स्त्री से अपेक्षा – शिव कुमारी शुक्ला

दीपा मात्र छब्बीस की उम्र में छः माह के बेटे को गोद में लिए, वैधव्य की चादर ओढ़,सूनी आंखें लिए पिता की चौखट पर पुनः खड़ी थी। शादी को अभी दो बर्ष भी नहीं हुए थे कि यश मात्र एक

माह के बच्चे को उसकी झोली में डाल स्वयं काल का ग्रास बन गया। ऑफिस से लौटते समय उसकी मोटरसाइकिल को ट्रक ने इतनी जोर दार टक्कर मारी कि मोटर साइकिल के परखच्चे उड़ गए और साथ ही यश ने बुरी तरह ज़ख़्मी हो प्राण त्याग दिए।

कहां तो बेटे के जन्म की खुशियां घर में मनाई जा रहीं थीं और कहां मातम छा गया। दीपा तो खबर सुनते ही बेसुध हो गई। उसे ना अपना ध्यान था ना बच्चे का।

बड़ी मुश्किल से परिस्थितियों पर काबू पाया कुछ परिवार ने अपने को नियंत्रित किया पर ये एक ऐसा घाव था जो शीघ्र ही भरने वाला नहीं था।दो महीने तो मातम मनाने में एवं क्रिया कर्म करने में, रिश्तेदारों के आने जाने में निकल गये।

अब दीपा की दुनियां उजड़ चुकी थी। परिवार के वंश को आगे बढ़ाने के लिए जिसने वंशज को जन्म देकर घर की लक्ष्मी होने का खिताब पाया था वही अब कुलच्छनी, कलंकनी,डायन,पता नहीं क्या क्या हो गई और यश की मौत के लिए उसे ही पूर्णरूपेण जिम्मेदार ठहराया जाने लगा।

सुबह शाम ,उठते बैठते उसके कलेजे को छलनी कर दिया जाता। परिवार के लोगों ने उसे इतना सताया कि वह घर छोड़ने को मजबूर हो गई। उसने सास-ससुर से बहुत विनती की मैं बच्चे को लेकर कहां जाऊंगी । ये आपका पोता है आपका वंश बढ़ाने वाला आप इसे कैसे अपने से दूर कर रहे हैं।

उनका दो टूक जबाब था कि जब हमारा बेटा ही नहीं रहा तो कैसा वंशज और कैसी बहू।अब हम तुझसे कोई रिश्ता नहीं रखना चाहते निकल जा घर से।

तब उसने पिता को बुलाया और उनके साथ आ गई।

माता-पिता उसकी हालत, उसकी उदासी,हर समय रोतीं आंखों को देख बहुत आहत होते।हर समय यही सोचते अब इसे कैसे खुश किया जाए। अभी उम्र ही क्या है। कैसे जिंदगी कटेगी।एक साल तो चुप रहे फिर धीरे-धीरे उसे दूसरी शादी करने के लिए समझाने लगे,पर वह अपने बेटे को छोड़ने को तैयार नहीं थी।

नहीं पापा भगवान ने इसके सिर से पिता का साया तो छीन लिया है अब मां को भी इससे दूर करके इसे अनाथ ना बनाएं।

अब उसके पिता ऐसे व्यक्ति की तलाश में थे जो उसे उसके बेटे के साथ अपना लें।

हमारे समाज में यदि पुरुष विधुर है और उसके एक नहीं दो बच्चे भी हैं तब भी उसकी शादी हो जाती है और उस लड़की से यह अपेक्षा रखी जाती है कि वह उनकी मां बनकर उनका लालन-पालन करें किन्तु यदि किसी विधवा स्त्री के संतान है तो उसकी शादी नहीं हो पाती। अक्सर देखा तो यहां तक गया कि  कई बार स्त्री पसंद आ जाती है किन्तु उससे अपेक्षा यह की  जाती है कि वह अपने बच्चे को उनके नाना-नानी के पास छोड़ दे साथ रखने की अनुमति नहीं मिलती कारण दूसरा पति बच्चे को पिता का प्यार नहीं दे सकता।कैसी विडम्बना है। कोई लाखों में एकाध पुरुष सुलझे विचारों का होता है जो बच्चे को स्वीकार कर लेता है अधिकांश तो नहीं। 

दीपा के पापा रामेश्वर जी भी हिम्मत नहीं हारकर उचित वर खोजने में लगे हुए थे।एक रिश्तेदार ने उन्हें एक रिश्ता सुझाया।एक व्यक्ति हैं जिसकी उम्र भी अधिक नहीं है और उसके भी एक डेढ़ -दो साल की बेटी है उसकी पत्नी बेटी को जन्म देते ही स्वर्गवासी हो गई। अभी तक तो दादी ने ही उसे सम्हाला किन्तु उम्र अधिक होने की वजह से अब वे उसे सम्हालाने में असमर्थ हैं सो बेटे का दूसरा ब्याह करना चाहती हैं ताकि दूसरी मां आकर उसे सम्हाल ले।

