यह क्या समृद्धि…! तुम पढ़ाई करने बैठ ई ।
घर के कामकाज कौन निपटाएगा..??
जाओ भाभी के साथ घर के काम करो। रही बात पढ़ाई लिखाई की उसकी अब तुम कल्पना भी मत करो..! तुमको जितना पढ़ना था, पढ़ लिया। अब घर- गृहस्ती संभालो। स्वास्तिक ने बहुत सख्त लहजे से कहा।
समृद्धि बोली- हम अभी सब काम निबटा कर थोड़ा आराम करने के लिए आए थे, और किताब पकड़ ली। अच्छा….!
स्वास्तिक बोला उठो..! मेरे लिए चाय बना कर ले आओ। समृद्धि चुपचाप उठकर चाय बनाने चली गई।
स्वास्तिक को चाय देने के पश्चात वह आंगन में बैठ गई, जहां पेड़ पर चिड़ियाँ करलव कर रही थी। चिड़ियों की चहचहाहट उसके मन को बहुत सुकून पहुंचा रही थी। वह अपनी दुनिया में कब खो गई पता ही नहीं चला।
दीनदयाल की पांँच बेटियांँ थी। समृद्धि पांँच बहनों में सबसे बड़ी थी। इण्टर करने के बाद उसने बी ए में एडमिशन लिया ही था कि- मांँ ने बोलना शुरू कर दिया-
बेटी विवाह योग्य हो गई है उसके लिए वर खोजना शुरू कर दो। अभी देखना शुरू नहीं करोगे तो पांँच- पांँच बेटियों का कैसे विवाह करेंगे…?
दीनदयाल को पत्नी की बात ठीक लगी। उन्होंने अपने आसपास और रिश्तेदारों को समृद्धि के रिश्ते के लिए बोलना शुरू कर दिया।
दीनदयाल के बुआ के बेटे ने अपने गाँव से एक लड़के का रिश्ता भिजवाया। भाईसाहब आप जल्दी आकर देख जाइए, लड़का कुछ दिन पहले ही ग्राम सेवक बना है। उसके लिए बहुत रिश्ते आ रहे हैं।
घर परिवार सब ठीक है। समृद्धि बिटिया बहुत मज़े में रहेगी।
दीनदयाल उनके गाँव गए। उन्होंने स्वास्तिक को देखते ही पसंद कर लिया घर परिवार भी सब ठीक लगा। उन्होंने समृद्धि का रिश्ता स्वास्तिक के साथ तय कर दिया। स्वास्तिक के परिवार वाले सभी लोग समृद्धि को देखकर पसंद कर गए।
कुछ दिनों के बाद धूमधाम से समृद्धि और स्वास्तिक का विवाह सम्पन्न हो गया। स्वास्तिक ने समृद्धि से कहा तुम बहुत खुशनसीब हो जो सरकारी नौकरी वाला तुम्हें पति मिला। पता है तुम्हें मेरे लिए तो लड़कियों की लाइन लगी हुई थी। समृद्धि कुछ नहीं बोली और मन ही मन सोचने लगी कैसे इंसान से पाला पड़ा..? बुदबुदाते हुए अपनी चेतना में वापिस आ गई।
एक दिन समृद्धि ने स्वास्तिक से कहा कि मुझे परीक्षा देने के लिए मायके जाना है। स्वास्तिक तपाक से बोला…! तुम्हें जितना पढ़ना था पढ़ लिया, कौन सा तुम्हें नौकरी करना है। फिर भी समृद्धि ने बहुत विनम्रतापूर्वक कहा कि मुझे बी ए की परीक्षा तो दे देने दीजिए।
स्वास्तिक ने न हांँ और ना हीं न में कुछ जवाब दिया, बल्कि अपने विचार अपने माता-पिता के ऊपर थोपते हुए बोला- हमारे अम्मा -पिताजी अगर चाहेंगे तो तुम आगे पढ़ सकती हो। समृद्धि ने कहा मैंने तो आपसे पहले ही आगे पढ़ने की इच्छा जताई थी, तब आपने अपनी सहमति दे दी थी। स्वास्तिक कुछ न बोलकर बाहर चला गया।
