श्रेया सुजाता को फोन कर रही थी और वे उठा नहीं रही थी । श्रेया को चिंता होने लगी कि माँ एक रिंग में ही फोन उठा लेती हैं आज क्या हुआ है जो फोन नहीं उठा रही है ।
उसी समय सुजाता ने फोन उठाया और हेलो कहा । माँ आपको फोन उठाने में देरी हो गई तो मुझे चिंता हो रही थी ।
सुजाता ने हँसकर कहा सॉरी श्रेया मैं यूट्यूब में तीर्थ यात्रा पर जाने वाले स्थान देख रही थी ।
तुम्हें पता है ना तुम्हारे पिता जी रिटायर हो गए हैं । मैं सोच रही थी कि हम दोनों कहीं घूम फिरकर आ सकते हैं । वैसे तो सबसे पहले मेरी द्वारिका जाने की इच्छा है ।
श्रेया ने कहा माँ पापा से बात करके टिकट बुक करवा लीजिए । सुजाता ने हँसकर तुम्हारे पिता जी को समय मिलते ही मैं उनसे कहती हूँ ।
दस पंद्रह दिनों बाद श्रेया ने फिर से माँ को फोन करके पूछा माँ टिकट बुक हो गई हैं क्या?
सुजाता ने कहा नहीं बेटा अभी टिकट बुक नहीं हुए हैं । तुम्हारे पापा अपने दोस्तों के साथ बहुत व्यस्त हैं । इतने दिनों तक नौकरी के कारण बाहर रहते थे वे बाहर का खाना खाकर थक गए हैं तो अब उनके फ़रमाइशों की लिस्ट बड़ी लंबी है,जिसे बनाते हुए मेरा सारा समय रसोई में ही बीत जाता है ।
श्रेया को माँ की बातों को सुनकर बहुत बुरा लगा लेकिन वह कुछ नहीं कर सकती है।
सुजाता और निशांत के दो बच्चे हैं । श्रेया और श्रेयस !! दोनों बच्चे पढ़ लिखकर साफ्टवेयर कंपनियों में कार्यरत हैं । निशांत रेलवे में नौकरी करते थे । जब उनकी शादी सुजाता से हुई तब घर में माता-पिता एक छोटा भाई और एक बहन थी ।
सुजाता ही इनकी देखभाल करती थी । एक दिन निशांत ने सुजाता से कहा कि तुम पढ़ी लिखी हो तो नौकरी क्यों नहीं करती ताकि हम जीवन को बेहतर ढंग से जी सकें अपनी इतनी ज़िम्मेदारियाँ हैं उन्हें आराम से बिना किसी परेशानी के निभा सकें ।
सुजाता की इच्छा नहीं थी फिर भी उसने पति की इच्छा का मान रखते एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी ढूँढ ली ।
अब उसका काम और बढ़ गया था क्योंकि निशांत को काम से दूसरे शहर जाना पड़ता था। जिससे पैसे भी ज़्यादा मिलते थे , लेकिन उसकी ज़िम्मेदारी भी सुजाता को ही उठाना पड़ता था । वह सुबह घर के सारे काम करके ऑफिस पहुँच थी ।
वहाँ ऑफ़िस का काम करती थी और घर आकर फिर घर के काम करती थी । इसी तरह अपने व्यस्त जीवन के चलते उसने देवर की और ननद की शादी करा दी थी वे अपने परिवार के साथ खुश थे ।
इस बीच सुजाता खुद भी माँ बन गई। उसने श्रेया और श्रेयस को जन्म दिया।
सास घर पर ही रहती थी । जब वह ऑफिस जाती थी तब बच्चों को देख लेती थी । ससुर तो सुजाता की शादी के बाद ही गुजर गए थे , कुछ दिनों के बाद सास भी गुजर गई थी । सुजाता को कामों में बच्चे बहुत मदद कर देते थे। उन्हें उसने सब कुछ सिखाया था। बच्चों को भी पढ़ा लिखा कर बड़ा किया । श्रेया ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और साफ्ट वेयर कंपनी में नौकरी करने लगी वह चेन्नई में रहती थी उसका तीन साल का एक बेटा सोहन है ।
श्रेयस शुरू से ही सी ए बनना चाहता था । वह भी बैंगलोर में एक कंपनी में काम कर रहा था उसकी एक बेटी थी ।