अंधा क्या चाहे दो आंखें। रामेश्वर जी दूसरे ही दिन वहां के लिए रवाना हो गए। वे जल्दी से जल्दी बेटी का घर बसाना चाहते थे ताकि उसके चेहरे पर फिर से मुस्कुराहट देख सकें।

वहां पहुंच जब बात की तो मुकेश ने बोला और तो सब ठीक है किन्तु मैं बेटे के साथ आपकी बेटी को नहीं अपना सकता। यदि आप बेटे की जिम्मेदारी ले लें तो मैं इस रिश्ते के लिए सहर्ष तैयार हूं। उसकी बात सुनकर रामेश्वर जी थोड़ा निराश हुए, किन्तु फिर सोचा बेटी का घर बस जाए तो बच्चे को हम सम्हाल लेंगे।

घर आकर जब उन्होंने पत्नी और बेटी को यह बात बताई तो दीपा ने स्पष्ट तौर पर मना कर दिया कि मैं अपने बेटे के बिना नहीं रह सकती।

फिर भी रामेश्वर जी ने मुकेश को बुलाया ताकि वो दोनों भी आपस में मिल सकें।

मुकेश -दीपा यदि तुम मेरी बेटी की जिम्मेदारी सम्हालने को तैयार हो तो मैं इस रिश्ते के लिए तैयार हूं किन्तु केवल तुम्हें ही अपनाऊंगा तुम्हारे बेटे को नहीं।

यह सुन दीपा स्तब्ध रह गई। फिर बोली क्यों मेरे बेटे के साथ मुझे अपनाने में क्या अड़चन है।

शायद मैं उसे अपना नहीं पाऊं।

वह केवल दो बर्ष का अबोध बालक है।लोग तो दूसरे के बच्चे को गोद ले लेते हैं फिर यह तो तुम्हारी पत्नी का बेटा होगा। जब मैं तुम्हारी बेटी की मां बनने को तैयार हूं तो तुम्हें मेरे बेटे का पिता बनने में आपत्ति क्यों।

तुम्हें बच्चे को नाना-नानी के पास छोड़ने में क्या परेशानी है। सोचता हूं कहकर वह चला गया।

कुछ दिनों बाद सोच समझकर रिश्ते के लिए हां कर दी। उनकी शादी हो गई।बेटे को अभी कुछ दिनों के लिए नानी के पास छोड़ दिया। घर जाते ही पहला वाक्य था मैंने तुमसे शादी अपनी बेटी के लिए की है सो सगी मां से बढ़कर उसे प्यार देना। उसकी सार सम्हाल में कोई कमी मैं बर्दाश्त नहीं करुंगा। उसके कहने के लहजे से दीपा का मन टूट गया।दिल में कुछ दरक गया अपनी बेटी का इतना ख्याल और मेरा बेटा वहां मेरे बिना कैसे रह रहा होगा यह नहीं सोचा। क्या बिगड़ जाता यदि मैं उसे साथ ले आती। मेरे से तो सगी मां बनने की अपेक्षा और स्वयं मेरे बेटे को अपनाने को तैयार नहीं।यह कहां फंस गई।

चार दिन हो गए थे वह रश्मि का पूरा ध्यान रखती।वह भी अब उसके पास आने लगी थी किन्तु बेटे के बिना उसका मन नहीं लग रहा था।वह मुकेश से बोली सुनो चार दिन हो गए मुझे बेटे की बहुत याद आ रही है पता नहीं कैसे रह रहा होगा चलकर उसे भी ले आते हैं। मैं दोनों बच्चों को सम्हाल लूंगी।

ऊपर से तो कुछ नहीं बोला और अनमने मन से जाने के लिए हां कर दी किन्तु मन ही मन उसे बेटे विहान को लाना अच्छा नहीं लग रहा था। खैर दीपा रश्मि को भी साथ ले गई और एक दिन वहां रुक कर विहान को लेकर वापस आ गए।

दीपा दोनों बच्चों का बराबर अच्छे से ध्यान रख रही थी। उसकी सास भी उसके व्यवहार से बहुत खुश थी किन्तु मुकेश की शकी निगाहें बराबर उस पर रहतीं कि कहीं अपने बेटे के चक्कर में वह रश्मि को नजरंदाज तो नहीं कर रही।वह विहान से कभी बात नहीं करता।आकर रश्मि को गोद में उठा कर प्यार करता। यह बात दीपा को बहुत चुभती। अरे मासूम बच्चे हैं, प्यार के भूखे हैं उनके साथ कैसा भेदभाव। बीच-बीच में वह दीपा को रश्मि की देखभाल अच्छे से करने के लिए कहता रहता। उसके लिए खिलौने लाता किन्तु विहान के लिए नहीं।जब रहा नहीं गया तो एक दिन दीपा ने मुकेश को कहा तुम विहान के साथ ऐसा बर्ताव क्यों करते हो।वह मासूम बच्चा है तुम्हें ही अपना पापा समझता है। उसने तो अपने पापा को देखा तक नहीं उससे यह कैसा सौतेला व्यवहार । मैं भी तो रश्मि को अपनी बेटी मानती हूं कितना उसका ख्याल रखती हूं।

