‘ प्रगति इंटरनेशनल स्कूल’ का वार्षिकोत्सव मनाया जा रहा था।रंगारंग कार्यक्रमों की प्रस्तुति के बाद ‘बेस्ट स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर’ पुरस्कार के लिये पाँचवीं कक्षा विवेक के नाम की घोषणा हुई।विवेक को ट्राॅफ़ी दी गई.. सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा।फिर उद्घोषिका ने माइक पर ‘ बेस्ट टीचर ऑफ़ द ईयर अवार्ड गोज़ टू तान्या सान्याल’ कहा तो सभागार तालियों के साथ-साथ तान्या मिस-तान्या मिस के नारों से गूँजने लगा।
तान्या के लिये ये बहुत ही शुभ दिन था।वह ट्राॅफ़ी लेकर घर आई…अपना हैंडबैग सोफ़े पर रखा..गृहसेविका चंदा के हाथ से पानी का गिलास लेकर वह सीधे बेडरूम में चली गई।उसने मेज पर रखी अपने मम्मी-पापा की तस्वीर को देखा..फिर दीवार पर लगी अपनी मामी रंजना की तस्वीर के आगे खड़ी हो गई और ट्राॅफ़ी दिखाते हुए बोली,” थैंक यू मामी!..इस ट्राॅफ़ी की सही हकदार आप हैं।आपने ही मुझे तान्या से मिस…।” उसकी आँखों से आँसू छलक गये।
तान्या की मम्मी जेसिका और पापा मानव एक ही कंपनी में काम करते थें।दोनों ने अपने परिवार के विरुद्ध जाकर विवाह किया था।साल भर बाद तान्या का जन्म हुआ।दोनों ने उसे भरपूर प्यार दिया..।तान्या पाँच बरस की थी तब उसे तेज बुखार हुआ।जेसिका ने कहा,” मानव..मेरी अर्जेंट मीटिंग है…आज तुम छुट्टी लेकर तान्या के पास रुक जाओ।”
” मैं..मैं कैसे रुक सकता हूँ..मेरे प्रमोशन का टाइम है..तुम छुट्टी ले लो…।” मानव तीखे स्वर में बोला।
फिर तो तान्या को भी गुस्सा आ गया,” क्यों..मेरा काम ज़रूरी नहीं ।” दोनों में तेरे-मेरे की बहस होने लगी..बेड पर लेटी बीमार तान्या बस अपने माता-पिता को देखे जा रही थी।
जेसिका ने छुट्टी लेकर बेटी की देखभाल की लेकिन उसके बाद से तान्या उसे एक बाधा महसूस होने लगी।तान्या के लिये एक आया रख दी गई जो उसका होमवर्क भी कराती थी। बेटी को लेकर पति-पत्नी के बीच तनाव बढ़ते ही जा रहे थे जिसका तान्या के मन-मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ने लगा।हँसती-खिलखिलाती रहने वाली तान्या अब डरी-सहमी-सी रहने लगी थी।क्लास में भी वो न तो किसी से बात करती और न ही टीचर के किसी प्रश्न का कोई उत्तर देती।
परीक्षा में कम अंक आने पर प्रिंसिपल ने जेसिका और मानव को बुलाया।मानव तो बहाना कर गये…जेसिका गई तो क्लास टीचर ने कहा कि तान्या बहुत गुमसुम रहती है…पेंटिंग-खेल के समय भी वह सभी बच्चों से अलग रहती है।तान्या के पापा कभी पीटीएम अटेंड नहीं करते…आपके घर में कोई प्राब्लम हो तो…।
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” नहीं-नहीं…ऐसी कोई बात नहीं है…, थोड़ी व्यस्तता है।” कहकर वह घर चली और फिर सारा गुस्सा उस नन्हीं- सी जान पर उतार दिया।अपनी आया रोमा आंटी के सीने से लगकर वह बहुत रोई थी।
इसी तरह से समय बीतते गये।मानव और जेसिका अपने-अपने कैरियर के पीछे भाग रहे थे…रात में अक्सर ही दोनों देर से आते…और तान्या बस अपने अकेलेपन के साथ रहती।
