रमण जी का आज रिटायर मेंट हो गया ।सवेरे सवेरे ।जी हां, उपर वाला रिटायर मेंट ।ईश्वर ने उन्हें अपने पास बुला लिया ।घर दोस्तों और परिवार से भरा हुआ है ।पत्नि शोभा बदहवास बैठी रो रही है ।आँसू थमते ही नहीं है ।दो बेटे गुड़ गांव में नौकरी करते हैं ।
फ्लाइट से आ रहे हैं ।कैसे न आते।आखिर पिता थे।ले जाने की तैयारी चल रही है ।शोभा अतीत में खो गयी है ।साथ बिताये हुए क्षण ।इतने वर्षों का साथ था।रमण जी के साथ शादी हुई थी तो शोभा कुल अठारह वर्ष की ही थी।पिता साधारण नौकरी में थे तो दान दहेज बहुत नहीं दे पाये ।लेकिन कन्या के संस्कार मे कोई कमी नहीं थी।शोभा ने आते ही पूरे घर को संभाल लिया था ।
सास ससुर, दो ननद एक देवर।सबके लिए समय पर नाशता खाना तैयार करती ।सासूमा की पूजा की तैयारी कर देती।ससुर जी के लिए डाक्टर और दवाई का इन्तजाम भी अपने उपर ले लेती ।रमण जी भी एक कम्पनी में अच्छी नौकरी पर थे।किसी बात की चिंता परेशानी नहीं थी जीवन में ।सबकुछ सुचारु रूप से चल रहा था ।
समय पर दोनों ननद की शादी भी सहयोग दे कर निबटाया ।फिर पढ़ाई पूरी करके देवर भी सेटल हो गया ।उसने अपने ही साथ काम करने वाली सहकर्मी से शादी की अनुमति मांगी तो पहले तो माता पिता नाराज हो गये “न जाने किस जाति की है? कैसी है?
इत्यादी सवाल होने लगी तो शोभा ने सास ससुर को समझाया ” जाने दीजिए न अम्मा जी, रजत को पसंद है तो हम क्यों राह में रोड़ा बनें? जिंदगी तो उन दोनों को ही साथ बिताना है ।”फिर अम्मा जी और बाबू जी मान गये।शादी खूब धूम धाम से हो गई ।कन्या अलग जाती की थी।लेकिन पैसे वाले घर की थी ।खूब खर्च किया उनहोंने ।
दान दहेज भी भरपूर दिया ।सुन्दरता मे भी कोई कमी नहीं थी।सबकुछ भरपूर मिला था लेकिन साथ में पैसे का घमंड बहुत था।एकाध महीना तो ठीक ठाक चला ।फिर देवरानी रीना बात बात में सबको नीचा दिखाने लगी थी ।हालांकि अम्मा जी का झुकाव छोटी बहु पर तनिक अधिक रहा ।अब चाहे जो भी रहा हो पर पैसे में ताकत तो बहुत होती है ना ।
सो सबको दबा कर रखना चाहती वह।फिर भी शोभा बर्दाश्त कर लेती।लेकिन पति और सास ससुर का अपमान सहन नहीं होता ।शोभा भी सबकुछ निबटाते दो बेटे की माँ भी बन गई थी ।जुड़वां बेटा था।संभालना थोड़ा मुश्किल होता ।परिवार एकसाथ था तो जिम्मेदारी भी बहुत थी।रीना तो आफिस से आती और अपने काम में घुस जाती।रजत भी पत्नी के आगे पीछे करता रहता ।
अम्मा जी समझाती रीना को ” देखो छोटी, दिन भर घर का काम और दो बच्चे को संभालने की जिम्मेदारी शोभा करती है तो तुम भी तो थोड़ा मदद किया करो।” रीना कुछ कहती तभी रजत बोल पड़ता “आफिस से थक कर चूर हो गई है बेचारी थोड़ा रेस्ट उसे भी तो चाहिए अम्मा ।फिर घर में इतना खर्चा भी तो उठाती है वह।
भाभी तो दिन भर घर में आराम कर लेती है ।अब रीना की बराबरी मत करो “अम्मा जी चुप हो जाती ।रमण तो सीधे सादे गौ थे।घर के मामले में दखल नहीं देते ।शोभा की परेशानी समझते थे लेकिन घर में अलगाव न हो इसका खयाल रखते ।कहते “परिवार जैसा चाहे वैसा ही रहो ” फिर काम के अधिक बोझ से शोभा की तबियत खराब रहने लगी ।
