स्कूल में चित्रकला प्रतियोगिता हुई। सबसे अच्छे तीन चित्रों को पुरस्कार मिला। उसमें रचना का बनाया गुलाब के पौधे का चित्र भी था। स्कूल की ओर से तीनों विजेताओं को पुरस्कार दिए गए। समारोह समाप्त होने के बाद रचना की माँ प्रतिभा प्रिंसिपल से मिलीं। पुरस्कार के लिए धन्यवाद दिया। फिर कहा- “रचना बताती है कि स्कूल के बाग में गुलाब के बहुत सुंदर-सुंदर पौधे हैं।”
“हां हैं तो सही। हमें बच्चों के साथ-साथ फूलों से भी प्यार हैं।” प्रिंसिपल ने कहा। फिर प्रतिभा और रचना को प्रिंसिपल गुलाब वाटिका दिखाने ले गई|
रचना एक छोटे से गमले में लगे सुंदर गुलाब के सामने जा खड़ी हुई और देर तक खड़ी देखती रही। लगा वह कुछ कहना चाहती है, पर कह नहीं पा रही है। प्रिंसिपल ने पूछा- “रचना, क्या गुलाब का पौधा तुम्हें पसंद है , क्योंकि तुम काफी देर से इसके सामने खड़ी हो।‘’
उत्तर में रचना कुछ बोली नहीं, पर धीरे से हां में सिर हिला दिया। उसकी आंखें अब भी गुलाब के फूलों पर टिकी थीं। रचना की मां ने कहा- “इसे फूलों से बहुत प्यार है।”
सुनकर प्रिंसिपल हंस पड़ीं। फिर उन्होंने ब्रश व पेंट लेकर गुलाब के गमले पर लिख दिया – रचना का गुलाब। फिर बोलीं– “अब यह गुलाब रचना का हो गया। यह इस गमले को घर ले जा सकती है।‘
प्रिंसिपल से गुलाब का उपहार पाकर रचना बहुत खुश हुई। दोनों माँ-बेटी ने उन्हें धन्यवाद दिया और घर चली आईं | पूरे रास्ते रचना गुलाब के गमले को गोद में लिए बैठी रही, गमले का रंग उसके कपड़ों पर लग गया|माँ ने पौधे को नीचे रखने को कहा,पर रचना ने मना कर दिया।वह गुलाब को एक पल के लिए भी अपने से अलग नहीं करना चाहती थी। रचना ने घर पहुँच कर गुलाब का गमला अपने पलंग के पास टेबुल पर रख दिया।
मां ने कहा-“रचना, क्या तुम इस गुलाब के गमले को यहीं रखोगी?” मां ने कई बार रचना को समझाया कि गुलाब वाले गमले को सोसायटी के बाग में रखवा दे, जहां तरह-तरह के फूलों के बहुत सारे गमले रखे हुए थे। उनकी देखभाल एक माली करता था। पर रचना उनकी बात मानने को तैयार ही नहीं हुई।
बीच में स्कूल में दो दिन की छुट्टी हुई तो रचना अपने मम्मी डैडी के साथ अपनी नानी के घर मिलने गई।
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“हम दो दिन नहीं रहेंगे। हमें गुलाब को पौधे को नीचे बाग में रख देना चाहिए।माली दूसरे पौधों के साथ तुम्हारे गुलाब की भी देखभाल कर लेगा।”- माँ ने समझाया।
रचना ने गुलाब के गमले पर प्यार से हाथ फिराया, फिर बोली- “कोई मेरे प्यारे गुलाब को चुराकर ले गया तो? नहीं, मैं इसे अपने कमरे में ही रखूंगी।”
दो दिन नानी के घर मजे करने के बाद रचना लौटी तो सबसे पहले अपने गुलाब के पास गई। फिर जोर से चीखी- “मम्मी, जल्दी आओ, देखो तो मेरे गुलाब को क्या हो गया!”
