अनोखा एका – सरला मेहता

सौदामिनी अकेली जान, बतियाए किससे ? बाड़े में जब से हरी सब्जियाँ व फल की बहार आने लगी, आँखें व पापी पेट दोनों तृप्त हो गए।

      उनसे गुफ़्तगू में कब सूरज डूब जाता पता ही नहीं चलता। पड़ोसी ओंकार जी भी सुदामिनी जी की नकल कर बैठे। किन्तु हरी सब्जियों फलों को सम्भालना उनके बस की बात नहीं। फिर वे आलू प्याज़ उगाने लगे। दोनों पड़ोसी बारी बारी से एक साथ बाड़ों में बैठ सब्जियों से बतिया कर जीवन का आनन्द लेते।

आज सौदामिनी जी के यहाँ मज़मा लगा है। गाज़र के हलवे व पालक पकौड़े का लुत्फ़ उठाया जा रहा है।

” वाह जी , मज़ा आ गया, आपके हाथ का नाश्ता तो बस, खाए ही जाओ।” डकार लेते ओंकार जी बोले।

तभी जमीन पर पसरे कद्दू जी ताने मारने लगे, ” दीदी , एक बार तो मुझे चख लेती। रायता  हलवा ही बना लेती। बीजों को सुखा यहाँ बैठकर छील लेती। नाम चाहे पसंद ना हो, हूँ बड़ा काम का।”

जवाब मिलता ,” हाँ मेरे भाई , ज़रूर।”

रामदेव बाबा की लौकी भी क्यूँ पीछे रहे, ” मुझ गुणी पर सभी नाक भौ सिकोड़ते हैं। पर झक मार के बुढ़ापे में मुझसे ही पाला पड़ता है।”

तभी गिलकी रानी अपनी तान छेड़ बैठी , ” ओह, बंद करो ये बकवास मुटल्लों। मेरी तरकारी भरवाँ या कटी, लोग चटकारे लेकर खाते हैं।और पकोड़ों का क्या कहना।”

सौदामिनी ने टोका,” अरे, बस भी करो। मासूम से टिंडे को बोलने का मौका ही नहीं मिला। मुझे ज़रा सबकी सुनने दो,फिर फ़ैसला दूँगी।”

बैंगन भी फुदका, “काला हूँ तो क्या,मेरी मसालेदार सब्ज़ी व भरता तो बस।”

भिंडी भी इतराई ,” बच्चे तो बस मुझे ही पसन्द करते हैं।कुरकुरी,लंबी,   गोल कैसे भी बनालो।”

सारी फलियाँ मटर गंवार चँवला बालोर आदि ने धावा बोल दिया, “देखो हमारे बिना काम नहीं चलता।” मटर बोली,”चुप हो जाओ। मेरी कोई सानी नहीं।”

मटकते टमाटर इठलाए, “हमारे बिना कोई ठौर नहीं। बिना मेरे दाल सब्ज़ी बेस्वाद। राजा हूँ मैं,सबसे पौष्टिक। सॉस जूस कुछ भी बनालो।”



फ़ैसला सौदामिनी को देना है , ” सुनो साथियों, मेरे तो जीवन का सौदा भी फ़ायदे वाला हो गया।मेरी गाड़ी चल निकली।

मेरे लिए आप सभी ही बराबर हो। जो लोग सभी सब्ज़ियों का बारी बारी से उपयोग करते हैं सेहत का सेहरा भी उनके ही सिर बंधता है।  देश व समाज की सेहत के लिए चुनाव में हर उम्मीदवार को मौका मिले। अपना प्रचार तो सभी बढ़ चढ़ कर करते, है न ओंकार जी। “

ओंकार जी ने सोचकर अपना मत रखा, “तो फ़ैसला यह रहा कि आप सभी स्वाथ्यवर्धक हो। पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती किन्तु सबकी अपनी अहमियत है।”

