सांझ की बेला पंछी अकेला – सुषमा यादव

,, एक मूलमंत्र मैंने पा लिया है,

नज़रिया बदलो तो नज़ारे बदल जायेंगे,

चारों तरफ़ खुशनुमा माहौल नजर आयेंगे,,

जहां हमारे भीतर कहीं खो जाने का डर है,

वहां हम अपने साहस और उम्मीद को बनाये रखेंगे,,,

बड़ी बेटी रीना जब छः साल की थी,तब से उसके पापा राम उसे बोर्डिंग स्कूल में डालने की ज़िद करने लगे,, मैं किसी तरह मान नहीं रही थी कि इतनी छोटी सी बच्ची को इतनी दूर भेजा जाये,, दूसरी बेटी ऋतु अभी एक साल की थी,, इन्होंने गुस्साते हुए कहा,

,,मीनू, तुम जानती हो कि मेरा ट्रान्सफर जल्दी जल्दी होता है,, और पूरे संभाग को मुझे देखना होता है, तुम भी दिन भर स्कूल में रहती हो,इन बच्चों को कौन देखेगा, अकेले तुम कैसे करोगी, मैं इनका कैरियर बर्बाद नहीं कर सकता, तुम इसे खूब अच्छे से पढ़ाओ ताकि इसे वहां प्रवेश मिल जाए,, तुम भी तो इसी कारण अपने नाना जी के यहां पढ़ी हो,,,, मैं जानती थी ये बहुत हठी और गुस्सैल स्वभाव के हैं, जो ठान लेते हैं वो कर के रहते हैं, मैंने बेटी को समझाया,, तुम मना कर दो कि मैं वहां नहीं जाऊंगी,, तपाक से बोली,, नहीं मम्मी, मैं तो वहीं पढूंगी, वहां ना हीरो हीरोइन के बच्चे पढ़ते हैं, हमने टीवी में देखा है,, पापा ने मुझे सब बता दिया है,, मैंने सोचा, अच्छा तो बिटिया को मानसिक रूप से तैयार कर दिया है,,

खैर,,उसका एडमिशन एक प्रसिद्ध बोर्डिंग स्कूल में हो गया,,

जब छोटी बेटी ऋतु भी छः साल की हो गई तो उसको भी भेजने की तैयारी होने लगी,, मैंने स्पष्ट इंकार करते हुए कहा, हरगिज़ नहीं,, ये नहीं जायेगी,, एक मेरे पास रहेगी,, ये तो किसी तरह मान गए,पर ऋतु पैर पटकते हुए गुस्से से बोली,,, वाह मम्मी वाह,

दीदी को तो इतने बढ़िया स्कूल में पढ़ने भेजी हैं और मुझे मरियल स्कूल में पढ़ायेंगीं,, फिर रोने लगी, मैं भी दीदी के स्कूल नैनीताल में पढूंगी,, दरअसल उसके स्कूल का



नाम,, फ्रोमेंस मेमोरियल स्कूल, था,,जिसे वो मरियल स्कूल अपनी भाषा में कहती थी,,

आखिर बहुत समझाने पर भी नहीं मानी और वो भी चली गई,

मैं बस उनके बिछोह के गम  में आंसू बहाते हुए अपने अकेलेपन से समझौता करती रही,,

अचानक ये भी हम सब को छोड़ कर भगवान से मिलने चले गए,

अब दो बेटियों और दो बुजुर्गों पिता जी और श्वसुर जी की जिम्मेदारी मेरे कंधों पर,,

बड़ी बेटी की शादी किया वो विदेश में जाकर बस गई,

दोनों बुजुर्ग अपनी लंबी उम्र लेकर

एक के बाद एक अलविदा कह गए,,

अब छोटी बेटी ऋतु जो दिल्ली में डाक्टर थी ,उसका मन भी विदेश जाने को मचलने लगा,,

जब मुझे पता चला तो मेरे पांव के नीचे से जमीन खिसकने लगी,

हे भगवान, मुझे किसके सहारे छोड़ कर सब चले जा रहे हैं,, मैं इस उम्र में अकेले कैसे रहूंगी,, जबकि इन्हें मेरी असाध्य बीमारी के बारे में सब कुछ पता है,, बेबसी से मेरी आंखों में आसूं आ गये,, यहां तो अब मेरा कोई नहीं है,,पर मैंने कुछ नहीं कहा,

