सच्चा न्याय

बहुत पुरानी बात है एक गांव में 2 दोस्त रहते थे कहने को तो दोनों दोस्त थे लेकिन दोनों का स्वभाव बिल्कुल ही अलग था लल्लन जहां बिल्कुल ही दयालु था और लोगों के हर दुख सुख में काम आता था।  वही मदन अहंकारी और स्वार्थी था। वह अपना हमेशा हर काम में फायदा देखता था बिना फायदा का कोई भी काम नहीं करता था. 

 दोनों किसान थे और खेती से ही अपने परिवार का गुजारा करते थे अगले  साल ऐसा हुआ कि गांव में बारिश ही नहीं हुई इस कारण लल्लन और मदन दोनों की फसल सूख गई घर में अब सिर्फ 1 महीने का ही राशन बचा हुआ था।  उन्होंने फैसला किया कि वह परदेश में नौकरी करने जाएंगे। क्योंकि अब नया फसल तो अगले मौसम में ही हो पाएगा। 

 लल्लन और मदन दोनों एक साथ परदेस में कमाने के लिए चल दिए।  रास्ते में जाते-जाते थक गए थे उन्होंने सोचा कि एक पेड़ के नीचे कुछ देर आराम कर लेते हैं फिर वह आगे का सफर तय करेंगे। 

मदन बोला लल्लन अब जब पेड़ के नीचे बैठ ही गए हैं तो खाना खाकर ही आगे का रास्ता तय करेंगे, दोनों अपने खाने की पोटली  खोलने लगे उन दोनों की पत्नियों ने लल्लन को तीन रोटी और मदन को दो रोटी दिया था। लल्लन ने जब देखा कि मदन की पोटली में दो रोटी है तो  अपने में से उसने आधा रोटी अपने दोस्त मदद को तोड़ कर दे दिया ताकि दोनों बराबर बराबर रोटी खा सकें। 



 दोनों अभी रोटी का पहला निवाला मुंह में डालने वाले थे तभी वहां पर एक राहगीर आया और उसने बोला, “भाई मुझे भी बहुत जोर से भूख लगी है क्या आप लोग मुझे भी अपने हिस्से में से थोड़ा बहुत खिला देंगे?

 मदन का तो मन नहीं था खिलाने का,  राहगीर समझ गया, उसने कहा कि अगर आप मुझे खाना खिलाएंगे तो मैं आप लोगों को पांच स्वर्ण मुद्राएं दूंगा। 

 ललन दयालु आदमी था उसे मुद्राएं का लालच तो नहीं था वह तो वैसे भी राहगीर को रोटी दे  देता। मदन अपना खाना खिलाने के लिए तैयार हो गया. तीनों ने मिलकर बराबर-बराबर खाना खाया।  खाना खाने के बाद राहगीर वहां से चला गया उसके बाद लल्लन ने जो राहगीर ने 5 स्वर्ण मुद्राएं दिया था उसे अपने दोस्त को 2 स्वर्ण मुद्रा दे दिया और तीन अपने पास रख लिया इस पर मदन ने कहा अरे भाई लल्लन यह कहां का न्याय है कि तुम तीन स्वर्ण मुद्राएं अपने पास रखो और मुझे सिर्फ 2 दो दोनों ने राहगीर को खाना खिलाया है इसलिए स्वर्ण मुद्राएं हम दोनों में आधा-आधा बंटना चाहिए।

 लल्लन ने कहा मदन कायदे से तो यह होना चाहिए दो ही स्वर्ण मुद्राएं तुम रखो क्योंकि तुम्हारे पास तो 2 रोटियां थी और मेरे पास तीन रोटी थी  इसलिए मैं तीन स्वर्ण मुद्रा रखूँगा। 

 मदन लल्लन की इस बंटवारे से संतुष्ट नहीं था. लल्लन ने कहा ऐसा करते हैं हम राजा के पास चलते हैं और राजा से सारी बात बताएंगे राजा जो कहेंगे उनकी हम बात मान लेंगे क्योंकि राजा कभी भी गलत न्याय नहीं करते हैं. 



 वह अपने राजा के पास गए और उन्होंने राजा से सारी घटनाएं सुनाया,  राजा उनकी बात समझ गया था. 

राजा ने कहा कि जैसा कि तुम लोगों ने बताया कि तुम्हारे पास कुल मिलाकर पांच रोटी थी यानी कि लल्लन के पास तीन रोटी और मदन के पास दो रोटी यानी कुल रोटी पांच हुई और तीनों ने मिलकर खाया इसका मतलब एक रोटी में तीन टुकड़ा किया गया यानी कि तीनों लोगों ने 5 – 5  टुकड़े खाएं। 

 लल्लन और मदन दोनों ने हां में सिर हिलाया। 

 राजा ने कहा लल्लन के पास तीन रोटी था इसका मतलब उसकी रोटी के 9 टुकड़े हुए और तुम्हारे पास दो रोटी था इसके मतलब तुम्हारे पास 6 टुकड़े हुए और जब तीनों ने पांच-पांच टुकड़े खाए तो तुम्हारे पास जब 6 टुकड़ा था तो तुम ने  सिर्फ एक ही टुकड़ा राहगीर को खिलाया लल्लन के पास 9 टुकड़ा था तो उसने चार टुकड़े राहगीर को खिलाएं और उस राहगीर ने तुम दोनों को पांच स्वर्ण मुद्राएं दिया। 

जब 4  टुकड़ा ललन ने खिलाया   तो चार स्वर्ण मुद्राएं ललन को दे दी जाए और तुमने सिर्फ एक टुकड़ा खिलाया इसीलिए तुम्हें सिर्फ एक स्वर्ण मुद्रा दिया जाएगा।

 राजा ने सच्चा न्याय कर दिया था.  मदन बहुत पछतावा कर रहा था पहले ही उसे दो स्वर्ण मुद्राएं मिल रहा था वह लड़ाई नहीं करता अब तो और भी घाटा हो गया.

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