तेरी मेरी प्रेम कहानी – डॉ. पारुल अग्रवाल

आज बहुत दिनों बाद श्रेया को घर और ऑफिस के काम से छुट्टी मिली थी,बच्चे भी बड़े हो गए थे वो भी सुबह स्कूल के लिए निकलकर फिर अपनी खेल और गायन की कक्षा करके शाम तक ही आने वाले थे।पति भी ऑफिस के कार्य से बाहर चार पांच दिन के लिए विदेश गए हुए थे। इतनी फुर्सत और समय उसे कम ही मिलता है। उसने पहले से ही सोच लिया था आज का पूरा दिन वो अपने अनुसार अपने हिसाब से गुजारेगी।आपाधापी की ज़िंदगी में आए वो इन सुकून के लम्हों को अपने अनुसार जीना चाहती थी। 

बस यही सब सोचकर, बच्चों के जाने के बाद अपने घर के पसंदीदा कोने में जहां उसने खूबसूरत पौधे लगाए हुए थे वहां मग भर कर चाय और पोहे के नाश्ते के साथ बैठ गई। वातावरण को खुशनुमा बनाते हुए पृष्ठभूमि में रोमांटिक हिंदी गाने भी चल रहे थे। वो अपने साथ इन पलों का आनंद ले ही रही थी कि तभी पीछे चल रहे गाने “तेरी मेरी प्रेम कहानी किताबों में,किताबों में भी ना मिलेगी” की पंक्तियों पर उसका ध्यान चला गया। ये गाना उसको अपनी ही ज़िंदगी की हकीकत बयां करता हुआ सा लगा। अब वो ख्यालों की दुनिया में विचरण करने लगी । 

उसे अपना कॉलेज का समय याद आया,जब वो उम्र के उस दौर में थी जिसमें दुनिया बहुत खूबसूरत लगती है।इस उम्र में किसी ऐसे दोस्त की तलाश होती है कि जो हमें समझ सके, हमारी तारीफ कर सके और हमको सबसे विशेष अनुभव करवा सके। श्रेया भी इससे अछूती ना थी वो भी अपनी सभी दोस्तों को जब ब्वॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड के विषय में बात करते हुए सुनती तब उसका भी मन करता कि काश कोई उसकी ज़िंदगी में भी खास होता।

 उन्हीं दिनों दिल तो पागल है फिल्म भी रुपहले पर्दे पर आई थी,उसका एक सीन जिसमें शाहरुख खान गलती से वेलेंटाइन डे के दिन माधुरी दीक्षित का फोन मिला देता है,पर माधुरी दीक्षित की आवाज़ सुनकर वो अब उसका दीवाना हो जाता है और उसको रोज़ फोन मिलाना शुरू कर देता है। इस सीन को देखने के बाद श्रेया को लगता कि काश कोई उसको भी फोन करे और बोले कि उसकी आवाज़ बहुत अच्छी है।उन दिनों घर में नया-नया लैंडलाइन फोन भी लगा था। जब भी फोन की घंटी बजती उसको लगता कि कोई उसके लिए तो फोन नहीं कर रहा, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, उसके सारे अरमान धरे के धरे रह गए। वैसे भी श्रेया की सोच जितनी रोमांटिक थी,असल में वो उतनी ही शर्मीली और संकोची स्वभाव की थी।खैर,ये सब तो उस उम्र की मासूम और अल्हड़ सी चाहतें थी जो समय और पढ़ाई के बोझ तले दबती चली गई। 

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श्रेया पढ़ाई में बहुत ही होशियार और महत्वाकांक्षी थी। स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई और व्यवसायिक अध्ययन करने में सात-आठ वर्ष का समय निकल गया।अब श्रेया की अच्छी नौकरी भी लग गई थी। वैसे भी हर माता-पिता का सपना होता है कि सही समय आने पर उनके बच्चों का घर बस जाए। यही सब सोचकर श्रेया की शादी भी बहुत ही सुंदर से नौजवान अनिकेत के साथ तय कर दी गई। अब लैंडलाइन के साथ-साथ मोबाइल का भी ज़माना आ चुका था। अगले दिन जब श्रेया ऑफिस से घर वापिस आ रही थी तो उसके मोबाइल पर अंजान नंबर से बार-बार कॉल आ रही थी,

उस समय ट्रू-कॉलर जैसी व्यवस्था भी नहीं होती थी जो बता सके कि किसका फोन है। उस समय तो किसी के पास मोबाइल होना ही बड़ी बात थी। जब दो-तीन बार घंटी बजी तब सब लोगों का ध्यान श्रेया की तरफ ही था। थोड़ी देर के बाद वही नंबर जब दोबारा बजा तब श्रेया ने फोन उठा लिया। उसके हेलो बोलते ही दूसरी तरफ से किसी ने कहा कि आपकी आवाज़ तो बड़ी सुंदर है श्रेया जी। श्रेया को समझ नहीं आ रहा था कि ये किसका नंबर है और उसको कैसे जानता है। उसकी परेशानी को भांपते हुए फोन के उधर से आवाज़ आई शायद आपने मेरे को पहचाना नहीं,

