शिव पार्वती कॉलोनी शहर का सबसे आबादी वाली कॉलोनी है.. पर यहां के रहने वालों पर अभी तक आधुनिक सभ्यता का रंग बहुत गहरा नही चढ़ा है.. एक दूसरे के सुख दुख में शामिल होना अभी तक लोगों ने नही छोड़ा है..
इसी में लगभग चालीस साल पहले अम्माजी अपने तीन बेटे और एक बेटी के साथ रहने आई थी.. किराए के मकान से गृहस्थी शुरू कर समय बीतने के साथ अपने घर की मालकिन बन गई थी.. पति पीडब्ल्यूडी में क्लर्क थे.. पूरे मुहल्ले के बच्चे महिलाएं लड़कियां सभी उन्हें अम्माजी कहते थे..
पता नही ये नाम किसने दिया था.. छोटे कद की सांवली सी अम्माजी बहुत हंसमुख और मजाकिया स्वभाव की थी.. मुहल्ले में किसी के घर शादी हो खूब नाचती और गाती थी, कोई इगो नही.. बिहार में जिस दिन लड़के की बारात जाती है सदियों से ये परंपरा है
आस पड़ोस की महिलाएं और शादी में आई सभी महिलाएं रात भर डोमकच करती हैं.. इसमें नाच गाना के साथ साथ तरह तरह के महिलाएं स्वांग रचती है.. पुलिस डॉक्टर तो कभी थानेदार और भी न जाने क्या क्या.. अम्माजी डोमकच की मुख्य पात्र होती थी..
फुर्ती इतनी की पांच बजे सुबह से कनिया के आने के पहले दाल वाली पूरी खीर बनाने में घर की महिलाओं के साथ लग जाती.. किसी के घर शादी हो अम्माजी के घर एक सप्ताह शायद चूल्हा जलता बीच में चाय बना लेती चूल्हा उपवास नही रहता है..
शादी वाले घर से हीं इनके पति और बच्चों का खाना जाता… किसी के घर बेटा हुआ अम्माजी की स्वर लहरी गूंज उठती कहावां में राम जी जनमलन की कहंवा में कृष्णजी हो ए ललना…
वक्त गुजरता गया..
अम्माजी का एक बेटा विदेश में हीं शादी कर वहीं रह गया.. काका जी अम्माजी के पति रिटायर हो गए थे.. बेटी की शादी हो गई.. दूसरा बेटा सीए की पढ़ाई कर पुणे में अपने परिवार के साथ रहने लगा था.. और तीसरा बेटा पेट पोछना था इसलिए प्यार दुलार में शोख और थोड़ा सनकी हो गया..
काका जी के रिटायर होने से वेतन और ऊपरी आमदनी में कमी आ गई थी.. छोटा बेटा पैसों के लिए हमेशा तंग करता… आम्माजी को मुहल्ले में शादी ब्याह में शौक से लोग साड़ी देते थे, अब दबी जुबान आंखें नीची कर कहती दुल्हीन साड़ी बहुत है अगर बुरा नही मानो तो पैसा हीं दे दो..
और वो पैसा बेटा को दे देती… नई दुल्हन या नव ब्याहता बेटी उनके पैर पर पैसा रख प्रणाम करती तो एक हीं आशीर्वाद देती दूधों नहाओ पूतों फलो … मेरी शादी के बाद जैसे हीं उन्होंने सर पर हाथ रखते हुए कहा दूधो नहाओ मैंने उनके मुंह पर हाथ रखते हुए कहा बेटी का आशीर्वाद दीजिए मुझे अम्माजी हतप्रध मेरा मुंह देखते रह गई..
फिर कहा अभी बुद्धि नही हुई है बिट्टो, बेटा बुढ़ापे का लाठी होता है, उसी के हाथ से मुक्ति मिलती है.. दुनिया लाख कहे बेटा बेटी में अंतर नही है पर ये तो भगवान के घर से बना के आया है… मैने बहस करना उचित नहीं समझा और कहा मैं नही मानती…
समय गुजरता रहा, अपनी गृहस्थी और बच्चों में उलझे रहने के बाद भी अम्माजी की खबर जरूर लेती..
तीन साल पहले काका जी नही रहे.. अम्माजी को उनका छोटा बेटा और तंग करने लगा था क्योंकि पेंशन तिहाई रह गया था.. पगलेट जैसा व्यवहार करने लगा था.. गनीमत थी उसकी शादी नही हुई थी…
अम्माजी रोज किसी न किसी घर से कभी सब्जी तो कभी कुछ मांग के ले जाने लगे छोटे बेटे के लिए, लोग मोह से खिला भी देते थे अम्माजी को.. दोनो बेटा अपने छोटे भाई का बहाना बना आना हीं बंद कर दिया था..
अचानक अम्माजी को लकवा मार दिया… बेटा और बेटी को मुहल्ले के लोगों ने खबर किया.. कॉलोनी के लोगों ने चंदा कर डॉक्टर के पास ले गए..
तीसरे दिन बेटी आई.. एक सप्ताह बाद पूना से बेटा एक दिन के लिए आया ऑडिट चल रहा है छुट्टी नहीं है.. अम्माजी बैशाखी के सहारे थोड़ा थोड़ा चल लेती थी, बेटी एक महीने बाद चली गई..
अब अम्माजी के बुढ़ापे का लाठी नंबर तीन छोटा बेटा कभी बाहर खा लेता.. कभी बनाता कुछ तो अम्माजी को देता..
शुरू में कुछ महीने कॉलोनी वाले अम्माजी को खाना पहुंचा देते थे पर धीरे धीरे सब ठंडे हो गए. हां कॉलोनी में
शादी ब्याह छठि सतइसा या मरनी का भोज होता तो खाना अम्माजी को पहुंचा देते और उस दिन अम्माजी जी भर के खाती..
पूतों वाली अम्माजी एक दिन अचानक करवट बदलते समय कमजोरी के कारण रात में बिछावन से गिर गई ब्रेन हेमरेज हो गया
चिल्लाई भी होंगी तो उनका बुढ़ापे का लाठी दो पेग मार के चैन से सोया पड़ा होगा.. छोटा सा सामान गिरने पर रात्रि की निस्तब्धता भंग हो जाती है फिर अम्माजी जी के गिरने की आवाज उसने नही सुनी..
तीसरे दिन पड़ोसियों ने बदबू होने पर दरवाजा को तोड़ कर अंदर गए तो अंदर का दृश्य देखकर उल्टे पैर बाहर भागे…
अम्माजी तीन दिन से मरी पड़ी थी… छोटा बेटा का कहीं पता नही था.. दूसरे बेटे का फोन नंबर ढूढकर फोन किया गया तो उसने दो दिन बाद आकर गायत्री परिवार की विधि से तीन दिन में काम क्रिया निपटा कर चला जायेगा…
पूतों वाली अम्माजी को मुहल्ले वालों ने नगरपालिका के सफाई कर्मचारी को चंदा कर के पैसा देकर नगरपालिका की गाड़ी में ले जाकर अंतिम क्रिया किया गया.. ना कंधा देने वाला कोई न मुख अग्नि देकर मुक्ति देने वाला बेटा हीं मौजूद था.. तीन बेटों के कंधों पर चढ़ के जाने वाली अम्माजी पूतों वाली #अभागिन #थी.. कितना नाज था तीन तीन पूतों की मां होने का..
#स्वलिखित सर्वाधिकार सुरक्षित #
#अभागन
😥🙏❤️✍️
Veena singh