सुहासिनी झलकते हुए आंसुओ से अपने पिता को जाते हुए देखती रही, पर उन्हें पुकार कर, उनके गले लग कर, आंखों में आए हुए आंसुओ को दिखाकर, खुद को कमजोर नहीं दिखा सकती थी, इसीलिए बस उन्हें चुपचाप निहारती रही….
“जिस दिन दामाद जी तुम्हारी जिम्मेदारी लेने से इंकार कर दे, इस बाप के घर के दरवाजे मेरी बच्ची, तेरे लिए हमेशा खुले ही मिलेंगे” सुहासिनी के कानों में अब भी अपने पिता के ये शब्द गूंज रहे थे, जो उन्होंने उसके ससुर और पति के सामने अपनी बेटी सुहासनी से बोले थे…
बिन सास का ससुराल कैसा होता है ये बात अपनी सास के देहांत के बाद सुहासिनी को अच्छे से समझ आने लगा था… ससुर जी बेहद सख्त और अपने आप में मगन रहने वाले व्यक्ति थे, जिन्हे दुनिया से कोई मतलब ही नहीं था…
.. सुहासिनी जब बहु बनकर इस घर मैं आई तो बीमार सास के साथ दो छोटी ननंद और छोटे देवर की सारी जिम्मेदारी भी उसके ऊपर आ गई थी… बेहद संस्कारी परिवार की बेटी सुहासनी ने छोटी उम्र में ही अपनी सभी जिम्मेवारियों का अच्छे से पालन किया….
पति की दूसरे शहर में नौकरी थी, हफ्ते में दो दिन के लिए ही आते थे, पर सुहासिनी ने परिस्थिति वश कभी उनके साथ जाने की जिद नहीं की इसी बीच सासू मां का भी देहांत हो गया…
सुहासिनी अपनी ननद, देवर को बिलकुल अपने बच्चो की तरह प्यार करती, ससुरजी और उनके वक्त बेवक्त आने वाले मेहमानों को भी पूरा मान सम्मान देती…ऐसे ही समय गुजरता रहा.. नंदो और देवर की भी शादी हो गई और सुहासिनी भी दो प्यारे प्यारे बच्चों की मां बन चुकी थी….
सुहासिनी की देवरानी अमीर परिवार से और थोड़ी घमंडी किस्म की थी.. सुहासिनी जहा तन मन से सेवा और प्यार लुटाती वही उसकी देवरानी सबका मुंह पैसे देकर बंद कर देती और घर के कामों में भी तनिक रुचि नहीं लेती सारा भार सुहासिनी के ऊपर ही था..
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एक दिन फोन आया कि पिता की तबियत बहुत खराब है तो सुहासिनी ने अपने ससुर जी से आज्ञा ली और पिता से मिलने चली गई… शाम को घर आई तो देखा उसके पति भी आए हुए है,
ससुर जी, देवर देवरानी और सुहासिनी के पति सभी एक साथ बैठे थे, सुहासिनी ने जैसे ही ससुर जी के पैर छूने चाहे उसके पति ने लपक कर उसे पकड़ा और सबके सामने ही दो थप्पड़ मार दिए, आवक सी सुहासिनी अपमान और पीड़ा से कराह उठी की आखिर उसका कसूर क्या है…
“मेरे बीमार पिता को भूखा प्यासा छोड़कर अपने बाप को देखने चली गई, तुझे शर्म नही आई” सुहासिनी का पति बोला …. लेकिन में तो पिताजी की आज्ञा लेकर गई थी और खाना तो छोटी भी दे सकती थी… सुहासिनी रोते हुए बोली.. अरे भाभी इसे तो कल से इतने चक्कर आ रहे है की बिचारी बिस्तर से उठ भी नही पा रही तभी बीच में बेटे समान देवर ने अपनी बीवी की तरफ से सफाई दी…
“तो बाजार से मंगवा लिया होता खाना, मेरा जाना भी तो जरूरी था”… सुहासिनी सुबकते हुए बोली तो उसके पति ने पास रखा डंडा उठा कर फिर से सुहासिनी को मारना चाहा पर इस बार सुहासिनी ने दहाड़ कर कहा…
खबरदार जो हाथ उठाया तो मुझ से बुरा कोई नही होगा… चुल्लू भर पानी में डूब मरो तुम सारे…. जिंदगी निकाल दी सब की सेवा करते हुए और अब क्या करती ही रहूंगी जिंदगी भर… सिर्फ मेरे बाप के दिए संस्कारों ने रोक रखा है वरना एक एक को मुंह तोड़ जवाब दे सकती हूं…
सबके कामों का ना तो ठेका ले रखा है और ना ही किसी के बाप की नौकर हूं… अब तक तो फर्ज समझ कर करती थी, पर अब वही करूंगी को मेरा मन करेगा… है हिम्मत तो रोक के दिखाओ,
और तुम अपने पति की आंखों में आंखें डाल कर सुहासिनी बोली
“अबकी बार हाथ उठा कर दिखाओ”.. चंडिका का सा रूप देख चारों की घिग्घी बंध गई… पुरुष हो तो अपनी मर्यादा में रहना… बड़ा मान था मुझे की मेरी जिंदगी में मेरे पिता और भाई के अलावा ससुरजी, देवर और पति जैसे पुरुषो का साथ और सुरक्षा है, पर आज आप तीनों ने मुझे गलत साबित कर दिया, जो पुरुष घर की महिला को सम्मान और इज्ज़त नहीं दे सकते फिर उनके होने ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता…
सुहासिनी के पिता को बुलाया गया और जब सारी बात उनके सामने आई तो गुस्से से कांप उठे और बेहद कड़े शब्दों से समधी और जमाई को समझा दिया की सुहासिनी पर दुबारा हाथ उठाया तो नतीजा भुगतने को तैयार रहना..
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पिता का साथ मिलने से सुहासिनी में नवजीवन का संचार हो गया और वह और भी मजबूती से खुद को तैयार कर चुकी थी…. “किसी ने सही कहा है अपने हक की लड़ाई हमें खुद ही लड़नी होती है”…
पूरी बात जाने बिना अपनी देवी सी बीवी पर हाथ उठाने से बेहद शर्मिंदा सुहासिनी के पति ने अपने किए की माफी मांगी तो सुहासिनी बोली….
” जब तुमने हाथ उठाया तो ऐसा लगा जैसे किसी ने मुझे अंदर से हिला दिया, मेरी आत्मा को मार दिया हो और मेरे आत्मसम्मान को छलनी कर दिया हो, उठने को तो मेरा हाथ भी उठ सकता है, पर क्या करूं औरत हूं ना और पति को परमेश्वर जो मानती हूं”… आज की मार और कड़वी बातों से मेरी आत्मा छलनी हुई है, जिसकी मेरे पास कोई माफी नहीं है… और सुहासिनी ने अपने कमरे के साथ, दिल का दरवाजा भी हमेशा के लिए बंद कर दिया….
स्वरचित, मौलिक रचना
#पुरुष
कविता भड़ाना