अगले दिन कचहरी जमी ओंकार जी के यहाँ। एक दिन पहले ही उन्होंने महाराज जी से आलू का हलवा बनवा लिया। समोसे का मसाला व चटनी बनवा फ्रिज़ में रखवा दी। बस गरम समोसे आज बनाए। सुदामिनी जी भी आ गई और गोष्टी शुरू। ओंकार दादा अपनी कसरत में कोई ख़लल नहीं चाहते। रोज़ की मगजमारी कौन करे ? तो दादा ने अपने यहाँ आलू प्याज़ ही लगाए। ये हरी सब्ज़ियों की तरह खराब नहीं होते। सौदामिनी जी की भांति मेहनत करना उनके बस की बात नहीं। बाड़े में दिनभर बैठकर क्य्यारियों से घास फूस बीनना वो ही कर सकती हैं।  

दोनों आलू प्याज़  की बहस सुनते सुनते अदरक वाली चाय का मज़ा भी ले रहे हैं ।

आलू , ”  भई मैं तो देखो बड़ा सभ्य व विनम्र हूँ। जो मुझे बुलाता, चल देता हूँ। अड़े भड़े में मैं ही काम आता हूँ। मामा नहीं तो काना मामा ही भला। सबसे बड़ा गुण खराब भी नहीं होता। सबका प्रिय भी हूँ। चिप्स पापड़ समोसे हलवा जो चाहो, बनालो। मेरा मुकाबला कोई नहीं कर सकता। “

    इतने में गुस्से से तमतमाता हुआ प्याज़ कूदा,” चुप बे  बेरंगे, शेखी ज़रा कम ही बघार। ठहरो ज़रा, अभी सबके आसूँ निकालता हूँ। तू तो सबको अपने जैसा ही गोलमटोल बना देता है। ऊपर से लोगों को नीबू काला नमक चूसने को मज़बूर कर देता है।अरे,,,सब्ज़ी में स्वाद तो मैं ही लाता हूँ। बिना प्याज़ के तो मसाला मिट्टी जैसा ही है। हाँ, गरीबों का एकमात्र सहारा, सबसे सस्ता। देख भई तेरा मेरा छत्तीस का आँकड़ा। मुझसे तो तू दूर ही रहना वरना बच्चू तुझे सड़ा के रख दूँगा। “

      अब आलू उस्ताद चकरी सा घूमने लगे , “ओहो ! अपने मिया मिट्ठू खूब बनते हो।  तुमको ख़ुद भगवान ने ही नकारा है। तुम बस राजनीति गरमाने में चतुरबी हो। कई बार कोड़ियों में बिक कर किसानों को रुलाते हो। “

पड़ोस से हरी सब्जियों ने टेढ़ी नज़रों से आलू प्याज़ को घूरा,” हाँ भई सब्जियों के राजाओं ! टमाटर की ग्रेवी व हरी मिर्ची के बिना  तुम्हें कौन पूछता है भला। और हरे धनिया न हो तो बिना सेहरे के दूल्हे लगते हो। “

आलू और प्याज़ एक साथ चिल्ला पड़े , “ए हरी हरी सब्जियों ! दो दिन में तो तुम खराब हो जाती हो। किसानों के लिए सिरदर्द बन जाती हो। ढोरों को डालना पड़ता है। बंद व कर्फ्यू में तो हम ही काम आते हैं। “

वर्ज़िश के बाद दादा बाहर बरामदे में बैठे सौदामिनी जी के साथ सूप पीते मशविरा करते हैं, ” देखा आपने, इनका झगड़ा। समझने को तैयार ही नहीं। मुझमें आप जितना धैर्य नहीं।

क्यूँ न हम अपने बाड़े एक कर लें ? “

” हाँ हाँ,इससे अच्छा अनोखा एका,,,हो ही नहीं सकता। ” सुदामिनी बोली।

“आइए मैं आप दोनों को सदा के लिए एक कर देता हूँ । ” सामने वाले मंदिर से पुजारी जी दो हार लिए मुस्ककुराते हुए बोले। फ़िर तो आस पास के सारे लोग बधाइयां दे कहने लगे, ” दादा, पार्टी तो बनती है।”

सरला मेहता

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