“एक त्याग ऐसा भी” – कविता भड़ाना

पूरा हॉल खचाखच भरा हुआ था, शहर के बड़े बड़े लोगो के अलावा, मुख्य मंत्री जी बस किसी भी समय पहुंचने वाले ही थे।आज देश का नाम पूरे विश्व में रोशन करने वाली “रिया”का सम्मान किया जाएगा। बैडमिंटन में ” गोल्ड मेडल”लाने वाली रिया ने सबसे छोटी उम्र की खिलाड़ी का भी खिताब अपने नाम कर लिया है,

तभी मंत्री जी का आवागमन होता है, अन्य क्षेत्रों में योगदान देने वालो के सम्मान के बाद बारी आती है रिया की,हॉल जोरदार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता है। ट्राफी देने के बाद रिया से पूछा जाता है की आपकी छोटी सी उम्र में इतनी बड़ी उपलब्धि के पीछे आखिर किसका योगदान है?कुछ पल चुप रहने के बाद रिया बोलती है ” मेरी भाभी मां”का..

रिया के शब्दों में ही” हमारी एक छोटी सी हंसती मुस्कुराती फैमिली जिसमे पापा, मम्मी, एक बड़ा भाई “राघव”और हम दो जुड़वा बहनें यानी में “रिया”और “सुप्रिया”ही थे।जिंदगी बड़े आराम से गुजर रही थी की एक दिन ऑफिस से घर आते समय मम्मी पापा की कार का एक्सीडेंट हो गया और दोनो ने मौके पर ही दम तोड दिया।

हम दोनो बहने उस समय 12वी कक्षा में थी और भैया दूसरे शहर में जॉब करते थे, हम तीनो भाई बहन बिल्कुल टूट ही जाते अगर “नेहा” भाभी न होती , “नेहा भाभी, भैया के साथ  एक ही ऑफिस में काम करती थी और दोनो शादी भी करने वाले थे, इस बात की खबर परिवार में सबको थी

और सब खुश भी बहुत थे पर अचानक मां पापा के यू चले जानें से हमारे जीवन से जैसे खुशियां कही दूर चली गई ।भाभी अपने मां पापा की एकलौती संतान और अमीर परिवार से थी।

बहनों की खातिर राघव अपने शहर में ही आ गया और एक नई नौकरी भी ढूंढ ली, ऐसे में एक दिन नेहा भाभी हमारे घर पर बैठी मिली ,जो सब कुछ छोड़कर राघव  से शादी करने आई थी,पर दो बहनों की जिम्मेदारी के साथ राघव अकेला पड़ गया था और आर्थिक रूप से कमजोर भी, इसीलिए नेहा के मम्मी पापा अब इस शादी के खिलाफ थे और नेहा की शादी कही और करना चाहते थे,

पर नेहा तो राघव को ही अपने जीवनसाथी के रूप में चुन चुकी थी और अपने घरवालों के खिलाफ जाकर राघव से शादी कर ली। नेहा की उमर बेशक कम थी लेकिन बहुत ही समझदार थी और अपनी दोनो ननदों से भी बहुत प्यार करती थी। रिया और सुप्रिया को भाभी के रूप में मां और एक सहेली मिल गई जो उन दोनो का पढ़ाई लिखाई से लेकर उनकी सब जरूरतों का पूरा ध्यान रखती।



जिंदगी फिर से मुस्कुराने ही लगी थी की अचानक राघव को ऑफिस की लिफ्ट गिरने से कमर के नीचे वाले हिस्से में बहुत चोट आई और वो व्हीलचेयर पर आ गया हमेशा के लिए, ये वक्त की एक ओर बड़ी चोट थी, रिया सुप्रिया भी अब कॉलेज में आ गई थी,

जहा रिया खेलकूद में आगे थी वही सुप्रिया पढ़ाई में हमेशा नंबर वन पर रहती , पर बदलती परिस्थितियों के कारण खेल कूद, पढ़ाई लिखाई सब खत्म होता दिख रहा था।ऐसे में नेहा भाभी ने अपनी नौकरी के साथ घर की , राघव की पूरी जिम्मेदारी खुद निभाई

और अपनी दोनो ननदों को किसी चीज की कमी नही होने दी। मम्मी पापा के बार बार बुलाने और एक नई जिंदगी शुरू करने के लिए दुबारा शादी करने के लिए जोर देने पर भी नेहा भाभी ने अपने अपाहिज पति और बेटी समान छोटी ननदों के लिए अपने माता पिता और सुख सुविधाओं से भरे जीवन को भी त्याग दिया।

राघव ने भी घर से ऑफिस का काम शुरू कर दिया और रिया भी खेलो में अपना सपना पूरा करने में जुट गई , वही सुप्रिया भी आज अपने शहर की जानी मानी “वकील”है।

रिया आगे बताती है कि हम तीनो भाई बहन तो जीवन से बिल्कुल निराश ही हो जाते अगर नेहा भाभी ” रोशनी की किरण” बनकर हमारे जीवन में न आई होती,आज हम जो भी है, जहां भी है तो सिर्फ और सिर्फ नेहा भाभी की वजह से…आज के मतलबी युग में,

जब जरूरत के समय हमारे रिश्तेदारों ने हमसे मुंह मोड़ लिया था तब एक पराए घर की लड़की ने अपने घरवालों के खिलाफ जाकर न सिर्फ हमे संभाला बल्कि सर उठा कर जी सके, इस काबिल बनाया ।

सबसे बड़ी बात हमारे लिए “मातृत्व सुख” से भी दूर रही की कही हमारे सपने पूरा करने में कुछ कमी न रह जाए। आर्थिक सहयोग के लिए हम कुछ करना भी चाहते तो भाभी मना कर देती की तुम लोगों की पढ़ाई का नुकसान होगा  ऐसी देवी समान भाभी मां को शत शत नमन!

अब जब उन्होंने अपनी सारी जिम्मेवारियां पूरी कर ली है तो हमे एक बड़ी खुशी और देने जा रही है , जी हमारे घर में बुआ कहने वाला बहुत जल्दी आने वाला है।जीवन में मिले इतने कष्टों के बाद , भाभी के इतने त्याग के बाद, खुशियां आज फिर से हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही है।

#त्याग

स्वरचित, काल्पनिक रचना

कविता भड़ाना

 

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