आज बुशरा परेशान थी कारण उसके श्वसुर अमजद खान साहब आज सेवानिवृत्त होने वाले हैं।बुशरा के घर में बस चार जन हैं -वह उसका पति शाकिर और श्वसुर तथा उसकी बेटी अमायरा जो चार पांच साल की होगी।
सुनते हो,पापा रिटायर होने वाले हैं -वह अपने पति से बोली।
हां भाई, इसमें नयी बात क्या है?
कैसे नहीं,कभी यह कभी वह का हुक्म चलायेंगे,अभी तो सुबह नौ बजे तक चले जाते हैं और दिनभर काम करते हैं।-वह अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए बोली।
अरे एकाध कप चाय ज्यादा पियेंगे और क्या?-वह शांति से बोलकर चला गया।
इधर श्वसुर जी सुबह आठ बजे तैयार होकर जगे और काम पर निकल गये।
सास करीब आठ दस साल पहले गुजर गयी जब यह व्याह कर आयी थी। ननदें तीन हैं मगर शादीशुदा और इसी शहर में आस पास रहती हैं। पापाजी भी मौके कुमौके जाते हैं,मगर यहां यह तीनों भाग्य भरोसे रहते हैं।पति बस नाम का है,
दिनभर मटरगस्ती और दारूबाज।कभी कुछ किया तो हफ्तों पड़ा रहा।सो घर श्वसुर की कमाई से चल रहा है। श्वसुर जी नगर निगम में चपरासी है मगर इधर उधर पेपर बनाना और बाकी काम से पूरे पैसे कमाता है सो दिक्कत नहीं है।
बुशरा खुले दिमाग वाली औरत है, दिन-रात किटी पार्टी,मस्ती से घुमना,कभी मैके चली जाना।शाम तक लौट आना।बेटी भी मां के साथ घूमती है, स्कूल नहीं जाती। हफ्तों नागा करती है।
सो आज -आज श्वसुर के जाते ही वह दिमाग चलाने लगी और मैके चली गई। बहू रानी आओ कहती भाभी ने स्वागत किया।
यहां फटी पड़ी है और आपको मजाक सुझ रहा है।-वह चिढ़कर बोली।
क्यों क्या हुआ?-भाभी भी संजीदा हो गई।
अरे आज श्वसुर सेवामुक्त हो रहे हैं।कल से दिन रात घर में पड़े रहेंगे।सब घूमना फिरना बंद। दिन-रात बुढ़े की सेवा करो।चाय नाश्ता सब कुछ।-वह चिंता जतायी ।
सो तो है,मेरे सास ससुर दोनों आज दस साल से साथ हैं, मैं निकल नहीं पाती,तेरे भाई के दुकान से घर चलता है।-वह भी अपनी पीड़ा जताते बोली।
कौन है?-यह अब्बू की आवाज थी।
पापा,बुशरा आई है,उसके श्वसुरजी आज सेवानिवृत्त होने वाले हैं।-यह भाभी थी जो चाय लेकर एक इसे और दो कप अम्मी और अब्बू को देते हुए बोली।
अरे अहमद आज सेवानिवृत्त हो रहा है मैं तो बरसों पहले सेवानिवृत्त हो गया।आज तेरी भाभी की सेवा से दोनों जिंदा है,ऐसी बहू अल्लाह सबको दे।-वे बहू को दुआ देते बोले।
आज यह सुनकर चौंक गयी और मरी सास से अभागे श्वसुर की ओर ध्यान चला गया।वह जो देती है खा लेता है।बस एकाध कप ज्यादा चाय पीयेगा यहीं न।
वह मैं चलती हूं कहती बाजार से मिठाई और फूलों के गुलदस्ते खरीद लिए और उनका कमरा साफ़ सुथरा कर नयी चादर बिछा कर सुंदर कर दिया और इंतजार करने लगी।
शाम में जब अहमद लौटकर आये तो खुशी से झूम उठे।देख शाकिर की मां तू चली गई मगर बहू रूप में साक्षात लक्ष्मी छोड़ गयी।कितना अच्छा स्वागत। ऊपरवाला इसे सब सुख दे कहते सिर पर हाथ फेरा तो वह झूम उठी और सबको खिलाने पिलाने लगी।
#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।