सुभाष चन्द्र के दो संतान थे । एक लड़की जो बड़ी थी बिंदु और उसका छोटा भाई रमेश चंद्र था । सुभाष चंद्र की शादी पहले ही एकबार हो चुकी थी परंतु उनकी पहली पत्नी बिंदु को जन्म देते ही गुजर गई थी । बिंदु की परवरिश करने के लिए उन्होंने फिर से मंजू से शादी की थी । मंजू ने शादी के एक साल बाद रमेश चंद्र को जन्म दिया था । सुभाष जी के बच्चे देर से होने के कारण उनके रिटायर होने के बाद भी दोनों पढ़ ही रहे थे । बिंदु ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और एक अच्छी कंपनी में नौकरी करने लगी थी ।
उसे अपने परिवार के हालात मालूम थे। इसलिए उसने सोच लिया था कि वह शादी तब तक नहीं करेगी जब तक भाई की पढ़ाई पूरी नहीं हो जाती है ।उसने यह भी सोच लिया था कि वह अपने माता-पिता की हिम्मत बनेगी । सुभाष कभी नहीं चाहते थे कि बिंदु घर के भार का वहन करे । वे उसकी शादी करा कर अपनी एक ज़िम्मेदारी को पूरा करना चाहते थे ।
मंजू और सुभाष जी दोनों को बिंदु के ब्याह की चिंता थी पर उन्हें मालूम था कि वह सुंदर सुशील पढी लिखी संस्कारी बच्ची है उसे जरूर एक अच्छा पति मिलेगा फिर भी दोनों ने रिश्तेदारों में सबको बता दिया था कि उनकी बेटी के लिए कोई अच्छा सा लड़का चाहिए ।
एक दिन बिंदु ऑफिस से घर पहुँची तो देखा कुछ नए लोग बैठक में बैठे हैं । बिंदु के आते ही सुभाष ने कहा कि बेटा यह मेरे ऑफिस में मेरे साथ मिलकर काम करते थे । उनका परिचय बिंदु से भी करवाया था ।
उनके साथ बातचीत के बाद बिंदु को पता चल गया था कि वे लोग किस काम से आए हैं । उसने उनके सामने कुछ नहीं कहा पर बाद में माता-पिता से कहा कि मैंने आपसे कई बार कहा था कि मुझे अभी शादी नहीं करनी है पर आप दोनों किसी न किसी से मेरी शादी के बारे में बात करते रहते हैं । प्लीज़ अब ऐसा मत कीजिए मुझे अच्छा नहीं लगता है ।
उसने उन दोनों को समझाया कि पापा आप रिटायर हो गए हैं और अभी भाई की पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई है तो मैं आपकी ज़िम्मेदारी को पूरा करना चाहती हूँ । अगर मैं लड़का होती तो आप ऐसा करते थे क्या? इसलिए अब आप दोनों मेरी फ़िक्र मत कीजिए जैसे ही भाई की पढ़ाई पूरी हो जाएगी मैं शादी के लिए तैयार हो जाऊँगी। यह सुनकर दोनों ने बिंदु की बात मानने का फ़ैसला किया ।
पाँच साल बाद रमेश का मास्टर्स हो गया था । उसे भी अच्छी नौकरी मिल गई थी । उसने अपने ही ऑफिस में काम करने वाली आरशी से शादी करने का फ़ैसला कर लिया था । जब सुभाष और मंजू को पता चला तो उन्होंने इसका विरोध किया कि पहले बिंदु की शादी करेंगे फिर तुम्हारी करेंगे । रमेश ने उनकी एक न सुनी और उसने आर्शी से शादी कर ली । यहाँ तक तो ठीक था परंतु उसने अपनी कंपनी की तरफ़ से भेजे जाने पर पत्नी को लेकर अमेरिका निकल गया था ।
बिंदु ने सोचा उसका शादी न करने का फ़ैसला बहुत ही सही निकला था। उसे अपने भाई पर ग़ुस्सा भी नहीं आया था। उसने माता-पिता की देखभाल करने का जो निर्णय लिया था वह बिना किसी अफ़सोस के प्यार से निभाने लगी।जब भी माता-पिता उसे देखते थे तो उन्हें अफ़सोस होता था कि हमारे लिए बेटी ने ब्याह नहीं किया है । वे दोनों अक्सर अकेले में बातें करते हुए सोचते थे कि यह दोनों हमारे ही बच्चे हैं हमने दोनों को एक तरह के ही संस्कार दिए थे फिर यह बेटा नालायक कैसे निकल गया है । अच्छा हुआ हमारी पहली बेटी हुई है बेटा होता था तो और मुश्किल हो जाती थी।
