ठंड बहू को भी लगती है!! – मनीषा भरतीया

इस बार ठंड कड़ाके की पड़ रही थी…..सक्रांति भी चली गयी…माही चौथ भी चली गई…. पर ठंड जाने का नाम नहीं ले रही थी…. हर बार तो सक्रांति के पश्चात ठंड एकदम से कम हो जाती है लेकिन इस बार तो ठंड ने जैसे हालत खराब करके रखी थी…. पानी में हाथ देने भर से ही हाथ जैसे सुन्न पड़ जा रहे थे…. ऐसे में रागिनी का भी ठंड से बुरा हाल था…. सब की फरमाइश पूरी करते करते वो अपने आप को निढाल महसूस कर रही थी….

कभी सासू मां की आवाज आ रही थी . …बहू आज रात के खाने में गाजर का हलवा बना लेना…ठंडी में ही लाल गाजर आती है और खाने का मजा भी ठंडी में ही है… और ठंडी में खाना हजम भी हो जाता है…. ससुर जी बहू  खाने में गोभी के पराठे, टमाटर की खट्टी मीठी चटनी, और साथ में धनिया पत्ती की हरी चटनी जरूर बनाना…. ठंडी में ही तो यह सब खाने का मजा है….

अब बस पति देव की बारी थी …वह कैसे बाकी रहते ….रागिनी यार आज खाने में पाव भाजी बनाना…ठंडे में पावभाजी का मजा ही कुछ और आता है … क्योंकि इस समय सारी सब्जियां आती है….

किसी को रागिनी की कोई फिक्र नहीं थी ….बस सब कंबल में से  अपना अपना आर्डर दे रहे थे…. किसी ने एक बार भी नहीं सोचा कि जब हमें इतनी ठंड लग रही है तो बहू को भी तो ठंड लगती होगी…. वह भी इंसान है कम से कम आइटम बोले ताकि वह भी थोड़ा जल्दी काम निपटा कर गर्माहट लेले….या हो सके तो थोड़ी उसकी मदद कर दे….




ऐसा नहीं है कि रागिनी ने कभी काम से जी चुराया…. रागिनी की शादी 6 महीने पहले ही गुप्ता जी के यहां उनके बेटे अजय के साथ हुई है.. .. आते ही उसने अपने व्यवहार और अपने स्वभाव से सब का दिल जीत लिया….. और घर की बागडोर अच्छे से संभाल ली….. एक बहू, पत्नी , भाभी सबका फर्ज बखूबी निभाया…. कभी उफ तक नहीं की…. जितना भी काम हो घर पर पानी की तरह पीया…. उसकी दोनों ननदें अपने बच्चों के साथ इन 6 महीनों में अगर एक हफ्ते के लिए भी रहने आई…. तो किसी से कोई काम नही लिया…. खुद आगे बढ़ बढ़ कर सारा काम किया….बच्चों के लिए उनकी पंसद की हर आइटम बनाई….सासु माँ को भी कभी कोई काम नहीं करने दिया…. लेकिन आज जब वो तकलीफ में थी…. तब कम से कम थोड़ी मदद कर सकते थे…. और अगर मदद भी नहीं करनी थी…. तो कम से कम फरमाइश ही थोड़ी कम कर देते….

यही सब सोचकर उसकी आंखो से आंसू बहे जा रहे थे… जो भी हो मायका मायका ही होता है… मां की बराबरी कोई नहीं कर सकता… एक मां अपने बच्चों की दर्द की जरा सी आहट तक को भाप लेती है…. उसके बच्चों पर कोई भी मुसीबत आए… उससे पहले ही वो उसे अपने ऊपर ले लेती हैं….बच्चों की जरा सी तकलीफ़ से उसका मन पसीज जाता है…

दोस्तों आपको क्या लगता है…. इंसान तो सभी होते है… और तकलीफ भी सबको एक जैसी ही महसूस होती है…. तो एक इंसान को दुसरे इंसान का दर्द समझना चाहिए या नही… इस बारे में आपकी क्या राय है??? आपके सुझाव मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है… इसलिए कृपया खुले दिल से अपने सुझाव जरूर दें…. आलोचना और सराहना दोनों के लिए स्वागत है..

अगर आपको मेरे द्वारा लिखी हुई स्वरचित कहानी पसंद आई हो तो प्लीज इसे लाइक, कमेंट और शेयर जरूर कीजिये…. और हाँ मुझे फांलो करना ना भूले…. कहानी में अगर कोई त्रूटि हो गयी हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ….

धन्यवाद🙏

आपकी ब्लॉगर दोस्त

@ मनीषा भरतीया

 

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