मेरे मकान मालिक का अपनापन – मीनाक्षी सिंह

उन दिनों मैं कृष्ण की नगरी मथुरा रहा करती थी ! मकान मालिक जाति से भारद्वाज थे ! और बहुत ही सम्पन्न थे ! पंडितों का घर था ! खूब पूजा पाठ होती थी ! मैं केन्द्रिय विद्यालय में शिक्षिका थी ! मेरा आठवां महीना चल रहा था ! पतिदेव दिल्ली नौकरी करते थे ! सास ससुर दूसरे शहर में रहते थे ! 

मेरी माँ अभी हाल ही में मेरी देखभाल के लिए आ गयी थी ! मेरी मकान मालकिन ने मेरे इस कठिन समय में बहुत साथ दिया ! जब भी मेरा कुछ चटपटा खाने का मन होता ,पता नहीं वो कैसे जान जाती ,,मूंग की दाल के मंगोडे ,आलू टिक्की ,इडली सांभर तरह तरह के पकवान बनाकर दे जाती ! मैं संकोच करती लेने में ,,कहती ,,मैं बना लेती आंटी ! वो सोचती कहीं इसे झेंप ना लगे ,,कहती ,,तुम्हारे सहारे बच्चों के लिए भी कुछ अच्छा बन जाता हैं ,,वैसे भी कई दिनों से बच्चें ज़िद कर रहे थे बनाने की !! लो अच्छे से खा लो ,,लड्डू (मकान मालकिन का बेटा ) के हाथ और भिजवा दूंगी ! 

मेरी माँ बहुत ही कच्चे मन की थी ! हाल ही में पिता जी के जाने के बाद बहुत डरने लगी थी छोटी छोटी सी बातों से ! मैने पूरे प्रसव काल में अपनी नौकरी जारी रखी ! सोमवार को छुट्टी के लिए आवेदन किया ! शनिवार को नवरात्री का पहला दिन था ! मैं और माँ ने सुबह ही पूजा की ,,अग्यारी की ! माता रानी की आरती की ! दोपहर से ही मुझे हल्के दर्द शुरू हो गए ! पर मैने सोचा ऐसा दर्द तो हर रोज थोड़ा थोड़ा होता हैं ! वैसे भी पहली बार माँ बन रही थी ,,इतनी ज़ानकारी भी नहीं थी ! शाम होते होते अचानक से मैने माँ से बोला माँ मुझे ज्यादा दर्द हो रहे हैं ! तभी मुझे एमनियोटिक द्रव ( पानी जैसा तरल द्रव्य ज़िसमे बच्चा सुरक्षित रहता हैं ) ,,का बहाव शुरू हो गया ! माँ एक दम से घबरा गयी ! दौड़ती हुई मकान मालकिन के पास गयी ,,मकान मालकिन आटे सने हाथों से ही दौड़ती हुई आयी ,,उनकी सास भी गेहुं कटोरे में लिए मेरे कमरे में आयी !

 मैं बस रोये जा रही ,,कि ये क्या हो रहा हैं मुझे ! मेरे साथ माँ भी रो रही ! उन लोगों ने माँ और मुझे समझाया ,,अरे डरने की कोई बात नहीं ,,हम हैं ना ! तुरंत उन्होने मकान मालिक को फ़ोन किया ,,मकान मालिक कहीं बाहर मीटिंग में थे ! कुछ ही पलों में वो गाड़ी लेकर आ गए ! अभी हाल ही में नयी फोरचयूनर निकाली थी उन्होने ! उनकी सास ने मेरे बेड के कोने में,, मन में कुछ बोलकर,, गेहुं को रख दिया ! मुझे दूध में देसी घी मिलाकर पिलाया ! मेरे सर पर हाथ फेरा ! मेरा पानी का बैग फट चुका था ! मुझे सहारा देकर गाड़ी में बैठाया ! उनकी नई कार मेरी वजह से गंदी हो गयी ! रास्ते भर मकान मालिक और मालकिन कहते रहे ,मीनाक्षी कुछ खा ले ,,बच्चा होने के बाद कुछ खाने को नहीं मिलेगा ! मेरा मनोरंजन कराते रहे कि मुझे दर्द का कम एहसास हो ! पर मैं तो घबरायी हुई बस रो रही थी !माँ मन ही मन माता रानी का जाप कर रही थी ! मेरे पतिदेव और सासु माँ को भी उन्होने ही फ़ोन किया ! 

हम अस्पताल आ गए ! डॉक्टर बोलती कुछ देर और कर देते तो बच्चें का पेट में ही दम घुट जाता ! तुरंत ऑपेरेशन करना पड़ेगा ! इनके पति कहाँ हैं ?? उनसे कागजी कार्यवाही पूरी करवा लिजिये ! 

इनके पति तो रास्ते में हैं ,,अभी पहुँचे नहीं हैं ! मकान मालिक बोले ! 

फिर कोई और परिवार का हो उसके साईन करवा लिजिये ! मेरी माँ की हालत ऐसी नहीं थी कि वो कुछ भी सोच पाये ! उन्होने मकान मालिक से कहा – अब आप ही सब कुछ कर रहे हैं,,आप ही साईन कर दिजिये ! 