समय पर रसोई नहीं बन पाता ।दो बच्चों को लेकर अलग परेशानी थी।ससुर जी भी बीमार रहने लगे।सासूमा की उम्र अधिक होने से वह भी कुछ नहीं कर पाती ।एक दिन शोभा को बहुत तेज बुखार हो आया ।रीना आफिस से आयी तो चूल्हा ठंढा पड़ा था ।ससुर जी को चाय की तलब होने लगी पुकारा “छोटी बहु, चाय बना दो बेटा कब से कह रहा हूँ पर तुमहारी अम्मा जी सुनती ही नहीं “।
“ओह!अभी तो थक कर घर आई हूँ और इनको तुरंत चाय चाहिए, नाश्ता चाहिए? मुझसे नहीं हो पायेगा यह सबकी खातिरदारी ।आप खुद ही बना लेते? ” शोभा किसी तरह रसोई में गयी ।गैस जलाकर चाय का बर्तन रखा ही था कि रीना के कमरे से चिल्लाने की आवाज सुनाई दी “मै अब इन लोगों के साथ नहीं रहना चाहती ।
बाहर भी खटकर पैसे लाओ और घर में भी खटती रहो”रजत तुम आज ही अलग रहने का इन्तजाम करो।कोई दूसरा घर देखो।हमें भी तो स्पेश चाहिए ।आफिस की माथापचची, घर की चिल्ल-पों ।कितना बर्दाश्त करूँ मैं? अलग घर होगा तो कभी बाहर खा लिया ; कभी बाहर से मंगा लिए ।कोई झंझट नहीं “।
रजत को पत्नि की बात ही ठीक लगी और दूसरे दिन वे दोनों अलग चले गये रहने के लिए ।बेटा अलग हो गया ।माता पिता दुखी हो गये ।छःमहीने के बाद पिता एक रात सोने गये तो पत्नि से कहा “मेरा सीना भारी लग रहा है ।
सांस लेने में दिक्कत हो रही है ।””सो जाईये चुप चाप, दिन भर पड़े रहते हैं ।पेट में गैस हो गया होगा ।फिर शोभा के ससुर जी सोये तो उठे ही नहीं ।सुबह चाय लेकर शोभा आई “बाबू जी उठिए,चाय पी लीजिये “।कोई हरकत न देख कर घर में रोना धोना मच गया ।उस दिन बाबूजी चले गए ।अब पति के न रहने पर सासू माँ भी अकेला पन महसूस कर रही थी ।चुप या मौन रहने लगी ।बच्चे को भी नहीं ले पाती।बहुत कमजोर हो गई ।
छःमहीने के बाद वह भी दुनिया से चली गई ।घर सूना लगने लगा ।दो बच्चे, रमण और शोभा ।बस इतना ही परिवार ।दोनों बहन की शादी इसी शहर में थी तो बीच बीच मे मिलने आ जाती ।वैसे अपने घर परिवार में सुखी थी दोनों ।देखते देखते समय बीत रहा था ।बच्चे बड़े होते गये ।स्कूल से कालेज में गये।और फिर एम बी ए करके बड़ा बेटा अच्छी कम्पनी में लग गया ।
छोटा भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए बाहर गया ।और वहीं से फिर एक कम्पनी में अच्छी नौकरी मिल गई ।संयोग से दोनों भाई गुड़ गांव में ही रहा।अब रमण जी की की रिटायरमेनट का समय हो रहा था ।लेकिन अभी पाँच साल बाकी था ।एक दिन शोभा को पास बुला कर कहा “शोभा मै सोच रहा हूँ कि अब सवैचिछक सेवा निवृत्ति ले लूँ “परिवार के चलाने मे, बच्चों की शिक्षा में, माता पिता के चले जाने पर उनका क्रिया कर्म मे, बहनों के घर तीज त्योहार पर, छठी मुंडन में कुछ कर्ज हो गया है ।
तो इससे मिले पैसे से सब चुका देंगे और फिर आराम की जिंदगी जी लेंगे “तुम साथ दोगी ना? ” शोभा पहले भी कहाँ कुछ बोलती थी।आज भी मौन स्वीकृति दे दी ।फिर एक दिन बेटे ने कहा कहा “पापा हमने अपनी पसंद की लड़की से कोर्ट मेरिज कर लिया है “शोभा फूट पड़ी-यह क्या बात हुई? हम मर गये थे?
