लेखा – जोखा  – डा उर्मिला सिन्हा

      पूरी महिला मण्डली में कोहराम मचा हुआ था,”मेरा मायका बड़ा “!

   ” तो मेरा मायका उससे भी बड़ा “!

  “मेरे भ‌ईया ने राखी पर झुमके दिलवाए “।

“तो मेरे छोटे भाई ने कंगन”!,

कोई रंग-बिरंगी सिल्क, बनारसी,बंधेज,छापेदार साड़ियों का तह खोलकर प्रर्दशन कर रही थी ।

 तो कोई मन ही मन कुढ़ रही थी,”इतना कमाता है भ‌ईया पर जलकुकडी़ भाभी को मेरी इज्जत का ख्याल ही नहीं,;यही आर्टिफिशियल मोतियों का सेट भेजा है ।अब क्या दिखाऊं सबको “!

तात्पर्य यह कि सोसायटी की सारी महिलाओं को रक्षाबंधन के बाद बैठक कर राखी पर भाई की ओर से प्राप्त उपहार का प्रर्दशन करना होता था।

जिसका उपहार सबसे कीमती और भारी होता था उसका मान अन्य ललनाओं के बीच बढ़ जाता था। फिर उसका इतराना। और बाकियों की आहें भरना  देखने लायक !

 भले ही वे प्रत्यक्ष खास तवज्जो नहीं देतीं ,”अच्छा है “!

“बढ़िया है “।

“पर मेरे भाई का दिल इतना बड़ा है कि उसने हीरे की अंगूठी के साथ सोने का हार भी गिफ्ट किया है “कहने से नहीं चूकतीं।

“हमें भी दिखाओ “सहेलियां कब मानने वालीं थी।

“उसे तो मैं ने लाकर में रख दिया । इतना भारी सोने का हार

जमाना खराब है न “। और वह शतुरमुर्ग की तरह गर्दन ऊंची कर औरों को निहारती की मेरे बात का कितना असर हुआ !

शायद ही किसी को यकीन होता ।वे मन ही मन हंसती, पीठ पीछे कानाफूसी करतीं,”जरा हार दिखा देतीं तो कौन-सा आसमान टूट पड़त”।



   सार यह कि कोई किसी से कम नहीं होना चाह रहा था।

अगर स्त्रियों को गुमान है तो अपने मायके का____उसपर रक्षाबंधन पर मिले उपहार का । उससे उनका मान सम्मान जुड़ा रहता है। चाहे अपनी खुद की हैसियत कितनी भी अधिक क्यों न हो। परंतु मायका तो मायका ही है ।

   इसी बीच फुदकती लिलि आ पहुंचीं। वह सोसायटी में न‌ई आई थी।”क्या हो रहा है?”

“तुम्हें मालूम नहीं , रक्षाबंधन में मायके गई थी क्या मिला ?”

सब एकसाथ पूछ बैठी।

“क्या मिला मतलब..”लिलि ने अचरज से कहा।

“क्यों तुम्हारे भाई का जमा जमाया बिजनेस है। रक्षाबंधन पर क्या गिफ्ट दिया!”

“गिफ्ट कैसा गिफ्ट । मैंने भैया को राखी बांधी उसने मेरी पसंदीदा चाकलेट का डिब्बा पकड़ाया सिम्पल!”

“बस!”

.”हां!’

“सोने-चांदी का जेवर नहीं?”

“मतलब—मैं जेवर लेकर क्या करूंगी?”लिलि खी खी करती ,”मेरे भ‌ईया, मेरे चंदा, मेरे अनमोल रतन “गुनगुनाती आगे बढ़ गई।

लिलि के इस बिंदास अंदाज पर वे सारी औरतें मन ही मन लज्जित हुईं जो वर्ष भर भाईयों के लेन देन का लेखा-जोखा कर अपना कद सहेलियों के बीच छोटा या बड़ा मापती हैं।

 अरे रक्षाबंधन भाई-बहन के पवित्र,असीम प्यार , विश्वास का प्रतीक है ;न कि लेन देन का प्लेट फार्म।

 काश!वे भी लिलि की तरह साफ और सुलझी बिचार रखतीं ? निरर्थक ही रक्षाबंधन के त्यौहार को व्यापार बनाई हुई हैं।

 सबने दिल ही दिल में लंबी सांस ली,”हम भी न”!

भाई-बहन का अमर रहे प्यार,

प्रेम से मनाओ राखी का त्योहार।।

 आप सभी को रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं।

सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना–डा उर्मिला सिन्हा

 

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