विधि और सुमन का फ्लैट एक ही अपार्टमेंट में आमने-सामने था। विधि के पति बैंक में अधिकारी थे जबकि सुमन के पति एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत थे। दोनों परिवारों में बहुत गहरी मित्रता थी या यूं कहिए कि एक परिवार के जैसी घनिष्ठता थी। आए दिन दोनों परिवार एक ही जगह एकत्रित हो जाते थे, हँसना बोलना बातें करना…..समय कब चुटकियों में भी जाता था कुछ पता नहीं चलता था। यूं तो विधि का पति आशीष विधि से बहुत प्यार करता था पर सुमन और विवेक तो मानो एक दूसरे के दीवाने थे। बात बात पर विवेक सुमन के लिए शायरियां बोला करता था। विधि को उन दोनों का प्यार बहुत अच्छा लगता था और कभी-कभी एक मीठी सी जलन भी हो जाया करती थी क्योंकि रूमानियत के मामले में आशीष तो बिल्कुल बुद्धू राम था। वह प्यार तो बहुत करता था पर उसे व्यक्त करना नहीं आता था। मगर जो भी हो विधि को अपना बुद्धू राम बहुत प्यारा लगता था।
इस बीच सुमन के भाई की शादी थी। सुमन के मां बाप ने उसे शादी के कुछ दिनों पूर्व ही आने के लिए कहा ताकि तैयारियों में थोड़ी मदद हो सके। इसलिए सुमन मायके चली गई थी और विवेक को तो इतनी छुट्टी नहीं थी इसलिए वह शादी के 1 दिन पहले ही वहां पहुंचने वाला था।
उसकी अनुपस्थिति में विधि ही आशीष के साथ साथ विवेक को भी सुबह टिफिन बना कर दे देती थी और रात को विवेक वापस आने के बाद उन्हीं के साथ खाना खाता था।
एक दिन विधि दोपहर के खाने के बाद काम समेट रही थी, तभी अचानक उसे लगा कि सुमन के फ्लैट से कुछ आवाजें आ रही है। पहले तो उसे लगा यह उसका भ्रम होगा क्योंकि इस समय तो विवेक भी घर पर नहीं होता था। फिर भी पता नहीं क्यों उसे बार-बार ऐसा लग रहा था कि सुमन के फ्लैट से कुछ आवाज आ रही है। उसने इसे मन का वहम सोच कर टाल दिया ।शाम को आशीष आया तो उसने आशीष से भी अपने मन की बात कही तो आशीष ने भी उससे कहा,”अरे यह तुम्हारा भ्रम होगा ।दोपहर को विवेक घर पर कहां रहता है।”…… विधि को भी लगा शायद आशीष ठीक ही कह रहा है,यह सब वहम ही होगा मगर दूसरे दिन दोपहर को उसे फिर से लगा कि सुमन के फ्लैट से कुछ आवाजें आ रही है।
उसने दरवाजा खोलकर सुमन की फ्लैट की तरफ देखा तो देखा उसके फ्लैट का दरवाजा बंद था। लेकिन उसके फ्लैट से ही आवाज है आ रही थी यह तो पक्की बात थी। विधि ने सोच लिया कि ऐसे अंधेरे में तीर चलाने से कुछ नहीं होगा, मामले की तह तक जाना पड़ेगा। अगले दिन वह पहले से ही तैयार थी, दोपहर के खाने के बाद वह अपने दरवाजे के पास ही कुर्सी लगाकर बैठ गई अचानक सीढ़ियों पर कुछ आहट आई। उसने दरवाजे को हल्का सा खोलकर देखा तो सामने का दृश्य देखकर उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। दिमाग जैसे सुन्न हो गया।