रचना की मां प्रतिभा दौड़कर गईं तो देखा रचना गुलाब के गमले के पास उदास बैठी है। मां को देखते ही बोली- “देखो मेरे गुलाब को।”
प्रतिभा ने देखा- दो दिन में गुलाब के कई फूल झर गए थे। कई मुरझाकर लटक रहे थे। उन्होंने कहा- “बेटी, मैंने कहा था न हमारे पीछे से कौन फूलों की देख-भाल करेगा। देखो पानी और ताजी हवा न मिलने से तुम्हारा पौधा बीमार हो गया है। पहले हमें इसे स्वस्थ करना है।”
“वह कैसे होगा?” रचना ने कहा।
प्रतिभा ने तब तक माली को बुला लिया था। उन्होंने रचना को समझाया- “इसका तरीका यही है कि गुलाब के पौधे को हम माली भैया को सौंप दें।‘’ मां के समझाने पर रचना मान गई। जब माली गुलाब के पौधे को उठाकर नीचे ले गया तो रचना भी उसके साथ गई, फिर माली को बताया कि वह गमले को कहां रखे। गमले को ऐसी जगह रखा गया था जो प्रतिभा की बालकनी से साफ दिखाई देती थी। गमला रखवाने के बाद रचना ने बाल्कनी में जाकर स्वयं देखा तब कहीं उसकी तसल्ली हुई।
“माली भैया, मेरे गुलाबों का ध्यान रखना।” रचना ने कहा तो माली बोला- “बेबी, बाग के सारे फूल मेरे बेटी-बेटों की तरह हैं। मैं तो सबका ध्यान रखता हूँ।”
मौसम बदल रहा था। एकाएक रात को तेज ठंड पड़ने लगी थी। गमले में गुलाब का पौधा तो था, पर फूल नजर नहीं आते थे। उसके पूछने पर माली तसल्ली देता था- “बेबी, जब मौसम कम ठंडा होगा तब फूल फिर से आयेंगे तुम्हारे गुलाब पर।”
रचना की बालकनी के सामने वाले हिस्से में धूप नहीं आती थी इसलिए माली गमले को उठाकर दिन में दूसरी तरफ धूप में रख देता था। शाम को फिर गमला पुरानी जगह पर लौट आता था। एक दिन रचना ने देखा तो गमला अपनी जगह नहीं था। घबराकर दौड़ी-दौड़ी माली के पास जा पहुँची
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“मेरे फूल, मेरा गमला!’’ वह इतना ही कह पाई थी कि माली उसका हाथ पकड़कर धूप में रखे गमले के पास ले गया। रचना ने गमले पर अपना नाम देखा तो खुश हो गई।
उस रात सोते-सोते रचना को एक सपना आया। उसने देखा ठंडी हवा चल रही है। उसके गुलाब की पंखुड़ियां थर-थर कांप रही हैं। आवाज आ रही है- “रचना, मुझे ठंड लग रही है और तुम हो कि आराम से गरम बिस्तर में सो रही हो।”
सुबह उसने प्रतिभा से कहा- “मम्मी, मुझे रात को सपना आया था और फिर मैंने रात के अंधेरे में खिड़की से देखा तो सचमुच मेरा गुलाब हवा से कांप रहा था।”
प्रतिभा हंसकर बोली- “बेटी, पेड़ पौधे इसी तरह रहते हैं। आखिर उनके पैर तो हैं नहीं जो सर्दी लगने पर चलकर बंद जगह में पहुँच जाएं। दिन में इसीलिए तो माली गमलों को उठाकर धूप में रखता है ताकि उन्हें धूप मिल सके।”
“हमें अपने गुलाब के लिए कुछ तो करना चाहिए।” रचना ने कहा और सारा दिन सोचती रही।शाम को उसने मम्मी की शाल उठाई और नीचे जाकर गुलाब के पौधे को अच्छी तरह ढक दिया।