समृद्धि ने जब अपने सास- ससुर से आगे पढ़ाई जारी रखने के लिए कहा तब उन्होंने एक सीधा सा तर्क दिया तुम घर की छोटी हो। इसलिए सारे काम तुम्हें ही करने पड़ेंगे, पढ़ाई के लिए तुम्हें समय मिलता या नहीं, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। समृद्धि अपनी पढ़ाई के लिए सब कुछ करने के लिए तत्पर थी।
कुछ दिनों के बाद उसने बी ए की परीक्षा दे दी उसके बाद ससुराल वालों ने आगे पढ़ने के लिए एकदम पूर्ण विराम लगा दिया। समृद्धि बिचारी कसमसा कर रह गई। फिर भी मायके से कुछ किताबें लेकर आई और पढ़ाई करती रही। उसने सोचा जैसे ही समय उसके अनुकूल होगा, वह तुरंत प्राइवेट एम एम का फॉर्म भर देगी।
स्वास्तिक को नौकरी करते हुए पाँच साल बीत गए। एक दिन भ्रष्टाचार के आरोप में उनकी नौकरी चली गई। अब वह एकदम खाली घर में बैठ गये। समृद्धि की कोई गलती ना होने के बावजूद भी वह हमेशा वक्त, बेवक्त उसपर चिल्लाते रहता। अगर पत्नी ने कुछ बोल दिया तो उसके साथ मारपीट करता। यह उसकी दिनचर्या में शुमार था। तुम मेरी जिंदगी में समृद्धि बनकर नहीं दुर्भाग्य बनकर आई हो। मैं दुर्भाग्य बनकर नहीं आई, तुम्हें तुम्हारे कर्मों के लेखा- जोखा का फल मिला है समृद्धि बोली।
समृद्धि अब तक दो बच्चों की मांँ बन चुकी थी। उसे अपने बच्चों के भविष्य की चिंता सताने लगी।
स्वास्तिक घर में रहने के पश्चात गांव में इधर-उधर गलत लोगों के साथ बैठना -उठना शुरू कर दिया। समृद्धि ने उसे जब समझाना चाहा तो वह उस पर ही हावी हो गया। बोला- तुम्हें मेरे साथ ऐसे ही हालात में रहना है तो रहो नहीं तो मुझे छोड़ कर जा सकती हो। समृद्धि ने कहा हमारे दो बच्चे हैं इनका क्या भविष्य होगा। हम पढ़ाएंगे लिखाएंगे कैसे…?? लेकिन स्वास्तिक पर कोई असर नहीं पड़ा। सुबह होते ही दोस्तों के साथ निकल जाता और उनके साथ ताश,जुआ आदि खेलता रहता।
स्वास्तिक का दिन पर दिन चाल – चलन खराब हो रहा था। कई जगह उसके अनैतिक रिश्ते भी बन गये थे। जमा पूंजी सब उधर जाने लगी। समृद्धि ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, अपने बच्चों का वास्ता दिया, लेकिन स्वास्तिक के ऊपर कोई असर नहीं हुआ।
एक दिन समृद्धि बोली- मैं सब कुछ बर्दाश्त कर सकती हूंँ, लेकिन तुम्हारे किसी अन्य महिला के साथ संबंधों को मैं बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सकती।
दोनों के बीच बहुत तु-तू, मैं-मैं हुई। घर वाले भी अपने बेटे का ही पक्ष लेने लगे।
समृद्धि अपने दोनों बच्चों को लेकर मायके आ गई। माता-पिता दोनों उसके आने से खुश नहीं थे, उन्हें
