उपहार- मनवीन कौर

शांता बाई मेरे आने से पहले ही ऑफ़िस झाड़ पोंछ कर तैयार रखती थी ।सुगंधित ताजे फूलों का गुलदस्ता मेरा स्वागत करता नज़र आता। मेरे आते ही अभिवादन कर अलमारी से फ़ाइल निकाल  कर मेज़ पर रख देती थी ।कोई काम कहो ,”जी मेडम ,”कह कर  तुरंत काम में लग जाती ।

बड़ी प्यारी  बच्ची थी ।मैं  अपनी पुरानी साड़ियाँ, चादर ,पर्स और त्यौहारों पर उसे विशेष उपहार अक्सर  उसे देती रहती थी । वह बहुत खुश होती ।

शांता रंगोली बहुत सुंदर बनाती थी ।कोई भी कार्यक्रम हो ,कोई चित्र बनाने को कहो , वह हूँ-बहु उतर देती और इतने सजीव रंग भरती कि देखने वाले मंत्र मुग्ध हो जाते ।


मेरा जन्मदिन सभी बहुत धूम -धाम से मनाते थे ।ढेरों गुलदस्ते और उपहार ।शांता पूरे ऑफ़िस  को बड़े क़रीने से सजाती ।पार्टी के समय मुझे सभी कर्मचारियों का ध्यान रहता  था ।शांता को आवाज़ देकर मैंने  पूछा ,” तुमने कुछ खाया कि नहीं ।” वह संकुचित सी अंदर आई ,उसके हाथ में एक पुराना सा थैला था । बोली ,” मैडम जी हम आपके लिए कुछ लाए हैं ,आप स्वीकार करेंगी ।” मैंने हाथ  बढ़ाते  हुए कहा ,”क्या लाई हो ।” उससे थैले से एक ट्रैन्स्पेरेंट लिफ़ाफ़ा निकाला  ।एक गुलाबी सादी चादर उसमें  से चमक रही थी ।” मैंने आगे बढ़ कर वो उपहार लिया और  मुस्कुराते हुए कहा ,”थैंक यू, पर इसकी क्या ज़रूरत थी ।”

”आज आपका जन्मदिन है ना ।”वह बोली ।”आप खोल कर देखिए ना ।”

उसके आग्रह पर लिफ़ाफ़ा खोला तो दंग रह गई ।बहुत सुंदर ढेर से गुलाब के फूलों के बीच में मेरी तस्वीर बनी हुई थी ।नीचे लिखा था ,”आप जीयो हज़ारों साल , मैडम।”मेरे आंसु निकल गए ।कितनी मेहनत से बनाई थी उससे यह चादर । कैसे किया होगा रंगों का इंतज़ाम ।

“कैसा लगा हमारा छोटा सा उपहार मैडम” उसके मासूम सवाल ने मेरी तंद्रा तोड़ी और मैंने  उसे गले से लगा लिया । मुँह से निकला ,”सबसे श्रेष्ठ उपहार ।”

मनवीन कौर

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