राशि स्कूल जाने के लिए घर से निकल ही रही थी कि सास और ननद की कर्कश ध्वनि कानों को बेध गई,, लो चली महारानी छम्मक छल्लो बनकर,, स्कूल जाती हैं या फ़ैशन परेड में। मुझे तो लगता है रूप का प्रदर्शन करने जाती हैं क्या खाक पढायेंगी बच्चों को।
राशि की आँखों में आँसू आ गये अब यह रोज का क्रम बन गया था। वह जाते समय उनसे उलझना नहीं चाहती थी उनसे इसलिए चुपचाप चली गई। ऐसा नहीं था कि घर का माहौल हमेशा से ही ऐसा था। उसकी सासू माँ बहुत सीधी साधी अच्छी महिला थी पर जब से ननद अपने पति से तलाक ले कर यहाँ आकर रहने लगी थी तब से उसने उन्हें न जाने क्या पट्टी पढ़ाई वो उसे हमेशा खा जाने वाली नज़रों से ही घूरती रहतीं।
देखा माँ, यह तो नहीं आपकी मेरी सेवा करे बस स्कूल और अपना कमरा, यही दुनियाँ है इसकी। न कभी पास आकर बैठती है और न ही सीधे मुँह बात करती है,, स्वाति माँ को भड़काती और उन्हें उसकी बातें ही सच लगतीं। भाई को भी तो अपने कब्जे में कर लिया है तभी तो वह भी दूर दूर रहता है।
राशि की सास को बेटी की बातें ही सही लगतीं और
भावेश के स्वभाव में परिवर्तन के लिए वह राशि को ही जिम्मेदार मानती जबकि इसका कारण राशि नहीं बल्कि स्वाति का चाल चलन था जो भावेश को पसंद नहीं था।
भावेश का बहन को अलग फ्लैट लेकर रहने का सुझाव और उसके वक्त बेवक्त घूमने फिरने पर रोक- टोक उसको नागवार गुजरता और वह छोटे भाई और मां को उनके खिलाफ भड़काती रहती। रोज रोज के इस क्लेश में उसके बच्चे की पढाई भी बर्बाद हो रही थी अतः उसने उसे हॉस्टल में डाल दिया जिससे वह मन लगाकर पढ़ सके।
भावेश एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करता था पर दो साल पहले उसके भाई बहन ने उसके खिलाफ चोरी और उनके साथ मारपीट की रिपोर्ट लिखवा दी और उस FIR की कॉपी कंपनी में जमा कर दी जिससे प्रबंधन ने उसे नौकरी से निकाल दिया। अब वह जहाँ भी जॉब के लिए ट्राई करता है ये खोजी कुत्ते की तरह सूंघते हुए वहीं पहुँच जाते और एक बार फिर वह नाकामयाब हो जाता।
एक दिन उसका छोटा भाई सुरेश जर्मन शेफर्ड कुत्ता ले आया। वह जानबूझ कर उसे सीढ़ियों के पास बांध देता क्यों कि भावेश का घर ऊपर वाली मंजिल पर था जब वह कुछ कहता तो लड़ने पर उतारू हो जाता। एक दिन तो हद हो गई उस दिन राशि और भावेश तैयार हो कर अपने मित्र के भाई के रिसेप्शन में जा रहे थे तो सुरेश ने कुत्ते को छू कह दिया और वह उनके पीछे पड़ गया। राशि के पैर में उसने दांत गड़ा दिये वह भय से थर थर कांप रही थी और दर्द के मारे चिल्ला रही थी और अंदर से तीनों की सम्मिलित हंसी की आवाज़ सुनाई दे रही थी।
मनुष्य बदले की आग में इतना नीचे गिर जाता है कि जानवर से भी बदतर हो जाता है । कई दिन लगे उसे ठीक होने में,, शरीर का घाव तो कुछ दिन बाद भर गया पर मन के घाव तो दिन पर दिन नासूर बनते जा रहे थे।
बात बात पर बहन जोर जोर से बोलकर अपने बड़े लोगों से संबंध और जान पहचान की दुहाई देती ताकि वे घर छोड़कर चले जाएं। सभी रिश्तेदारों से भी बात की पर सभी यह कहकर पल्ला झाड़ लेते कि यह तुम्हारे घर का मामला है आपस में बैठकर सुलझा लो तो बेहतर है। अब अगर आपस में सुलझ जाता तो यह नौबत आती ही क्यों? दिन पर दिन निराशा बढ़ती ही जा रही थी कोई रोशनी की किरण नज़र नहीं आ रही थी।
तभी एक दिन भावेश के मामाजी किसी काम से रायपुर आये तो वह अपनी बहन से मिलने घर आये। उन्हें वहाँ दो तीन दिन लग गये इन दिनों में सबके चेहरे उनके सामने आ गये। उन्होंने भावेश से कहा वह कब तक डर डर कर जियेगा उसे उनके विरोध में आवाज़ उठानी ही चाहिए।
लेकिन मामाजी मैं अकेला इन शातिर लोगों का सामना कैसे कर पाऊंगा। तो उन्होंने उसे हिम्मत बंधाते हुए कहा कि मैं तुम्हारे साथ हूँ अन्याय का विरोध हमारा धर्म भी है और कर्तव्य भी वरना ईश्वर भी तुम्हें माफ नहीं करेगा। तुम इसी वक्त मेरे साथ चलो।
पर कहाँ मामाजी?
कोर्ट, जहाँ इनको इनकी सही औकात दिखाई जा सके। जब ये तुम्हारे खिलाफ झूठी रिपोर्ट लिखवा सकते हैं तो क्या तुम अपनी सच्चाई साबित करने के लिए कोई प्रयास नहीं करोगे।
आज भावेश और राशि अपने अंदर एक नये इंसान के पुनर्जन्म को महसूस कर रहे थे विश्वास और ऊर्जा से भरपूर।
# विरोध
कमलेश राणा
ग्वालियर