अपनी पत्नी से बेहद प्यार करने वाला विवेक इस वक्त एक आधुनिक सी दिखने वाली लड़की से लिपटा हुआ सीढ़ियां चढ़ रहा था। एक बार विधि ने अपने मन में सोचा किया शायद कोई उसकी महिला मित्र होगी मगर हाव-भाव से तो दोनों में इतनी अंतरंगता लग रही थी जिससे यह साफ पता चल रहा था यह रिश्ता मित्रता से कुछ ज्यादा है। कुछ ही देर के बाद विवेक ने फ्लैट का दरवाजा खोला और दोनों अंदर चले गए। अंदर जाकर विवेक ने वापस दरवाजा बंद कर लिया।
विधि अपने फ्लैट से निकलकर आई और विवेक के दरवाजे से अपना कान लगा लिया और अंदर से जो आवाजें आ रही थी उसे सुनने का प्रयत्न करने लगी। उस लड़की की आवाज आई ,”ऐसे कब तक चलेगा विवेक! हम कब तक यूं ही छुप छुप कर मिलते रहेंगे? किसी को पता चल गया तो….” और विवेक की बेशर्म की आवाज आई, “अरे किसी को कुछ पता नहीं चलेगा मेरी जान! सब अपने अपने घर में इस वक्त आराम कर रहे हैं और मेरी प्यारी भोली भाली पत्नी तो इस वक्त मायके में चैन से बैठी होगी…”…. इसके बाद दोनों की सम्मिलित ठहाके की आवाज आई। विधि गुस्से से एड़ी से चोटी तक जल उठी। एक बार तो उसे ख्याल आया कि इसी वक्त सुमन को फोन करके विवेक की करतूतें बता दें और अगले ही क्षण सुमन का प्यारा सा भोला भाला चेहरा घूम गया। उसकी तो पूरी दुनिया ही उसकी गृहस्थी थी। यह सब सुनकर उसे कितना बड़ा धक्का लगेगा पता नहीं वह जिंदा भी रह पाएगी या नहीं …नहीं नहीं वह सुमन को कुछ नहीं बताएगी। निधि ने ठान लिया अब अपनी सखी के घरौंदे को वह खुद बचाएगी। सबसे पहले तो उसने आशीष को फोन मिलाया और उसे तुरंत घर आने को कहा।
फिर मैं अपना मोबाइल फोन हाथ में लिया और विवेक के घर की डोर बेल बजा दी। कुछ देर के बाद विवेक ने दरवाजा खोला तो सामने विधि को देखकर हतप्रभ रह गया विधि ने शांत स्वर में पूछा, ” आप इस वक्त यहां क्या कर रहे हैं विवेक भैया और यह लड़की कौन है?”….. विवेक ने हकलाते हुए जवाब दिया….”अ..अ.. भाभी यह निशा है। यह मेरे साथ ऑफिस में काम करती है।आज एक जरूरी फाइल घर पर रह गई थी इसलिए हम लोग लेने आ गए…” और फिर आंखें चुराने लगा।
विधि ने चुपके से अपने मोबाइल फोन का वीडियो ऑन कर लिया और उसने मोबाइल को हाथ में कुछ इस ढंग से पकड़ रखा था सारा दृश्य उसमें कैद हो रहा था। विधि ने एक ही शब्द पर जोर देते हुए कहा ,”झूठ बोलने का कोई फायदा नहीं है विवेक भैया! मैं आपका सारा सच जान चुकी हूं। आप दोनों अभी जो भी बातें कर रहे थे वह सब मैंने सुन ली हैं।”….. एक बार को तो विवेक कांप गया पर फिर उसने अपने आप को संभालते हुए बेशर्मी से कहा,”भाभी अगर मैं थोड़ी देर किसी से बात कर लेता हूं तो इसमें बुरा क्या है। और वैसे भी आपकी बात का विश्वास कौन करेगा।”