आखिर छोटी बेटी का ज्वाइनिंग लेटर आ गया,, मैंने अपने दिल को कड़ा कर लिया,,जब वो कहीं जाती तो मैं फूट फूटकर रोती, आने पर मुस्कुराती रहती,,

दरअसल दोनों बहनों का ये प्लान था कि हम सब एक साथ रहें, दोनो बहनों के बीच में मात्र तीन घंटे का फासला है, मम्मी वहां का सब बेच कर हमारे पास रहने आ जायेंगी,, कुछ दिन एक के पास और कुछ दिन दूसरे के पास,इस तरह मम्मी का भी समय कट जायेगा और हम यहां उनका इलाज भी बेहतरीन ढंग से करवा लेंगे,,

अभी तक तो मैं अपने पिता जी का बहाना कर रही थी कि इनको छोड़ कर मैं किसी हालत में नहीं आ सकती हूं,,पर अब तो वो भी चले गए,,अब दोनों बेटियां ज़िद करने लगीं , मम्मी आप तुरंत चले आईए,,

, मैंने कहा, नहीं बेटा, मैं अपना देश छोड़कर नहीं आऊंगी,, और अभी तो बिल्कुल नहीं, लेकिन आप वहां अकेले कैसे सब करेंगी,



बेटा,जब तक हाथ पैर चलेंगे, मैं अपने इसी घर में ही रहूंगी, और अब हम इस बारे में बात नहीं करेंगे,, हां, एक दो महीने के लिए कभी आ जाऊंगी,,

कहने को तो कह दिया पर दिल के अंदर हाहाकार मचा हुआ है,

,, कितनी अकेली कितनी तन्हां सी हो गई हूं, आंखें बार बार छलक पड़ती हैं,,, पर नहीं,दिल को कठोर करना होगा,, मैं अकेली कहां हूं, मेरे साथ तो इतने बड़े साहित्यकार खड़े हैं, वो सब मेरे एक बहुत बड़े परिवार हैं,,हम एक दूसरे से आमने सामने नहीं मिले हैं,पर लगता है जैसे हमारी बरसों से पहचान है,,हम एक दूसरे से दुःख सुख की बातें घंटों साझा करते हैं,, मुझे इस आभासी दुनिया से दो प्यारे प्यारे भाई भी मिल गये हैं, एक ने तो हमेशा के लिए मुझे बड़ी बहन मान लिया है, दीदी, दीदी कहते नहीं थकते हैं,,ना जाने कितने रिश्तों से मैं जुड़ गई हूं,, कहानियां लिखने पढ़ने से मुझे फुर्सत कहां मिलेगी,,मेरा प्यारा ग्रुप ही अब मेरे जीने का सहारा है, मेरी ज़िन्दगी के अकेलेपन का साथी है, हां जी हां, मैंने भी जीना सीख लिया और अपने गमों से, अपनी

जिंदगी से समझौता कर लिया है,

अब किसी के लिए ना तो रोऊंगी ना किसी से कोई शिक़ायत करूंगी,, मैं अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जिऊंगी,, अपने स्वार्थ के लिए मैं अपनी बेटी का भविष्य क्यों खराब करूं,, मेरे जीवन का तो कोई भरोसा नहीं है, एक साल,दो साल, तीन साल, पता नहीं,कब पंछी बन कर उड़ जाऊं,

,,,,,समझौता गमों से कर लिया है,

पतझड़ आते हैं तो बहार भी आती है,

मुस्कान से हमने नाता जोड़ लिया है,

जीने का सलीका पा लिया है,,

सांझ की बेला है,पर पंछी अकेला नहीं है,

साथ में आभासी दुनिया का परिवार है,

दोस्तों,, कभी भी निराश और उदास नहीं होना चाहिए,

हर परिस्थिति में जीने का एक नया तरीका ढूंढना चाहिए,

प्रकृति से जुड़ना चाहिए, पौधों से दोस्ती करना चाहिए,

पुरानी तस्वीरों से दिल बहलायें,

वक्त से नजदीकियां जोड़े, ख़ुद को सेहतमंद रखें,

तब  सांझ की बेला में पंछी अकेला नहीं,,

बल्कि सब हमारी खुशियों में शरीक होंगे,,,,,

 #समझौता

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ प्र

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!