माता पिता की स्वीकृति की जरूरत ही नहीं? हम मना कर देते? “कितना अरमान संजो कर रखा था ।अपनी पसंद की सुन्दर कन्या से बेटे की शादी करेंगे ।”और शोभा, मैं भी तो बहुत नाचता गाता बेटे के लिए ” समधि बनता ।कितना अरमान था नालायक से सब खत्म कर दिया ।”छोड़िए जी, जो होना था वह तो हो गया ।अभी एक छुटका है ना?
उसी में सारे अरमान पूरे कर लेंगे ” ।दिन चर्या चलने लगी ।यथावत् ।छःमहीने के बाद छुटके ने भी बम फोड़ दिया ।” मम्मी, मै भी भाभी की बहन से शादी कर रहा हूँ अगले पांच तारीख को ।तुम और पापा आ जाना ।”नहीं जायेगा कोई? जब अपने मन का सबकुछ करना है तो माँ बाप की क्या जरूरत? इसबार रमण जी दहाड़े।सोचा था
अच्छे शहर में एक छोटा सा आशियाना खरीद लेंगे ।रिटायरमेनट के पैसे मिलते ही सारे कर्ज से छुट्टी मिल जायेगी ।फिर से नया जीवन शुरू करेंगे ।पांच साल अभी बाकी है नौकरी के ।पूरा पाँच साल का पैसा कम्पनी जोड़ कर दे देगी ।अपनी गृहस्थी की गाड़ी मजे से चलेगी ।कुछ पैसे बैंक में रख देंगे ।हम दोनों का गुजारा अच्छा से होता रहेगा ।
सब मिटटी में मिला दिया बच्चों ने ।बोलते, सोचते रात हो गई ।शोभा को कुछ करने का मन नहीं था।फिर भी पेट का सवाल था।खुद तो पानी पीकर सो रहेगी ।पर पति को कैसे भूखा रखेगी ।वह उठी।सब्जी बनाने का मन नहीं था।चार परांठे बना लिए ।दही के साथ खा लेंगे ।”चलिए जी खाना बन गया “रमण जी सोफे पर बैठे थे ।
हाथ से हिलाया तो वे गिर पड़े ।रमण जी की साँस नहीं चल रही थी ।शोभा पछाड़ खा कर गिर पड़ी ।रोने की आवाज से पड़ोसी दौड़ कर आये ।पड़ोस मे डाक्टर साहब थे।बहुत अच्छी दोस्ती थी उनसे ।नब्ज देखा ।कहा “सबकुछ खत्म हो गया है ” रमण जी की रिटायरमेनट का समय हो गया था ।वह दुनिया से रिटायर हो गये थे ।
सारी तैयारी हो गई ।बेटे अपनी पत्नी को लेकर आये थे ।कंधा देने के लिए आगे बढ़ने लगे।”रूक जाओ,कोई आगे नहीं आयेगा “शोभा चिल्लाने लगी।किसी को माता पिता की जरूरत ही नहीं है तो कंधा देना क्यों? फिर मायके वालों ने समझाया तो बाकी सब हुआ ।
—उमा वर्मा ।राँची ।झारखंड ।स्वरचित ।मौलिक ।