प्रतिभा ने खिड़की से बेटी का कारनामा देखा तो हंस पड़ी। रचना ऊपर आई तो उन्होंने कहा- “बेटी, यह क्या खेल कर रही हो। आखिर तुम्हारा गुलाब का पौधा ही तो अकेला नहीं है। क्या सर्दियों में कोई पूरे जंगल को उढ़ाता है, या बारिश और तेज धूप में उन के ऊपर एक विशाल छतरी तानता है? यह पागलपन है। प्रकृति अपने तरीके से पेड़ पौधों की रक्षा करती है।”
“पर मां, वह तो मेरा गुलाब है। उसका ध्यान तो मुझे ही रखना होगा।” रचना ने कहा।
उस रात रचना आराम से सोती रही। रात में उसने एक बार उठकर नीचे झांका पर साफ-साफ कुछ नजर न आया। पर उसे तसल्ली थी कि कम से कम उसका गुलाब तो सर्दी से बचा रहेगा। सुबह नींद खुलते ही उसने नीचे झाँका तो सन्न रह गई। रात को उसने जो शाल गुलाब पर डाला था, वह दूर जमीन पर पड़ा था।
रचना ने चिल्लाकर पुकारा- “माली भैया, जरा ऊपर तो आना,’’ फिर उसके उत्तर देने से पहले ही खुद नीचे भाग गई। उसने पूछा- “माली भैया, मेरे गुलाब पर से शाल किसने उतारा?”
“रात में तेज हवा चल रही थी इसीलिए उड़ गया होगा।“ माली ने कहा। रचना ने देखा माली के बदन पर केवल एक पतली कमीज थी, हवा उस समय भी तेज भी और वह ठंड से कंपकंपा रहा था।
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तब तक प्रतिभा भी नीचे आ गईं । उन्होंने कहा- “रचना, मैंने तुम्हें बताया तो था कि पेड़-पौधे सरदी में रजाई नहीं ओढ़ते। उनकी देखभाल प्रकृति अपने आप करती है या फिर हमारे माली भैया करते हैं।” प्रतिभा ने जमीन पर पड़ी शाल उठा ली, फिर माली से ऊपर आने को कहा। उन्होंने माली को खाली कमीज में सर्दी में कंपकंपाते देखा लिया था।
माली कुछ देर बाद ऊपर आया तो प्रतिभा ने गरमागरम चाय और कुछ खाने को सामने रख दिया, फिर रचना के पापा की कमीज और स्वेटर निकालकर देते हुए कहा- “इन्हें पहन लो। अगर तुम्हें ठंड लग गई तो फिर रचना के गुलाब कैसे ठीक रहेंगे।” कहते हुए उन्होंने अपनी शाल रचना को थमा दी जिसे रचना ने रात में गुलाब के पौधे को उढ़ाया था। उनकी आंखें अब रचना पर टिकी थीं।
उनकी बात शायद रचना के मन तक पहुँच गई। रचना ने शाल माली को थमा दी। बोली- “माली भैया, तुम सुबह बहुत सवेरे बाग में आ जाते हो। जब आओ तो यह शाल ओढ़कर आना। मम्मी ठीक कह रही हैं , अगर तुम बीमार पड़ गए तो फिर मेरे गुलाब की देखभाल कौन करेगा।‘’
माली ने हौले से रचना का माथा छू दिया। बोला- “बेबी, मैंने कहा था न सब पौधे मेरे अपने बच्चों जैसे हैं, फिर तुम्हारा गुलाब तो मेरे लिए खास है।” कहकर माली नीचे उतर गया।
रचना को मां ने गोद में भर लिया। पीठ थपथपाती हुई बोली- “सब ठीक हो जाएगा, और सिर्फ तेरे गमले के गुलाब ही तो नहीं हैं। बाग के सारे फूल-पेड़, पौधे हम सबके हैं। हमें किसी एक का नहीं, सबका ध्यान रखना है।‘’
रचना चुप खड़ी थी। ( समाप्त)