इस पर विधि ने कड़े किंतु दृढ़ स्वर में कहा, “विवेक भैया, मैं सुमन को सब कुछ बता दूंगी, फिर तो आप भी आगे जानते हैं कि क्या हो सकता है।”….. उन दोनों की बातें सुनकर निशा ने चुपके से अपना बैग उठाया और दरवाजे से बाहर हो ली। विवेक ने एक बार उसे रोकने का प्रयत्न करना चाहा मगर फिर छोड़ दिया। विवेक ने तुरंत दांव बदल लिया और कातर स्वर में दया का पात्र बनने की कोशिश करने लगा। उसने कहा ,”भाभी आप तो जानती हैं, सुमन तो सिर्फ अपने घर गृहस्ती में ही लगी रहती है, उस के पास तो इतना समय नहीं होता कि मुझसे बात करे। मुझे अगर कुछ देर बातें भी करनी हो तो मैं किससे करूंगा। इसी क्रम में मेरी निशा से दोस्ती हो गई।
मगर आप विश्वास कीजिए, यह सिर्फ दोस्ती ही है और कुछ नहीं।”… तब तक आशीष भी वहां पहुंच चुका था, उसने भी विवेक को लताड़ते हुए कहा,”शर्म आनी चाहिए विवेक तुम्हें! तुम एक अच्छे परिवार से संबंध रखते हो, अच्छे पद पर पदस्थापित हो और इस तरह का व्यवहार !!!लानत है तुम पर!…. तब विधि ने वीडियो दिखाते हुए विवेक से कहा, “विवेक भैया आपकी सारी करतूत अब मेरे पास है। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है या तो आप सुधर जाइए या फिर मैं सब कुछ सुमन को बता दूंगी।”
अब विवेक कुछ घबरा सा गया और बिल्कुल गिड़गिड़ाने लगा, “नहीं भाभी, आप सुमन को कुछ मत बताइए! मैं सचमुच उससे बहुत प्यार करता हूं और उसे खोकर मैं जिंदा नहीं रह पाऊंगा। मैं कुछ पलों के झूठे सुख के लिए मैं बहक गया था, मगर अब सुमन को खो देने के ख्याल से ही मेरा दिल बैठा जा रहा है। मुझे माफ कर दीजिए भाभी। आगे से फिर कभी ऐसी गलती नहीं होगी और प्लीज आप सुमन को कुछ मत बताइएगा वरना वह तो जीते जी मर जाएगी। बहुत भोली है मेरी सुमन और मैं उसे धोखा देता रहा पर जब उसे खो देने की बात आई तब मुझे यह अनुभव हो रहा है कि मैं उससे कितना प्यार करता हूं…..
आगे से कभी ऐसी गलती नहीं होगी भाभी” विधि ने कड़े स्वर में कहा, “इस बार तो भैया मैं आपको छोड़ रही हूं अगर अगर यह गलती आपने दोबारा दोहराई तो मैं सब कुछ सुमन को बताने के लिए विवश हो जाऊंगी क्योंकि मैं नहीं चाहती कि मेरी सखी झूठ के रेत से अपना घरौंदा तैयार करे। आज भी मैं आपको सिर्फ उसके कारण ही छोड़ रही हूं।” आशीष ने भी विवेेक से कहा, “तुझसे यह उम्मीद नहीं थी विवेक! पर अगर तुझे सही मायने में पश्चाताप हो रहा है, तो अभी भी सुधर जा वरना हम आगे की कार्यवाही के लिए विवश हो जाएंगे…” विवेक ने भरे गले से कहा इसकी नौबत नहीं आएगी मेरे दोस्त! मैं आज ही सुमन को फोन करके वापस बुला लूंगा! मैं टूट कर फिर से जुड़ा हूं मुझे इस वक्त उसके सहारे की बहुत जरूरत है, और अपने घरौंदे को बचाने की भी…”
विधि ने कहा, “देर आयद दुरुस्त आयद ” ……और आशीष के साथ अपने फ्लैट की तरफ मुड़ गई।
#धोखा
निभा राजीव “निर्वी”
सिंदरी, धनबाद, झारखंड
स्वरचित और मौलिक रचना