सिंदूर… – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

…दरवाजा अम्मा ने ही खोला था…

 धड़ाम से दरवाजा बंद होने की आवाज सुन… काजल ने सिया की तरफ घूर कर देखा…

” बोला था ना… दरवाजा खोल दो… रीता आ रही होगी…!”

‘ सॉरी मां… पर क्या हुआ…!”

” कुछ नहीं… तुम जाओ… स्कूल जाओ…!” 

 काजल ने टिफिन का ढक्कन बंद कर… उसके बैग में डाल दिया…

 रीता अपने काम में लग चुकी थी…

 और अम्मा अपने…

 पिछले 3 सालों से रीता उनके घर में काम कर रही थी…

 हर काम में एकदम परफेक्ट…

 कभी कोई गलती नहीं करती थी…

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 तीन साल पहले… जब पहली बार काम मांगने आई थी… कितनी प्यारी मासूम सी लड़की थी… सजने संवरने का शौक उसे शुरू से ही रहा था…

 सुबह-सुबह बढ़िया तैयार होकर आती थी… काम करने…

 दो साल पहले उसने शादी कर ली थी… रघु से…

 एक दिन काम से वापस जाते हुए… कुछ लड़के उसे परेशान कर रहे थे…रघु उनसे उलझ पड़ा… 

वहीं से रीता की रघु से बनने लगी…

 जल्द ही दोनों ने ब्याह कर लिया…

 पर रघु नाकारा था…

 रीता ने सोचा था… वह धीरे-धीरे कमाने लगेगा…

 लेकिन वह उसके ही कमाए पैसों पर पड़ा रहता…

 इसलिए आजकल अक्सर दोनों का झगड़ा ही रहता था…

 रीता गजब लड़की थी… 

जब भी पति से अनबन होती…

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 वह चूड़ियां उतार… सिंदूर धोकर… उखड़ी साड़ी डाल… चली आती…

 कोई श्रृंगार नहीं… कोई सिंदूर नहीं…

 अम्मा उसकी ऐसी रंगत देख भड़क जाती…

” यह क्या बात हुई… झगड़ा हो गया तो क्या सिंदूर पोंछ डालेगी…

 निकालो इस पागल लड़की को…!”

 पर पता नहीं… काजल को कितना मोह था… रीता पर…

 अम्मा के लाख डांटने पर भी… वह रीता को कभी नहीं निकाल पाती… काम से…

 अगर सुबह-सुबह उसका बिगड़ा चेहरा अम्मा के सामने आ जाता… तो पूरे दिन ही गुस्सा रहती…

इसलिए अक्सर काजल… कोशिश करती… की दरवाजा खुला ही रखे… या खुद ही खोले… 

 इस बार तो हद हो गई…

 पूरे चार दिनों से रीता… बिना मांग भरे… बिना चूड़ियों के… श्रृंगार के… काम पर आती रही…

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” क्या हुआ रीता… वैसे तो एक-दो दिन में तुम्हारा झगड़ा खत्म हो जाता है…

 इस बार क्या हुआ…!”

 रीता कुछ नहीं बोली… पर उसकी आंखे डबडबा गईं…

” क्या हुआ बोल ना…!” 

“दीदी… पहले तो मुझे लगता था… रघु आलसी है… नाकारा है…

 घर में पड़ा रहता है…

 पर दीदी मुझसे प्यार करता था…

 मगर इस बार नहीं…

 दीदी… वह घर में नहीं रहता…!”

” अरे… तो कहीं काम ढूंढने जाता होगा…!”

” नहीं दीदी… काम नहीं ढूंढता… वह कुछ चक्कर में है… मेरे पर भी हाथ उठाया… पहली बार…

 अब मैं नहीं रहूंगी उसके साथ…!”

” देख रीता… सब सोच समझकर फैसला लेना…!”

” इसलिए तो रुकी हूं दीदी… नहीं तो……!”

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 लेकिन हफ्ते भर बाद ही…

 रीता फिर से… पायल छनकाती… होठों पर लाली… मांग में सिंदूर… पूरे हाथों में भरकर चूड़ियां डाले… चमकती साड़ी में काम करने पहुंच गई…

 तो काजल को हंसी आ गई…

” यह क्या नौटंकी है… हो गई तुम्हारी लड़ाई खत्म…!”

” हां दीदी…!”

 और कुछ नहीं बोली रीता… बस मुस्कुरा कर काम में लग गई…

 उसके बाद कई दिनों तक रीता इसी तरह… सज संवर कर काम पर आती रही…

 फिर एक दिन वही नाटक…

 इस बार काजल को भी गुस्सा आया…

“यह क्या नाटक… थोड़े-थोड़े दिनों में लगा रखा है…!”

 वह गुस्से में ही रही… उसने रीता से कुछ नहीं कहा…

 वह भी गुमसुम… अपना काम कर चली गई…

 दो दिन उसी तरह आने के बाद… तीसरे दिन वह काम पर नहीं आई…

 ऐसा कभी नहीं होता था…

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 चाहे तो वह बता कर जाती थी… या फिर… अपने पीछे किसी और को भेजती थी…

 इस बार ऐसा कुछ भी नहीं हुआ…

 पूरे दिन काजल उसका पता लगाने की कोशिश करती रही…

 पर उसका फोन भी बंद था…

 वह अगले दिन भी नहीं आई…

 कोई उसके बारे में कुछ बता भी नहीं रहा था…

 अब काजल को उसकी चिंता हो रही थी…

 तीसरे दिन सुबह… बेल की आवाज आते ही…

 काजल खुद भाग कर दरवाजा खोलने आई… 

सामने रीता ही थी…

 पर एक अलग बदली हुई रीता…

 आज वह अपने पूरे श्रृंगार में थी… बगैर सिंदूर के…

 काजल के मुंह से अनायास निकल गया…

” क्या हुआ रीता…!”

” कुछ नहीं दीदी… मैंने खुद को आजाद कर लिया…

 इस घुटन भरी जिंदगी से…

 इस सिंदूर से…!”

स्वलिखित 

रश्मि झा मिश्रा

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