मेरा नाम ही मेरी पहचान है – संगीता अग्रवाल

सुरीली हां यही नाम था उसका बिल्कुल उसके नाम के अनुरूप कितनी सुरीली आवाज थी उसकी जो कानों में रस घोलती थी। गांव में भले रहती थी सुरीली पर दसवीं जमात पढ़ी थी तो समझदार भी थी।

“मेरी सुरीली अगर किसी मुर्दे के कान में भी बोल दे तो उसमे भी जान आ जाए!”बाबा अक्सर बोलते।

“मेरी सुरीली तो लाखों में एक है जिस घर जाएगी उस घर को स्वर्ग बना देगी!”मां उसे प्यार करते हुए बोलती।

“मेरी बहन सुरीली को तो कोई राजकुमार ब्याहने आएगा वो हमारी राजकुमारी जो है!”भैया कहां पीछे रहते।

वक़्त बीता सुरीली एक नवयौवना बन गई। अब शुरू हुआ उसके लिए राजकुमार ढूंढने का सिलसिला जो पास के शहर में जाकर ख़तम हुआ। सुरीली के बाबा और भाई को सौरभ सुरीली के लिए उपयुक्त लगा और देखना दिखाना करके रिश्ता पक्का कर दिया गया।

अब सुरीली श्रीमती सौरभ बन गई।

“अरे लल्ला की दुल्हनियां सबके पैर छुओ!”गृह प्रवेश होते ही दादी सास ने कहा।

“जी दादी जी!”बस इतना ही बोल पाई सुरीली।

“भाभी पापा बोल रहे खीर में चीनी कम रखना!”ननद पहली रसोई पर आकर बोली।

“जी दीदी!”सुरीली बोली।

किसी के लिए सुरीली बहुरिया थी , किसी के लिए भाभी , किसी के लिए लल्ला की बहू। पर उसकी पहचान उसका नाम कहीं नहीं था यहां। यहां तक की पति सौरभ भी उसे श्रीमती जी बोलते।



सुरीली मचल जाती अपनी पहचान के लिए कोई तो हो जो उसे उसके नाम से जाने पर नहीं यहां उसकी पहचान खो सी गई थी। अपनी पहचान के लिए वो बार बार पीहर जाने को मचल जाती क्योंकि वहां वो सुरीली थी बाबा की लाडली सुरीली मां की जान सुरीली भाई की राजकुमारी सुरीली।

“क्या शादी के बाद लड़की का खुद का वजूद नहीं रहता कुछ उसकी पहचान खो जाती है!”सुरीली के मन में अक्सर ये सवाल आते जिसके जवाब देने वाला यहां कोई नहीं था।

“मां मुझे वहां कोई सुरीली क्यों नहीं बोलता इतना अच्छा नाम है मेरा पर सबने अपने अनुरूप मेरा नाम रख दिया!”मायके आकर सुरीली मां से बोली।

“बेटा यही होता है एक लड़की की पहचान शादी के बाद मानो खो सी जाती वो किसी की बहुरिया, किसी की भाभी किसी की पत्नी भर रह जाती और इन्हीं नामों से संबोधित किया जाता उसे!”मां प्यार से समझाती।

“पर मां मुझे अपनी भी एक पहचान चाहिए क्यों आपने मुझे इतना काबिल ना बनाया कि मेरी भी पहचान होती !”सुरीली मचल जाती।

“बेटा तेरे पति से ही अब तेरी पहचान है सब लड़कियों के साथ यही होता तू कौन सा अनोखी है!”मां बोलती।

 

 

पर सुरीली को ये पहचान रास ना आती। उसके पति को तो उसके मायके में कोई सुरीली का दूल्हा , या जमाई जी नहीं बोलता सब सौरभ जी बोलते फिर उसी से क्यों उसकी पहचान छिन गई।

“ईश्वर अगले जन्म मुझे बिटिया ना बनाना और यदि बनाना तो इतना काबिल बनाना कि लोग मुझे मेरी पहचान मेरे नाम से जाने मेरे पति के नाम से ना। बल्कि किसी भी लड़की के साथ ऐसा मत करना क्योंकि अपनी बचपन से लेकर जवानी तक की पहचान भूल झटके से पति की पहचान से जाना जाना बहुत दर्द देता!”कहीं से कोई जवाब ना मिलने पर सुरीली रोते हुए ईश्वर से यही विनती करती।

दोस्तों आपकी बेटी जब आपकी जान होती तो क्यों नहीं उसे उसकी पहचान बनाने दी जाती है। पहले उसे उसकी पहचान बनाने दो अपना नाम बनाने दो तब शादी करो जिससे को किसी की बहू, पत्नी , भाभी के साथ साथ अपने नाम से भी जानी जाए। जिससे कल को कोई बेटी ना कहे कि ईश्वर अगले जन्म मुझे बिटिया ना बनाना।

आपकी दोस्त

संगीता अग्रवाल 

 

 

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