पर कोई बात नहीं अब तो पूरी ज़िंदगी ये जान-पहचान चलती ही रहेगी। मैं अनिकेत बोल रहा हूं,ये कहकर उसने राज़ पर से पर्दा उठाया। साथ-साथ ये भी कहा कि एक-दूसरे को जानने के लिए बातचीत तो करनी ही चाहिए इसलिए किसी तरह से आपका नंबर पता किया और आपको कॉल कर लिया।

अब श्रेया थोड़ा अचंभे में थी कि कैसे अनिकेत ने उसकी पसंदीदा लाइन के साथ बातचीत शुरू की। इस तरह अनिकेत ने पहली ही फोन कॉल से श्रेया के दिल में जगह बना ली।अभी श्रेया और अनिकेत की शादी में चार-पांच महीने का समय था।अब अनिकेत और श्रेया की फोन पर अक्सर बात होने लगी। बात होने पर श्रेया को भी बहुत अच्छा लगता था पर उस समय श्रेया की नई-नई नौकरी थी,उस समय मोबाइल पर इनकमिंग का भी पैसा लगता था। वो तो शुक्र था कि जब उन लोगों का रिश्ता तय हुआ उसके एक हफ्ते बाद ही इनकमिंग की दर पचास प्रतिशत कम कर दी गई थी।

इन सबके बावजूद भी श्रेया का बहुत पैसा इनकमिंग में चला जाता। अनिकेत को तो फिर भी फोन का पैसा कंपनी से मिलता था। उसकी नई लगी नौकरी के वेतन का एक बड़ा हिस्सा उन दोनों की मोबाइल पर बातचीत पर चला जाता था। अभी श्रेया इसका कुछ समाधान सोच ही रही थी कि उसकी इन बातों को भी अनिकेत ने पता नहीं कैसे भांप लिया और उस समय फोन कंपनी के द्वारा एक नंबर पर किसी दूसरे नंबर की इनकमिंग मुफ्त वाली सुविधा ले ली।अनिकेत की इन छोटी-छोटी बातों ने श्रेया का दिल जीत लिया था। अब उसको अपने माता- पिता की पसंद पर गर्व होने लगा था।

वे दोनों कई बार बाहर अकेले भी मिले पर अनिकेत ने शादी से पहले कभी भी अपनी मर्यादा लांघने की कोशिश नहीं की बल्कि जब भी मुलाकात हुई श्रेया को महंगे तोहफे ना देकर एक सुंदर से पेपर पर खुशबू से परिपूर्ण प्यार भरा पत्र और गुलाब का गुलदस्ता जरूर पकड़ाया। 

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रिश्ते तय होने से लेकर शादी वाले दिन के बीच का वो चार-पांच महीने का वो प्यार भरा सफर आज भी श्रेया के दिल को अपनी खुशबू से ताज़ा रखता है। आज भी वो पत्र और गुलाब की पंखुड़ियां श्रेया ने संभाल कर रखी हुई हैं। उन चार-पांच महीनों ने अनिकेत और श्रेया को इतना पास ला दिया था कि जैसे वो एक-दूजे के लिए ही बने हैं। वो दोनों एक-दूसरे को शादी से पहले इतना समझने लगे थे कि श्रेया के मन से फिल्मों की तरह प्रेम विवाह ना होने का मलाल पूरी तरह गायब हो गया था। आज इस गाने ने उसको फिर से यादों की गलियों का चक्कर लगवा दिया था। अभी वो कुछ देर और खोई रहती कि अनिकेत का नंबर उसके मोबाइल पर बजने लगा। उसके फोन उठाते ही अनिकेत ने चिर परिचित अंदाज में कहा लगता है,मैडम हमारे बारे में ही सोच रही थी दूसरी तरफ श्रेया ये सोचकर मुस्कराकर रह गई कि आज भी अनिकेत बिना कहे ही उसकी हर बात जान जाता है। अनिकेत से बात करने के बाद उसने समय देखा तो अभी बच्चों के वापिस आने में समय था। उसके मन में आज बस एक ही बात आ रही थी कि दुनियां में बहुत सारी प्रेम कहानियां हैं पर उसकी और अनिकेत की प्रेम कहानी उसकी सबसे बढ़िया है।

दोस्तों कैसी लगी मेरी हल्की फुल्की कहानी। कभी-कभी जिंदगी की छोटी-छोटी बातें ही उसे प्यार और खुशियों से परिपूर्ण कर देती हैं।अगर हमसफर समझने वाला है तो असल जिंदगी में भी यश चोपड़ा और राजश्री की फिल्मों वाली प्रेम कहानी जन्म ले सकती हैं।

#जन्मोत्सव

कहानी द्वितीय

डॉ. पारुल अग्रवाल,

नोएडा

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