जेसिका का बड़ा भाई प्रकाश उसी शहर में रहते थें।एक दिन जब वे बहन से मिलने आये, उस समय जेसिका किसी बात के लिये तान्या को डाँट रही थी तब प्रकाश ने अपनी बहन को समझाया कि बाहर का गुस्सा अपने बच्चे पर निकालना ठीक नहीं है…देखो तो..कितनी सहम गयी है बच्ची…।कहते हुए उन्होंने तान्या को अपने अंक में समेट लिया तो वह मासूम सुबक पड़ी।
तान्या छठी कक्षा में पढ़ रही थी।एक दिन स्कूल से आई तो उसने देखा कि उसके पापा कह रहें थें,” ये तलाक के पेपर हैं…साइन कर देना..फिर तुम आज़ाद और मैं भी…।” कहते हुए मानव ने कागज़ात टेबल पर पटके और दोनों हाथों में ट्राॅलीबैग लेकर बाहर निकल गये।तान्या को इतना ही समझ आया कि उसके पापा अब कभी नहीं आयेंगे।
कोर्ट ने तान्या की कस्टडी जेसिका को दे दी।मानव रविवार को आकर तान्या को बाहर घुमाने ले जाते और लंच के बाद वापस घर छोड़ जाते।वो पल तान्या बहुत खुश रहती लेकिन फिर उदास हो जाती।
दो साल बाद जेसिका ने अपने बाॅस के साथ कोर्ट-मैरिज़ कर ली और अपने में बिजी हो गई।तब तान्या आठवीं कक्षा में पढ़ रही थी।उसके पिता ने तो पहले ही दूसरा विवाह कर लिया था और अब मम्मी ने भी…मेरा कोई घर नहीं…कोई अपना नहीं….सोचकर वह तनावों से घिरती चली गई।उसने स्कूल जाना भी कम कर दिया था…किसी से बात नहीं करती..बस अकेले कमरे में बैठी शून्य में निहारा करती।उसे लगता जैसे उसका जीवन व्यर्थ है। उसकी ऐसी हालत देखकर रोमा ने उसके मामा को फ़ोन कर दिया तब प्रकाश और उनकी पत्नी रंजना आये और तान्या को अपने साथ ले गये।
निसंतान प्रकाश और रंजना ने तान्या को बहुत प्यार दिया…विशेषकर रंजना तो उसे कभी अकेला छोड़ती ही नहीं थी जिसका तान्या पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा।वह नियमित रूप से स्कूल जाने लगी लेकिन कभी-कभी माता-पिता का टूटा संबंध उसे बहुत बेचैन कर देता था…।दो महीने हो गये थे लेकिन जेसिका ने तान्या को वापस नहीं बुलाया तो फिर उसने भी जाने की ज़िद नहीं की।मामा-मामी के साथ वह खुश थी, फिर भी जब किसी सहेली को अपनी मम्मी के साथ देखती तो वह फिर से गुमसुम हो जाती और तब रंजना परेशान हो उठती थी।तब प्रकाश ने एक डाॅक्टर से कंसल्ट किया।
डाॅक्टर पूरी बात समझकर बोले,” माता-पिता आपस में झगड़ा करे अथवा उनमें अलगाव हो जाये तो बच्चों का तनावग्रस्त होना स्वाभाविक है।तान्या भी उसी दौर से गुजर रही है।आप लोग इसे थोड़ा वक्त दीजिये..घर का वातावरण खुशनुमा रखिये…धीरे-धीरे वह नार्मल हो जायेगी।
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दसवीं की परीक्षा दे लेने के बाद प्रकाश ने तान्या का दूसरे स्कूल में एडमिशन करा दिया।यहाँ भी वह सबसे कटी-कटी-सी ही रहती थी।एक दिन लंच टाइम में बारहवीं का छात्र विवेक उसके पास आया।अपना परिचय देकर पूछा,” इस तरह से अलग-अलग क्यों रहती हो…मैं कई दिनों से देख रहा हूँ…कोई फ्रेंड भी नहीं।” बिना उत्तर दिये तान्या वहाँ से चली गई।
करीब एक सप्ताह तक ऐसा ही चलता रहा।तब एक दिन तान्या ने कम शब्दों में विवेक को अपने बारे में बताया तो वह हँसने लगा, बोला,” तो क्या हुआ…मेरे मम्मी-पापा भी आपस में झगड़ा करते हैं।उनके पास सब कुछ हैं..बस उनके पास मेरे लिये वक्त नहीं है।” तान्या ने समझा कि वह मज़ाक कर रहा है।उसने विवेक को दोस्त बना लिया और उसके साथ हँसने- बोलने लगी।