इन दोनों की पढ़ाई और शादी निशांत के रिटायरमेंट के पहले ही हो चुकी थी।
श्रेया जब माँ बनने वाली थी तब सुजाता ने अपनी नौकरी छोड़ दी थी और उसकी देखभाल करने लगी ।
जब तक नाती दो साल का ना हुआ तब तक वह उसकी देखभाल करती रही क्योंकि श्रेया को ऑफिस जाना था ।
अब सुजाता की सारी ज़िम्मेदारियाँ खत्म हो गई निशांत भी रिटायर हो गए हैं लेकिन निशांत के व्यस्तता के चलते उसे अभी भी कामों से छुटकारा नहीं मिल सका ।
उस दिन सबेरे सुजाता की बहन ने फोन करके उसे अपनी मदद के लिए बुलाया क्योंकि बहन की बेटी डिलवरी के लिए आई हुई थी।
सुजाता ने जैसे ही निशांत से कहा कि वह एक सप्ताह के लिए अपनी बहन के घर जाएगी वह ग़ुस्से में आ गया कि मैं एक सप्ताह कैसे रहूँगा मेरे लिए खाना कौन बनाएगा।
सुजाता को हँसी आई अभी भी इन्हें खाने की ही फिक्र है। उसने कहा कि मैं नहीं गई तो वह बुरा मान जाएगी। मेरी एक ही बहन है वह भी पास ही रहती है। निशांत ने बड़ी मुश्किल से उसकी बात मान ली।
सुजाता ने श्रेया को फोन पर बता दिया कि वह मौसी के घर जा रही है।
श्रेया ने भी कहा माँ आप नहीं रहेंगी तो पापा के खाने का क्या होगा।
सुजाता ने कहा एक सप्ताह की बात है ना बेटा मैं नहीं गई तो मौसी का तकलीफ होगी। श्रेया ने कहा माँ एक काम करो आप पापा से पूछ कर उन्हें हमारे घर भेज दो।
जब निशांत से पूछा तो वे चेन्नई जाने के लिए तैयार हो गए। सुजाता के साथ उन्होंने भी अपना बैग पैक कर लिया था।
निशांत दूसरे दिन सवेरे चेन्नई स्टेशन पर उतरे और देखा श्रेया उन्हें लेने आई हुई है। निशांत ने कहा बेटा आरव नहीं आया तुम मुझे लेने आई हो।
वह सामान गाड़ी की डिक्की में रखकर गाडी में बैठकर कहती है कि मैं गाड़ी कैसे चलाती हूं यह आपको दिखाना चाहती थी। इसलिए मैं आपको लेने आ गई हूँ। वे लोग जैसे ही घर पहुँचे उसने कहा पापा आप फ्रेश हो आइए मैं आपके लिए चाय बनाती हूँ।
उसने मुझे चाय पिलाई और रसोई में खाना बनाते हुए ही बेटे को उठा रही थी। सोहन उठकर तैयार होकर आया और आश्चर्य से नाना को देखकर पूछा नानाजी आप कब आए?
निशांत ने उसे गोद में बिठाकर कहा माँ ने आपको नहीं बताया है। आपको सरप्राइज देना चाहती थी। उसने हँसते हुए माँ सच्ची में आप मुझे सरप्राइज देना चाहतीं थीं। श्रेया ने हँसते हुए कहा नाना से शाम को बात करना अभी स्कूल का समय हो गया है।
चलो! नाश्ता करलो तुम्हारे लिए पूरी सब्जी बनाया ह। वह सच में कहते हुए खुशी से पूरी सब्जी खा लेता है। श्रेया उसे स्कूल बस में बिठाकर आती है कि आरव की आवाज कमरे से आती है श्रेया चाय दे दो ना। आ रही हूँ कहते हुए वह चाय लेकर कमरे में उसे देकर रसोई में चली जाती है। आरव थोडी देर बाद कमरे से बाहर आकर निशांत के पैर छूकर कहता है कैसे हैं आप? रिटायरमेंट लाइफ कैसी है?
निशांत ने बताया इतने साल दोस्तों से दूर था अब उन सबसे मिलकर अच्छा लग रहा है। उन्हें घर बुलाता हूँ और सुजाता से कहकर मन पसंद खाना बनवाकर खाता हूँ।
श्रेया दोनों को नाश्ता करने केलिए बुलाती है। टेबल पर पोहे को देखकर निशांत पूछते हैं श्रेया तुमने तो पूरी सब्जी बनाई थी ना फिर यह पोहा कैसे?
