सुनते उसके पति की बोलती बंद!

और उसका मुंह बंद का बंद ,और वह मां की तरफ देखने लगा।

आज नीता में हिम्मत भी आ गई। वह जो चुप रहती थी।वह उसके अंदर तूफान जो शांत था वह तेज आंधी की तरह निकला।जिसकी किसी को भी उम्मीद नहीं थी।

हमेशा से शांत रहने वाली और सहन करने वाली नीता भी शांत न रह सकी।  इस तरह नीता घर के अंदर चली गई।सब शांत हो गये।

सखियों-एक समय तक ही चुप रहना चाहिए अगर आपके अस्तित्व को ठेस पहुंचाए तो उसके लिए आवाज उठानी चाहिए।

सखियों – सागर अगर तूफानों से लड़ना सिखाता है तो परिस्थिति के अनुसार पीछे होना भी सिखाता है। अगर आप सब को रचना अच्छी लगे तो मुझे फालो करें। और अपनी प्रतिक्रिया द्वारा  प्रोत्साहन बढ़ाते रहे।

धन्यवाद 🙏❤️

आपकी अपनी सखी ✍️

अमिता कुचया

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!