तान्या में आये सकारात्मक परिवर्तन से रंजना बहुत खुश थी।एक दिन विवेक स्कूल नहीं आया…उसके मित्र ने बताया कि वह बीमार है।मामी को बताकर तान्या विवेक से मिलने उसके घर गई।उसकी बड़ी कोठी देखकर वह हैरान रह गई थी।वह विवेक के पास बैठी ही थी कि उसे सुनाई दिया,” बेटा तुम्हारा भी तो है..तुम क्यों नहीं बैठते उसके पास..।”
” मैं ने उसे बीमार होने को तो नहीं कहा था…इतने नौकर-चाकर है..किसी के साथ…।” तान्या ने अपने कानों पर हाथ रख लिये।उसने विवेक की तरफ़ देखा जैसे पूछ रही हो,” ये क्या…।” विवेक उसकी तरफ़ देखा जैसे कह रहा हो,” बरसों से मैं यही देख-सुन रहा हूँ।अब मुझे आदत हो गई है…मैं दिल पर नहीं लेता।”
उस दिन से तान्या अपने मानसिक अवसादों से बाहर आने का प्रयास करने लगी।स्कूल में भी सहेलियाँ बनाने लगी और अपने मामा-मामी से अपने मन की बात कहने लगी।
बारहवीं पास करके विवेक इंजीनियरिंग करने मुंबई चला गया।साल भर बाद तान्या ने भी काॅलेज़ में एडमिशन ले लिया।कभी-कभी दोनों फ़ोन पर बातें कर लेते…छुट्टियों में विवेक आता तो तान्या से ज़रूर मिलता।
बीए करने के बाद तान्या ने बीएड किया और एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगी।विवेक ने मुंबई से ही कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स की डिग्री ली और एक मल्टीनेशनल कंपनी में ज़ाॅब करने लगा।
एक दिन अचानक ही विवेक तान्या के घर आ गया और प्रकाश से बोला,” मामाजी…मैं तान्या से बहुत प्यार करता हूँ और उससे शादी करना चाहता हूँ।” फिर तान्या के सामने घुटने टेक कर उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोला,” will you marry me?” तब तान्या खिलखिला कर हँस पड़ी थी।
विवेक के कहने पर प्रकाश ने दोनों की कोर्ट-मैरिज़ करा दी..।मुंबई आकर तान्या ने स्कूल ज्वाइन कर लिया।वह अंश और वंशिका की माँ बन गई।समय निकाल कर दोनों प्रकाश-रंजना से मिलने अवश्य जाते थें।विवेक एक दिन के लिये अपने घर भी चला जाता।जेसिका और मानव ने तान्या से कभी संपर्क नहीं किया।
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रंजना अस्वस्थ रहने लगी थी तब तान्या ने अपनी मामी की बहुत सेवा की।अंत समय में उनका हाथ अपने हाथ में लेकर बोली,” थैंक यू मामी..।” फिर उनके सीने से लगकर फूट-फूटकर रोने लगी थी।अपनी मामी का स्नेह भरा स्पर्श पाकर ही तो वह तनाव भरे घेरे को तोड़ने में सफल हो पाई थी।उन्हीं की अंगुली पकड़कर ही तो वह यहाँ तक…।
” मम्मा…देखो ना वंशिका…।” अंश की आवाज़ सुनकर तान्या वर्तमान में लौटी।
” नो फ़ाइटिंग..।” कहते हुए उसने ट्राॅफ़ी मेज़ पर रखी और दोनों बच्चों को अपने अंक में समेट लिया।उसी समय विवेक आये और बोले, ” कल संडे है…मामाजी से आशीर्वाद लेने चलते हैं।”
” जी…बिल्कुल..।” तभी काॅलबेल बजी।दरवाज़े पर प्रकाश को देखकर ‘ नानाजी…’ कहकर बच्चे उनसे लिपट गये।विवेक और तान्या ने उनके चरण-स्पर्श किये।प्रकाश जी आँखें खुशी-से छलछला उठी…काश! आज रंजना होती…।
विभा गुप्ता
# तनाव स्वरचित ©
बच्चों का मन कोमल होता है। माता-पिता के आपसी कलह और रिश्ते में आई दरार से वे तनाव ग्रस्त हो जाते हैं।तान्या भी ऐसे माहोल की शिकार हो गई थी।उसकी मामी ने अपनी ममता से उसे एक नया जीवन दिया।