उन्होने पतिदेव से पूछ कर ऑपेरेशन की हामी भर दी ! 

डॉक्टर कहती – आगे से चैन वाली मेक्सी लाये हैं आप ! मकान मालिक बाजार से फौरन ले आये ! 

डॉक्टर – पचास हजार रूपये काऊंटर पर जमा करवा दिजिये ! 

माँ – मुझे तो अपना ए टी एम नंबर ही नहीं पता हैं ,,सब काम बच्चें करते आये हैं ,,ये दस हजार रूपये थे वो ले आयी हूँ ! बेटी से पूछ लिजिये ,,उसे नंबर पता हैं ! 

ऐसी हालत में मुझसे पूछना उचित नहीं समझा उन्होने,,तुरंत खुद से पैसे जमा कर दिये ! 

रात के 8 बजे मेरा ओपरेशन हुआ ! मकान मालकिन ने ही मेरा अनय पहली बार हाथ में लिया ! बच्चा थोड़ा नीला पड़ गया था ! 

मुझे ऑपेरेशन रूम से मेरे वार्ड में ले जा रहे थे तभी रास्ते में मकान मालकिन कहती – मीनाक्षी ल्ड्डू गोपाल आये हैं ! तुम्हारी तरह सुन्दर सा सलोना बेटा हैं ! तुम्हारे उनको भी बता दिया है ! बहुत खुश हैं,,बस पहुँचने वाले हैं ! इतना सुनकर मैं निश्चिंत हो गयी ! और आँखों के इशारें से उन्हे धन्यवाद कहा ! 

लोग कहते हैं बच्चें को पहला कपड़ा ससुराल का पहनाना चाहिए पर मेरे बेटे ने पहला कपड़ा मकान मालकिन के बेटे का पहना ! पतिदेव घबराते हुए आये ! रात के 10 बज गए थे ! आते ही मुझे देखा और मकान मालकिन और मालिक दोनों के थके हुए चेहरे देखें ! और उन्हे भीगी पलकों से उनका हाथ पकड़कर उनका आभार व्यक्त किया ! ये इधर उधर देख रहे थे ,शायद बेटे को तलाश रहे थे ! मकान मालिक बोले – लाला ठीक हैं ,,दो दिन के लिए मशीन में रखा हैं बस ! तब इनकी जान में जान आयी ! 

मकान मालिक ,,मालकिन ,,माँ,, सब भूखे प्यासे बैठे थे ,, पतिदेव सबके लिए कुछ खाने को लाने के लिए उठे ! उनका हाथ पकड़ कर रोक लिया ,,खाना आ रहा हैं घर से ,,फ़ोन कर दिया हैं ,,अम्मा बाबा भी आ रहे हैं मीनाक्षी को देखने ,,मकान मालकिन बोली ! 

 सभी लोग रात भर मेरे पास ही रुके रहे ! पूरे पांच दिन अस्पताल में मेरे लिए बराबर खाने पीने का इंतजाम उन्ही के घर से हुआ ! 

जब मैने अपने बेटे अनय का नामकरण संस्कार करवाया अपने ससुराल वाले घर में ! मकान मालकिन और सास के लिए भी साड़ी दी ! सासु माँ बोली – वो तो पराये हैं ,,उन्हे क्यूँ दी साड़ी ! 

मम्मी जी कभी कभी पराये लोग इतना कर देते हैं ,,कि अपने भी उनके आगे कुछ नहीं ! आज वो नहीं होते तो शायद ये नन्हा सा ज़िसे आप पूरे घर में घुमाती हैं ,,नहीं होता और शायद मैं भी नहीं होती,, मैने कहा !! 

बेटे के बाद भी मैं उस घर में चार साल रही ,, बेटी भी उसी घर में हुई ,,उसमे भी उतना ही सहयोग दिया उन्होने ! उनके सास ससुर तो मेरे बच्चों पर जान झिड़कते हैं ! मेरे बच्चें ज़ितनी बार भी बिमार होते ,,हर बार उन्ही को सबसे आगे पाया मैने ! 

उसी घर में मेरी सरकारी नौकरी लगी ,,अब मैं आगरा में अपनी नौकरी वाली जगह पर हूँ ! हमारा बातचीत का सिलसिला जारी हैं ! उनका एहसान मैं शायद मरते दम तक नहीं भूला पाऊंगी जब जब अपने बच्चों को देखूँगी ,,उनकी याद तो जरूर आयेगी ,,मेरे चेहरे पर मुस्कान तैर जायेगी ! अभी हाल ही में हम अपने घर का गृहप्रवेश कर रहे हैं ,,उम्मीद हैं ,,वो लोग भी ज़रूर आयेंगे ! 

सही कहा हैं ,,

बुरे वक्त में जो साथ दे वो ही अपना होता हैं ,,

बाकी सब झूठा सपना होता हैं !!

तो सभी लोग मिलकर बोलिये 

शची ज्योतो वाली माता,,तेरी सदा ही जय ,,

बोल सांचे दरबार की जय !! 

#पराए_रिश्तें_अपना_सा_लगे

 

स्वरचित 

मौलिक अप्रकाशित 

मीनाक्षी सिंह

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