सुनो अखिल! अब तुम्हें यहां आने की जरूरत नहीं। तुम्हारे पापा है मुझे सम्हालने के लिए। जब जरूरत थी तब तुम्हे नहीं लगा कि यहां होना चाहिए तुम्हें, तो रोज यूँ आकर दिखावा मत करो।
अखिल ने कुछ कहना चाहा पर माँ ने चादर ओढ़ कर करवट बदल ली। अखिल चुपचाप बाहर आ गया। पिछले दिनों जब कांति को दिल का दौरा पड़ा और आधी रात में अस्पताल ले जाना पड़ा तब नीरज ने बड़ी हिम्मत से काम लिया।
अखिल तब ससुराल में था, नए घर की पूजा के लिए वो सपरिवार वहां गया था। सुबह नीरज ने फोन कर उसे बताया लेकिन वो नहीं आया, दो दिन बाद पूजा है पापाजी, बहुत सारा काम है यहां, फिर आप अस्पताल तो ले ही गए हैं। मैं सब निपटा कर जल्दी आता हूँ। इतना कहकर फोन काट दिया।
समय पर अस्पताल पहुंच जाने के कारण ज़्यादा परेशानी नहीं हुई। दिल की नसों में स्टंट्स डाल दिये गये। आठ दिन में हालत काफी सुधर गयी इस बीच एक बार आकर उन्हें देख कर वापस चला गया अखिल।
बिस्तर में पड़ी कांति सोच रही उसकी परवरिश में कहां कमी रह गई। दो बेटियों के बाद जन्मे अखिल को जो चाहा वो दिया। बेटियां शादी के बाद ससुराल चली गयी। अखिल को अच्छे से लिखाया-पढ़ाया, शादी धूमधाम से की। उसने नीरज की दुकान में बैठने से मना कर दिया तो उसके लिए नई दुकान खोल कर दी। शादी के बाद अखिल ऊपर की मंजिल पर रहता है अलग। पत्नी की पटरी बैठी नहीं कांति से, आये दिन की झकझक से परेशान होकर नीरज ने ये निर्णय लिया।
एक दिन अखिल ने कहा उसकी दुकान अच्छे से नहीं चलती तो वो नीरज की दुकान में बैठना चाहता है। नीरज ने मना किया तो आसमान सर पर उठा लिया पति पत्नी ने। हारकर नीरज उसकी दुकान में जाने लगे और वो नीरज की।
नई दुकान, नया काम अनुभव भी नहीं, फिर भी नीरज ने मेहनत की, दुकान जमाई।
किसी से सुना था कभी कांति ने कि “पूत कपूत तो क्या धन संचय, पूत सपूत तो क्या धन संचय।” अस्पताल से आने के बाद ये महसूस हो रहा कांति को की एक समय के बाद बच्चों की प्राथमिकता बदल जाती है, माँ बाप से ज्यादा उनका परिवार जरूरी हो जाता है। बेटियां तो पराई होती हैं ससुराल में उन्हें सबसे अनुसार चलना पड़ता है, लेकिन बेटे? हमारे देश में पुत्र को कितना स्नेह दिया जाता है, बेटियों से ज्यादा किया जाता है उसके लिए फिर भी एक समय के बाद सब कुछ बदल जाता है।
अखिल की पत्नी दो बहनें थीं। गृह प्रवेश में सारी जिम्मेदारी अखिल पर थी, पूजा होने के बाद सब समेटते, मेहमानों के रवाना होने के बाद वापस आया वह। इत्तेफ़ाक़ से जब कांति अस्पताल से घर पहुंची उसी समय अखिल का आना हुआ। उसे लग रहा था जल्दी आ जाता तो उसके साथ वापस आती घर। लेकिन उसने आते ही कहा- मामा ससुर का घर रास्ते में पड़ता है, उन्होनें बहुत ज़िद की थी रुकते हुए जाएं, इसलिए देर हो गयी। नीरज और कुंती ने कुछ नहीं कहा। जब मुसीबत के समय उसने साथ नहीं दिया तो अब क्या करना।
अखिल को मना कर के कांति को सुकून का अहसास हो रहा है। एक कच्चा धागे का बंधन था उनके बीच, जो उसने आज तोड़ दिया।
#बंधन
©संजय मृदुल
मौलिक एवम अप्रकाशित