चिलचिलाती धूप में, सिर पर आंचल ओढ मीता बढती जा रही थी।
“इतना अपमान? मेरे माता पिता गरीब है तो क्या हुआ?”
“अपने बेटे का घर बसाने के लिए कैसे हाथ जोडकर आये थे सास ससुर जी।”
मीता मन ही मन बडबडा रही थी। कैसे
बीमार दादी का बहाना बनाकर झटपट शादी की थी ससुराल वालों ने।
वो पांच बहनें थी। बाबा क्लर्क थे। सरकारी नौकरी थी। थोडे में निभाते। बेटियां समझदार थी। मां कुशल गृहिणी थी। लेकिन छोटे ऋतिक के अति लाड ने उसे जिद्दी बना दिया था। हर रोज कुछ न कुछ जिद करता और उसकी सारी फरमाइशें पूरी भी की जाती।
लेकिन बेटियां तो रूखा-सूखा खाकर ही बडी हुई थी। सबसे सुंदर और आकर्षक थी मीता। गिरिधर लालजी की चिकनी-चुपड़ी बातों में आकर बाबा ने झट से मीता की शादी की हां भर दी। थोडा तो भार उतर जायेगा। उससे पुछना किसी ने जरूरी न समझा।
रिश्ते के साथ जिम्मेदारियों की भारी भरकम गठरी उसपर लादी गयी। नखराली ननद, आराम करती सास, घुमने फिरने की शौकीन जेठानी। दिनभर काम ही काम। उसपर ये ताने।
अब तो मां न बनने के लिए भी उसे ही दोषी ठहराया जाने लगा। अपने पियक्कड बेटे में किसी को कोई कमी नजर न आयी।
आज तो पति रीतेश नशे में धुत, अपने साथ किसी लडकी को ले आया। उसने हंगामा मचाया तो सबने उसे ही जलील किया।
” हमारे बेटे को पिता बनने का सुख दे नहीं सकती, और उपर से ये बेशर्मी?”
” हिम्मत हैं, पैसा हैं, लाया हैं वह अपनी लाडो?”
” तुम्हें क्यों ऐतराज हैं? सबकुछ मिल रहा हैं न तुम्हें?”
“अपने पीहर में तो खाने के भी लाले थे।”
” रहना है तो रहो, वरना निकल जाओ।”
अपने पति की तरफ नफरत भरा कटाक्ष डाल वह घर से निकल पडी। तेज धूप। पता नहीं, कहां जाना है?
चलते-चलते वह थक गयी। आंचल की छांव भी उससे रूठ गयी थी जैसे।
पेड के नीचे बैठ तनिक सुस्ताना चाहती थी वह।
छोटी बहन मीनू की सहेली निम्मी आती दिखी।
थोडी बहुत बातें गांव में चर्चा का विषय बनी हुई थी। निम्मी सारा माजरा समझ गयी। मीता ने अपने माता पिता से कुछ कहने से मना कर दिया था। लेकिन मीनू को मिलने के लिए बुलाकर अपने दिल का बोझ हल्का कर लिया उसने। थोडे दिनों में सबको मीता के साथ हुए दुर्व्यवहार की खबर मिल गयी थी।
धीरे-धीरे मीता ने उलझनों के साथ ताल-मेल बिठा दिया था। उसने सोच समझकर शांतचित्त हो भविष्य की रूपरेखा बनायी।
पढने में तेज थी वह। संगणक का भी ज्ञान था। अपनी मेहनत, लगन से वह आगे बढती रही।
मुरझाये चेहरे पर धीरे-धीरे रौनक आने लगी।
कई साथी शादी के लिए हाथ मांगते। उसे नफरत सी हो गयी थी शादी से। जीवनसाथी की कल्पना से। अकेली जी लूंगी मैं, वह सोचती। कभी-कभार अकेलापन काटने को आता। अपने मन को समझाती वह।
उसे नशा मुक्ति केंद्र में जाॅब मिल गयी थी। आत्मनिर्भर हो गयी थी अब वह। वही रहने का इंतजाम भी हो गया था। मीनू कभी कभी मिलने आती। बता रही थी, ऋतिक गलत राह पर बढ रहा है। लेकिन पैसा रूपैया के आगे मां बाबा झुक जाते है। पुछते नहीं कहां से आया इतना पैसा?
बुरी आदतों के जंजाल में फंसता जा रहा है।
अभी-अभी आराम करने वह अपने कमरे में आयी थी। शोर सुनकर बाहर आयी। देखा, नशे में धुत जख्मी युवा को कोई मुश्किल से ले आ रहा है।
ध्यान से देखा उसने, ऋतिक था, जो अति नशे में स्कुटर चलाते गिर गया था।
भागकर उसे संभालना चाहती थी। लेकिन कुछ सोचकर पीछे हट गयी। अपनी साथी नीता को उसने उसका ध्यान रखने को कहा। ऋतिक के नशा छुडाने
की कोशिश होती रही। ऋतिक अब संभल गया था। सबका धन्यवाद कर वह चला गया।
धीरे धीरे उसने अपनी दिनचर्या बदल दी थी। अंतस से सुधार की कोशिश कर रहा था वह। उसे खुशी हो रही थी कि ऋतिक ने अपने आप को कोशिश कर नशामुक्त कर दिया।
सोच रही थी वह, जैसे मेरा पीहर हरियाला हुआ, सबका घर संसार खुशहाल हो।
रीतेश को भी सुधरने का मौका दिया जा सकता है न ? अंतर्मन से आवाज आयी।
वैसे इंसान वह अच्छा है। खामियां सब में होती है। कुछ गलत सोच धारा में बहते उफान आ जाता है। नशे में इंसान शैतान हो जाता है।
नीता को ही उसने यह काम सौंपा। समझा बुझा कर, वह रीतेश को नशा मुक्ति केंद्र पर ले आयी।
लगाताल कोशिश, नशा मुक्ति केंद्र के सदस्यों के सहयोग से रीतेश के खस्ताहाल स्वास्थ्य में सुधार होने लगा। पश्चाताप की अग्नि में जल रहा था वह। काश, मैं ने मीता से दुर्व्यवहार न किया होता। किसी की बातों में आकर उसे बेघर न करता।
आज नशा मुक्ति केंद्र में केंद्र की संस्थापिका अरूणा जी का जन्मदिन मनाया जा रहा था। सभी अपने मनोभाव व्यक्त कर रहे थे।
रीतेश धीरे धीरे मंच पर आया। सबको अभिवादन कर सबका शुक्रिया अदा किया। दिल से निकले उसके बोल सब ध्यान से सुन रहे थे।
” यहां आकर मैं ने नव जीवन पाया है।
मैं शैतान था, मुझे आप सबने इंसान बना दिया।”
वह आगे बोलता रहा,
” काश! आप मुझे पहले मिलते। मैं मेरी प्यारी बीबी मीता को न खोता। मीता, मुझे माफ कर दो।”
फफक-फफक कर रोने लगा वह। सबकी आंखे नम हो रही थी।
मीता भी अपने आप को रोक न पायी। आगे बढकर उसने रीतेश का हाथ थाम लिया। आश्चर्य मिश्रित खुशी से रीतेश उससे लिपट गया। मधुर मिलन की इस बेला को तालियों की गूंज ने सजा दीया।
नव जीवन का ख्वाब सजाते दोनों की आंखों से उन्मुक्त आंसू बह रहे थे।
स्वरचित मौलिक कहानी
चंचल जैन
मुंबई, महाराष्ट्र