हमेशा, बहू को मर्यादा में रहने की शिक्षा देने वाली, जानकी देवी को, आज उनकी बहू केतकी ने सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया था। जहाँ प्रश्न और उनके उत्तर देने वाली वे स्वयं थी और निर्णायक भी वे ही थी।
केतकी पढ़ी-लिखी,सुसंस्कारी बहू थी।माँ ने उसे हमेशा मर्यादा में रहने की शिक्षा दी थी,वह विद्यालय में नौकरी करती थी, मगर शादी के बाद जानकीदेवी ने नौकरी छुड़वा दी।उनकी दलील थी, कि बहुएं नौकरी करने घर के बाहर जाएगी तो बहू की मर्यादा भंग हो जाएगी।केतकी ने इच्छा न होते हुए भी, नौकरी छोड़कर, घर का काम सम्हाल लिया। पूरी निष्ठा से वह घर-परिवार के सारे कार्य करती। फिर भी जानकी देवी ने मर्यादा का राग अलापना बंद न किया, जोर से बोलो मत,हँसो मत, सबके बाद खाना खाओ, घूंघट में रहो। केतकी संस्कारी लड़की थी, वह चुपचाप सब बात मानती रही। केतकी की ननन्द अवनी ने बी.एससी. के बाद बैंक की परीक्षा पास की और नौकरी कर ली। जानकी देवी बहुत खुश, मिठाई बांटी और केतकी को दिए जाने वाले तानों में और इजाफा हो गया, बेटी कमा कर लाती है,महारानी को क्या पता चले ये तो घर में आराम करती है।
कल तो गजब हो गया, केतकी की तबियत ठीक नहीं थी, अवनी बैंक से आई तब खाना तैयार नहीं हुआ था, केतकी ने बस यही कहा- ‘दीदी आज तबियत ठीक नहीं लग रही है, आप बैठिए मैं खाना बना रही हूँ।’
जानकी देवी का पारा गरम हो गया, उन्होंने केतकी को बहुत बुरा-भला कहा और गुस्से में उसपर हाथ उठा दिया।हर बात की एक सीमा होती है। केतकी ने उनका हाथ पकड़ लिया और बस यही कहा- ‘मैं संस्कारी बहू न बन सकी, मगर सब मर्यादाएं क्या बहू के लिए है, सास के लिए कुछ नहीं ?’कल केतकी घर छोड़कर चली गई।और जानकी देवी उलझ गई प्रश्नो के घेरे में।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक