गरिमा व अनुराधा बहुत गहरी दोस्त थी…गरिमा अपने घर में पापा-मम्मी व दोनों भाईयों की लाडली थी जो वो मुँह से निकालती वो हाज़िर हो जाता था
उससे उल्ट अनुराधा के पापा-मम्मी नहीं थे व भाई-बहन भी नहीं था तो चाचा-चाची के पास रहती थी व अपने दिल की हर बात वो गरिमा से ही करती थी….सच तो ये था दोनों एक-दूसरे से हर बात कर लेती थी..!!!!
एक दिन अनुराधा ने चार लाइन लिखकर गरिमा को वाटसऐप पर भेजी…
“खामोशियों का दामन थामें थे जो रिश्तें….
खामोशियाँ क्या टूटी रिश्तें टूट गयें…!!!! “
गरिमा ने जैसे ही पढ़ा उसी समय फोन लगाया और बोला कि बहुत अच्छा व गहरा लिखा है..तुम लिखा करो…!!
अरे ! क्या यार मैंने तो ऐसे ही लिख दिया…सच बताऊँ तो मैं अपना दर्द किसी को नहीं बताना चाहती और बताऊँ भी क्यूँ…तुम्हारे अलावा कोई नहीं समझता है मुझे… मैं इसलिए कोई बात भी हो तो सिर्फ तेरे सामने ही रोती हूँ और किसी को अपने आँसू भी नहीं दिखाना चाहती हूंँ…!!
अच्छा ! ठीक है तू लिख और मुझे बताया कर…समझी !!
हाँ ! समझ गयी…दोनों जोर से हँस दी…!!!!
समय बीतता गया अनुराधा बहुत अच्छा लिख रही थी अब वो छोटी-छोटी कहानियाँ भी लिखने लगी…गरिमा ने सब सहेज रही थी…एक दिन उसने अपने पापा को बताया तो पापा ने जब पढ़ा तो उनकी आँखों में भी पानी आ गया…उन्होनें गरिमा से वादा किया
कि वो पता करतें है कि किताब कहाँ व कैसे छपती है…जल्द ही पापा ने पब्लिकेशन वालों से बात कर और आज पहली बुक छपकर गरिमा के हाथ में आयी तो वो खुशी से पागल हो गयी..और फिर पापा से उसने वादा ले लिया कि बुक लाॅन्च भी रखेगें तो वो भी मान लिया…!!!!
फटाफट अपनी स्कूटी निकाली व बुक लेकर अनुराधा के घर की तरफ निकल ली…उसे लग रहा था वो उड़कर पहुँच जायें और अपनी प्यारी दोस्त के गले लग कर उसे अपना सपना जो वो उसके लिये देख रही थी वो बताये…पर भगवान को कुछ और ही मंजूर था…
गरिमा का जबरदस्त एक्सीडेंट हो गया…मौके पर ही उसका निधन हो गया…उसके घर में तो दुँखों का पहाड़ टूट गया…हर कोई बदहवास सा अपनी बेटी-बहन को पुकार रहा था खबर जब अनुराधा को मिली तो उसे ऐसा लगा कि जैसे उसका ही दिल किसा ने निकाल लिया हो…
वो गरिमा के घर पहुँची और उसने अंतिम दर्शन कियें और एक कोने में बैठ गयी…. आज भी वो नहीं रोयी….बाहरवें तक ये रोज का था वो जाती और एक कोनें में बैठे जाती सब उसको नफरत से देखतें कि उसकी वजह से उनकी गरिमा उन्हें छोड़ गयी…पर उसे तो कुछ पता भी नहीं था…. !!
पापा उसका दर्द समझ रहें थे आज वो उसके पास गयें और उसे गले लगाया तो वो फफक-फफक के रोने लगी…फिर उन्होनें उसे बुक के बारें में बताया कि कैसे वो बुक उनकी बेटी का सपना बन गयी थी…उन्होनें उसे लाॅन्च का भी बोला तो वहाँ हर इंसान हैरान था…
अनुराधा ने भी मना कर दिया आने से…पर पापा ने कहा मेरी बेटी का आखिरी सपना है…मैं जरूर पूरा करूँगा और बेटा तुम्हें आना ही होगा…परसों आऊँगा तुम्हें लेनें…!!!!
आज वो दिन आ गया था…अनुराधा ने जब बुक को हाथ में लिया तो उसकें हाथ काँप रहे थें…उसकों उसमें अपनी दोस्त का चेहरा दिख रहा था…उससे बोलनें को कहा गया….
बुक अपनें सीने से लगायें वो माईक के सामने आ गयी…मैंने तो अपना दर्द शब्दों में पिरोकर सिर्फ अपनी दोस्त को बताया था…पता ही नहीं चला कि उसने कब अपना सपना बना लिया…पर अब मैं अपना दर्द किसे बताऊँ… वो ही सुनती थी मुझे समझती थी..
.मम्मी-पापा के जाने के बाद आज मुझे लगा कि मैं कितनी अधूरी रह गयी….वो फफक-फफक कर रोनें लगी बोली…गरिमा !
मैं जो आँसू तुम्हें दिखाती थी आज मैं….तूने तो अपनी दोस्ती निभा दी मेरी पर मैं तेरे लिये कुछ ना कर सकी…मेरी तरफ से दोस्ती अधूरी रह गयी… अधूरी रह गयी….!!!!
#दोस्ती_यारी
गुरविंदर टूटेजा
उज्जैन (म.प्र.)