रिद्धि की विवाह के समय की बात है…
उसके स्वयं के विवाह में सगाई में इतनी खराब साड़ियां आई थी कि सब देख कर कहा उठे थे इससे अच्छी साड़ियां तो तुम्हारी ननदें पहन कर आई हैं,और होने वाली बहू के लिए इतनी देहाती जैसे कपड़े लाए हैं?
मगर रिद्धि की मां,… वो तो उदार हृदय के साथ सबको कहती रहीं… हम तो हीरे जैसा लड़का पाकर प्रसन्न हैं, बाकी चीजें हमारे लिए महत्वपूर्ण नहीं हैं।
सही बात भी है, किसी व्यक्ति से बढ़कर भौतिक वस्तुएं कहां महत्व रखती हैं?…. और रखनी भी नहीं चाहिए
वरना मामाजी की बिटिया की शादी में कैसा सुंदर चढ़ाव आया था! ग्यारह बनारसी साड़ियां… हर रंग की!, जेवर इतने सारे कि दो बड़ी बड़ी परात में भरकर मंडप के नीचे रखे गए!
कितने गले के सेट और कंगन,करधन,सब कुछ थे कि गिनती ही नहीं हो रही थी
देखने वालों की आंखें तो चौंधिया ही गई थी
रिश्ते की बहनें और सहेलियां तो बस एक दूसरे का मुंह ही देखती रह गई थी… मानों सबके मन में संशय सहित उथल-पुथल मची हुई थी
अब हमारा क्या होगा?
कैसा राजयोग लिखा कर आई है… सबके मन में यही था
मगर कुछ वर्षों में सब कुछ उथल-पुथल हो गया उसकी जिंदगी में…. तीन मासूम बच्चों के साथ अकेली रह गई जिंदगी की उलझनों के साथ
सबने कहा, बड़े बेटे के साथ बड़ा अन्याय किया था… उसका सारा अधिकार भी छोटे बेटे को सौंप दिया
निश्चित तौर पर बड़ी बहू का इस असमानता पूर्ण व्यवहार से जी खट्टा तो हुआ होगा
मगर शायद संस्कार वंश उसने कुछ नहीं कहा
लगता था छोटा बेटा राज करेगा…. मगर….
मां सौतेली थी पर पिता तो अपने थे
अधर्म और अन्याय के ढेर पर बैठा कर ना किसी को राजा बनाया जा सकता है ना किसी को रानी
जिंदगी यूं ही ढेर सारे झंझावातों के साथ अनगिनत सबक सिखाते हुए आगे बढ़ती है….
उसकी स्वयं की सासू मां को भी उसके सभी संतानों के प्रति अंतर करते देखा… मतलब दो आंखें रखना… एक के प्रति एक भावना रखना तो दूसरे के प्रति दूसरी
हर अवसर पर सदा आगे बढ़ कर सारी जिम्मेदारी निभाने वाली रिद्धि, …. सदा सबके दुराभाव का शिकार ही रही
वक्त के साथ रिद्धि दो बच्चों की मां बनी! बेटा और बेटी दोनों को एक समान लालन-पालन,एक समान शिक्षा दीक्षा।
वैसे भी वक्त बेटा बेटी दोनों को ही समान रूप से शिक्षित करके अपने पैरों पर खड़ा करने का है!
रिद्धि ने बहू और बेटी दोनों को ही एक समान जेवर कपड़े दिलाए
तीज त्यौहार पर भी!
बेटी को संस्कार दिया ,जिस प्रकार माता पिता ने तुम्हें भाई के ही समान शिक्षित करके अपने पैरों पर खड़ा किया है, उसी भांति जिम्मेदारियां भी दोनों की ही होगी!
इस प्रकार तुम्हें दोनों परिवारों के प्रति अपने कर्तव्य निभाने होंगे!
मम्मी जी… कहां हैं..
रिद्धि की बहू ने घबरा कर उन्हें आवाज दिया
क्यों क्या हुआ बेटा?
मेरी मम्मी जी की तबियत बिगड़ गई है…. उन्हें लेकर हास्पिटल निकलना होगा….
तुम दोनों तुरंत तैयारी करो… हम सब चलते हैं…. उन्हें इस समय हमारे सहयोग की आवश्यकता है
मगर मम्मी जी दीवाली का त्योहार कुछ दिनों में है
सबसे आवश्यक किसी की जान बचाना है …शेष बाद में… रिद्धि ने कहा
सबके अथाह सहयोग और उचित समय पर इलाज से उसकी समधन जी स्वस्थ होती जा रही हैं!!
रिद्धि की सासू मां तो उसे हमेशा कहती रहती थीं… शादी के बाद मायके वालों से बहुत मतलब नहीं रखते
उसके मायके वालों के प्रति कहे गए अपशब्दों ने सदा उसका जी खट्टा ही किया
सही भी बात है आज रिद्धि अपनी स्वयं मिले कटु अनुभवों से इतर अपने बहू बेटी दोनों के साथ ऐसा व्यवहार कर रही है कि उनका जीवन सुखमय हो!
सही बात भी है…. किसी के व्यवहार से जीवन में ह्दय को जो खुशी मिलती है. वो किसी भौतिक वस्तुओं में कहां
और यह संतोष सबसे बड़ी बात है कि अपने कटु अनुभवों को आपने अगली पीढ़ी को हस्तांतरित नहीं किया!
और यह भी समझा कि अपनी बात/ व्यवहार से किसी के मन को आहत करना भी अपराध ही है।
हमें अगली पीढ़ी को स्नेह हस्तांतरित करना है.. दुर्भावना, असमानता, हार्दिक पीड़ा नहीं ..
आपके विचार भी आपके लाइक कमेंट में पढ़ सकूंगी तो हार्दिक खुशी मिलेगी
# मुहावरा प्रतियोगिता, जी खट्टा होना
शीर्षक -सबक जिंदगी का!
पूर्णिमा सोनी