हीरा पन्ना! – सारिका चौरसिया

बहनें दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करती थी,, छोटी बड़ी के बगैर सोती नहीं थीऔर बड़ी ! छोटी को कहीं से आने में जरा सी देर पर परेशान हो जाती थी,, बेटियों ने मां को बचपन से ही अनेकों संघर्षों से जूझ कर भी उनके लिये उत्तम व्यवस्था बनाने की हर संभव कोशिश करते … Read more

नईहर – सारिका चौरसिया

बंदरिया के छोटे बच्चे सी सीने में चिपकी बच्ची लिये गले तक लम्बा घूंघट काढ़े वह चुप, ड्योढ़ी पर खड़ी थी,, ठसक गंवई बोली में तेज!तीखी आवाज में बोलती साथ आयी दूसरी औरत, ठिगनी सी…किन्तु तेजतर्रार थी। शीशम की बढ़िया कामदार कशीदा करी चांदी की मुठ जड़ी चौकी पर करमशाही अंदाज में मसनद के सहारे … Read more

कर्मयोगी –  रीता मिश्रा तिवारी

“रवि! बेटा कुछ बात करनी थी”?   “जी मां!” लैपटॉप पर नजरें गड़ाए हुए बोला “आपको इजाजत लेने की कब से जरुरत पड़ने लगी? कहिए कोई खास बात है?”   “हां बहुत ही खास है। बेटा! उम्र हो चली है मेरी..क्या पता कब बुलावा आ जाय। हमेशा लैपटॉप में घुसे क्या करते रहते हो?सुन भी … Read more

क़ाबिल – नीलम सौरभ

वह दम्पत्ति डॉ. शैलजा से अब मिन्नतें करने लगा था, “डाक्टरनी जी! बहुत खरच करके पता लगवा पाये हैं जी, कि एहू बार लड़की होवे वाली है!” पति ने अपनी हथेलियाँ आपस में रगड़ते हुए कहा तो उसकी पत्नी ने आगे जोड़ा, “पहिले से ही एक लड़की है हम लोगन की….गरीब लोग हैं जी!” “तो?” … Read more

फर्ज – गीतांजलि गुप्ता

घर मे और कोई तो था नहीं पुनिता और आशीष अकेले रहते हैं। आशीष बैंक में बड़े अफ़सर के पद पर है शादी के बाद पुनिता की इच्छानुसार दूसरे शहर में बदली करा ली थी। घर के काम काज में हाथ बंटाने को एक बड़ी आयु की महिला रख ली थी। पुनिता उसे काकी बुलाती … Read more

पत्थर पिघल गया – मधु मिश्रा

आज सुयश और नंदा की शादी के बाद गृह प्रवेश की रस्म हुई l सास ससुर के चरण स्पर्श करते हुए नंदा ने ग़ौर किया कि सुयश ने अपने मम्मी पापा के पैर नहीं छूए l ये बात उसे परेशान करने लगी क्योंकि आजकल बच्चे वैसे भी ख़ास अवसरों में ही बड़ों के पैर छूने … Read more

मैं समय हूं

मैं समय हूंमैं कभी रुकता नहींमैं कभी थकता नहींदिवस, वर्ष, सदियां और युग पार करता जाता हूंबस आगे बढ़ता जाता हूंमैं समय हूंकोई कहता अच्छा हूं मैंकोई कहता बुरामैं निर्विघ्नं, निर्विचार आगे बढ़ता जाता हूंमैं कभी थमता नहींमैं समय हूंजो कहता आज नहीं,मैं कल करूंगाउसका कल कभी आता नहींआगे वह बढ़ पाता नहींमैं समय हूंजो … Read more

उन्मुक्त आकाश –   किरण केशरे 

  आज सुबह से ही बेला अनमनी सी थी ।कल ही बिटिया राशि का ऑनलाइन बैंक का इंटरवियू था ,जिसमें उसे प्रथम प्रयास में ही सफलता मिल  गई थी।राशि पढ़ने में होशियार थी ,इसी वर्ष MBA में बहुत अच्छे अंको से उत्तीर्ण हुई थी।बेला का मन घबरा रहा था ।अभी तक तो इंदौर में ही थी … Read more

और दीप जल उठे –   किरण केशरे

माधव और गुनिया रोटी चटनी की पोटली बांध कर सेठ धरमराज की कोठी पर आज सुबह सुबह ही साज-सज्जा के लिए चले गए थे  ! सेठजी ने कल शाम को ही कड़ा निर्देश दे दिया था की, कल जल्दी कोठी पर आकर सजावट और हार तोरण से पूरी कोठी को सजाना है  ,दीपावली के दिन … Read more

सम्मोहन/ चेतना – कंचन शुक्ला

आँगन में तन्नी से सूखे कपड़े उतारती राम्या, मनमग्न है। अपनी दिनचर्या में प्रतिपल अवांछित व्यवहार ही मिलता उसे। सब के लिए दिनभर जूझती, अथक प्रयासों से सबको प्रसन्न करने का प्रयत्न करती पर सब बेकार। उद्गार, भावभंगिमा, उचित सम्मान भी नगण्य हो जाता। बल्कि कई बार परिवारजनों से उलाहना व असम्मान का भोगी ही … Read more

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