हां तो,यह तो मैंने तुमसे शादी से पहले ही कह दिया था कि तुम्हें उसकी मां बनकर रहना होगा।

किन्तु तुम विहान के पिता क्यों नहीं बन सकते।

नहीं अपने से मेरी तुलना मत करो।मेरा अहम् उसे स्वीकारने नहीं देता। मैं किसी ओर की औलाद को अपना नहीं सकता।

तो क्या रश्मि मेरे लिए किसी ओर की औलाद नहीं है।

तुम औरत हो तुम्हें मानना पड़ेगा।

यह तो कोई बात नहीं हुई।

यही बात है, तुम्हें यदि इस घर में रहना है तो मेरी शर्तो पर ही चलना पड़ेगा।

दीपा  बात और आगे न बढ़ाते हुए सोचने पर मजबूर हो गई कि मुझे अब क्या करना है।

अभी इस बात को सप्ताह ही हुआ होगा कि वह विहान को दूध पिला रही थी कि तभी रश्मि सोते से उठी और रोने लगी।वह उठती कि तभी मुकेश ने घर में प्रवेश किया। रश्मि के रोने की आवाज और उसे विहान को दूध पिलाते देख वह आपे से बाहर हो गया।जो मन में आया उल्टा-सीधा दीपा को सुना दिया 

आज दीपा के सब्र का बांध टूट गया और एक दृढ़ निश्चय ने जन्म लिया कि अब मैं इस घर में नहीं रहूंगी। जहां मेरे बेटे को दुश्मन की तरह समझा जाता है। अभी तो छोटा है, ऐसे वातावरण में उसका विकास कैसे होगा। मैं उसकी मां हूं मैं उसके लिए नहीं सोचूंगी तो कौन सोचेगा।

दूसरे दिन मुकेश के ऑफिस जाते ही उसने अपने कपड़े समेटे और जाने की तैयारी कर ली।

उसकी सास ने पूछा दीपा कहीं जा रही हो।

हां अम्मा जी मैं अपने घर जा रही हुं इस घर को छोड़कर सदा सदा के लिए। जहां मान नहीं, सम्मान नहीं, विश्वास नहीं वहां अपमानित होकर रहने का कोई औचित्य नहीं। मैं तो रश्मि की मां बन गई किन्तु मुकेश विहान के पिता नहीं बन सके। मेरे जाने के बाद रश्मि दुःखी तो होगी किन्तु आप सम्हाल लेंगी।अभी बच्ची है थोड़े दिनों में भूल जाएगी।

बेटा थोड़े ठंडे दिमाग से सोचे ले जल्दबाजी में कोई फैसला मत ले।

नहीं अम्मा यह जल्द बाजी में लिया गया फैसला नहीं है।आप तो देख रहीं हैं इस घर में आकर मुझे ना तो पति सुख मिला ना मां जैसा सम्मान।हर समय शक की तलवार मेरे सिर पर लटकती रहती है।रोज अपने को साबित करना पड़ता है। और फिर मेरा बेटा उसका क्या दोष है यदि वह मुकेश में अपने पिता को ढूंढता है, उसे भी तिरस्कृत किया जाता है। नहीं अब ओर नहीं सहा जाता सो अब मेरा जाना ही बेहतर है। आपसे मुझे कोई शिकायत नहीं। आपने तो समय -समय पर मेरा साथ दिया, मुझे समझा पर जिसे समझना था वहीं नहीं समझ सका तो सब बेकार है। अच्छा अब चलती हूं हो सके तो आप मुझे माफ़ करना। अम्मा के गले मिल उनके पैर छू वह चल दी अपनी मंजिल की ओर।

घर पहुंचकर बोली पापा एक बार फिर आपकी बेटी बेरंग वापस आ गई आपके द्वार पर। इस बार आप मुझे कहीं जाने को नहीं कहेंगे। मैं अपने पैरों पर खड़ी हो अपने बच्चे की परवरिश करुंगी। इसके आगे अब और कुछ नहीं।अब कोई समझौता नहीं।

उधर जब शाम को मुकेश घर आया तो रश्मि को रोते देख जोर से आवाज लगाई दीपा क्या कर रही हो।

दीपा की जगह मां बोलीं दीपा हम सबको छोड़कर चली गई। उसी के लिए यह बच्ची रो रही है। कैसे तो छाती से लगा कर रखती थी किन्तु तुझे तसल्ली नहीं थी ले अब सम्हाल। रश्मि को उसकी गोद में दे अम्मा जी अपने कमरे में चली गईं।

शिव कुमारी शुक्ला 

जोधपुर राजस्थान 

21-9-25

स्व रचित एवं अप्रकाशित 

लेखिका बोनस प्रोग्राम 

षष्ठम काहनी

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