वह कहती है कि पापा सोहन को पोहा पसंद नहीं है इसीलिए उसके लिए पूरी सब्जी बनाई है आपको पोहा पसंद है ना इसलिए आप पोहा खाइए। तुम्हें भी नौकरी पर जाना है इतने व्यंजन क्यों बना रही हो।
उसने कहा मुझे आदत है पापा वैसे आज हम दोनों को ही वर्कफ्राम होम है इसलिए चलता है।
उसने खाना बनाया और काम करने लगी। शाम को सोहन आया उसके लिए दूध और हम लोगों के लिए चाय उसके साथ खाने के लिए हल्का सा स्नेक्स बनाकर दिया। सोहन जब नाना के साथ वीडियो गेम खेलना चाह रहा था तो श्रेया ने कहा सोहन पहले होमवर्क कर लो फिर खेल लेना कहते हुए उसे अपने साथ होमवर्क कराने के लिए ले जा रही थी तो निशांत ने कहा मैं उसका होमवर्क करा देता हूँ।
वह बीच-बीच में उठकर खाना भी बना रही थी। निशांत को एक दिन में ही पता चल गया था कि उनकी बिटिया कितना काम करती है। उन्होंने बेटी के लिए सिर्फ उम्र में बड़े आरव को चुना था बाकी सबमें दोनों समान हैं फिर बिटिया अकेली इतना सारा काम क्यों करे? पहले आरव अच्छा था । वैसे भी निशांत इसके पहले अपनी बेटी के घर सुजाता के साथ ही आया था । उस समय ध्यान नहीं दिया होगा उसका दिल दुख रहा था। निशांत ने दूसरे दिन से उसके कामों में उसका हाथ बंटाना शुरू किया।
जब वह श्रेया की मदद करता था तब उसे सुजाता की याद आती थी कि वह भी नौकरी करते हुए घर का सारा काम करती थी। मैं तो रिटायर हो गया पर उसे रिटायर होने नहीं दिया।
श्रेया ने रसोई में काम करते हुए पिता से पूछा माँ को कहीं घुमाने लेकर जा रहे हैं क्या ? निशांत ने कहा नहीं बेटा कुछ सोचा नहीं है। तुम्हारी माँ ने तुमसे कुछ कहा है क्या ?
उनके बहुत सारे प्लान हैं पापा उन्हें घूमने का शौक है सिवाय मेरे पास चेन्नई के वे कहीं नहीं गई हैं।
निशांत सोचते हुए सही कहा तुमने रेलवे में काम करता था लेकिन उसे लेकर कहीं नहीं गया। वह कहाँ जाना चाहती थी कुछ बताया है क्या?
जी पापा उन्हें सबसे पहले द्वारका देखना था उन्होंने तो लिस्ट बनाकर रखी है।
निशांत ने कहा मैं हम दोनों के लिए द्वारका के टिकट बुक करा देता हूं तुम्हारी माँ को मत बताना सरप्राइज देंगे।
दो दिन बाद निशांत वहाँ से निकल गए क्योंकि सुजाता भी आने वाली है। निशांत की ट्रेन दूसरे दिन जल्दी पहुँच गई। उसने सोचा सुजाता के आने के पहले मैं घर पहुँच रहा हूँ इसीलिए उसके लिए चाय बनाकर सरप्राइज करूँगा।
सुजाता घर पहुँचकर देखती है कि निशांत पहले से ही घर पहुँच गए हैं। अरे आप तो मुझसे पहले पहुँच गए हैं । आप बैठिए मैं जल्दी से फ्रेश होकर आती हूँ और चाय बनाती हूं। सुजाता ने बिटिया के घर में सबके बारे में पूछा और फ्रेश होने चली गई। बाहर आकर देखती हैं डायनिंग टेबल पर दो कपों में चाय और बिस्कुट रखी हुर्ई थी।
उसने कहा आपने चाय क्यों बनाई ? मैं बनाकर ला देती थी। निशांत ने कहा कि श्रेया के पास मैंने चाय बनाना सीख लिया है। उस दिन निशांत के दोस्तों के फोन आ रहे थे पर उसने उन्हें नहीं उठाया और सारा समय सुजाता के साथ बिताया। सुजाता के लिए यह एक नया अनुभव था।
निशांत ने दूसरे दिन कहा सुजाता हमारे बैग पैक करो हम घूमने जा रहे हैं। जब सुजाता ने पूछा कहां जा रहे हैं तो बताया द्वारका जा रहे हैं यह सुनते ही सुजाता की आँखें भर आईं।
निशांत ने सुजाता को पास बिठाकर कहा मुझे माफ कर दो मैंने कभी तुम्हारे बारे में नहीं सोचा था। बिटिया के घर में उसे चकरघिन्नी की तरह काम करते हुए देख मुझे तुम्हारी याद आई तुम भी ऐसे ही काम करती रहती थी।
हम अब घूमने जाया करेंगे। मैं तुम्हारे आराम का ख्याल रखूँगा। सुजाता को लग रहा था जैसे वह सपना देख रही हो। उसने श्रेया को फोन पर निशांत की सारी बातें बता दी। माँ को इस तरह से खुश देखकर श्रेया को बहुत अच्छा लगा।
आरव रसोई में रोटी सेंकते हुए कहता है मुझे बुरा बनाया लेकिन अपने पिता को बदलने में कामयाब हो गई।
श्रेया सही कहा आरव माँ अपने मुँह से कुछ कहती नहीं और पापा उनके दिल की बात समझते नहीं इसलिए इस तरह की तरकीब करनी पड़ी।
चलो! देर से ही सही वे दोनों रिटायरमेंट लाइफ को अच्छे से जी लेंगे।
दोस्तों कई बार ऐसा होता है हम दूसरों को देखकर ही सीखते हैं। हमारे मन में ऐसे ख्याल आते ही नहीं हैं। इस कहानी को पढ़कर अपनी रिटायरमेंट लाइफ को बेहतर बना लीजिए अगर आप तंदुरुस्त हैं।
क़े कामेश्वरी