अपनी चारों बच्चों बेटियों के विवाह की फिक्र होने लगी। सोचने लगे अगर समृद्धि इस घर में रहेगी तो चारों बेटियों के विवाह होने मुश्किल हो जाएंगे। अम्मा ने समृद्धि से इस संबंध में बात की।
समृद्धि बोली अम्मा कुछ दिन हमको इस घर में रहने की इजाजत दो, हम सब ठीक कर लेंगे। समृद्धि ने कई प्राइवेट स्कूलों में अध्यापक और क्लर्क के लिए अर्जी दे दी। एक स्कूल में उसे क्लर्क का नौकरी मिल गई। पैसा कम थे, लेकिन फिर भी वह दोनों बच्चों को पढ़ा सकती थी।
समृद्धि ने इसी वर्ष प्राइवेट एम ए का फॉर्म भर दिया।
दो साल के अंदर उसने एम ए कर लिया। इसके बाद बीएड के लिए फॉर्म डाल दिया। बीएड फीस के लिए उसने अपने कुछ गहने बिक्री कर दिए। मायके वालों ने उसका साथ दिया समृद्धि एमए बीएड हो गई और जिस स्कूल में क्लर्क थी वहीं पर अडॉप्ट बेसिस में अध्यापिका बन गई।
दो-तीन साल में बच्चे भी थोड़े बड़े हो गए। उसने अपने स्कूल के पास ही एक कमरा किराए पर ले लिया, जहां वह अपने बच्चों के साथ रहने लगी। कुछ भी परेशानी होने पर वह माता-पिता को भी बीच-बीच में जाकर देखती।
उसने अपने माता-पिता से कहा- जब तक चारों बहनें अपने पैरों नहीं खड़ी होती, तब तक उनके विवाह मत करना…! अम्मा- पिताजी को भी उसकी यह बात समझ में आ गई थी क्योंकि उन्होंने समृद्धि के जीवन से यह सीख ले ली थी।
दोनों बच्चों का दाखिला अपने स्कूल में ही करवा लेने से बच्चों की फीस भी माफ हो गई,जिससे उसे काफी सहूलियत हुई। दिन में समृद्धि स्कूल में पढ़ाती और शाम को ट्यूशन पढ़ाती इस तरह उसका ठीक प्रकार से गुजारा होने लगा।
कुछ सालों के बाद जमा पूंँजी ख़त्म हो सभी दोस्तों ने मुँह मोड़ लिया। जिन महिलाओं के लिए उसने समृद्धि की दुर्गति कर दी थी उन सब ने किनारा कर लिया। स्वास्तिक अपने आपको बहुत अकेला और असहाय महसूस कर रहा था।
एक दिन वह समृद्धि के पास आया और बोला। क्या बात है… न कोई चिट्ठी, न कोई पत्री…! तुम्हारा पति हूंँ, अब तक तुम्हें नहीं भूला हूंँ। इसलिए तुम्हारा हाल-चाल जानने आया हूँ।
जरा सोचो….! इतना दिन तुमसे दूर रहा, फिर भी अब तक तुम्हें तलाक नहीं दिया। तुम बहुत किस्मत वाली हो जो मेरे जैसा व्यक्ति तुम्हारी जिंदगी में आया।
तुम चाहो तो दुबारा मेरे साथ रह सकती हो लेकिन मैं जैसा चाहूंगा तुझे वैसे ही रहना पड़ेगा।
आज भी उसका अहम्, उसके सिर चढ़कर बोल रहा था।
समृद्धि – रस्सी जल गई पर बल नहीं गया। कितने झूठे अहंकार में जी रहे हो।
मैंने बहुत संघर्ष के दिन देखें है उस संघर्ष में मैंने खुद को हमेशा अकेला पाया हैं। अब मैं अपने बच्चों के साथ बहुत खुश हूंँ। मुझे तुम्हारी जरूरत बिल्कुल नहीं, मैंने तुम्हें अपनी जिंदगी से बहुत पहले ही रिटायर कर दिया था। अब आप जा सकते हैं कहते हुए दरवाजा बंद कर लिया।
सुनीता मुखर्जी “श्रुति”
लेखिका
हल्दिया, पश्चिम बंगाल