कहते हैं कि अच्छों के साथ ईश्वर अच्छा ही करता है। एक दिन शाम को मंजू चाय बनाकर लाई दोनों पति पत्नी चाय पी रहे थे कि डोर बेल बजी कौन होगा सोचते हुए मंजू ने दरवाज़ा खोलकर देखा तो एक बुजुर्ग व्यक्ति बाहर खड़े थे। पति के कोई दोस्त होंगे सोचते हुए उन्हें अंदर बुलाया तब तक पति भी आ गए थे ।
उस व्यक्ति ने कहा कि— आप दोनों मुझे नहीं पहचानते हैं। मैं पीछे के अपार्टमेंट में रहता हूँ । मैंने आप दोनों को कई बार देखा है । मेरा नाम गंगाधर है मैं इंश्योरेंस कंपनी में नौकरी करता था। अब दो साल पहले रिटायर हो गया हूँ ।
सुभाष ने उन्हें अंदर बिठाया मंजू उनके लिए चाय लाई चाय पीते हुए उन्होंने कहा कि देखिए सुभाष जी मेरा एक ही लड़का है जो आपकी बेटी के साथ उसी कंपनी में नौकरी करता है पर दोनों के ब्राँच अलग हैं । उसने आपकी बेटी को कई बार देखा है। आप दोनों को एतराज़ नहीं है तो मैं बेटे की तरफ़ से शादी का प्रस्ताव ले कर आया हूँ । हम उन्हें एक-दूसरे से मिलकर बात करने के लिए कहते हैं दोनों को पसंद है तो ही हम आगे बढ़ते हैं ।
सुभाष जी ने कहा कि— ठीक है मैं अपनी बेटी से भी बात कर लेता हूँ। वे अपने बेटे के बारे में बताना चाह रहे थे कि
गंगाधर ने कहा कि — सुभाष जी हमें आपके बारे में पूरी जानकारी है । आपके बेटे के बारे में भी सब पता है आपने तो दोनों को एक जैसे ही पाल पोसकर बड़ा किया था और अच्छे संस्कार दिए हैं । अब बेटी ने उसका पालन किया बेटे ने नहीं इसके लिए हम कुछ नहीं कर सकते हैं।आप दुखी क्यों होते हैं ।
बेटी की क्या राय है आप मुझे भी बता दीजिए। अब मैं चलता हूँ कहते हुए उन्हें अपना फ़ोन नंबर देते हैं ।
बेटी के ऑफिस से आने के बाद मंजू ने उसे चाय दी । चाय पीते हुए बिंदु ने देखा दोनों खुश नज़र आ रहे थे पूछने पर पूरी बात उन्होंने बताई ।
बिंदु ने कहा कि— ठीक है मैं इस वीकेंड में उस लड़के से मिल लेती हूँ । उन्हें यह अच्छा शगुन है ऐसा लग रहा था क्योंकि शादी की बात छेड़ते ही काटने के लिए तैयार बिंदु ने आज कुछ नहीं कहा था । गंगाधर जी से बात हुई और उन्हें बिंदु का फ़ोन नंबर भी उसकी इजाज़त से ही दे दी । मंजू ईश्वर से प्रार्थना करने लगी थी कि बेटी का घर बस जाए ।
बिंदु को अजय का कॉल आया था और दोनों एक कॉफी हॉउस में मिले । अजय सुंदर स्मार्ट था । बिंदु को तो उसने कई बार देखा था । बिना किसी फारमालटी के बिंदु ने बताया था कि शादी के बाद वह अपने माता-पिता को अपने पास रखना चाहती है ।
अजय ने कहा— मेरी माँ पाँच साल पहले गुजर गई थी। घर में पापा और मैं ही रहते हैं। हमारे कोई रिश्तेदार भी नहीं हैं क्योंकि मेरे माता-पिता ने घरवालों के खिलाफ जाकर शादी की थी । इसलिए हमें अच्छा लगेगा जब हम सब मिलकर रहेंगे । बिंदु को सिर्फ़ इसी बात की चिंता थी। अजय के जवाब से खुश हो कर उसने शादी के लिए हाँ कर दी । माता-पिता ने दोनों का कोर्ट मेरेज किया और छोटी सी पार्टी दे दी । शादी के बाद सुभाष ने अपना घर किराए पर दे दिया था और अजय के घर में शिफ़्ट हो गए थे क्योंकि इसी शर्त पर बिंदु शादी के लिए राजी हुई थी ।
दोस्तों आजकल माता-पिता की देखभाल जरूरी नहीं है कि लड़का ही करें । लड़कियाँ भी आगे आती हैं और अपनी ज़िम्मेदारियों को बख़ूबी निभाती हैं। दोनों परिवारों में दोस्ती रहे तो रिश्तों में मिठास आ ही जाती है।
#संस्कार
के कामेश्वरी